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उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में आंबेडकर शोभायात्रा में डीजे बजने पर पहले मुसलमानों को आपत्ति हुई। इसके बाद महाराणा प्रताप की शोभायात्रा में डीजे बजाने पर दलितों को आपत्ति हुई। तब से करीब एक महीना होने को आया, निहित स्वार्थी तत्व जातीय संघर्ष थमने नहीं दे रहे हैं।
सहारनपुर में पहले आंबेडकर शोभायात्रा में बज रहे डीजे से मुसलमानों को आपत्ति थी। तो 6 मई को महाराणा प्रताप की शोभायात्रा में बज रहे डीजे से दलितों को आपत्ति हुई। दोनों बार दंगा हुआ। पुलिस-प्रशासन दोनों बार नाकाम रहा। … सामाजिक सौहार्द तार-तार हुआ, लेकिन विचारणीय विषय यह है कि आखिर किसी भी महापुरुष को लेकर हमारे समाज में मतभेद क्यों है? कारण साफ है कि हम लोगों ने कालांतर में न तो महापुरुषों के जीवन से कुछ सीखा और न ही उनके बताए रास्ते को समझा, बल्कि हर महापुरुष को जाति और धर्म के आधार पर बांटकर केवल राजनीति ही की है।
अधिकांशत: देखा गया है कि बाबा साहेब, ज्योतिबा फुले की जयंती केवल दलित समाज मनाता है। परशुराम जयंती केवल ब्राह्मण समाज, वाल्मीकि जयंती केवल वाल्मीकि समाज, अग्रसेन जयंती केवल वैश्य समाज और महाराणा प्रताप जयंती केवल क्षत्रिय समाज मनाता है। ऐसे अनगिनत उदाहरण देखने को मिलते हैं। यहां तक कि महात्मा गांधी जयंती पर सर्वसमाज को कोई संदेश देने और सर्वसमाज को उनसे जोड़ने के बजाय गांधी जयंती कार्यक्रम भी सरकारी औपचारिकता मात्र बनकर रह गया है। ऐसा इसलिए भी होता है कि आए दिन ऐसी जयंतियों पर समाज विशेष के लोग शुभकामनाएं देने के नाम पर अपने पोस्टरों से पूरे क्षेत्र को पाट देते हैं। उन महानुभावों का ऐसे महापुरुष द्वारा दी हुई शिक्षा और उनके आदर्शों से कोई संबंध नहीं होता है। उनका उद्देश्य ऐसे कार्यक्रमों/कृत्यों/शोभायात्राओं द्वारा अपने आप को समाज का ठेकेदार प्रदर्शित करना और अपनी राजनीति चमकाना मात्र होता है। ऐसे कार्यक्रम में अनुशासन, सामाजिक सद्भाव और समरसता का भाव लगभग नदारद होता है और ऐसे ही कृत्यों से दूसरे संप्रदाय या समाज में कहीं न कहीं ईर्ष्या की भावना जन्म ले लेती है और फिर विवाद पैदा होते हैं। लिहाजा जब तक हम लोग अपने आप को चमकाने के बजाय महापुरुषों के जीवन को नहीं समझेंगे, उनके आदर्शों पर नहीं चलेंगे, उस पर चिंतन नहीं करेंगे तथा केवल उनके नाम पर शोर मचाते और भौंडे गीत-नृत्य पेश करते डीजे-बैंड के साथ शोभायात्रा निकालते रहेंगे तो ऐसे ही दंगे होते रहेंगे।
आवश्यकता है कि सभी भारतीय महापुरुषों को सर्वसमाज का महापुरुष बनाने का प्रयास किया जाए, क्योंकि सभी महापुरुष वास्तव में सर्वसमाज का हित करके ही महापुरुष कहलाए। बाबा साहेब ने सर्वसमाज से छुआछूत समाप्त करने के लिए संघर्ष किया था। महाराणा प्रताप ने मातृभूमि के लिए संघर्ष किया था। महर्षि वाल्मीकि ने संपूर्ण हिन्दू समाज के आदर्श पुरुष भगवान श्रीराम का वर्णन करते हुए रामायण जैसा महाग्रंथ लिखा। परशुराम न केवल वैदिक संस्कृति के प्रचारक थे, बल्कि उन्होंने अहंकारी और दुष्ट लोगों का भी संहार किया। महाराजा अग्रसेन अहिंसा के प्रवर्तक थे और हम लोगों ने इन सभी को सिर्फ किसी न किसी जाति से जोड़कर ही देखा है। हमें स्वयं महापुरुषों को जातियों के बंधन से मुक्त करना होगा और जातियों के कथित ठेकेदारों को ऐसा करने से रोकना होगा। हमें सामाजिक समरसता का भाव उत्पन्न करना होगा, तभी किसी शोभायात्रा का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण होगा।
(पंकज राज की फेसबुक वॉल से)
सहारनपुर की हिंसा सुनियोजित!
पिछिले लगभग एक महीने से सहारनपुर में जातीय संघर्ष चल रहा है या यूं कहें कि बाबा साहेब और बसपा की लोकसभा एवं विधानसभा की हार को ढाल बनाकर खूनी खुद को प्रताड़ित बता रहा है। याद कीजिए, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर में हिंसा हुई जो कि पूरी तरह से सुनियोजित थी। ‘भीम सेना’ और उससे जुड़े संगठन उपद्रव की योजना बनाने गांधी पार्क में जमा हुए। पुलिस ने उन्हें हटाया तो प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए। उन्होंने पथराव किया, पुलिस चौकी को फूंक दिया। दर्जनों बाइक, कारों और बसों को आग के हवाले कर दिया गया। इन उपद्रवियों ने सहारनपुर के राजपूत भवन को भी आग के हवाले कर दिया। ‘भीम सेना’ के उपद्रवियों द्वारा इस हमले में अतिरिक्त कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर के साथ सहारनपुर के पुलिस अधिकारियों को अपनी जान बचाने की नौबत आन पड़ी थी। उपद्रवियों से बचने के लिए उन्हें आवासीय परिसरों में छिपना पड़ा, लेकिन वहां भी उनकी जान को खतरा था। इस हमले में सहारनपुर के तीन पुलिस अधिकारियों सहित कई लोग घायल हुए। दरअसल, यह हिंसा और उपद्रव अनायास नहीं है, बल्कि सुनियोजित ढंग से किया गया है। पुलिस खुफिया विभाग ने भी इसकी पुष्टि की है। इस समुदाय का आतंक इस क्षेत्र में बढ़ता ही जा रहा है।
‘भीम सेना’ ने शब्बीरपुर प्रकरण के बाद व्हाट्सएप गु्रप से युवाओं को संदेश देकर पंचायत में आने के लिए जमा किया। सोशल मीडिया पर पूरी रणनीति एक-दूसरे के साथ साझा की गई थी। योजना के तहत प्रदर्शनकारी छात्रावास में जुटे और जैसे ही पुलिस ने वहां सख्ती की तो भीड़ गांधी मैदान पहुंच गई। यहां पर भी पुलिस ने भीड़ को दौड़ाया। कुछ युवकों को हिरासत में लिया। इसके बाद योजना के तहत यहीं से महानगर में प्रवेश करने वाले सभी मुख्य मार्गों को कब्जे में लेने का संदेश भी दिया गया। (सुनील एम गुप्ता की फेसबुक वॉल से)
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