जयपुर साहित्य उत्सव : 2018 :साहित्य का सागर, विचारों की लहरें
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

जयपुर साहित्य उत्सव : 2018 :साहित्य का सागर, विचारों की लहरें

by
Feb 5, 2018, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 05 Feb 2018 11:10:21

भारत में साहित्य का यह अग्रणी उत्सव कभी खास तरह की वैचारिक गोलबंदी और चंद किताबों तक सीमित दिखता था लेकिन पिछले दो वर्ष में भाषायी और वैचारिक विविधता के नए गवाक्ष खुलने के बाद यह और जीवंत हो उठा है। आगंतुकों की बढ़ती संख्या बताती है कि जनमानस ने इस बदलाव का स्वागत किया है

डॉ. ईश्वर वैरागी

पांच दिवसीय साहित्यिक महाकुंभ जयपुर साहित्य उत्सव (जेएलएफ) के 11वें संस्करण का आयोजन 25 से 29 जनवरी तक जयपुर में हुआ। विवादों की छाया में बढ़े इस साहित्योत्सव में इस वर्ष कोई बड़ा विवाद सामने नहीं आया, लेकिन गाहे-बगाहे फिल्म पद्मावत के विरोध और समर्थन के सुर उठते नजर आए। पद्मावत पर मचे बवाल और विरोध की आशंकाओं के बीच भारतीय फिल्म प्रसारण बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी और शायर जावेद अख्तर ने अंतिम समय में उत्सव से किनारा कर लिया।  साल दर साल गुलाबी नगरी पर अपनी चमक बिखेर रहा यह साहित्योत्सव इस बार पिछले वर्षों की तुलना में थोड़ा अलग रहा। इस उत्सव में गुलजार, शबाना आजमी और जावेद अख्तर हमेशा ही स्थायी भाव की तरह मौजूद रहते हैं, लेकिन इस बार उनका न आना कई सवाल खड़े कर गया। कई बार सितारों की चमक साहित्यिक विमर्श पर भारी पड़ती नजर आई।
इस 10 वर्ष पुराने उत्सव में कभी वामपंथ और अंग्रेजीयत की छाप दिखती थी, लेकिन अब यह माहौल बदल रहा है। यहां आने वाले विदेशी भी कहने लगे हैं कि भारत को जानने के लिए अंग्रेजी ही माध्यम क्यों बने? बहरहाल, अंग्रेजी से इतर अन्य भाषाओं को जगह देता, अनुवाद को सम्मान देता और हिन्दी के लिए दिल खोलता यह बदलाव उत्सव में नया आकर्षण घोल रहा है। आयोजकों का दावा है कि इस बार 5,00000 से अधिक लोग आयोजन में शामिल हुए। पिछले साल के मुकाबले उत्सव में 23 फीसदी लोग बढ़े हैं। दुनियाभर में अपनी छाप छोड़ने वाले इस उत्सव की खास बात यह है कि यहां आने वाले 80 फीसदी युवा और छात्र होते हैं। इसबार इनमें भी 60 फीसदी तो 25 वर्ष से कम आयु के थे। यह देखना सुखद था कि अंग्रेजी जकड़न तोड़ते हुए इस साहित्य कुंभ में भारतीय भाषाओं बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, तमिल, मलयालम, मराठी, ओड़िया, राजस्थानी, संस्कृत, सिंधी और तेलुगु में लेखन करने वाले कई वक्ताओं ने भाग लिया। आयोजन में दुनिया के 35 देशों के करीब 350 वक्ताओं ने कई विषयों पर मंथन किया। विशेष बात यह रही कि अब उत्सव में इतिहास, रामायण, महाभारत, पुराण, संस्कार जैसे सामयिक परंपरागत भारतीय विषयों पर भी विमर्श होने लगा है। पर्यावरण, नारी चेतना, भाषा, स्वच्छता अभियान जैसे महत्व के विषयों पर भी सार्थक मंथन हुआ। जम्मू-कश्मीर, आतंकवाद, रोहिंग्या मुसलमान और अरब देशों में चल रहा संघर्ष भी इस साहित्योत्सव के केंद्र में रहा।

       
      
साहित्य के प्रति युवा वर्ग की रुचि देखकर मन में बड़ी प्रसन्नता हुई। महिला सशक्तिकरण और समाज में चल रहीं कुरीतियों पर चर्चा तो हुई, लेकिन भारत के वैभवशाली इतिहास और उसमें महिलाओं की भूमिका के ज्ञान से अभी भी नई पीढ़ी वंचित है।
    -देवयानी व्यास            

  आज यह मंच साहित्य और साहित्यकारों के माध्यम से समाज को कोई सार्थक संदेश देने से अधिक अपने-अपने एजेंडे चलाने और उपभोक्तावाद को बढ़ावा देने का मंच बन गया है। इसकी सार्थकता तब हो जब यह समाज को जोड़ने, समता और चेतना फैलाने
का मंच बने।
    – डॉ. शुचि चौहान

  यह उत्सव रचनात्मकता के नाम पर मात्र बड़े लोगों की प्रसिद्धि कमाने का साधन मात्र रह गया है। साहित्य को विचारधारा और राजनीति के संघर्ष से जूझना पड़ रहा है। उत्सव में सामाजिक समरसता और संस्कारों को लेकर और सत्र होने चाहिए।                               —विशाल

       जयपुर साहित्य उत्सव एक ऐसा मंच है, जहां नए-पुराने लेखक और साहित्यकार नए आयाम और छुपे हुए स्थापित आयाम की चर्चा करते हैं।
    —सुधीर जोनवाल

    जयपुर साहित्य उत्सव में पिछले 2-3 वर्ष में राष्ट्रीय महत्व के विचारों को अपेक्षाकृत अधिक स्थान मिल रहा है। इतने बड़े मंच से कितने भी बड़े से बड़े विद्वान से प्रश्न पूछा जा सकता है, यह बात इसे महत्वपूर्ण बनाती है।    
    —निधीश गोयल     ]

        इस बार हमारा पूरा जोर भारतीय भाषाओं, अनुवाद और महिला विमर्श पर था। दुनिया में भारतीय भाषाओं को प्रतिनिधित्व देना है तो हमें अनुवाद को बढ़ावा देना होगा। उत्सव में पूरी दुनिया से लेखक आए। सभी भाषाओं की महिला लेखिकाओं ने इस बार भाग लिया। पिछले वर्ष उत्सव में 5,23,000 लोग आए थे। इस बार 6,00000 लोगों ने भाग लिया। इस बार पिछली बार से 23 प्रतिशत ज्यादा लोग आए।
—नमिता गोखले, उत्सव की सह निदेशक
हिन्दी और क्षेत्रीयता की छाप
उत्सव में इस वर्ष हिन्दी और क्षेत्रीयता की छाप दिखाई दी। विगत वर्षों की तुलना में हिन्दी में सत्र ज्यादा हुए। यहां तक कि अंग्रेजी के लेखक एवं सांसद शशि थरूर का पूरा सत्र ही हिन्दी में हुआ। उन्होंने समीक्षक-आयोजक अनंत विजय के साथ हिन्दी में खुलकर संवाद किया। हिन्दी पाठकों के बढ़ते महत्व को रेखांकित करने वाली बात यह है कि ब्रिटिश दासता के काले अध्याय को उजागर करती थरूर की चर्चित पुस्तक ‘एन ऐरा आॅफ डार्कनेस’ हिंदी में वाणी प्रकाशन द्वारा ‘अंधकार काल’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जेएलएफ में फिल्मकार नवाजुद्दीन सिद्धीकी, अभिनेत्री नंदिता दास समेत कई हस्तियां ऐसी थीं, जिन्होंने हिन्दी में अपनी बात रखी। हिन्दी के सत्रों में जिस प्रकार से दर्शकों की भीड़ उमड़ी, उसे देखकर लगा कि हिन्दी की ग्राह्यता और गूंज सबपर भारी है। माना जा रहा है कि आयोजकों ने बाजार में हिंदी के बढ़ते दखल की आहट को भांप लिया है।  हिन्दी को लेकर उत्तरी आयरलैंड से आए क्रिस एंटारियो कहते हैं, ‘‘मेरी रुचि इस उत्सव से ज्यादा भारतीय संस्कृति में है। मैं टूटी-फूटी हिन्दी बोल और समझ लेता हूं, लेकिन भारत को समझना है तो सिर्फ अंग्रेजी में बात करने से काम नहीं चलेगा। भारतीय साहित्य का वैश्विक भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए। दुनिया में हिन्दी के बारे में समझ बढ़े, ऐसे प्रयास तेज
होने चाहिए।’’
साहित्योत्सव बदल रहा है, यह सभी विचारधाराओं के लिए खुल रहा है। यहां वामपंथी लेखकों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए डॉ. शुचि चौहान कहती हैं, ‘‘2006 में जब यह उत्सव शुरू हुआ था तो इसे राजस्थान से लेकर दिल्ली तक के वामपंथियों ने ‘दोजख’ करार दिया था। परंतु अगले ही वर्ष जब उन्हें वक्ता के तौर पर यहां बुलाया गया, तो यह ‘दोजख’ कब ‘जन्नत’ में बदल गया पता ही नहीं चला। धीरे-धीरे यह मंच मुख्य रूप से वाम विचारों की अभिव्यक्ति का मंच बन गया। यहां से हर उस व्यक्ति या घटना का विरोध हुआ जो उनके एजेंडे के विपरीत थी। आयोजन को संतुलित करने के लिए राष्ट्रवादी विचारों के लोगों को भी आमंत्रित किया गया, परंतु उनकी संख्या कम ही रहती आई है।’’
साहित्य, संस्कार और भाषा पर मंथन
साहित्य समाज का आईना होता है। प्रेमचंद से लेकर हरिशंकर परसाई तक ने अपनी कलम से समाज और राजनीति को सही राह पर लाने का काम किया है। प्रेमचंद की लेखनी जहां आज भी हमारे गांवों तथा उनकी परंपरा को समझने का सबसे प्रामाणिक माध्यम है, वहीं भारतीय राजनीति और समाज पर अपने सटीक और तीखे व्यंग्य से भारतीय साहित्य अपनी अलग पहचान बनाने वाले परसाई ने अपनी स्वतंत्र और स्वछंद लेखनी से अपनी किताबों में भारतीय समाज का जीवंत चित्रण किया है। भारतीय समाज में बदलाव आ रहा है। समाज में व्याप्त तमाम कुरीतियों और बंधनों को अब युवाओं ने नकारना शुरू कर दिया है। लिहाजा समाज के नए समीकरण हमारे सामने आ रहे हैं। ऐसे में साहित्य के कंधों पर समाज की जिम्मेदारी बढ़ जाती है।
‘साहित्य और संस्कृति’ नामक सत्र में लेखिका मृदुला बिहारी का कहना था, ‘‘साहित्य में लेखक को अपनी लेखनी को किसी विचारधारा से प्रेरित नहीं करना चाहिए। लेखक को हमेशा अपनी अंतरात्मा की बात लिखनी चाहिए, बगैर इस बात की फिक्र किए कि उसका क्या असर होगा।’’ वे कहती हैं, ‘‘भारत मानवता का देश है और इसे इसके पूर्वजों के संस्कार चलाते हैं। भारत गर्त से नहीं, बल्कि उम्मीदों से बना है।’’ इसी सत्र में हितेश शंकर ने पाञ्चजन्य की निष्पक्ष पत्रकारिता को रेखांकित करते हुए कहा, ‘‘पाञ्चजन्य ही एक ऐसी पत्रिका है जिसने वैचारिक और राजनैतिक पालों की परवाह किए बिना संपूर्णानन्द, दिनकर से लेकर लोहिया तक के लेखों को अपने पन्नों में जगह दी है और शुरुआत से ही भारतीय लोकतंत्र में, लोक विमर्श खड़ा करने में अपनी सजग भागीदारी निभाई है।’’ इस सत्र में युवा लेखक पंकज दुबे ने जहां साहित्य के कड़वे और तीखे होने की बजाय प्रेममय होने की पैरवी की, वहीं भदेस भाषा में खबरों की अलग प्रस्तुति करने वाली वेबसाइट ‘लल्लनटॉप’ के संपादक ने विचार के ‘धाराओं’ से मुक्त होने की जरूरत जताई। इस सत्र का संचालन अदिति माहेश्वरी ने किया।
एक अन्य सत्र में भाषा की कुलीनता के सवाल पर राजकमल प्रकाशन के संपादक निदेशक सत्यानंद सिंह ‘निरुपम’ ने कहा, ‘‘कुलीनता का प्रभाव भाषा पर ही नहीं, बल्कि जाति और वर्ग के स्तर पर हर जगह देखने को मिलता है। भाषा में साफ जुबानी की कमी तो है, लेकिन यह भी पृष्ठभूमि से ही संबंधित है। जब स्कूल के स्तर पर ही नुक्ता, श, ष का फर्क नहीं सिखाया जाता, तो जुबान साफ कैसे हो पाएगी। भाषा की कुलीनता गांव से शहर और स्कूल से नौकरी तक कई जगहों में देखने को
मिलती है।’’
फ्रांस में हिंदी पढ़ाने वाली प्रोफेसर एनी मोंटो ने बताया, फ्रांस में 19वीं शताब्दी के शुरू से ही हिंदी पढ़ाई जाने लगी थी। इस मामले में फ्रांस यूरोप का पहला देश था। वहां देवनागरी और रोमन दोनों रूपों में हिंदी पढ़ाई जाती है। यह सिलसिला 20वीं शताब्दी तक बदस्तूर जारी रहा।’’  हिंदी के संदर्भ में उन्होंने गार्सा द तासी का भी जिक्र किया। वे पहले फ्रांसीसी विद्वान थे जिन्होंने हिन्दी का भाषा का पहला इतिहास
तैयार किया।
संस्कार जाति और वर्ग-मूलक नहीं
‘संस्कार: द इंटेजिबल’ शीर्षक से आयोजित सत्र में पत्रकार प्रज्ञा तिवारी के साथ बौद्ध दर्शन अध्येता अरुंधती सुब्रह्मण्यम, कला संरक्षक और लेखिका अलका पांडे, लेखक प्रोफेसर मकरंद परांजपे और पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर मौजूद थे।
अलका पांडे ने जहां संस्कार के आवश्यक और उदात्त होने पर बल दिया, वहीं मकरंद ने आज के परिप्रेक्ष्य में ‘देश जोड़ो संस्कार’ के जागरण की आवश्यकता को चिन्हित किया। सभी विमर्शकारों ने संस्कारों की जीवंतता के बारे में बात की। हितेश शंकर ने कहा, ‘‘संस्कार जाति और वर्ग मूलक नहीं है। संस्कार प्रयोजन मूलक है। समाज का एक प्रमुख हिस्सा इस सतत प्रक्रिया से होकर गुजरता है। संस्कार व्यक्ति का विकास करते हुए उसे जीवन में आगे बढ़ाते हैं, उन्नति देते हैं किन्तु खास बात यह कि संस्कारों के कारण गतिमान होने पर भी मनुष्य अहम जीवन मूल्यों की धुरी पर टिका रहता है। ‘पद्मावत’ फिल्म के संदर्भ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘पद्मावत के पैरोकार पैरोकारी करते रहें किन्तु ‘रेड सारी’ जैसी पुस्तक, तस्लीमा नसरीन और सलमान रश्दी जैसे लेखकों और साहित्य आयोजनों में इनकी लेखकीय भागीदारी के लिए आवाज भी उठाएं अन्यथा उनकी आवाज राजनैतिक मानी जाएगी,
बौद्धिक नहीं।’’
गंगा सफाई के नाम पर राजनीति
इस साहित्योत्सव में इस बार गंगा सफाई की भी चर्चा हुई। ‘रिवर आॅफ लाइफ, रिवर आॅफ डेथ : द गंगा एंड इण्डियाज फ्यूचर’ के लेखक और फाइनेंसियल टाइम्स के एशिया न्यूज एडिटर विक्टर मैलेट ने कहा, ‘‘आजादी के बाद से गंगा सफाई के नाम पर न जाने कितना कुछ कहा और किया गया है, लेकिन धरातल पर सचाई कुछ और ही है। पहले के मुकाबले स्थिति बदतर ही हुई है। एक गंगा सफाई के मुद्दे पर भारत में कितने ही चुनाव लड़े गए। कई सरकारें आई गर्इं लेकिन गंगा की दयनीयता में कोई कमी नहीं आई।’’
विक्टर ने कहा, ‘‘उत्तर भारत की एक बहुत बड़ी जनसंख्या को पीने का पानी गंगा से मिलता है और खेतों की सिंचाई भी होती है।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘भारतीय नदी से जुड़े लोग हैं और इनकी पूरी संस्कृति नदी के इर्द-गिर्द घूमती है, चाहे वो किसी खास दिन गंगा में डुबकी लगाना हो या श्राद्ध प्रक्रिया पूरी करके अस्थियां विसर्जित करना हो, पर आश्चर्य की बात है कि गंगा प्रदूषण के मुद्दे को धार्मिक तौर पर भी उस तरह से नहीं उठाया जा रहा है जैसा
होना चाहिए।’’
लोकभाषाओं से घटता मोह
भारत की राजभाषा, आधिकारिक भाषा और लोकभाषा के अंतर्द्वंद्व एवं अंतर्संबंधों को लेकर आजादी के बाद से ही तमाम बहस चलती रही है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं के अतिरिक्त अभी भी समय-समय पर विभिन्न लोकभाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठती आई है।
आज यह महसूस किया जा रहा है कि युवाओं का अपनी लोकभाषाओं के प्रति रूझान घटता जा रहा है। राजस्थान में प्रचलित ‘राजस्थानी’ का उपयोग लोग बड़ी संख्या में करते हैं। 16वीं शताब्दी में यह भारत की सबसे समृद्ध भाषा मानी जाती थी। राजस्थानी में पद्य लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है। पारंपरिक तौर से इसे लयबद्ध तरीके से लिखा जाता था पर कालांतर में धीरे-धीरे इसमें आधुनिक शब्दों का भी प्रयोग शुरू हुआ जिससे इसके स्वरूप में भी काफी अंतर आया है।
राजस्थान विश्वविद्यालय में कार्यरत और राजस्थान राज्य साहित्य सम्मान से सम्मानित अभिमन्यु सिंह कहते हैं, ‘‘विदेश में रह रहे राजस्थान के लोग राजस्थानी में बात करते हैं, वहीं हम राजस्थान में रहकर भी यहां की लोकभाषा में बात नहीं करते। इससे राजस्थानी भाषा धीरे-धीरे मरने लगी है।’’ राजस्थानी लोकभाषा के 1,200 वर्ष के इतिहास को बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘रविंद्रनाथ के अनुसार वीर रस में जैसा योगदान और दर्शाने की विधा राजस्थानी ने दिखाई है वैसी भारत की किसी भाषा ने नहीं दिखाई है।’’
लोकभाषा के प्रति अपने प्रेम को बताते हुए कमला गोयनका पुरस्कार से सम्मानित रीना मिनारिया ने कहा, ‘‘भारतीय संविधान ने तमाम आधार और नियमों के अनुसार आठवीं अनुसूची का गठन किया है और आने वाले दिनों में उसके अनुसार लोकभाषाओं को उसमें जगह मिलेगी भी लेकिन अनुसूची में शामिल कराना ही हमारा उद्देश्य नहीं है, बल्कि लोकभाषाओं के विकास पर भी हमारा ध्यान होना चाहिए। क्योंकि अनुसूची में शामिल करने के बाद भी यदि उसके बोलने वाला कोई नहीं रहेगा तो वह लोकभाषा मर जाएगी।’’
राजस्थानी लोकभाषा पर राज्य साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त बुलाकी शर्मा ने अपनी किताब ‘लहसुनिया’ का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें हमारीे लोक परंपरा में मां-बेटे के मधुर संबंधों एवं प्यार को बताया गया है।’’ व्यंग्य और हास्य विधा की तुलना करते हुए बुलाकी ने कहा, ‘‘हास्य के मुकाबले व्यंग्य कहीं ज्यादा मुश्किल कला है। व्यंग्य में आपकी रचना संवेदनाओं को झकझोरती है। इसलिए व्यंग्य  पाठकों को मथता भी है। युवाओं और बाल कहानियों के संदर्भ में बुलाकी ने कहा, ‘‘आज के लेखकों को युवाओं के लिए युवा बनकर तथा बच्चों के लिए बच्चा बनकर लिखने की जरूरत है।’’
ब्रिटिश राज परिवार माफी मांगे
सांसद और लेखक शशि थरूर ने भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ लिखी गई अपनी किताब ‘अंधकार काल’  पर आधारित सत्र में कहा, ‘‘13 अप्रैल को जलियांवाला नरसंहार की 99 बरसी पर ब्रिटिश राज परिवार को भारत आकर देशवासियों पर किए गए जुल्म के लिए माफी मांगनी चाहिए।’’ उन्होंने जब यह कहा कि ‘मैं हिन्दी का विरोधी नहीं हूं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि हिन्दी कई भारतीयों की भाषा है’, तो पंडाल में बहुत से दर्शक उनकी बात से असहमत दिखे। साहित्य के इस सागर में विचारों की लहरें खूब उठीं। उम्मीद है कि इन विचारों पर साल भर मंथन होगा और जो नवनीत निकलेगा उसका आस्वादन लेखक, पाठक  प्रकाशक सब करेंगे।    

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

माता वैष्णो देवी में सुरक्षा सेंध: बिना वैध दस्तावेजों के बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार

Britain NHS Job fund

ब्रिटेन में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट: एनएचएस पर क्यों मचा है बवाल?

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

माता वैष्णो देवी में सुरक्षा सेंध: बिना वैध दस्तावेजों के बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार

Britain NHS Job fund

ब्रिटेन में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट: एनएचएस पर क्यों मचा है बवाल?

कारगिल विजय यात्रा: पूर्व सैनिकों को श्रद्धांजलि और बदलते कश्मीर की तस्वीर

four appointed for Rajyasabha

उज्ज्वल निकम, हर्षवर्धन श्रृंगला समेत चार हस्तियां राज्यसभा के लिए मनोनीत

Kerala BJP

केरल में भाजपा की दोस्तरीय रणनीति

Sawan 2025: भगवान शिव जी का आशीर्वाद पाने के लिए शिवलिंग पर जरूर चढ़ाएं ये 7 चीजें

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies