बालेन्दु शर्मा दाधीच
चीन की एअरोस्पेस साइंड ऐंड इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन पूरी दुनिया में नि:शुल्क इंटरनेट मुहैया कराने की योजना बना रही है। इससे अथाह डेटा चीन की पहुंच में होगा और विश्व शक्ति के रूप में उसके उभार को मजबूती मिलेगी
सुना आपने? चीनी एअरोस्पेस साइंस ऐंड इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन का इरादा दुनिया में नि:शुल्क इंटरनेट मुहैया कराने का है। कमाल का समाज कल्याण का विचार है चीन का! तो क्या हमें इस खबर पर खुश होना चाहिए कि कुछ साल बाद हमें इंटरनेट कनेक्टिविटी नि:शुल्क मिल जाएगी, या फिर हमें चीन की तकनीकी छलांगों और उसके दूरगामी इरादों के बारे में भी कुछ सोचना चाहिए? चीन की होंग्युन परियोजना के तहत पूरी दुनिया को कवर करने के लिए सन् 2026 तक 272 उपग्रह स्थापित किए जाने हैं।
प्रक्रिया लंबी लेकिन महत्वाकांक्षी है क्योंकि अगर दुनिया नि:शुल्क चीनी ब्रॉडबैंड का सेवा इस्तेमाल करती है तो अथाह डेटा चीन की पहुंच में होगा, उस पर बहुत बड़ी आबादी की निर्भरता होगी और विश्व शक्ति के रूप में चीन के उभार को मजबूती मिलेगी। हालांकि उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाओं में उपग्रह का काम आपके कंप्यूटर और इंटरनेट सेवा प्रदाता के बीच की कड़ी बनना है। अमूमन यहां डेटा के साथ छेड़छाड़ की उम्मीद नहीं की जाती लेकिन वह उपग्रह- निर्माता के मंसूबों पर निर्भर करता है। और चीन के मंसूबों को लेकर आईटी और संचार की दुनिया में फिलहाल कोई आश्वस्त नहीं है।
विनिर्माण की बड़ी ताकत के नाते चीन के उपकरण पहले ही दुनिया के हर हिस्से में मौजूद हैं। उसकी कंपनियां इस पहुंच का पूरा लाभ उठा रही हैं। पिछले एक दशक से हमारे देश में हुआवेई पर डेटा की अनधिकृत एक्सेस के आरोप लग रहे हैं। लगभग दस साल पहले उसने बीएसएनएल को जो संचार उपकरण सप्लाई किए थे, उनमें ऐसी जासूसी में सहायक तकनीकों की मौजूदगी का शक था। 2010 में भारत का एक संचार उपग्रह इनसैट 4बी एक वायरस के जरिए हैक कर लिया गया था और इस अजीब-सी कहानी के तार कहीं न कहीं चीन से जुड़े थे। अमेरिका बरसों से आरोप लगाता रहा है कि चीनी सेना की छत्रछाया में हैकरों की पूरी की पूरी फौज काम कर रही है जिसने पिछले एक दशक से भारत समेत दुनिया भर की सरकारों की नाक में दम कर रखा है। एक बार ऐसे हैकरों का वीडियो इंटरनेट पर लीक भी हो गया था।
इसके विपरीत, चीन का अपना साइबर स्पेस काफी हद तक सुरक्षित है जिसमें गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसे बहुराष्ट्रीय दिग्गजों की एन्ट्री लगभग बैन है। चीन में सूचनाओं, चर्चाओं और ई-कॉमर्स के अपने, घरेलू सिस्टम हैं जहां हर वैश्विक ब्रांड का विकल्प तैयार है। अलीबाबा, बाइदू, रेनरेन, शीना जैसे नाम अब हमारे लिए भी अनजान नहीं हैं और उनमें से कुछ तो दुनिया की इंटरनेट इकोनॉमी में दबदबा रखते हैं। याद रहे, जहां चीन अपने स्पेस नेटवर्क से पूरी दुनिया को इंटरनेट मुहैया कराने चला है वहीं खुद चीन में दुनिया की किसी कंपनी को संचार या इंटरनेट सेवाएँ मुहैया कराने की इजाजत नहीं है।
याद रहे, भविष्य के युद्ध साइबर स्पेस में लड़े जाने हैं। आज सैन्य व्यवस्था, संचार व्यवस्था और तमाम किस्म का इन्फ्रास्ट्रक्चर इंटरनेट से जुड़ा है। इसे डगमगाने के लिए अब मिसाइल छोड़ने या जंगी जहाजों को भेजने की जरूरत नहीं है, साइबर हैकिंग ही काफी है। इसकी मिसाल हमने 2007 में एस्तोनिया में देखी है जहां साइबर हमलों के बाद सब कुछ ठप हो गया था- सरकारी कामकाज, बाजार, बिजली, बैंक, ट्रैफिक लाइटें आदि सब कुछ!
चीन अगले दो साल में इतने उपग्रह स्थापित कर चुका होगा कि नि:शुल्क इंटरनेट ब्रॉडबैंड परियोजना का परीक्षण शुरू कर सके। जिस चीन को अभी हाल तक आईटी क्षेत्र में पिछड़ा हुआ माना जाता था (हार्डवेयर को छोड़कर), वह जिस तेजी के साथ इस क्षेत्र में बढ़त बना रहा है वह प्रभावशाली भी है और हैरतअंगेज भी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि चीन किसलिए दुनिया को नि:शुल्क इंटरनेट देने की उदारता दिखा रहा है? किसी और क्षेत्र में तो उसने कभी ऐसा नहीं किया?
माना कि धनी देशों में नि:शुल्क इंटरनेट सेवा की जरूरत नहीं पड़ेगी और वहां पर चीन की पेशकश का स्वागत किए जाने की कोई संभावना नहीं है। लेकिन दुनिया की आबादी और क्षेत्रफल का अधिकांश हिस्सा गरीब और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का है जहां इंटरनेट का बुनियादी ढांचा आज भी न सिर्फ बेहद अपर्याप्त है बल्कि खर्चीला भी है। ऐसे देशों को चीनी पेशकश को स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होगी, उसी तरह से जैसे कि उन्होंने खतरनाक परिणामों की आशंकाओं को नजरअंदाज करते हुए चीन के कर्ज को स्वीकार किया है। डर है कि कहीं चीन की इंटरनेट परियोजना डिजिटल दुनिया पर चीन के नियंत्रण का जरिया न बन जाए। यह भी याद रखने की जरूरत है कि आज डिजिटल माध्यमों पर नियंत्रण का अर्थ कहीं गहरा है क्योंकि डिजिटल और भौतिक के बीच रिश्ता निरंतर प्रगाढ़ होता जा रहा है।
(लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)
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