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''जीवन में सफल होने के साथ-साथ उसे उद्देश्यपूर्ण भी होना चाहिए। तभी मनुष्य को प्राप्त विद्या सार्थक होती है। ऐसे उत्कृष्ट कार्य को विद्या भारती पूरी मेहनत के साथ कर रही है।'' उक्त वक्तव्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने गत दिनों नई दिल्ली के राव मेहर चंद सरस्वती विद्या मंदिर, भलस्वा के नए भवन के शिलान्यास कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दिया। उन्होंने कहा कि विद्याभारती ने अपने हाथ में एक कल्याणकारी, मंगलकारी कार्य लिया है। इसके माध्यम से वह एक ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण करना चाहती है जो हिन्दुत्वनिष्ठ और राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत हो, अपनी वर्तमानकालीन समस्याओं का सामना करने में सफल होने के लिए सक्षम हो और अपने देश के अभावग्रस्त लोग, साधनहीन लोगों को शोषण और अन्याय से मुक्ति दिलाकर उनका उत्थान करने के लिए सेवारत हों। श्री भागवत ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल जीवनयापन करना नहीं है। शिक्षा प्राप्त करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि जिस समाज व जिस देश से हम हैं, उसे वापस देने के लिए हमारा समाज सक्षम बने। शिक्षा को सार्थक बनाने के लिए इन भावों को जगाना जरूरी है। हम विद्या मनुष्य को शिक्षित बनाती है। वह बच्चों के मन में स्वाभिमान को बनाए रखने की क्षमता प्रदान करती है। विद्या केवल विद्यालय में जाकर नहीं सीखते हैं। इसमें अभिभावकों और परिवारों का भी बहुत बड़ा त्याग, तपस्या, और बलिदान सम्मिलित होता है। विद्या भारती इन सब कायोंर् को अच्छे ढंग से करने का प्रयास कर रही है।
-नई दिल्ली (इंविसंकें)
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