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‘‘जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान भारत के अविभाज्य अंग’

by
Mar 26, 2018, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Mar 2018 00:12:12

गत दिनों नागपुर में जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र की ओर से चार दिवसीय ‘सप्तसिंधु जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख महोत्सव’ का आयोजन किया गया। समारोह का उद्घाटन राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान भारत के अभिभाज्य अंग है। हम एक हैं, एक थे और एक रहेंगे। देश में बहुत से लोग यह नहीं जानते कि जम्मू-कश्मीर में कोई आचार्य अभिनवगुप्त हुए, जो शैव मत के प्रणेता थे। शैव मत को मानने वाले सभी एक हैं लेकिन इसमें भी लोग बांटने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग हैं, जो भारत को बांटने की साजिशें रचते हैं। लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाते। उन्होंने कहा कि अगर हम एक नहीं होते तो जम्मू-कश्मीर में जब पाकिस्तान के कबाइलियों ने हमला किया तो उस वक्त कुशोक बकुला ‘नुब्रा आर्मी’ का गठन क्यों करते?  इसलिए हम सभी एक ही हैं।  पूरे भारत में दर्शन की जो पद्धति चलती है वही घाटी में भी चलती है। श्रीनगर में लगा ‘श्री’ शब्द इसका परिचायक है।
कार्यक्रम में उपस्थित मिजोरम के राज्यपाल ले. जनरल (से.नि.) निर्भय शर्मा ने कहा कि गिलगित-बाल्टिस्तान की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जम्मू-कश्मीर के ऐतिहासिक तथ्यों पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक ने ही श्रीनगर शहर का नाम दिया था। उन्होंने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर के बच्चों के मन में भारत के प्रति नफरत के बीज बोये जा रहे हैं और ऐसा नहीं होना चाहिए। साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर में सेना में बिताए अपने 20 बरस को याद करते हुए कई रोचक प्रसंग सुनाए। इस मौके पर जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र, नागपुर इकाई की अध्यक्ष मीरा खडक्कार ने अपने संबोधन कहा कि इस महोत्सव का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख से जुड़ी हुई तमाम जानकारियों से लोगों को परिचित
कराना है।
जम्मू-कश्मीर को लेकर लोगों के मन में तमाम तरह की भ्रांतियां हैं। सप्तसिंधु महोत्सव के दूसरे दिन जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग समानांतर सेमिनार आयोजित हुए जिनमें देशभर से आए विद्दानों ने अपने-अपने विचार रखे। इस मौके पर ‘कुशोक बकुला और बुद्धिज्जम’ पर एक सेमिनार आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री श्री जवाहर लाल कौल ने कुशोक बकुला के योगदान को याद करते हुए कहा कि पूरी दुनिया में शांति के प्रयासों में कुशोक बकुला का नाम सबसे आगे रहा है। जब-जब शांति के प्रयासों की चर्चा की जाएगी, तब तब कुशोक बकुला का नाम बड़ी ही श्रद्धा के साथ लिया जाएगा। उनके चाहने वाले पूरी दुनिया में हैं। इसके साथ ही उन्होंने कुशोक बकुला के साथ बिताए यादगार लम्हों को भी याद किया। उन्होंने बताया जब वे महज 6 बरस के थे तो उन्हें अपने पिता के साथ कुशोक बकुला के दीक्षा समारोह में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और महान संत बकुला का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ।
महोत्सव में चार दिनों तक जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र की तरफ से ‘जम्मू-कश्मीर-लद्दाख का भारतीय संस्कृति में अवदान’ विषय पर कई सेमिनार-चर्चा और परिचर्चा आयोजित की गईं। ‘जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक, सामाजिक, संवैधानिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विषयों पर आयोजित अलग-अलग विषयों पर देशभर से आए विशेषज्ञों ने विस्तार से चर्चा की।
महोत्सव के अंतिम दिन जम्मू- कश्मीर की पर्यटन राज्यमंत्री प्रिया सेठी उपस्थित थीं। इस मौके पर उन्होंने कहा कि कश्मीर हमारे देश का मुकुटमणि है लेकिन वहां के कुछ लोगों ने इसे समस्या बना दिया है। अगर जम्मू-कश्मीर के लोग चाहें तो ये समस्या खत्म हो सकती है। उन्होंने कहा कि राज्य की अपनी एक कला-संस्कृति है। इसके अलावा इस पूरे प्रदेश के तीनों क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध रहे हैं। यह राज्य संतों की स्थली रही है। कार्यक्रम की संयोजक मीरा खडक्कार ने कहा कि चार दिनों तक चले इस महोत्सव से नागपुर सहित देश के अन्य हिस्सों से आए लोगों को जम्मू-कश्मीर को और बेहतर तरीके से समझने में मदद मिली है।      प्रतिनिधि

‘‘35 ए एक संवैधानिक धोखा’’
सप्तसिंधु महोत्सव के दूसरे दिन जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के अलग-अलग विषयों पर विभिन्न सेमिनार आयोजित हुए। इनमें देशभर से आए विद्दानों ने अपने-अपने विचार रखे। इसी कड़ी में हंसापुरी के किदवई हाई स्कूल के बच्चों से जम्मू कश्मीर के विधान परिषद सदस्य अजय भारती ने बात की। उन्होंने स्कूली बच्चों को जम्मू कश्मीर की जमीनी हकीकत से परिचित कराया।
बच्चों को सम्बोधित करते हुए श्री भारती ने कहा कि मीडिया में जो छवि कश्मीर की दिखाई जाती है वह छवि एक क्षेत्र विशेष की है, जबकि पूरी घाटी का युवा अच्छी जिंदगी जीना चाहता है। इस मौके पर स्कूल के प्रधानाचार्य जफर अहमद खान ने जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र की तारीफ करते हुए कहा कि केन्द्र जम्मू-कश्मीर के सही और जमीनी तथ्य लोगों के सामने ला रहा है। इस मौके पर उपस्थित सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र की लीगल टीम के वरिष्ठ सदस्य दिलीप कुमार दुबे ने धारा 370, आर्टिकल 35ए, पीआरसी पर विस्तार से अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 का प्रावधान अस्थाई रूप से किया गया था और धारा 370 राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देता है क्योंकि 370 के प्रावधान लाते समय संविधान
के अध्याय-21 में ‘स्पेशल’ शब्द ही नहीं था।
उन्होंने कहा कि आर्टिकल 35 ए भारतीय जनता के साथ संवैधानिक धोखा है। आर्टिकल 35 ए ने जम्मू कश्मीर की जनता को मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया है जिसमें पाकिस्तान से आए शरणार्थी, महिलाएं, दलित, जनजातीय लोग शामिल हैं। यहां तक कि सफाई कर्मचारियों के बच्चे पीएचडी करने के बावजूद राज्य में 35 ए की वजह से किसी भी प्रकार की नौकरी से वंचित हैं और केवल सफाई कर्मचारी का काम ही कर सकते हैं। हमारे देश में जहां दलित उत्थान के लिए आंदोलन चल रहे हों, वहीं दुर्भाग्य से जम्मू कश्मीर राज्य में दलित आज भी संवैधानिक रूप से गंदगी साफ करने के लिए मजबूर हैं चाहे वो कितना ही क्यों ना पढ़-लिख जाएं।    

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