|
पाकिस्तान की मांग का समर्थन करने और चीनी आक्रमण का स्वागत करने के बाद भी भारत से वामपंथ का लगभग सफाया हो चुका है। अब केरल में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए वामपंथी हिंसा और अत्याचार की हदें पार कर रहे हैं
एस. सेतु माधवन
केरल में निरंतर जारी रक्तरंजित वामपंथी हिंसा अमनपसंद और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए चिंता का विषय है। प्रदेश में पिनराई विजयन के नेतृत्व में एलडीएफ सरकार के गठन के पश्चात् स्थिति और अधिक गंभीर हुई है। ऐसा लगता है कि विजयन मुख्यमंत्री के रूप में नहीं, एक पार्टी के नेता के नाते कार्य कर रहे हैं। भगवान की धरती कही जाने वाली केरल की धरती को वामपंथी गुंडों ने कसाईखाना बना रखा है। पिछले कुछ वषार्ें में ही केरल में संघ और भाजपा के 270 कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है। हत्यारों ने महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ा। लगभग 50 साल पहले 1969 में वादिकल रामकृष्णन (जो दर्जी थे) नामक स्वयंसेवक की हत्या हुई थी। यह किसी स्वयंसेवक की वामपंथियों द्वारा की गई पहली हत्या थी। उसी साल संघ और जनसंघ के कार्यकर्ता श्रीधरन नायर और 1970 में चंद्रन अलुवा (जिला शारीरिक प्रशिक्षक) की हत्या की गई। पिछले साल 28 दिसंबर, 19 दिसंबर, 12 अक्तूबर, 07 अक्तूबर, 03 सितंबर, 11 जुलाई, 22 मई और फरवरी में भी कार्यकर्ताओं की हत्या की गई।
केरल के लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों वामपंथी गठबंधन सरकार के शासन में लगातार राजनीतिक हत्याएं हो रही हैं? जब से विजयन ने केरल में सत्ता संभाली है, तब से वामपंथी गुंडागर्दी बढ़ गई है। 18 माह के छोटे बच्चे के साथ दो महिलाओं को झूठे मुकदमे में फंसाकर जेल में बंद कर दिया गया। ऑटो रिक्शा चलाकर अपनी आजीविका कमा रही एक महिला को पार्टी के लोग लगातार धमकाते रहे, और बाद में उसके ऑटोरिक्शा को आग के हवाले कर दिया। एर्नाकुलम आयुर्वेद, कॉलेज की एक छात्रा को पार्टी नेताओं की बात न मानने पर प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। लॉ कॉलेज की एक छात्रा की दुराचार के बाद निर्दयता से हत्या कर दी गई। इस मामले में पुलिस और सरकार ने जांच को प्रभावित कर वास्तविक अपराधियों को बचाने का काम किया।
गैर कानूनी-गैर लोकतांत्रिक
दरअसल माकपा अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में अन्य किसी संगठन की गतिविधियों को नहीं चलने देती और न ही इन स्थानों पर अपने झंडे के अलावा अन्य किसी संगठन के झंडे को फहराने की अनुमति देती है। पार्टी का यही अलोकतांत्रिक और असहिष्णु रवैया उसे हिंसा की ओर ले जाता है। अन्य किसी विचार को प्रसारित करने के अधिकार को भी माकपा स्वीकार नहीं करती। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें माकपा ने चुनावों में नामांकन करने वाले अन्य दलों के उम्मीदवारों को डराया-धमकाया, जिससे वे नामांकन वापस ले लें। 1980 में विधानसभा चुनावों के दौरान वामपंथी गुंडों ने कांग्रेस पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं पर इसलिए हमला कर दिया था कि वे माकपा के गढ़ वाले क्षेत्रों में कांग्रेस पार्टी के पोलिंग एजेंट थे। अभी हाल ही के विधानसभा चुनावों में माकपा के गढ़ पप्पीनसेरी में बूथ एजेंट भाजपा कार्यकर्ता को धमकाया गया और उसके गले पर धारदार हथियार रखकर लिखित में लिया गया कि वह आज के बाद किसी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेगा। इस घटना के दृश्य केरल के सभी चैनलों पर दिखाए गए थे। लेकिन दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। केरल में शायद ही कोई ऐसा दल हो जो वामपंथी हिंसा का शिकार न हुआ हो। यहां तक कि उनके गठबंधन के सदस्य और मातृ संस्था माकपा और आरएसपी को भी माकपाई हिंसा का स्वाद चखना पड़ा है। कक्षा में छात्रों के सामने शिक्षक की हत्या, असहाय छोटे बच्चों के सामने उनके माता-पिता की हत्या, पत्नी के सामने उसके पति को टुकड़े-टुकड़े कर मार देना, पीडि़त के घर में घुसने में असफल होने पर घर को आग के हवाले कर देना, जिससे कोई भी सदस्य बच न सके, यदि कोई उनके हमले से बचने के लिए नदी आदि में छलांग लगा दे तो पत्थरों की बौछार कर जलसमाधि लेने पर मजबूर कर देना, ये वामपंथी हिंसा के कुछ उदाहरण भर हैं।
1942 में केरल में संघ कार्य की शुरुआत के समय साम्यवाद की मजबूत पकड़ बनी हुई थी। एके गोपालन और ईएमएस नंबूदरिपाद जैसे इसके लोकप्रिय नेता थे। 1921 में मोपला कांड में कांग्रेस के लचर रवैए के चलते हिंदुओं में कांग्रेस के प्रति गुस्सा था और इसी का लाभ उठाकर साम्यवाद केरल में अपनी जड़ें जमाने में सफल हो सका। उसने स्वयं को अंतरराष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बताकर न्याय के लिए मजदूरों, पीडि़तों के पक्ष में खड़े होने वाली पार्टी के रूप में अपनी झूठी छवि गढ़ी।
ऐसे में पहले दिन से ही संघ को वामपंथियों के विरोध और क्रोध का सामना करना पड़ा। उन दिनों वामपंथी संघ के स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं को यह कहकर हतोत्साहित करने का प्रयास करते थे कि यहां तुम्हारी दाल गलने वाली नहीं है। उन्होंने संघ स्थान पर शीशे के टुकड़े और कंटीली झाडि़यां फेंक कर, झूठा प्रचार कर, गांधी हत्यारे, फासीवादी, अल्पसंख्यक विरोधी और न जाने क्या-क्या कह कर संघ कार्य को बाधित करने का प्रयास किया। वामपंथी जब भी सत्ता में आते, संघ को दबाने और कमजोर करने का हर संभव प्रयास करते, यहां तक कि पुलिस बल और प्रशासन का उपयोग करने से भी पीछे नहीं हटते। उदाहरणस्वरूप, ईके नयनार के मुख्यमंत्रित्व काल में उस समय के उत्तरी क्षेत्र के डीआईजी कुमार स्वामी के एक आदेश को लिया जा सकता है। उन्होंने आदेश दिया था, ''मेरे नाश्ता करने से पहले मुझे संघ के कार्यकर्ताओं की सूची भेजो, जिन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल सकते हो।''
हिंदू और राष्ट्र विरोधी
वामपंथियों का देश और हिंदू विरोधी रवैया भी समय-समय पर सामने आता रहा है। जब एर्नाकुलम में अमृता मेडिकल संस्थान (अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) के भवन का निर्माण कार्य चल रहा था तो वामपंथी पत्र 'देशाभिमानी' में प्रकाशित एक लेख में संस्थान का विरोध करते हुए आरोप लगाया गया था कि केरल वासियों की किडनियां अमेरिकियों को बेचने के लिए संस्थान खोला जा रहा है। हिंदू सांप्रदायिकता बढ़ाने का आरोप लगाते हुए स्वामी चिदानंदपुरी जी की वेदांत कक्षाओं का विरोध किया गया, तो दूसरी ओर 1998 के कोयंबटूर बम धमाकों के आरोपी अब्दुल नजीर मदनी (जेल में बंद) के पैरोल के लिए प्रयास करते रहे। वामपंथियों का हिंदू विरोधी रवैया ओनम उत्सव पर प्रतिबंध, सरकारी कार्यक्रमों में दीप प्रज्ज्वलन पर प्रतिबंध और अन्य प्रतिबंधों के माध्यम से आज भी जारी है।
प्रसिद्ध स्तंभकार अरुण शौरी ने अपनी पुस्तक 'दी ग्रेट बेटरायल' में बताया है कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय वामपंथियों ने किस प्रकार देश विरोधी कार्य किया। अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी ने मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग का समर्थन किया था। उसका तर्क, 'जिस क्षेत्र में अलग भाषा बोली जाती है, उसकी एक अलग राष्ट्रीयता है', भी भारत की संप्रभुता के खिलाफ है। नंबूदरीपाद अपनी पुस्तक 'केरला: दी मदरलैंड ऑफ मलेलियाज' में वामपंथियों के इस तर्क का समर्थन करने पर अधिक जोर देते हैं। 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया और हमारी हजारों किमी भूमि पर कब्जा कर लिया तो पूरा देश इसके खिलाफ एक साथ खड़ा था, लेकिन नंबूदरीपाद और अन्य वामपंथियों का देश विरोधी तर्क था कि, ''जिस भूमि पर चीन ने कब्जा किया, वह विवादित क्षेत्र है, जिसे चीन अपना और हम अपना क्षेत्र बताते हैं।''इससे भी आगे जब पूरा देश सेना के साथ खड़ा था, सीमा पर चीनी आक्रमण का सामना कर रहे सैनिकों को भोजन और युद्ध सामग्री उपलब्ध करवाने का क्रम चल रहा था, वामपंथियों ने कोलकाता सहित अन्य स्थानों पर मजदूरों की हड़ताल आयोजित की।
इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद की जन्मशताब्दी के अवसर पर कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक निर्माण के समय भारत के प्रत्येक राज्य ने बढ़-चढ़कर योगदान दिया, तो केवल केरल की नंबूदरीपाद सरकार ने एक भी पैसा देने से स्पष्ट मना कर दिया। ऐसे ही जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया तो वामपंथियों ने उसका विरोध किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी के अनुसार साम्यवाद विचारधारा में अपूर्ण और अभ्यास में घातक है। और ऐसा घातक संगठन लंबे समय से लोगों को मजदूर वर्ग के हितों और विकास के नाम पर धोखा दे रहा है। भारत की सांस्कृतिक पहचान, देशहित और लोकतांत्रिक मूल्यों का विरोधी साम्यवाद अपने स्वाभाविक पतन की ओर अग्रसर है। साम्यवाद के नाम पर केवल केरल में ही पार्टी बची है, जबकि पूरे विश्व ने काफी पहले ही साम्यवाद को पूरी तरह से नकार दिया है। कोई संशय नहीं कि अब केरल में भी पार्टी मरणासन्न स्थिति में है।
(लेखक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं)
टिप्पणियाँ