जम्मू-कश्मीर में हाल ही में मारे गए एक आतंकी के बारे में जांच करने पर सुरक्षा एजेंसियों को कुछ चौंकाने वाली जानकारियां मिली हैं। इससे जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। अधिकारियों को पता चला है कि पढ़ाई के लिए जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तान जाने वाले युवा आतंकवादी बन कर लौटते हैं।
इस साल 24 जुलाई को सुरक्षाबलों ने बांदीपुरा में मुठभेड़ में शाकिर अल्ताफ भट सहित तीन आतंकियों को मार गिराया था। वह बांदीपुरा का ही रहने वाला था। बाद में उसके बारे में जांच करने पर जो जानकारियां मिलीं, उससे सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ गई हैं। अधिकारियों को पता चला कि अल्ताफ भट 2018 में वैध पासपोर्ट पर पढ़ने के लिए पाकिस्तान गया था, लेकिन वहां से आतंकवादी बनकर लौटा। इसके बाद सुरक्षा अधिकारियों ने 2015 और 2019 के दौरान जितने भी पासपोर्ट जारी किए गए थे, सबकी जांच की। पता चला कि इस दौरान 40 युवकों को पासपोर्ट जारी किए गए थे। ये सभी पढ़ाई के लिए पाकिस्तान या बांग्लादेश गए थै। लेकिन इनमें से 28 ने बाकायदा प्रशिक्षण लेकर आतंकवादियों के रूप में देश में घुसपैठ की। इसके अलावा 100 से अधिक कश्मीरी युवा कम अवधि वाले वीजा पर पाकिस्तान गए। लेकिन वे या तो वापस नहीं आए या वापस लौटे भी तो तीन साल बाद गायब हो गए। सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि ये सीमा पार सक्रिय आतंकी समूहों के ‘स्लीपर सेल’ हो सकते हैं।
40 युवक कहां गए?
सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि अल्ताफ भट आतंकवाद का रास्ता छोड़कर नेता बने उस्मान माजिद को मारना चाहता था। माजिद पर पहले भी तीन बार हमले के प्रयास हो चुके थे। अधिकारियों ने कहा कि पिछले साल 1-6 अप्रैल के बीच दक्षिण कश्मीर के शोपियां, कुलगाम और अनंतनाग जिलों के कुछ युवकों को आतंकियों की घुसपैठ कराने वाले समूहों के हिस्से के रूप में देखा गया था। ये सभी वैध दस्तावेजों पर पाकिस्तान गए थे, लेकिन वापस नहीं लौटे। उन्होंने कहा कि वाघा बॉर्डर पर और नई दिल्ली हवाईअड्डे पर आव्रजन अधिकारियों के साथ सुरक्षा एजेंसियों ने इन पर निगाह रखी। इस दौरान पता चला कि कम से कम 40 युवक, जो पढ़ाई के लिए बांग्लादेश या पाकिस्तान गए थे, वे लापता हो गए। इसके अलावा, एहतियातन अधिकारियों ने घाटी के उन युवाओं से भी पूछताछ की, जो बीते तीन साल में सात दिनों से अधिक की अवधि के लिए वैध वीजा पर यात्र की थी।
ऐसे पता चला अधिकारियों को
अधिकारियों ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियों ने पूछताछ में उन युवकों के पाकिस्तान जाने की वजह पूछी। साथ ही, इन सभी की पृष्ठभूमि और इनके दस्तावेजों की जांच की। लेकिन अधिकारी यह देख कर चौंक गए कि कुछ युवा कभी वापस लौटे ही नहीं, जबकि कुछ लौट कर आने के बाद गायब हो गए। इससे अधिकारियों का संदेह पुख्ता हो गया कि वे ‘स्लीपर सेल’ के तौर पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई या सीमा पार स्थित आतंकी समूहों के अपने आकाओं के निर्देशों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अधिकारियों ने उन युवाओं को भी पूछताछ के लिए बुलाया है, जिन्होंने दो साल पहले पाकिस्तान की यात्रा की थी। सुरक्षा एजेंसियां इन युवाओं की वापसी के बाद की गतिविधियों का विश्लेषण कर रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि लापता होने वाले युवक औसत मध्यम वर्गीय परिवारों के हैं। उन्हें कश्मीर में आतंकवाद के नए चेहरे के रूप में पेश किया गया है। संभवत: ये लोग हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं, क्योंकि नियंत्रण रेखा पर सख्ती के कारण हथियारों और विस्फोटकों की आपूर्ति काफी हद तक बंद हो गई है।
सत्यापन में सख्ती के निर्देश
हाल ही में पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा था कि घाटी के 69 युवक आतंकी समूहों में शामिल हो चुके हैं। इस साल शुरुआती छह महीनों में शामिल होने वाले स्थानीय युवाओं की संख्या 85 से घटकर 69 हो गई। हालांकि कुछ भर्ती हो रही है, जिसके लिए समाज और एजेंसियों को इस ‘दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति’ को रोकने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए।
इस बीच, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक निर्देश जारी कर सत्यापन करने वाली विशेष शाखा से कहा कि ‘‘पासपोर्ट और किसी अन्य सरकारी योजना से संबंधित सत्यापन के दौरान कानून-व्यवस्था में व्यक्ति की भागीदारी तथा पत्थरबाजी में उनकी संलिप्तता की खासतौर से जांच सुनिश्चित करें।’’ आदेश में यह भी कहा गया कि पुलिस थानों के रिकॉर्ड में उपलब्ध सीसीटीवी फुटेज, तस्वीरों, वीडियो और ऑडियो क्लिप, क्वाडकॉप्टर से ली गई तस्वीरें आदि डिजिटल प्रमाणों का पता लगाएं। ऐसे किसी भी मामले में शामिल पाए जाने वाले व्यक्ति को सुरक्षा मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए।
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