पंकज जगन्नाथ जायसवाल
चीन आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य महाशक्ति बनने के लिए विस्तारवादी रवैये के साथ वैश्विक बाजारों और संसाधनों पर कब्जे की रणनीति पर चल रहा है। निश्चित रूप से भारत उसकी राह में रोड़ा है, इसलिए वह भारत की भी घेराबंदी करने की चेष्टा में है। वहीं भारत ने भी अंतरराष्ट्रीय गठबंधन, आत्मनिर्भता की रणनीति बना चीन को धोबीपछाड़ देने के लिए कमर कस ली है
वैश्विक महाशक्ति बनने की चीन की चालाकी की पूरी दुनिया, विशेषकर विकासशील देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। चीन का मंसूबा विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य महाशक्ति बनने का है। इसके लिए वह कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रहा है। चीन अपने क्षेत्र का विस्तार करने और ऋण जाल नीति के साथ वैश्विक बाजार पर कब्जा करने की रणनीति पर अमल करने के अलावा जिन देशों से उसे चुनौती मिल सकती है, वहां अशांति फैलाने के लिए नक्सलवाद और आतंकवाद, जैविक युद्ध, मानवाधिकारों के उल्लंघन आदि का भी उपयोग कर रहा है।
समग्रता में देखें तो चीन की कूटनीति 5 ‘डी’ (ऋण-डेब्ट, धूर्तता-डिसीट, प्रभुत्व-डॉमिनेट, मांग-डिमांड, नष्ट-डिस्ट्रॉय)पर आधारित है। चीन की यह कूटनीति कितनी प्रभावशील है, इसे हाल के समय में सबने देखा है। आखिर किस डर ने दुनिया के अधिकांश देशों को वुहान कोरोना वायरस के खिलाफ बोलने के लिए प्रेरित नहीं किया? चीनी सरकार द्वारा उइगर मुसलमानों पर किए गए अत्याचारों के बारे में कितने मुस्लिम देश मुखर हैं? ये कुछ ऐसे अनुत्तरित सवाल हैं जो चीन की कूटनीति के असर के बारे में बताते हैं।
चीन की ऋण जाल नीति तीन मोर्चों, 1. आर्थिक, 2. राजनीतिक और 3. सामरिक स्थानों पर सैन्य अड्डा, पर लाभ पाने के इरादे से गढ़ी गई है। मैं यहां कुछ कहानियां रखना चाहता हूं जो इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि कैसे चीन अपने धन और बाहुबल का दुरुपयोग कर रहा है:
24 देशों के साथ हस्ताक्षरित 100 अनुबंधों के बारे में एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के हाल ही में किए गए एक अध्ययन से स्पष्ट रूप से पता चला है कि चीन का उद्देश्य कम ब्याज दरों के साथ भारी ऋण देना है, जिसका लेनदार देशों द्वारा वापस भुगतान नहीं किया जा सकता। फिर अवसरवाद, विस्तारवादी रवैया अपनाना और धूर्त आर्थिक महाशक्ति बनने के उसके सपने का समर्थन नहीं करने वाले राष्ट्रों का मुकाबला करने के लिए सैन्य ठिकानों के निर्माण के लिए उनके संसाधनों, बाजार, बुनियादी ढांचे और रणनीतिक स्थानों पर नियंत्रण करना, यही चीन की चाल है।
तजाकिस्तान: कर्ज के जाल में फंसे इस देश के 1,158 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन ने कब्जा कर लिया है और खनिज, सोना, चांदी जैसे प्राकृतिक संसाधनों को खोदकर वह खुद को सशक्त बना रहा है।
लाओस : कर्ज के बदले चीन के साथ 25 साल का करार। चीनी कंपनियों ने उसके राष्ट्रीय ग्रिड पर नियंत्रण कर लिया है, वे बिजली का निर्यात कर रही हैं और उनके बाजार को भी हथियाकर भारी मात्रा में पैसा कमा रही हैं।
मोंटेनेग्रो : चीन ने राजमार्ग निर्माण के लिए 80 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया जिसे चुकाना नामुमकिन है। इस उच्च वित्त पोषण का कारण यह है कि यह राजमार्ग यूरोप का सीधा प्रवेश द्वार है।
अंगोला:यहां के कच्चे तेल के भंडार अब चीन के नियंत्रण में हैं, जिससे अंगोला की अर्थव्यवस्था को और अधिक नुकसान हो रहा है।
भारत की घेराबंदी
चीन भारतीय पड़ोसियों का इस्तेमाल कर भारत का मुकाबला करने के लिए कई प्रयास कर रहा है। श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, मालदीव और बांग्लादेश, ये देश पहले से ही उसके जाल में फंसे हुए हैं। हम पाकिस्तान को चीन के स्वाभाविक सहयोगी के रूप में अच्छी तरह समझ सकते हैं।
श्रीलंका : कर्ज न चुकाने पर चीन को हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल के लिए लीज पर दिया गया है। साथ ही 15,000 एकड़ जमीन चीनी कंपनियों को दी। निश्चित रूप से, यह भारत के खिलाफ एक रणनीतिक स्थान है और इसका व्यावसायिक दृष्टिकोण भी है।
पाकिस्तान: हम पाकिस्तान से कुछ भी अच्छे की उम्मीद नहीं कर सकते। पाकिस्तान अपनी भारत विरोधी नीतियों, आतंकवाद और धार्मिक उग्रवाद का समर्थन करने के कारण सामाजिक और आर्थिक रूप से ढहने के कगार पर है। वह चीन का गुलाम बन गया है। धीरे-धीरे चीन उनके महत्वपूर्ण स्थानों, बंदरगाहों, संसाधनों को अपने नियंत्रण में ले रहा है और उन्हें आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर कर रहा है।
मालदीव: कर्ज के जाल में फंसा एक और देश चीन के घिनौने करार के कारण टूटने के कगार पर है।
भारत की रणनीति
तो, चीन के दुस्साहस और रणनीति का मुकाबला करने के लिए भारत क्या कर रहा है?
मौजूदा केंद्र सरकार चीन की दबाव वाली रणनीति के आगे झुकने के मूड में नहीं है। चीन का मुकाबला करने के लिए पहले ही कई पहल की जा चुकी हैं और रक्षा बलों, व्यापार, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, तकनीकी प्रगति में मजबूत तंत्र विकसित किए जा रहे हैं।
सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति ‘क्वाड’ (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) है। भारत, अमेरिका, जापान और आॅस्ट्रेलिया ने मजबूती से हाथ मिलाया और कूटनीति के इस नए तरीके ने चीन को बैकफुट पर ला दिया। चीन किसी भी दुस्साहस से पहले सौ बार सोचेगा; इससे चीन को आर्थिक और सैन्य रूप से अधिक नुकसान होगा।
भारतीय सेना में बेहतर बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के साथ जमीनी स्तर पर उन्नत रक्षा बलों की क्षमताओं के साथ-साथ तकनीकी रूप से उन्नत हथियार और गोला-बारूद को शामिल किया गया है और आने वाले वर्षों में सैन्य क्षमता बढ़ाई जाएगी।
पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक मई 2020 में दिखा जब उन्होंने आत्मानिर्भर भारत की घोषणा की और वे उस दिशा मे तेजी से पहल कर रहे हैं। इस पहल ने 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने के सरकार के दृष्टिकोण को एक बड़ा समर्थन दिया है, हालांकि इसमें कोरोना महामारी के कारण देरी होगी। यहां पर प्रश्न उठता है कि भारत के विकास के लिए आत्मनिर्भर भारत पहल क्यों महत्वपूर्ण है और यह वैश्विक बाजार में भारत की स्थिति को कैसे बदलेगी। वस्तुत:, चीन के साथ हमारा आयात/निर्यात अनुपात बड़े पैमाने पर चीन के पक्ष में है। भारत में हर क्षेत्र में प्रतिभा का पूल है और युवाओं का बड़ा पूल बेरोजगार है। फिर भी, हम चीन को प्रमुख व्यावसायिक अवसर दे रहे हैं, जिसका उपयोग भारत में उपलब्ध ज्ञान, कौशल और प्रौद्योगिकी के साथ किया जा सकता है। वृद्धिशील नवाचार चीन से विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की कुंजी है।
भारत लगभग 55 प्रतिशत फर्नीचर, लगभग 72 फीसद खिलौने, फार्मास्युटिकल कच्चे माल, भारी मात्रा में बिजली और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, अगरबत्ती, मूर्तियां, रबर टायर का आयात कर रहा है, यह सूची लंबी है।
आत्मनिर्भर भारत पहल के साथ उलटफेर शुरू हो गया है। हम इस पहल के प्रभाव को देख रहे हैं और निकट भविष्य में घरेलू बाजार के साथ-साथ वैश्विक बाजार पर एक बड़ा प्रभाव उत्पन्न होगा। हम न केवल घरेलू जरूरतों को पूरा करेंगे बल्कि कई क्षेत्रों में वैश्विक बाजार पर भी कब्जा करेंगे। हमने पहले ही चीन से निवेश/कंपनियों को छीनना शुरू कर दिया है और यह रुझान और बढ़ेगा क्योंकि हम व्यापार सुगमता, बेहतर बुनियादी ढांचे, हर क्षेत्र में कुशल जनशक्ति, अनुसंधान और विकास, शैक्षिक सुधारों के साथ विकास मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं।
आत्मनिर्भर भारत के तहत कुछ विकास
- इलेक्ट्रॉनिक घटक और उपकरण निर्माण शीर्ष एजेंडे में है। आने वाले 5 वर्षों में 10.5 लाख करोड़ रुपये के मोबाइल फोन का उत्पादन करने की योजना है। इसका 65 फीसदी निर्यात किया जाएगा।
- इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसीचिप्स) का निर्माण; पहला संयंत्र 2 साल में चालू हो जाएगा।
- टीवीसेट, रबर टायर और कुछ और वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- खिलौना और फर्नीचर उद्योग को आवश्यक सहायता प्रदान की जा रही है। हम आने वाले वर्षों में शुद्ध निर्यातक बन जाएंगे। भारत के खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से फरवरी 2021 में देश का पहला राष्ट्रीय खिलौना मेला डिजिटल रूप से शुरू किया गया था।
- व्यापार सुगमता दिन-ब-दिन आकर्षक होती जा रही है, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित हो रहा है।
- कुछ कंपनियां पहले ही चीन से भारत में स्थानांतरित हो चुकी हैं या होने की प्रक्रिया में हैं। हालांकि यह चुनौतीपूर्ण है, हम इसे वास्तविकता बनाने के लिए नीतियों में आवश्यक बदलाव कर रहे हैं।
- देश में 21,000 करोड़ रुपये (2.9 बिलियन डॉलर) का सबसे बड़ा फंड आईआईटी पूर्व छात्र परिषद द्वारा आत्मनिर्भरता की दिशा में मिशन का समर्थन करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।
- क्वॉयर उद्यमी योजना का उद्देश्य क्वॉयर से संबंधित उद्योग के सतत विकास को विकसित करना है।
- रिलायंस जियो द्वारा जुलाई 2020 में भारत के अपने ‘मेड इन इंडिया’ 5 नेटवर्क की घोषणा की गई।
- 2023 तक भारत उर्वरक उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा।
- अगस्त 2020 में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि 5 साल की अवधि में चरणबद्ध तरीके से ‘101 वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध’ लगाकर रक्षा मंत्रालय ‘अब आत्मनिर्भर भारत पहल को एक बड़ा आकार देने के लिए तैयार है’।
- भारत में कोविड-19 टीकों का अनुसंधान, विकास और निर्माण आत्मनिर्भर भारत से जुड़ा था।
- आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में, कई सरकारी फैसले हुए जैसे एमएसएमई की परिभाषा बदलना, कई क्षेत्रों में निजी भागीदारी की गुंजाइश बढ़ाना, रक्षा क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाना; और इस विजन को सौर विनिर्माता क्षेत्र जैसे कई क्षेत्रों में समर्थन मिला है।
- ‘ब्रेनड्रेनटूब्रेनगेन’ पहल शुरू की गई। इसका उद्देश्य भारत के डायस्पोरा को शामिल करना था। इस उद्देश्य में इन-स्पैक जैसे नए संगठन मदद करेंगे।
- जितना अधिक ‘मेक इन इंडिया’ वस्तुओं को हम खरीदते और बढ़ावा देते हैं, हम अपने देश को आर्थिक और विश्व स्तर पर मजबूत करते हैं और कर रहे हैं।
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