मुस्लिम जगत - फतवों की बिसात और मौलाना
May 18, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

मुस्लिम जगत – फतवों की बिसात और मौलाना

by
Dec 4, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 04 Dec 2017 11:11:11

योगाभ्यास किसी मायने में किसी मत-पंथ विशेष से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह तो समूची दुनिया  को निरोगी रहने का मार्ग दिखाता है। समझ नहीं आता कि कट्टरवादी मौलाना मुस्लिम समाज को कब तक अंधेरे  में रखेंगे? आज सिर्फ राफिया या तस्लीमा ही नहीं, अनेक मुस्लिम महिलाएं फर्जी फतवेबाजों के विरुद्ध आवाज उठा रहीं

 

शंकर शरण

अभी हाल में मौलानाओं ने रांची की राफिया नाज के खिलाफ फतवा जारी किया है। कारण कि वे योग की शिक्षा दे रही हैं। सर्वविदित है, सारी दुनिया में योग अभ्यास को स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम शारीरिक-मानसिक क्रिया माना जाता है। अमेरिका के व्हाइट हाउस से लेकर मलेशिया के सामान्य स्कूल तक योग की उपयोगिता स्वयंसिद्ध है। अब तो सऊदी अरब ने भी योगाभ्यास को बाकायदा मान्यता दे दी है। सारे बौद्ध देश वैसे ही विभिन्न योग मुद्राओं को जीवन का अंग बनाए हुए हैं। तब यहां मौलाना योग के खिलाफ फतवा देकर तंदुरुस्ती के बदले क्या बीमारी के पैरोकार बनना चाहते हैं?
कायदे से योग अभ्यास में कुछ भी मजहबी या मजहब-विरोधी बात नहीं है। किसी खास तरीके से बैठना, ध्यानपूर्वक सांस लेना, शरीर को ऐसे-वैसे घुमाना, एक स्थिति में कुछ समय रहना आदि पूरी तरह अपने साथ प्रयोग मात्र है। इस तरह, यह शुद्ध प्रायोगिक विज्ञान है। कोई ‘फेथ’ नहीं, जो किसी अन्य ‘फेथ’ के खिलाफ पड़े।  पर यहां मौलानाओं ने बेकार की रंजिश बना रखी है। इस से पहले उन्होंने ‘ऊं’ उच्चारण के विरुद्ध भी फतवा दिया था। जब कि यह भी किसी ‘फेथ’ या मजहब के विरुद्ध नहीं है। ‘ऊं’ न तो कोई मूर्ति है, न कोई पुस्तक, न गीत। यह केवल एक स्वर है। ध्वनि-मात्र। वह भी अपने मुंह से निकाली ध्वनि। तो क्या किसी ‘फेथ’ को एक ध्वनि से भी खतरा है? एक मौलाना अबुल कासिम नोमानी ने दलील दी कि ‘ऊं’ उच्चारण हिंदू पूजा-पाठ का अंग होता है, इसलिए मुसलमान इसका उच्चारण न करें। तब तो गंगाजी भी हिंदू पूजा का अंग हैं और पवनदेव भी। फिर तो गंगा-जल या वायु-सेवन भी मुसलमानों को बंद कर देना चाहिए! ऐसे विचित्र अंधविश्वासों में मौलाना कब तक फंसे और फंसाते रहेंगे?

सबके हित का योग
सच तो यह है कि जल, वायु, सूर्य की किरणें और धरती, मिट्टी की तरह योग का संपूर्ण विज्ञान भी मनुष्य मात्र के लिए लाभदायक है। अत: जैसे कंप्यूटर विज्ञान या अंतरिक्ष ज्ञान की पुस्तक का किसी ‘फेथ’ से कोई लेना-देना नहीं, वह सबके उपयोग की चीज है। उसी तरह योग की भी तमाम पुस्तकें हैं। हाल के युग में स्वामी विवेकानन्द से लेकर, स्वामी शिवानन्द या आज सद्गुरू जग्गी वासुदेव तक, सभी ने भारतीय योग विज्ञान को ही नई-नई सुबोध भाषा में लोकहित के लिए लिखा, बताया है। इसीलिए, अरस्तू की ‘फीजिका’ या चार्ल्स डार्विन की ‘ओरिजन आॅफ स्पीसीज’ की तरह ही पतंजलि का ‘योग-सूत्र’ भी मानव जाति की महान ज्ञान-पुस्तकों में से ही एक है। वह ज्ञान की थाती है, ‘फेथ’ नहीं। तभी इसका उपयोग पूरी दुनिया करती है, क्योंकि इसके लाभ स्वयंसिद्ध हैं।
वस्तुत:, योग के विरुद्ध फतवों से मौलाना खुद ही हास्यास्पद स्थिति में डालते हैं। इससे वे खुद अपने मजहब को इतना कमजोर साबित करते हैं, जो मानो किसी भी चीज से टूट सकता है! जो किसी बात की परख की बजाए बात-बात में केवल फतवा, मनाही, नकार, आपत्ति, धमकी आदि देता है?   
सच पूछें तो बुतपरस्ती यानी मूर्ति-पूजा के विरुद्ध फतवे बेकार हैं। कुछ अरसा पहले भोपाल के मुफ्तियों ने स्कूलों में सामूहिक सूर्य नमस्कार के विरुद्ध फतवा दिया था। यह कहकर कि इस्लाम में किसी वस्तु के सामने झुकने की इजाजत नहीं है। चूंकि सूर्य एक ठोस पिंड है, सो नमस्कार करना कुफ्र हुआ। लेकिन दरअसल, इस्लाम का उसूल तो बुत-शिकनी भी है यानी बुत को तोड़ कर नष्ट कर डालना। खुद पैगंबर मुहम्मद ने मक्का में काबा की 3060 मूर्तियां तोड़ी थीं, जिनकी तब तक अरब लोग पूजा किया करते थे। इसीलिए मुहम्मदी अनुयायियों ने तभी से सारी दुनिया में बुद्ध मूर्तियां, देव मूर्तियां, मंदिर, चर्च आदि तोड़े और आज भी मौका मिलने पर वे यह करने लगते हैं। मगर तब उन्हें सूर्य को नष्ट करना चाहिए! सूर्य को तोड़े बिना बुत-शिकनी का उसूल सदा पराजित रहेगा। सूर्य की नियमित और रोज पूजा होती है। तब सूर्य-नमस्कार के खिलाफ फतवे देने से क्या? सूर्य ‘काफिरों का ईश्वर’ तो है ही। बल्कि फारसी, रोमन और पूर्वी यूरोप के कुछ देशों के लोग भी सूर्य उपासक थे। वह सूर्य अरब से लेकर अफगानिस्तान तक हर कहीं आज भी जाजवल्यमान रहा है। तब सूर्य-विध्वंस न किया, तो किस बात के शिकनगर?

फतवे कैसे-कैसे
दरअसल, योग के विरुद्ध फतवा तरह-तरह के फतवों की शृंखला में ही नई कड़ी है। इससे पहले वंदेमातरम् गाने, भारत माता की जय बोलने, फिल्मी गाने गाने, सोशल मीडिया पर अपनी और अपने परिवार की तस्वीरें डालने आदि के विरुद्ध भी फतवे दिये जा चुके हंै। वैसे, पूरी दुनिया और पूरे इतिहास के मौलवियों, मुफ्तियों के सारे फतवे जमा करें और वास्तविक जीवन से मिलान करें, तब लगेगा कि इस्लाम बहुत पहले सैद्धांतिक-व्यावहारिक रूप से हार चुका है, और लगभग सारे मुसलमान काफिर हो चुके हैं! क्योंकि यदि वे फतवे सही हैं, तो व्यवहार में करोड़ों मुसलमान काफिरी में डूबे हैं। मानव चित्र बनाना, फोटो खिंचवाना/लगाना, संगीत बजाना-सुनना, पुरुषों का दाढ़ी बनाना, सूट पहनना, लड़कियों का स्कूल जाना, दफ्तरों में काम करना, बिना बुर्के या बिना किसी घरेलू मर्द के साथ के बाहर निकलना, यहां तक कि ऐसे देश में रहना जहां इस्लाम का शासन नहीं—यह सब इस्लाम-विरुद्ध है! ,
उसी तरह, फिल्मोद्योग के सारे मुसलमान कलाकार रोज इस्लाम की तौहीन कर रहे हैं। गाने-बजाने, लिखने वाले सभी मुस्लिम गायक, गायिकाएं, संगीतकार, फोटोग्राफर, आदि सीधे-सीधे कुफ्र करते रहे हैं। मुहम्मद रफी, नौशाद, शकील बदायूंनी से लेकर युसूफ खां आदि सभी जिंदगी भर ‘काफिरी’ करते रहे। ये बातें हंसी की नहीं है। हाल में अयातुल्ला खुमैनी से लेकर यहां भी कितने ही मौलानाओं की यह पक्की राय है कि इस्लाम में संगीत बजाना सख्त मना है। इसीलिए सऊदी अरब में दस साल पहले तक फिल्में नहीं बनती थीं। अब शुरू हुई हैं, तो इमामों की नाराजगी के साथ ही। उन इमामों की ताकत कमजोर पड़ी, वरना सऊदी अरब में फिल्में बनना बंद ही रहता।
दुनिया में कहीं भी जब, जिस इस्लामी नेता/संगठन के पास ताकत जमा होती है, वे फतवों को गंभीरता से लागू करने लगते हैं। भारत में ही शाहबानो से लेकर गुड़िया, इमराना, जरीना, सायरा आदि अनगिनत उदाहरण हैं, जब संविधान और मानवीयता को धता बताते हुए इस्लामी शरीयत लागू की गई।
यह बात ध्यान रखने और विचारने की है। इस्लामी किताबों के अर्थ पर माथा-पच्ची, या मीडिया-अकादमिक लेखन में गढ़े जाते सुंदर तर्कों पर ध्यान देना समय बर्बाद करना है। जैसे ही किसी तालिबान या इस्लामी स्टेट की ताकत बढ़ेगी। सारे तर्क धरे रह जाएंगे। इसे सीरिया या अफगानिस्तान ही नहीं ईरान, ईराक, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत, इंग्लैंड, जर्मनी आदि कहीं भी देखा जा सकता है। इसलिए सवाल यह उठता है कि क्या इस्लाम के पास फतवे और धमकियों के सिवा भी कुछ है? या कभी था? जिसे वे पसंद नहीं करते, उस के विरुद्ध मनाही, धमकी और हिंसा के अलावा कभी, कहीं कुछ नहीं सुना जाता। आज ही नहीं, बिल्कुल शुरू से इस्लाम का यही इतिहास है। खुद उसके आलिमों के गर्व-पूर्ण शब्द हैं ‘कुरान और तलवार’। तलवार के अलावा किसी चीज से उसने कभी भी, किसी से बात की हो, इस का उल्लेख पूरे इतिहास में कहीं नहीं है।

न तर्क, न कसौटी
जिस प्रकार हिन्दू संत या विचारक किसी विषय पर तथ्य, प्रमाण और बुद्धि-विवेक से समझाते हैं, वैसा कभी इस्लामी आलिमों द्वारा नहीं किया जाता। ‘इस्लाम में ये हराम है’, ‘वह  मना है’, ‘इसकी इजाजत नहीं’, ‘वह कुफ्र है’ आदि के अवाला उनके पास कोई संजीदा शब्द तक नहीं होते। इनसे वे जब आगे बढ़ते हैं, तो यही जोड़ते हैं कि ‘मार डालो’, ‘फांसी दो’, ‘सिर उतार लो’, आदि। विषय कुछ भी हो, इस्लामी रहनुमाओं के पास हिंसा के अलावा कभी, कोई तर्क नहीं होता। भारत, ईरान, अरब से लेकर यूरोप, अमेरिका तक इस्लामी अलंबरदार केवल एक भाषा जानते हैं—फतवा, धमकी, छल और हिंसा। श्रीनगर से लेकर टोरंटो, मुल्तान से ढाका, देवबंद, तेहरान और मोरक्को, नाइजीरिया तक केवल फतवे और धमकियां सुनाई पड़ती हैं। किसी बात पर कहीं बुद्धि-विवेक, विचार, दलील के सहारे कायल करने का प्रयत्न नहीं। दूसरों की छोड़ें, खुद मुसलमानों को भी तर्क से या व्यावहारिक लाभ समझाकर कायल करने का कार्य उलेमा कभी नहीं कर पाते। तसलीमा नसरीन या वफा सुल्तान से किस मौलाना ने बातचीत कर उनकी कोई गलती साबित की? स्वामी रामदेव योग के लाभ बताकर लोगों को योगाभ्यास के लिए प्रेरित करते हैं। इसकी तुलना में  मौलाना योग के विरोध में क्या कहते हैं? बस फतवा और धमकी, कि न माना तो हिंसक नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहो! चाहे मामला सामाजिक हो, पारिवारिक, वैचारिक या राजनीतिक। हर जगह पहला और अंतिम उपाय बल-प्रयोग मात्र है।
इसलिए मौलाना विचार करें—क्या इस्लामी भंडार में कोई उपयोगी विचार या रचनात्मक कार्यक्रम है? क्या उनकी सारी किताबों, मकतबों, मदरसों और कायदों में विवेक विचार से किसी को कायल करने की सामर्थ्य नहीं? यदि यही हालत है तो सोचना चाहिए कि ऐसा मतवाद कितने दिन चलेगा! बम, पिस्तौल, तलवार, छुरे और धमकी के बल पर कोई विचारधारा मनुष्यों के बीच सदैव नहीं रह सकती। उसके तंग घेरे से लोगों को बाहर आना ही होगा। यह देखने वाले मुसलमानों की संख्या दुनिया में बढ़ रही है। आखिर, हिजरत और दारुल-हरब वाली कितनी ही बातें वे छोड़ ही चुके हैं।
योग के खिलाफ फतवा देकर मौलाना हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। जैसे चर्च ने गैलीलियो से लड़ी थी। धरती गोल है और सूर्य के गिर्द घूमती है, यही गैलीलियो ने कहा था जो तब चर्च की मान्यता के खिलाफ पड़ता था।
अत: नाराज होकर चर्च ने गैलीलियो को चुप करा दिया। मगर कब तक? उसी चर्च वाला हाल अनगिनत मौलानाओं, मुफ्तियों, अयातुल्लाओं, इमामों का भी है। जिस हद तक उनके हाथ में ताकत है। इस जिद और इसकी व्यर्थता विवेकशील लोग देखे बिना नहीं रह सकते, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान।   

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Indian army

भारत-पाकिस्तान सीजफायर: भारतीय सेना ने खारिज की 18 मई की समाप्ति की अफवाह, पाक ने फैलाया था ये झूठ

Harman singh Kapoor beaten by Pakistanis

कौन हैं हरमन सिंह और क्यों किया गया उन्हें गिरफ्तार?

Illegal Bangladeshi caught in Uttarakhand

देहरादून-हरिद्वार में बांग्लादेशी घुसपैठिये पकड़े गए, सत्यापन अभियान तेज

Center cuts Mao Fund in Kerala

केरल के माओवादी फंड में केंद्र सरकार ने की कटौती, जानें क्यों?

dr muhammad yunus

चीन के इशारे पर नाच रहे बांग्लादेश को तगड़ा झटका, भारत ने कपड़ों समेत कई सामानों पर लगाया प्रतिबंध

EOS-09

ISRO ने EOS-09 सैटेलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च किया, आतंकवाद विरोधी ऑपरेशनों में निभाएगा अहम भूमिका

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Indian army

भारत-पाकिस्तान सीजफायर: भारतीय सेना ने खारिज की 18 मई की समाप्ति की अफवाह, पाक ने फैलाया था ये झूठ

Harman singh Kapoor beaten by Pakistanis

कौन हैं हरमन सिंह और क्यों किया गया उन्हें गिरफ्तार?

Illegal Bangladeshi caught in Uttarakhand

देहरादून-हरिद्वार में बांग्लादेशी घुसपैठिये पकड़े गए, सत्यापन अभियान तेज

Center cuts Mao Fund in Kerala

केरल के माओवादी फंड में केंद्र सरकार ने की कटौती, जानें क्यों?

dr muhammad yunus

चीन के इशारे पर नाच रहे बांग्लादेश को तगड़ा झटका, भारत ने कपड़ों समेत कई सामानों पर लगाया प्रतिबंध

EOS-09

ISRO ने EOS-09 सैटेलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च किया, आतंकवाद विरोधी ऑपरेशनों में निभाएगा अहम भूमिका

इंदौर में लव जिहाद का मामला सामने आया है

मध्य प्रदेश: एक और लव जिहाद का मामला, इंदौर में हिंदू लड़कियों को फंसाकर मुस्लिम युवकों ने किया दुष्कर्म

Yogi Aaditynath

सालार मसूद गाजी की दरगाह पर नहीं लगेगा ‘गाजी मियां’ का मेला, योगी सरकार के फैसले पर लगी मुहर

Amit Shah operation Sindoor Pakistan

पाकिस्तान को 100 KM अंदर तक घुसकर मारा, सेना ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया, Operation Sindoor पर बोले अमित शाह

Indian army

Operation Sindoor: सरकार ने रक्षा बलों के लिए हथियार खरीद के लिए आपातकालीन खरीद शक्तियों को दी मंजूरी

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies