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12 मार्च, 2017
आवरण कथा ‘विज्ञान की देवियां’ से स्पष्ट है कि महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों की पताका फहरा रही हैं। छोटे से लेकर बड़े यानी किसी भी क्षेत्र में उनके पराक्रम को देखा जा सकता है। विज्ञान के क्षेत्र में उन्हें हरदम कम आंका गया लेकिन उन्होंने अपनी काबिलियत से साबित कर दिया है कि वे किसी भी क्षेत्र में न पुरुषों से कम हैं और न ही उनके अंदर ऊर्जा की कमी है।
—अंकुर खन्ना, लाजपत नगर (नई दिल्ली)
भारत की महिलाओं ने अपने जीवन के हर क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए हैं। उन्होंने घर की चारदीवारी से लेकर आकाश तक अपना परचम फहराया है। हाल ही में मंगलयान की टीम में शामिल महिलाओं
ने यही साबित किया कि हम किसी से कम
नहीं है।
—सुनैना अग्निहोत्री, मेल से
भारतीय समाज में सदैव से महिलाओं का सम्मान होता आया है। समय-समय पर चाहे समाज की बात हो या फिर देश की, उन्होंने अपनी काबिलियत और पराक्रम से अपने को साबित किया है। ठीक आज फिर से महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़कर देश का नाम रोशन कर रही हैं। वे शिक्षा, खेल, व्यापार, विज्ञान एवं अन्य क्षेत्रों में शीर्ष पर विराजमान हैं। भारत के लिए यह गौरव की बात है।
—शिवचरण चौहान, कानपुर (उ.प्र.)
वस्तुत: प्र्रतिभावान भारतीय महिला वैज्ञानिकों से हमारे ही देश के लोग परिचित नहीं हैं। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले विज्ञान के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में कहीं भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। अगर हम चाहते हैं कि हमारे समाज की बेटियां प्रत्येक क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंचें तो हमें उन्हें इसके बारे में गंभीरता से बताना होगा।
—कृष्ण बोहरा, मेल से
विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं के योगदान से जुड़ी आपकी विशेष प्रस्तुति सराहनीय है। यह सही बात है कि महिलाओं ने आज हर क्षेत्र में अपनी पकड़ बना रखी है। युद्ध का क्षेत्र हो या फिर विमान उड़ाना हो, वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं।
—बी.एस. शांताबाई, चामराजपेट (बेंगलुरु)
विज्ञान की देवियों पर केन्द्रित अंक पठनीय है। कम से कम इस अंक के जरिए भारत ही नहीं विश्व के लोगों ने जाना कि भारतीय महिलाएं सिर्फ घर-बार ही नहीं संभालती बल्कि हर वह काम कर सकती हैं, जिन्हें महिलाओं के लिए असंभव कहा जाता था। पर दु:ख का विषय यह है कि भारतीय समाज में एक वर्ग द्वारा सदैव से महिलाओं की कार्यक्षमता को छिपाया गया और नीचा दिखाने की कुत्सित प्रयास किया गया। लेकिन आज की नारी इसे अब सहन करने वाली नहीं।
—निरंजन चंदेल, समस्तीपुर (बिहार)
निखरता स्वरूप
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 90 वर्ष पूर्ण होने पर पाञ्चजन्य द्वारा संघ की अनथक यात्रा पर निकाला गया विशेषांक वह संग्रहणीय तो है ही, साथ ही समाज के प्रत्येक व्यक्ति के पढ़ने योग्य है। सामाजिक क्षेत्रों में संघ की सभी गतिविधियों एवं योगदानों का इसमें जीवंत वर्णन है, जिसके कारण यह अमूल्य दस्तावेज बन गया है।
—विष्णु स्वरूप, लखनऊ (उ.प्र.)
आपकी पत्रिका का स्वरूप दिनोंदिन निखरता जा रहा है। सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं अन्य क्षेत्रों
के सभी समाचार पठनीय होते हैं। साथ
ही आपका खरापन बहुत ही आकर्षित करता है।
—सीमा परिहार, मंदसौर (म.प्र.)
हटता कब्जा
रपट ‘विचारों का वातायन’ (5 फरवरी, 2017) से यह बात स्पष्ट है कि अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपनी बात को स्वयंसेवकों से इतर जाकर भी समझाना चाहिए। जयपुर साहित्य सम्मेलन में आयोजकों ने संघ के पदाधिकारियों को बुलाकर उनके पक्ष को देश-दुनिया के समक्ष पहुंचाया, उसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। क्योंकि अभी तक ऐसे आयोजनों में सिर्फ वामपंथी विचारकों का ही कब्जा रहता था और वे यहां अपनी बात रखते थे और मीडिया उन्हें कवरेज देता था। लेकिन इस बार चीजें इससे इतर हुर्इं।
—अतुल मोहन प्रसाद, बक्सर (बिहार)
दिखता असर
रपट ‘उत्तर तलाशता प्रदेश’ (26 फरवरी, 2017) से स्पष्ट है कि राज्य में बही बदलाव की बयार का परिणाम आज राज्य की जनता ही नहीं देश के सामने है। अनेक दलों ने जनता को लुभाने के लिए पता नहीं कितने लोकलुभावन वादे किए, लेकिन जनता उनके झांसे में नहीं आई। उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के चुनावों में आम जनता ने जो परिणाम दिया, वह स्पष्ट करता है कि अब वह दलों के छलावों से ऊब चुकी है और ऐसी सरकार चाहती है जो प्रदेश का विकास करे।
—विशाल कोहली, पश्चिम विहार (नई दिल्ली)
देख लिया श्रीमान
पांच साल से हो रहा, था मेरा अपमान
क्या इसका परिणाम है, देख लिया श्रीमान।
देख लिया श्रीमान, हाथ से हाथ मिलाया
जो था अपने हाथ, उसे भी निपट गंवाया।
कह ‘प्रशांत’ अब घर में बैठ लकीरें खींचो
पांच साल सैफई गांव की धरती सींचो॥
— ‘प्रशांत’
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