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किराए के कंधों पर चल रहा षड्यंत्रकारी आंदोलन

by WEB DESK
Jun 26, 2021, 08:01 pm IST
in दिल्ली
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आशीष कुमार 'अंशु' 

आंदोलन को बताना चाहिए कि जिस मुकेश को उनके बीच जिन्दा जला दिया गया, उसके परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेवारी क्या अब आंदोलन लेगा? मुकेश के पीछे उनकी पत्नी रेणु और 9 साल का बेटा राहुल है। मुकेश तीन भाइयों में सबसे बड़ा था।
 
अब जब केन्द्र सरकार ने एमएसपी में वृद्धि कर दी और किसानों की उपज की कीमत सीधे उनके खाते में जाने लगी फिर किसानों का नाम इस्तेमाल करके आंदोलन की कोई खास वजह बची नहीं थी। किसानों के प्रति केन्द्र सरकार के सकारात्मक रुख ने इस भ्रम को भी किसानों के बीच से दूर किया है कि एमएसपी और मंडी व्यवस्था को वर्तमान सरकार खत्म कर देना चाहती है। इसी का परिणाम है कि पूरा कथित आंदोलन इतने बड़े देश के दो राज्यों पंजाब और हरियाणा में सीमट कर रह गया है। किसान आंदोलन की टोली पश्चिम बंगाल चुनाव में भी गई थी। वहां उन्हें अधिक महत्व नहीं मिला लेकिन इनसे प्रभावित होकर बंगाल की एक बेटी जरूर हरियाणा में आंदोलन का साथ देने आ गई थी। जिसके साथ कथित तौर पर उसी टेन्ट में बलात्कार हुआ, जहां सभी आंदोलनकर्मी रहते थे। आंदोलन से जुड़े योगेन्द्र यादव के बयान से यह बात भी सामने आई कि उस लड़की के साथ हो रहे अत्याचार की जानकारी नेताओं को थी।

यह पूरा आंदोलन अब मानो बलात्कार वाला आंदोलन ही बन गया है, जहां सिर्फ पश्चिम बंगाल की निर्भया के साथ नहीं बल्कि लाखों किसानों के विश्वास के साथ बलात्कार हुआ है। धीरे—धीरे इस डिजाइन आंदोलनजीवियों से असली किसान दूर हो रहे हैं और किसान बिल के विरोधियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। दिल्ली की सीमा पर लोगों का रास्ता रोक कर मुट्ठी भर किसानों ने जिद करके जिस तरह लाखों लोगों की जिन्दगी अस्त—व्यस्त कर रखी है, यह किसी आंदोलन के नहीं बल्कि आंदोलन के नाम पर पक रहे किसी षडयंत्र के लक्षण हैं।

अब इस आंदोलन को सात महीने पूरे हुए। इन सात महीनों में आंदोलन के नाम पर हुए तमाम तरह के अपराधों की वजह से समाज का विश्वास आंदोलनजीवियों पर खत्म हुआ है। आंदोलन की वजह से सात महीनों से परेशानी झेल रहे गांव वालों ने तंग आकर हरियाणा के शेरशाह गांव में 36 बिरादरी की महापंचायत की। जिसमें दिल्ली के 12 और हरियाणा के 15 गांव के लोग शामिल हुए। यह गांव आंदोलन वाली जगह से लगा हुआ है। अब गांव वाले चाहते हैं कि इस झूठे आंदोलन का टंटा खत्म हो। आंदोलन के नाम पर महिला पत्रकारों के साथ छेड़छाड़, लड़की के साथ बलात्कार, आंदोलन के टेन्ट में वेश्याओं को बुलाने की घटना, किसान को जिन्दा जला देने की खबरें जिस तरह सामने आई, उसके बाद भी इस कथित आंदोलन से जुड़े नेताओं के चेहरे पर शर्म की हल्की लकीर तक नजर नहीं आ रही है। मानों इनकी आंखों की शर्म खत्म हो गई हो। जिस तरह पूरा आंदोलन किसी देश विरोधी षडयंत्र में तब्दील होता हुआ नजर आ रहा है, ऐसे में आंदोलन स्थल के आस—पास के गांव के लोगों ने तय कर लिया है कि उन्हें अब किसानों के नाम पर चल रहे कथित आंदोलनकर्मियों के षडयंत्र का शिकार और नहीं होना। जल्दी ही अपना टेन्ट समेट कर यह मुट्ठी भर लोग बॉर्डर से नहीं गए तो एक बड़ी महापंचायत की इनकी योजना है, जिसमें आंदोलन के टेन्ट को हटाए जाने का निर्णय हो सकता है। आखिर स्थानीय लोग धरने के नाम पर कब तक परेशानी का सामना करें ?

बॉर्डर पर लगे टेन्ट में मौजूद लोगों का दावा चाहे किसान होने का हो लेकिन 16 जून 2021 को जिस प्रकार इन्होंने अपने साथी मुकेश को तेल छिड़क कर जिन्दा जला दिया, वह क्या किसी किसान का काम हो सकता है ?? यह सब करने वाला आंदोलन के टेन्ट में बैठा कोई हैवान ही होगा। मुकेश को जिन्दा जलाए जाने की बात हो या फिर पश्चिम बंगाल की बेटी के साथ आंदोलन के टेन्ट में बलात्कार का मामला, क्या आंदोलन की नैतिक जिम्मेवारी नहीं बनती कि वह दोनों परिवारों के भरण पोषण की जिम्मेवारी लें? आंदोलन को बताना चाहिए कि जिस मुकेश को उनके बीच जिन्दा जला दिया गया, उसके परिवार की देख—भाल अब कौन करेगा ? मुकेश के पीछे उनकी पत्नी रेणु और 9 साल का बेटा राहुल है। मुकेश तीन भाइयों में सबसे बड़ा था। मुकेश के परिवार के पास कोई खेती भी नहीं है। वह खेतों में दिहाड़ी मजदूर भी नहीं है। उसका खेती किसानी से कोई लेना—देना नहीं था। वह तो पेशे से ड्राइवर था। लॉकडाउन की वजह से अभी उसका काम नहीं चल रहा था।

 
सवाल यह उठता है कि क्या किसानों के टेन्ट ऐसे ही लोगों के इकट्ठे होने का केन्द्र तो नहीं बन गए, जिनका खेती—किसानी से कुछ लेना देना नहीं है। वे महिलाओं का सम्मान नहीं जानते। वे अपने समाज के बहिष्कृत तत्व हैं। इसलिए छेड़छाड़, बलात्कार, वेश्याओं को टेन्ट में बुलाने, जिन्दा जलाने, हिंसा करने वाली गतिविधियों से इस आंदोलन से जुड़े पन्नों को भरते जा रहे हैं।

इस आंदोलन के इतिहास में दिनांक 9 मई 2021 को भी एक काला अध्याय जुड़ा था। बंगाल की पीड़िता के पिता के अनुसार— इसी दिन बंगाल की बीटिया के साथ बलात्कार हुआ। वह बीमार पड़ी और अस्पताल में उसका निधन हुआ। योगेन्द्र यादव और कई लोग इस घटना के संबंध में जानते थे लेकिन सबने मामले पर लीपा—पोती की। पश्चिम बंगाल की बिटिया के साथ बलात्कार के मामले में हरियाणा पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। इसमें टिकरी बॉर्डर पर किसान सोशल आर्मी चलाने वाले अनूप और अनिल मलिक समेत 6 आरोपी हैं।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का बयान पिछले सप्ताह ही आया— ''दिल्ली बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन में पहले बंगाल की महिला के साथ घटना हुई और फिर विदेशी महिला के साथ छेड़छाड़ की बात सामने आई है। यह हालात चिन्ता उत्पन्न करने वालें हैं।'' श्री खट्टर ने दुख व्यक्त करते हुए कहा— ''किसान आंदोलन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार का अड्डा बन गया है। केंद्रीय गृहमंत्री को इस समस्या से अवगत कराया गया है और हम आंदोलन स्थल पर हिंसा को बर्दाश्त नहीं करेंगे।''

इसी बीच सोशल मीडिया इंस्टाग्राम पर मौजूद एक अकाउंट द डेलीस्वीच इंस्टा  (https://www.instagram.com/thedailyswitch_insta/?hl=en) ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है। उनके खुलासे पर अब तक आंदोलन की तरफ से किसी कार्रवाई की जानकारी सामने नहीं आई है और यह लेख लिखे जाने तक अकाउंट से जानकारी हटाई नहीं गई है। इसलिए जानकारी को प्रामाणिक माना जा रहा है। द डेलीस्वीच इंस्टा ने सिलसिलेवार ढंग से किसान आंदोलन में महिलाओं पर हुए अपराध के विवरण दिए हैं। जिस तरह के विवरण इस इंस्टाग्राम अकाउंट से मिल रहे हैं, वे बेहद गंभीर और चौंकाने वाले हैं।
आंदोलन को कवर करने के लिए आने वाली महिला रिपोर्टरों के साथ गलत व्यवहार की बात हो या फिर पश्चिम बंगाल से आई एक युवती के बलात्कार की। किसान आंदोलन के नाम पर चल रहे ऐसे सभी मामलों का जिक्र इस पेज पर मिलता है। द डेलीस्वीच इंस्टा के अनुसार टिकरी बॉर्डर के पास वाले टेन्ट में वेश्यावृत्ति करने वाले गिरोह की बात सामने आई है।

अब किसानों के नाम पर चल रहा गंदगी का ये खेल धीरे—धीरे सबके सामने बेपर्दा हो रहा है। ऐसे में लगता नहीं कि यह अधिक दिनों तक टिकने वाला है। इस तरह तो बनावटी किसान नेताओं का धरना अधिक दिनों तक जारी नहीं रह पाएगा। अब देखिए ना बीते कई महीनों से किसानों के ये स्वघोषित नेता धरना स्थल पर तभी नजर आते हैं, जब मीडिया इवेंट की पूरी तैयारी कर ली जाती है। बाकी समय मौके पर वही लोग होते हैं, जिनको मुफ्त में खाना और पीने को शराब साथ में दिहाड़ी अलग से मिलने की आस लगी रहती है। क्या किराए के कंधों पर किसानों का आंदोलन टिकाने की कोशिश में लगे लोग यह नहीं जानते कि जिस आंदोलन में महिलाओं का सम्मान हीं होता, वह आंदोलन फिर आंदोलन भी नहीं होता।

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