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वाराणसी के समाजसेवी सूर्यकान्त जालान जीव और जंगल का मंगल करने के साथ ही अनेक प्रकार के सेवा कार्य कर रहे हैं। उन्होंने गायों की नस्ल सुधार के लिए भी सराहनीय कार्य किया है
नाम : सूर्यकान्त जालान
(60 वर्ष)
व्यवसाय : कपड़े का कारोबार
प्रेरणा : विनोबा भावे
अविस्मरणीय क्षण : गायों को कत्लखाने से बचाना]
सुनील राय
वाराणसी में रहने वाले सूर्यकान्त जालान समाज सेवा के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हैं। रांची में पैदा हुए जालान उच्च शिक्षा के लिए वाराणसी आए थे। यहीं 22 वर्ष की आयु में वे आचार्य विनोबा भावे से प्रभावित हुए। उन दिनों विनोबा जी ने गोरक्षा आंदोलन शुरू किया था। गोरक्षा का प्रण करके जालान भी इस आंदोलन में शामिल हो गए। वे कहते हैं, ‘‘गोरक्षा आंदोलन का महत्वपूर्ण पड़ाव 1986 में आया, जब मैंने कत्लगाह ले जाई जा रहीं गायों को बचाने का काम शुरू किया और उन्हें वाराणसी की गोशालाओं में संरक्षित किया।’’
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जालान के प्रयास से गंगा तीरी नस्ल की गायों का संवर्द्धन किया गया। इस नस्ल की गायें प्रयाग से लेकर बलिया तक गंगा के किनारे पाई जाती हैं। गंगा तीरी गाय डेढ़ से दो लीटर दूध दिया करती थी। इस कारण किसान इन्हें कसाइयों को बेच देते थे। नस्ल सुधार के बाद इस नस्ल की गायें 18 से 20 लीटर दूध दे रही हैं। इनके बैल भी खेती के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं। गोपालकों को इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वे अपनी कन्याओं के विवाह में गंगा तीरी गाय दें। साहीवाल, अमृतसरी काली साहीवाल एवं लाल सिंधी जैसी तीन और नस्लों का संरक्षण और संवर्द्धन किया गया है। किताबी शिक्षा के साथ व्याहारिक ज्ञान भी छात्रों को मिले, इस उद्देश्य से वनवासी छात्रावास का संचालन किया जा रहा है। इन छात्रावासों में मणिपुर, नेपाल एवं बिहार के करीब 600 छात्र- छात्राएं रहते हैं।
इसके अलावा जालान की संस्था सुरभि शोध संस्थान के कार्यकर्ताओं ने वाटर शेड, जल प्रबंधन, व्यवस्था के अलावा देश-विदेश के लगभग 250 प्रकार के पौधों का रोपण मिर्जापुर जिले में किया है। 2009 में मिर्गी-उन्मूलन शिविर की स्थापना की गई, जहां से हजारों लोग लाभान्वित हुए। जालान की इच्छा है जीव-जंगल सबका मंगल हो। इसी भावना के साथ वे निरंतर कार्य कर रहे हैं। ल्ल
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