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कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे ‘आॅपरेशन आॅलआउट’ के तहत ढेरों आतंकवादी मारे जा चुके हैं। घाटी में कभी बेखौफ घूमने वाले ये हत्यारे अब छुपे फिर रहे हैं
रवि पाराशर
श्मीर घाटी में आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। यही नहीं, पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने और वहां चल रहे आतंकी शिविरों पर लगाम कसने के मामलों में भी देश को लगातार सफलता मिल रही है। हमार सुरक्षा बल और सरकार, दोनों ही सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ‘आॅपरेशन आॅलआउट’ की वजह से वहां सक्रिय आतंकी दहशत में हैं और अमेरिका ने आतंक से जंग के लिए भारत के हाथ और मजबूती से थाम लिए हैं। अमेरिका का यह फैसला भी निर्णायक मोड़ साबित होगा, यह तय है। दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान में पाकिस्तान को दो टूक चेतावनी दी है कि वह सुनिश्चित करे कि उसकी जमीन से दूसरे देशों में आतंकी हमले न हों।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान इस सिलसिले में बड़ी रणनीतिक सफलता मिली। पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर से भारत के खिलाफ अघोषित युद्ध कर रहे और पूरे विश्व में आतंकवाद के बीज बो रहे हिज्ब-उल-मुजाहिदीन के मुखिया सैयद सलाहुद्दीन को अमेरिका ने वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया है। इससे बौखलाए पाकिस्तान ने भले ही फैसले को गलत बताते हुए कहा है कि कश्मीरियों के ‘आत्मनिर्णय’ के अधिकार का समर्थन करने वालों का वह समर्थन जारी रखेगा। लेकिन इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। सलाहुद्दीन का नाम लिए बिना जारी किया गया यह बयान उलटे यह साबित करता है कि पाकिस्तान आतंकवाद का खुलकर समर्थन कर रहा है।
अमेरिका की यह घोषणा उस पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका भी है, जो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने बार-बार यह रोना रोता है कि वह आतंकवाद का पोषण नहीं करता, बल्कि खुद आतंक से पीड़ित है।
प्रसंगवश बताते चलें कि हिज्ब सरगना सैयद सलाहुद्दीन कश्मीर के बडगाम जिले में पैदा हुआ। उसने कश्मीर विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। 1987 में उसने अपने मूल नाम यूसुफ शाह से मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के टिकट पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन जीता नहीं। बाद में उसने आतंक का रास्ता चुन लिया और मुजफ्फराबाद पहुंच गया। यूसुफ शाह नाम बदल कर 5 नवंबर, 1990 को वह सैयद सलाहुद्दीन बन गया। 2012 में उसने यह कहकर पाकिस्तान की किरकिरी की थी कि कश्मीर में जंग के लिए उसके संगठन को पाकिस्तान का समर्थन हासिल है। वह यह धमकी भी दे चुका है कि अगर पाकिस्तान ने उसका साथ नहीं दिया, तो हिज्ब के आतंकी वहां भी जंग छेड़ देंगे। साफ है कि एक तरह से उसकी पीठ पर पाकिस्तानी फौज का नापाक हाथ है। यही वजह है कि पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में उसका एक खास ठिकाना है।
वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के बाद अब अमेरिकी अधिकार क्षेत्र में आने वाली उसकी सारी संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी। साथ ही अमेरिका का कोई भी नागरिक उसके साथ किसी तरह का संबंध नहीं रख पाएगा। पिछले दिनों घुसपैठ के खिलाफ भारतीय सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई और अब ‘आॅपरेशन आॅलआउट’ से न केवल सैयद सलाहुद्दीन तिलमिलाया हुआ है, बल्कि पाकिस्तान में बेखौफ रह रहे दूसरे आतंकी सरगना भी हाथ मलने को मजबूर हैं। खबर है कि हाल ही में सलाहुद्दीन ने पाकिस्तानी फौज के जनरल कमर अहमद बाजवा तक एक संदेश भेजा है। उसमें उसने कहा है, ‘‘पीओजेके में सक्रिय आतंकियों की मदद बढ़ाई जाए। अगर कश्मीर में नतीजे देखने हैं, तो ‘लोकल आर्मी’ (आतंकवादी) को समर्थन देना पड़ेगा।’’ इससे पहले जनरल राहिल शरीफ को भी उसने ऐसा ही संदेश भेजा था।
ईद के अवसर पर सामने आए दो वीडियो ने फिर दुनिया के सामने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान की जमीन पर आतंक के कंटीले झाड़ फल-फूल रहे हैं। एक वीडियो सैयद सलाहुद्दीन का है, जिसमें वह कश्मीर के हिज्ब सरगना रहे बुरहान वानी की बरसी पर पूरे हफ्ते यानी 8 जुलाई से 13 जुलाई तक खून-खराबा करने और विरोध प्रदर्शनों के लिए आतंकियों को हुक्म देता सुनाई दे रहा है। वीडियो में वह कश्मीर के हुर्रियत नेताओं को भी संदेश दे रहा है कि वे अपने हिसाब से विरोध प्रदर्शनों का कैलेंडर जारी कर सकते हैं। सलाहुद्दीन के इस जहर भरे वीडियो का ही नतीजा है कि कश्मीर में ईद की नमाज के बाद दिन भर जगह-जगह सुरक्षा बलों के जवानों पर पत्थर बरसाए गए, आगजनी की गई। दूसरे वीडियो में जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद का एक करीबी रिश्तेदार श्रीनगर के पंथाचौक इलाके के डीपीएस स्कूल में हुई मुठभेड़ के दौरान फंसे दो आतंकियों के लिए दुआ करता हुआ दिखाई दे रहा है। इस वीडियो में जमात-उद-दावा का कार्यकारी सरगना अब्दुल रहमान मक्की भी दिखाई दे रहा है। यह वीडियो मुठभेड़ के वक्त ही बनाया गया था।
24 जून को सीआरपीएफ के दल पर हमला करने वाले दो आतंकी डीपीएस स्कूल में छिप गए थे। 17 घंटे चली मुठभेड़ में दोनों आतंकियों को ढेर कर दिया गया। दोनों आतंकियों के मारे जाने से साफ है कि ‘आॅपरेशन आॅलआउट’ कामयाब हो रहा है। आॅपरेशन शुरू करने से पहले सुरक्षा बलों ने कश्मीर के 13 जिलों में सक्रिय 258 स्थानीय और विदेशी आतंकवादियों की सूची तैयार की थी। इनमें से सात आतंकी 27 जून तक मारे जा चुके थे।
उल्लेखनीय है कि जमात-उद-दावा प्रतिबंधित लश्कर-ए-तोयबा का ही मुखौटा संगठन है। इससे भी यह बात साबित होती है कि हाफिज सईद का साला आतंकियों की सलामती के लिए दुआ कर रहा है। सलाहुद्दीन के वीडियो के साथ ही यह वीडियो भी इस बात का जीता-जागता सबूत है कि पाकिस्तान की धरती से आतंकी भारत के विरोध में खुलकर काम कर रहे हैं, जिसे पाकिस्तान नकारता है।
कश्मीर में आतंक के खात्मे के लिए सुरक्षा बल कई स्तरों पर काम कर रहे हैं। ‘आॅपरेशन आॅलआउट’ के जरिए उन्होंने साफ कर दिया है कि घाटी में सक्रिय आतंकियों को किसी भी कीमत पर जीवित नहीं छोड़ा जाएगा। इसके तहत एक-एक आतंकी से जुड़ी सारी जानकारियां जुटाई गई हैं। इस काम में अमनपसंद कश्मीरियों ने भी उनकी सहायता की है। इसके साथ ही बंदूक उठा चुके स्थानीय आतंकियों के परिवारों और मित्रों के जरिए उन पर आत्मसमर्पण के लिए भावनात्मक स्तर पर भी दबाव डलवाया जा रहा है। यह आॅपरेशन आनन-फानन में शुरू नहीं किया गया, बल्कि आतंक के संहार की इस योजना पर काफी समय से काम चल रहा था। इसी का नतीजा है कि 7 जून को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जानकारी दी कि हिज्ब सरगना सब्जार भट के जनाजे में दिखाई दिए आतंकी दानिश अहमद ने आत्मसर्पण कर दिया है। वह उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा का रहने वाला है। पुलिस के अनुसार दानिश के माता-पिता उसके खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई के आश्वासन पर उसे मनाने के लिए मान गए। दूसरे कई स्थानीय आतंकियों के परिवार भी बेटों को मनाने में लगे हैं। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सीमा और एलओसी पर घुसपैठ रोकने के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। आतंकवादियों को पैसा पहुंचाने के मामले में भी एनआईए ने हुर्रियत नेताओं के इर्दगिर्द शिकंजा कस दिया है। 27 जून को ही सैयद अली शाह गिलानी के दामाद अल्ताफ फंटूश समेत तीन अलगाववादियों को गिरफ्तार किया गया है।
आॅपरेशन आॅलआउट को प्रभावी बनाने के लिए दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों के 2,000 अतिरिक्त जवान तैनात किए जा रहे हैं। इसके अलावा खबर यह भी है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस को 100 बख्तरबंद गाड़ियां सितंबर तक मुहैया करा दी जाएंगी। आतंकियों को खत्म करने के लिए जो सूची बनाई गई है, उसमें सबसे ज्यादा 136 आतंकी लश्कर के हैं। हिज्ब के 95, जैश-ए-मोहम्मद के 23 और अलबद्र के एक आतंकी की पहचान की गई है। सूची में शामिल जम्मू- कश्मीर के 13 जिलों में सक्रिय 130 आतंकी स्थानीय हैं और 128 विदेशी, खासकर पाकिस्तानी हैं। सबसे ज्यादा 39 आतंकी सोपोर में हैं, जिनमें 24 विदेशी हैं। इसके बाद कुपवाड़ा में सक्रिय 34 आतंकियों में से 32 विदेशी हैं। हंदवाड़ा में 28 विदेशियों समेत 31, शोपियां में 26, कुलगाम, पुलवामा और अवंतीपुरा में 25-25 आतंकी हैं। इनमें 12 विदेशी हैं। बारामूला में सात विदेशियों समेत 11, श्रीनगर में छह विदेशियों समेत नौ, अनंतनाग में एक विदेशी समेत नौ, गंदरबल में चार (तीन विदेशी) और बडगाम में कुल चार स्थानीय आतंकी हैं। इससे पहले सितंबर, 2016 में भी सेना, सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस ने कश्मीर में बड़े पैमाने पर ‘आॅपरेशन कामडाउन’ चलाया था। इसके तहत प्रदर्शनकारियों द्वारा जगह-जगह सड़कों पर पैदा किए गए अवरोधों को हटाया गया था। आठ जुलाई, 2016 के बाद शुरू हुए हिंसक आंदोलन के दौरान लोगों ने सड़कों पर पेड़ काट कर डाल दिए थे। बिजली के खंभे उखाड़ दिए थे, जले हुए वाहन और कई दूसरे अवरोध पैदा कर दिए थे, ताकि सेना की गाड़ियां रफ्तार न पा सकें।
पिछले दिनों सेना ने बड़े पैमाने पर सघन तलाशी अभियान भी शुरू किया था। ऐसे अभियान लोगों को होने वाली परेशानी को देखते हुए वर्ष 2000 में बंद कर दिए गए थे। लेकिन अब आतंक की कमर को पूरी तरह तोड़ने का फैसला किया गया है, तो फिर स्थानीय लोगों को भी थोड़ी तकलीफ सहने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि आखिरी तौर पर वही आतंक के शिकार हो रहे हैं। यह सुरक्षा बलों की कार्रवाई का ही नतीजा है कि पाकिस्तान से घुसपैठ करने वाले आतंकियों की संख्या में काफी कमी आई है। आने वाले दिनों में मौसम प्रतिकूल होने से यह संख्या और घटेगी, यह भी तय है। इसके अलावा पीओजेके में भी पाकिस्तान के खिलाफ आंदोलन तेज हुए हैं। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि सुरक्षा बलों का विजयी अभियान पूरी तरह सफल होगा। देश के लोग भी चाहते हैं कि कश्मीर घाटी से आतंकवाद समाप्त हो। इसलिए लोग सरकार और सुरक्षा बलों की कार्रवाई का समर्थन भी कर रहे हैं। संप्रग सरकार ने भले पाकिस्तान को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा दिया हो लेकिन आज दिल्ली में ऐसी सरकार है जो राष्ट्र हित को आगे सरकार ही फैसले लेती है घाटी में चल रही सैन्य कार्रवाई को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि आतंकवाद पर करारी चोट करने के साथ-साथ भारत सरकार पाकिस्तान कूटनीतिक चालबाजियों की भी खबर लेगी।
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