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भद्रकाली मंदिरतोड़कर बनाई जामा मस्जिद

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Jul 10, 2017, 12:00 am IST
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दिंनाक: 10 Jul 2017 12:13:27

 

‘मस्जिद’ के सभागार में 260 स्तंभ हैं, जिनमें मूर्तियां उकेरी हुई हैं। क्या किसी मस्जिद में मूर्ति होती है? साफ है, वहां  कभी भद्रकाली मंदिर था जिसे अहमदशाह के राज में  तोड़ा गया।

प्रशांत पोल
26 जून को जब सारा देश ईद की खुशियां मना रहा था, तब ‘दैनिक भास्कर’ ने अपने पहले पृष्ठ पर एक खबर छाप कर हिन्दुओं के साथ भद्दा मजाक किया..!
‘दैनिक भास्कर’ के सभी संस्करणों के पहले पृष्ठ पर सबसे ऊपर समाचार था, ‘सद्भाव और समानता की एक तस्वीर’। आगे लिखा था, ‘हिन्दू शैली के 152 स्तंभों से बनी 594 वर्ष पुरानी मस्जिद, कमल जैसा है इसके गुंबद का आकार।’ समाचार अमदाबाद की  ‘जामा मस्जिद’ का था। साबरमती नदी के किनारे स्थित इस मस्जिद की गिनती देश  की   खूबसूरत मस्जिदों में होती है। लेकिन यह मस्जिद प्राचीन हिन्दू और जैन मंदिरों के अवशेषों पर बनाई गई है, जो हर कोई जानता हैं। पर्यटन के बारे में पूरे विश्व में सबसे अधिक विश्वसनीय माने जाने वाले प्रकाशक ‘लोनली प्लेनेट’ ने लिखा है

‘Built by Ahmed Shah in 1423, the Jama Masjid ranks as one of India’s most beautiful mosques. Demolished Hindu and Jain temples provided the building materials, and the mosque displays some architectural fusion with these religions, notably in the lotus-like carving of some domes, which are supported by the prayer hall’s 260 columns.’ (Àf³Q·fÊ-https:// www.lonelyplanet.com/india/ahmedabad-amdavad/attractions/jama-masjid/a/poi-sig/478370/356239)

मूलत: यह मस्जिद ‘भद्रकाली मंदिर’ को तोड़ कर बनाई गई है। 1411 में अहमद शाह ने गुजरात सूबे पर कब्जा किया और कर्णावती को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। कर्णावती में उस समय साबरमती नदी के तट पर एक किला था, जिसे भद्रा नाम से जाना जाता था। इस किले के अहाते में भद्रकाली देवी का एक सुंदर मंदिर था। इसी कारण किले का नाम भी भद्रा हुआ। बाद में अहमद शाह ने कर्णावती का नाम बदल कर अमदाबाद किया और 1423 में भद्रकाली देवी के मंदिर को ध्वस्त कर, उसे जामा मस्जिद बनाया गया। इसके काफी वर्षों बाद, जब गुजरात पर मराठों का शासन हुआ, तब उन्होंने इसी परिसर में एक भद्रकाली मंदिर बनाया, जो वर्तमान में आस्था का केंद्र है।
दुनिया की किसी भी मस्जिद में प्रार्थना स्थल पर खंभे नहीं होते या बहुत कम होते हैं। प्रार्थना करने के लिए खुली जगह होती है। लेकिन यहां तो 260 खंभे हैं। उन पर भी आकृतियां उकेरी हुई हैं। इस्लाम में मूर्ति पूजा निषिद्ध है। फिर प्रार्थना स्थल पर आकृतियों और मूर्तियों से भरे इतने खंभे क्यों और कैसे..? इसके गुंबद पर कमल के फूल बने हैं, और गुंबद का आकार भी कमल जैसा ही है। भद्रकाली का अर्थ होता है देवी लक्ष्मी। और लक्ष्मी को सबसे ज्यादा ज्यादा पसंद है कमल का फूल। यहां खिड़कियों पर ॐ के चिन्ह भी बने हैं। यह सब क्यों..? क्योंकि यह मूलत: मस्जिद थी ही नहीं। यह तो भद्रकाली मंदिर को ध्वस्त कर बनाई गई मस्जिद है।
प्रसिद्ध इतिहासकार स्व. पुरुषोत्तम नागेश ओक ने सप्रमाण सिद्ध किया है कि यह स्थान भद्रकाली मंदिर ही है। उन्होंने एक मजेदार किस्सा बयान किया है। साठ के दशक में इस तथाकथित मस्जिद के सामने के. सी. ब्रदर्स (कान्तिचंद ब्रदर्स) के नाम से एक दुकान थी। इसके मालिक एम. डी. शाह ने इस दुकान को गिराकर नई दुकान बनाई, जिसका नक्शा अमदाबाद नगर निगम ने पास किया। लेकिन दुकान के बनते ही जामा मस्जिद के ट्रस्ट की ओर से एम.डी. शाह को एक नोटिस भेजा गया, जिसमें कहा गया कि उनकी दुकान मस्जिद से ऊंची है। अत: सबसे ऊपर की मंजिल आप गिरा दें। शाह इस पर कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करते, उसके पहले अमदाबाद नगर निगम ने भी सबसे ऊपर की मंजिल तोड़ने का नोटिस थमा दिया। इन सब बातों से परेशान शाह को किसी ने बताया कि पु. ना. ओक के पास बहुत कुछ जानकारी है। इसके बाद एम. डी. शाह ओक से मिले। उन्होंने बड़ा सरल उपाय बताया। के. सी. ब्रदर्स के वकीलों द्वारा एक नोटिस जामा मस्जिद के प्रबंधन को भेजा गया जिसमें लिखा गया, ‘‘यह एक अपहृत हिन्दू मंदिर है, जिसे मस्जिद बनाया गया है। अत: उस पर मुसलमानों का कोई हक नहीं बनता। इसलिए  के. सी. ब्रदर्स की इस दुकान की ऊपरी मंजिल को गिराने का प्रश्न ही नहीं उठता।’’
यह उत्तर मिलते ही जामा मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने अपना नोटिस वापस ले लिया और उस दिन से आज तक शाह को एक भी नोटिस या पत्र मस्जिद कमेटी का नहीं आया है..!
यह अकेला उदाहरण नहीं है। अयोध्या के बाबरी ढांचे के नीचे से निकले मंदिर के अवशेष हम सबने देखे हैं। कुतुब मीनार के नीचे दबे हुए मंदिर के अवशेष और गणेश मूर्ति आज भी देखी जा सकती है। ऐसे कितने ही मंदिर और मठ हैं, जिन्हें मुस्लिम आक्रान्ताओं ने मस्जिदों में बदल दिया। किन्तु उन्हें ‘हिन्दू-मुसलमान सद्भावना का प्रतीक’ कहना हिन्दू आस्था के साथ भद्दा मजाक है। दुर्भाग्य से आजकल सेकुलर मीडिया हिन्दू आस्था पर निरंतर चोट कर रहा है। उन्हें या तो इतिहास की जानकारी नहीं है या वे फिर जान-बूझकर शरारत कर रहे हैं।      ल्ल

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