महिलाओं ने चुनौतियों को ही दे दी चुनौती
कोरोना महामारी के कारण समाज में अनेक तरह के बदलाव आए हैं। इन बदलावों पर राष्ट्र सेविका समिति के तरुणी विभाग ने एक सर्वेक्षण किया है। इसकी रपट पिछले दिनों जारी की गई है।
सर्वेक्षण की रपटों पर आधारित पुस्तक का विमोचन करती हुइं सुश्री सीता गायत्री अन्नदानम
कोरोना महामारी के कारण समाज में अनेक तरह के बदलाव आए हैं। इन बदलावों पर राष्ट्र सेविका समिति के तरुणी विभाग ने एक सर्वेक्षण किया है। इसकी रपट पिछले दिनों जारी की गई है। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष लॉकडाउन के दौरान तरुणी विभाग से जुड़ीं 1,200 बहनों ने समाज के हर वर्ग में कार्य किया। इन्होंने 28 प्रांतों के 567 जिलों में लगभग 17,000 महिलाओं, युवतियों और किशोरियों से मुलाकात की और उनसे सवाल पूछे। अखिल भारतीय तरुणी की प्रमुख भाग्यश्री साठे ने बताया कि 25 जून से 4 जुलाई, 2020 तक देशभर में व्यापक सर्वेक्षण किया गया और इसके आधार पर एक पुस्तक तैयार की गई है। गत दिनों इस पुस्तक का ‘वर्चुअल’ विमोचन किया गया। इस अवसर पर राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका सुश्री सीता गायत्री अन्नदानम ने कहा कि इस सर्वेक्षण ने देश के युवा वर्ग में समाज के लिए कुछ करने का भाव जाग्रत किया। युवा वर्ग ने भी पैसा बचाने की पारंपरिक जीवनशैली के बारे में सीखा। सर्वेक्षण में एक बात यह भी सामने आई कि समाज का मध्यम वर्ग अब भी अपना दुख-सुख किसी के सामने नहीं कहना चाहता। कितनी भी आर्थिक मुश्किलें हों, वह बाहर से खुश और सब कुछ सामान्य दिखाने की कोशिश करता रहता है।
उच्च संपन्न वर्ग की महिलाओं को आर्थिक, परिवहन आदि की परेशानी तो नहीं हुई, लेकिन घर के कामकाज को लेकर लॉकडाउन में बहुत परेशानी हुई, क्योंकि काम वाली बाई नहीं आ रही थी। लेकिन फिर धीरे-धीरे उनकी मानसिकता बदलती गई। उन्होंने सोचा, जिम नहीं जाना तो घर के कामकाज को ही जिम समझ लो। कई महिलाओं ने बताया कि इससे उनका वजन कम हुआ और घर को संभालने, देखने का अवसर भी मिला। अनेक महिलाओं ने बताया कि उनके बच्चे लॉकडाउन में आत्मनिर्भर बने, अपना काम खुद करना सीखा, घर के काम में मदद करना, अपना कमरा साफ करना, अपने बर्तन खुद साफ करना आदि। एक मध्यमवर्गीय महिला ने तो यह भी बताया कि लॉकडाउन उनके लिए खुशियां लेकर आया। उनके पति ने शराब पीना बंद करके परिवार के साथ समय बिताना शुरू किया। अनेक महिलाओं ने नए कौशल सीखे जैसे मास्क बनाना, बागवानी करना आदि।
राष्ट्र सेविका समिति ने सर्वेक्षण की रपट केंद्रीय महिला और बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी को सौंपी है।
सर्वेक्षण की मुख्य बातें
कोरोना महामारी ने भारतीय महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य, मनोवैज्ञानिक आदि के साथ परिवहन, पर्यावरण, पारिवारिक रिश्तों, जीवनशैली में बदलाव आदि कई प्रकार से प्रभावित किया। सबसे ज्यादा 74 फीसदी महिलाएं आर्थिक कारणों से प्रभावित हुर्इं। उन्हें तनाव और अवसाद हुआ तो कुछ महिलाओं का जीवन के प्रति नजरिया ही बदल गया। उनमें आत्मविश्वास पैदा हुआ, स्वावलंबन बढ़ा, सामाजिक सरोकार, परोपकार और मनुष्यता की भावना बढ़ी, प्रकृति पर्यावरण के प्रति चिंता बढ़ी, समाज से जुड़ाव बढ़ा और उन्होंने सीखा कि जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारे जाएं और उन्होंने बचत करना भी सीखा। कोरोना के कठिन काल और विषम परिस्थितियों में भारतीय महिलाओं ने जिम्मेदारी से अपने परिवारों को संभाला और उनकी खुशियों का ध्यान रखा। घरेलू हिंसा के मामलों में धैर्य और सहनशक्ति से विकट समय निकाला। कुछ परिवारों ने केवल नमक, चावल खाकर गुजारा किया, तो कुछ वनवासी परिवारों ने पत्ते खाकर अपना पेट भरा।
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