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''स्वयंसेवक को निरंतर चिंतन करते रहना चाहिए कि मैं तो संघ में आ गया लेकिन मुझमें संघ कितना आया। क्योंकि संघ कार्यक्रमों में नहीं आचरण में है।'' गत दिनों मानस भवन, जबलपुर में मोरुभाऊ मुंजे जन्मशताब्दी समापन समारोह में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने ये विचार व्यक्त किये। मोरुभाऊ मुंजे डॉ. हेडगेवार की प्रेरणा से संघ कार्य को देशभर में ले जाने वाले प्रथम प्रचारकों में से थे। उन्होंने एक गीत को उद्धृत करते हुए कहा,''संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के बारे में कहा गया कि 'तेजोमय प्रतिबिम्ब तुम्हारे, स्वयंसिद्ध अगणित निकले है' क्योंकि उन्होंने अपनी तपस्या, आत्मीय स्नेह और आचरण से प्रेरणा दी कि उनकी ही तरह अपना जीवन देश के लिए खपा देने वालों की दीपमाला तैयार हुई। और ये लोग कोई कार्बन कॉपी नहीं थे, बल्कि सब अपने आप में अनोखे थे, इसीलिए उन्हें स्वयंसिद्ध कहा गया है। श्री भागवत ने कहा कि बड़े वृक्ष के नीचे कुछ और नहीं पनपता लेकिन डॉ. हेडगेवार ऐसे महावृक्ष थे जिनकी छाया में अनेक वृक्ष पल्लवित हुए। मोरुभाऊ मुंजे भी उनमें से एक हैं। इन सबका स्मरण करेंगे तो संघ बढ़ेगा , विश्व में भी और हमारे अंदर भी। इसीलिए हम उनका स्मरण करते हैं। ये आयोजन भी हमारी आवश्यकता है उनकी नहीं।
इस अवसर पर मोरुभाऊ मुंजे के जीवन पर लिखित एक पुस्तक 'गृहस्थ प्रचारक' का विमोचन भी हुआ। पुस्तक के बारे में बोलते हुए श्री भागवत ने कहा कि ऐसी पुस्तक पढ़ने से हमारे मन में संघ चिंतन होता है, चिंतन से वह कृति में आता है। आज संघ को जो यश मिल रहा है वह ऐसे ही व्यक्तित्वों की 90 वर्ष की तपस्या का परिणाम है। ऐसे ही लोगों ने स्वयं को खपाकर राह प्रशस्त की है। मोरुभाऊ जीवन में अनेक लौकिक वस्तुएं प्राप्त कर सकते थे, धन, ऐश्वर्य कमा सकते थे , लेकिन डॉ. हेडगेवार के संपर्क में आने के बाद उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया। हम कला और विद्या की देवी सरस्वती की आराधना करते हैं, ऐश्वर्य ,श्री और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की उपासना करते हैं परंतु महाकाली के विकराल रूप की भी उपासना करते हैं। मोरुभाऊ मुंजे ने भी, देश के विभाजन की भीषण परिस्थितियों में लाहौर और रावलपिंडी में जाकर हिन्दू समाज को एकत्रित और संगठित करने का काम किया, जिससे कितने ही प्राणों की रक्षा हो सकी।
मोरुभाऊ मुंजे के बारे में अपने संस्मरण सुनाते हुए महामंडलेश्वर स्वामी श्री अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि मुझे सदैव मोरुभाऊ का मार्गदर्शन मिलता रहा। वे प्रत्येक कार्यकर्ता की चिंता किया करते थे, स्नेह भी बहुत करते थे। जब मैं संन्यास धारण करके उनके पास पहुंचा तो उन्होंने मुझे डांट लगाई कि इतना काम बाकी है, समाज की ऐसी परिस्थितियां है और तुम्हे संन्यास सूझ रहा है। तब मैंने उन्हें वचन दिया कि संन्यासी रहते हुए मैं राष्ट्र कार्य से कभी पीछे नहीं हटूंगा। समारोह में भारत विभाजन पर आधारित निबंध प्रतियोगिता में उत्कृष्ट लेखन करने वाले छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया गया।
इसके पूर्व श्री भागवत ने दादा वीरेंद्रपुरी जी नेत्र संस्थान का लोकार्पण किया। इस अवसर उन्होंने कहा कि दूसरे की पीड़ा के लिए अंत:करण में संवेदना ही मनुष्यता का लक्षण है। पत्थर से पत्थर दिल व्यक्ति भी अपने अंदर झांकेगा तो उसे इस संवेदना के दर्शन होंगे। समाज की पीड़ा का मनोचक्षुओं से दर्शन करने से संवेदना जाग्रत होती है।
निरहंकार होकर शिव भाव से जीव सेवा की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि सेवा स्वाभाविक कार्य है, इसमें अहंकार के लिए स्थान नहीं है। एक बार रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद (तब नरेन्द्रनाथ दत्त) को कहते सुना कि ध्यान-भजन से क्या होगा, हमें पीडि़तों पर उपकार करना चाहिए। तो फटकारते हुए बोले कि तुम कौन होते हो उपकार करने वाले। वह जगतजननी मां ही सहस्त्र रूपों में प्रकट हुई है।
विश्व में भारत की भूमिका के बारे में बोलते हुए श्री भागवत ने कहा कि मैं सब में हूं। सब मुझमें हैं, यही भारत का सन्देश है। यही भारत को दुनिया को सिखाना है। इस बात को भारत भूल गया था इसलिए उसने अनेक सदियों तक उतार-चढ़ाव देखे। आध्यात्मिक चेतना का व्यवहार में प्रकटीकरण ही सेवा है। इसे यश, पुण्य या स्वर्ग की कामना से नहीं, साधना और समर्पण भाव से करना है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्वयंसेवक और नागरिक उपस्थित थे। प्रशांत बाजपेई
दारा शुकोह के विचार आज भी प्रासंगिक
अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र द्वारा 31 मार्च को नई दिल्ली में नौवें चमनलाल स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए केंद्रीय बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ''हर व्यक्ति एवं संस्था की निगरानी तथा मार्ग में भटकने से बचाने के लिए कोई न कोई मोरल अथॉरिटी आवश्यक होती है।
रा.स्व.संघ के रूप में हमें वह अथॉरिटी मिली है जो हमें गलत रास्ते पर जाने से बचाती आई है। श्री चमनलाल जी भी संघ के शीर्षस्थ मार्गदर्शक थे, जिनके सरल, सहज और सभी के साथ समान आत्मीय व्यवहार के कारण लोग केशव कुंज में उनसे मिलने खिंचे चले आते थे। उनकी सादगी इससे भी झलकती थी कि उन्होंने कभी प्रेस किए कपड़े नहीं पहने।''
उन्होंने कहा कि चमनलाल जी में भक्ति, नैतिक मूल्यों की शक्ति तथा युक्ति का सामंजस्य था। संघ की शाखा में जो गीत गाया जाता है- तन समर्पित, मन समर्पित और जीवन समर्पित ये पंक्तियां उनके लिए सटीक बैठती हैं। उन्होंने संघ के विश्व विभाग के दायित्व का निर्वाह पूर्ण निष्ठा और कुशलता से करके विश्व की सोच को भारतीय विचार की ओर मोड़ने का कार्य किया है। साथ ही, श्री गोयल ने 'दारा शुकोह के विशेष संदर्भ में हिन्दू धर्म की समन्वयकता' विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि दारा शुकोह जैसे महान विद्वान और गंगा-जमुनी तहजीब नायक को देश भूल चुका था, जबकि उनके विचारों की देश को बहुत आवश्यकता है।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा डलहौजी रोड का नाम बदल कर दारा शुकोह मार्ग रखना सराहनीय कदम है। जबसे मोदी सरकार बनी है, वह दारा शुकोह के विचार 'सबका साथ-सबका विकास' को ध्यान में रखकर भेद-भाव दूर करने तथा पूरे समाज के सुधार के लिए कार्य कर रही है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. के़ के मुहम्मद ने बताया कि मुगल काल में अकबर ने हिन्दू ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करवाना आरम्भ किया। बाद में दारा शुकोह ने बहुत से उपनिषदें, अधिकतर हिन्दू धार्मिक ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया, जिससे भारतीय ज्ञान और विचार विश्व में फैले।
राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डॉ़ बी़ आर मणि ने कहा कि यदि शाहजहां के बाद दारा शुकोह भारत के बादशाह बने होते तो भारत का इतिहास कुछ और होता। उन्होंने दारा शुकोह से जुड़े इतिहास के कई तथ्यों को कार्यक्रम में रखा। श्री सौमित्र गोखले ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम में रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ़ मनमोहन वैद्य, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री सुनील आंबेकर, श्री बाल मुकुन्द पांडे, श्री श्याम परांडे, स्वर्गीय चमनलाल जी के परिवार के सदस्य तथा बड़ी संख्या में इतिहासवेत्ता और बुद्धिजीवी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन श्री अमरजीव लोचव ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन के साथ इसका समापन प्रोफेसर कपिल कपूर ने किया।
'सृजन' में दिखा संस्कृति का समन्वय
पिछले दिनों दिल्ली के द्वारका में नव संवत्सर के अवसर पर सुकरमन एनजीओ द्वारा दो दिवसीय 'सृजन एकरंग एकसंग' कला और संस्कृति का उत्कृष्ट सांस्कृतिक उत्सव संपन्न हुआ। कार्यक्रम के उद्घाटन पर पद्मश्री पद्मा सचदेवा, सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा, पुलिस उपायुक्त-शहादरा नूपुर प्रसाद प्रमुख रूप से उपस्थित रहीं। सृजन का यह तीसरा संस्करण था जब वह सभ्यता के आदान-प्रदान, संस्कृति और रचनात्मकता को मंच देने का प्रयास कर रहा था। समारोह में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए कलाकार उपस्थित थे जिन्होंने अपने क्षेत्र की सभ्यता और परंपरा से उपस्थित लोगों का मन मोह लिया। इस अवसर पर शिल्प बाजार के जरिए हथकरघा, घर की सजावट जैसे विभिन्न उत्पादों का भी प्रदर्शन किया गया। उत्सव में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे जिन्होंने अनेक कार्यक्रमों के जरिए भरपूर आनंद लिया।
'तपोनिष्ठ-आदर्श स्वयंसेवक हैं परमेश्वरन जी'
''बड़ी प्रसन्नता की बात है कि परमेश्वरन जी ने जो परिश्रम किया, उसका परिणाम 2014 के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक विजय के रूप में हमारे सबके सामने है। इसी तरह वह आगे भी भारत को विश्वगुरु के पद पर आसीन होते देखेंगे।'' उक्त बातें केन्द्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहीं। गत दिनों केरल के कोच्चि में भारतीय विचार केन्द्रम् द्वारा श्री पी. परमेश्वरन के 90वें वसंत के अवसर पर नवती समारोह का आयोजन किया गया था। केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारकों में से एक भारतीय विचार केन्द्रम् के संस्थापक निदेशक श्री परमेश्वरन देश के सुप्रसिद्ध लेखक और शोधकर्ता हैं। कम्युनिस्टों द्वारा इतिहास और सनातन सभ्यता पर किए जा रहे वैचारिक हमलों के खिलाफ वे लड़ते चले आ रहे हैं। वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय महासचिव व उपाध्यक्ष भी रहे हैं।
श्री सिंह ने उनके राष्ट्रभक्तिपूर्ण जीवन को 'आदर्श जीवन' बताते हुए कहा कि उनके शब्द और कर्म सबके लिए अनुकरणीय हैं। लोगों को उनके पदचिन्हों पर चलना चाहिए। उनका संपूर्ण जीवन अपने आप में एकनिष्ठता का प्रतीक है। समारोह में अध्यक्ष के रूप में उपस्थित न्यायमूर्ति के.टी.थामस ने कहा कि भारत के संविधान में धर्म की स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य, व्यवस्था, मौलिक अधिकारों के बाद आती है। लेकिन कुछ ऐसे तत्व हैं जो हिन्दुत्व को सदैव सेकुलरिज्म के खिलाफ बताते रहते हैं। परमेश्वरन जी के कार्य और शब्दों में सदैव स्वामी विवेकानंद जी द्वारा कहीं बातें नजर आईं। इन्हीं सब बातों ने मुझे उनके प्रति आकर्षित किया। इस अवसर पर परमेश्वरन जी को शुभकामनाएं देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल भी उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि परमेश्वरन जी का जीवन इस बात का श्रेष्ठ उदाहरण है कि एक प्रचारक का जीवन कैसा होना चाहिए। स्वयंसेवक वह होता है जो बिना किसी स्वार्थ के सिर्फ राष्ट्रहित में लगा रहे। परमेश्वरन जी के सामने निजी लाभ उठाने के अनेक अवसर आए लेकिन उन्होंने कभी अपने सुख की चिंता नहीं की। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन संघ को समर्पित कर दिया है। इस अवसर पर प्रमुख रूप से उपस्थित नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विजय भाटकर ने कहा कि भारत ही एकमात्र देश है जिसने अनेक हमलों के बाद भी अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखी। अमेरिका ने अपनी सेना की ताकत के बल पर 20वीं सदी में अपनी सर्वोच्चता स्थापित की लेकिन 21वीं सदी भारत की है। इस अवसर पर अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे। प्रतिनिधि
'आयोग जनजाति समाज के हितों के लिए प्रतिबद्ध'
द इंडियन सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल वी़ के़ कृष्णमेनन सभागार में गत दिनों अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार के नवनियुक्त अध्यक्ष एवं सदस्यों का अभिनन्दन किया गया। इस अवसर पर एनसीएसटी, भारत सरकार के नवनियुक्त अध्यक्ष श्री नन्द कुमार साय ने कहा कि हम जनजाति समाज के हितों की रक्षा एवं उनकी सुरक्षा के लिए संकल्पित ही नहीं, प्रतिबद्ध भी हैं। हमारे सामने बहुत-सी चुनौतियां हैं, उन सभी चुनौतियों का समाधान करने के लिए हमें सबसे पहले आयोग के अन्दर के तंत्र यानी आंतरिक उपकरण को प्राथमिकता के साथ दुरुस्त करना है।
आयोग की सबसे पहली प्राथमिकता देशभर के जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में सुधार के लिए युद्ध स्तर पर प्राथमिक विद्यालयों एवं अस्पतालों का इंतजाम करना है, क्योंकि जनजातियों के पास शिक्षा न होने के कारण वे समाज में शोषण का शिकार होती रहती हैं। एनसीएसटी बहुत जल्द 'प्लेसमेंट एजेंसियों' पर नकेल कसने वाला है क्योंकि आयोग के पास ऐसी बहुत सी शिकायतें आई हैं कि इन एजेंसियों द्वारा जनजातीय समाज की लड़कियों और औरतों को काम के नाम पर बड़े-बड़े महानगरों में लाया जाता है, फिर उन्हें मानव तस्करों के हाथों बेच दिया जाता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री प्रमोद कोहली ने कहा कि हमारे शास्त्रों, धर्म-ग्रंथों यहां तक कि रामायण में यह वर्णन भी मिलता है कि जनजाति वर्ग हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा रहा है। इसलिए आज जरूरत है फिर से इस अंग को और अधिक नजदीक लाया जाए। प्रतिनिधि
'अभावग्रस्त लोगों की सेवा के लिए आगे आए समाज'
''अभावग्रस्त लोगों के लिए खड़े होने वाले समाज को कोई पराजित नहीं कर सकता। इसलिए समाज के कमजोर वर्ग के सहयोग के लिए सक्षम वर्ग सामने आए।'' उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ़ कृष्णगोपाल ने कहीं। वे गत दिनों लखनऊ के निरालानगर स्थित माधव सभागार में भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा आयोजित '22वें सेवा सम्मान समारोह' में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। समारोह में मिजोरम और तमिलनाडु के दो समाजसेवियों को इस अवसर पर सम्मानित भी किया गया।
उन्होंने कहा कि भाऊराव जी लखनऊ आये और उन्होंने यहां संघ कार्य शुरु किया। वर्ष 1937 से 1992 तक इस क्षेत्र में संघ कार्य किया। एक-एक जिले, एक-एक गांव में जाकर संघ कार्य को विस्तार दिया। जब संघ को कोई नहीं जानता था, उस समय उन्होंने संघ की शाखाएं आरम्भ कीं और पं.दीनदयाल उपाध्याय, अशोक सिंहल जी जैसे स्वयंसेवक तैयार किये। भाऊराव जी ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार, बंगाल, असम में भी संघ कार्य को खड़ा किया। इन क्षेत्रों में आज जो संघ का कार्य है, वह भाऊराव जी के परिश्रम से ही खड़ा हुआ और पुष्पित पल्लवित हुआ है। उन्होंने इस कार्य के लिए अनेक स्वयंसेवकों को जीवन समर्पण के लिए प्रेरित किया। समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि 21 वीं शताब्दी सेवा को समर्पित है। सेवा के भाव को लेकर जब सरकार काम करती है, तभी गुड गवनेंर्स होती है। देश को 1947 में अधूरी आजादी मिली। देश की आजादी का सपना पूरा नहीं हुआ था। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि जब तक गरीब का उत्थान नहीं होगा, तब तक आजादी अधूरी है। गांधी जी कहा करते थे कि देश को 'पॉलिटीशियन नहीं, बल्कि स्टेट्समैन' चाहिए। क्योंकि पॉलिटीशियन सिर्फ पांच साल के बारे में सोचता है और स्टेट्समैन पीढि़यों के बारे में सोच विचार करता है। इस अवसर पर राज्यपाल ने भाऊराव देवरस सेवा न्यास के लिए अपनी निधि से 25 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की। समारोह के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने कहा कि भाऊराव देवरस कर्मयोगी थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में आकर संघ कार्य किया। उन्होंने कार्य-क्षेत्र चुने और उनमें स्वयंसेवकों को भेजकर कार्य आरम्भ किया। ल्ल लखनऊ (विसंकें)
''कुछ ताकतें नहीं चाहती देश आगे बढ़े''
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने गत दिनों प्रदेश में शिक्षा की बदहाली के लिए प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए शिमला में रोष रैली का आयोजन किया। रैली में प्रदेशभर से हजारों की संख्या में छात्रों ने भाग लिया। इस अवसर पर अभाविप के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री सुनील अंबेकर ने कहा कि पहले देश में चर्चा होती थी कि भारत आगे नहीं बढ़ रहा,लेकिन अब पूरी दुनिया मानती है कि देश आगे बढ़ रहा है। यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि हर नागरिक ने राष्ट्रहित में सोचना आरंभ किया है। लेकिन कुछ ताकतें देश तोड़ने के काम में लगी हुई हैं, जिनका हर जगह भांडाफोड़ हो रहा है। उन्होंने कहा कि हिमाचल का यह छात्र आंदोलन देशभर के युवाओं के लिए प्ररेणा स्रोत है कि कैसे छोटे से प्रदेश में हजारों युवा सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरने का दम रखते हैं। हिमाचल के लोग बच्चों को बेहतर शिक्षा देने में पूरी तरह सक्षम हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की फीस वृद्धि, रूसा सिस्टम, शिक्षा का निजीकरण, आधारभूत ढांचे का अभाव आदि ऐसी कई परिस्थितियां हैं जो छात्रों को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर रही हैं। राष्ट्रीय महामंत्री श्री विनय बिंद्रे ने कहा कि देश में अगर व्यवस्थाओं से खतरा हो तो सरकार बदलने के लिए भी पीछे नहीं हटना चाहिए। कार्यक्रम में राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्रीनिवास ने शिक्षा में पुराने पाठ्यक्रमों के स्थान पर नये पाठ्यक्रम बनाने की बात करते हुए कहा कि वर्तमान जो शिक्षा के लिए तय पाठ्यक्रम है, उससे शिक्षा में गुणवता का विकास नहीं हो पा रहा है। ल्ल शिमला (विसंकें)
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