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भारतीय महिला कुश्ती को ओलंपिक के मंच पर पहचान दिलाने वाली साक्षी मलिक का मानना है कि देश में इस खेल के विकास पर अभी कई काम करने बाकी हैं। उन्होंने कहा कि सही प्रतिभा की तलाश, उनके प्रशिक्षण और तैयारी के साथ भारतीय पहलवानों को ज्यादा से ज्यादा विदेशी दौरों पर भेजा जाना चाहिए। इससे न केवल भारतीय पहलवान अपने विपक्षी को आंकने में सफल रहेगा, बल्कि अपनी तैयारी का भी उसे पूरा-पूरा आभास रहेगा। साक्षी ने कहा, 'देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। कुश्ती में विशेषकर पहलवान ग्रामीण परिवेश से निकलते हैं। जरूरत इस बात की है कि छोटी उम्र में ही प्रतिभाशाली पहलवान की पहचान कर उन्हें व्यवस्थित ढंग से प्रशिक्षण दिया जाए। उन पहलवानों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉल में गद्दे पर शुरू से ही प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि अगर वह कैडेट या जूनियर स्तर पर भी प्रतियोगिता में भाग लेने जाए तो उन्हें वहां सब कुछ अजूबा सा न लगे। हमने मिट्टी पर अभ्यास करते हुए कुश्ती शुरू की। जब पहली बार विदेश गई तो पता चला कि वहां तो एसी हॉल में गद्दे पर मुकाबले होते हैं।'
उन्होंने आगे कहा, 'बच्चों को विकसित करने के बाद उन्हें वैज्ञानिक तरीके से प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। हर चाल, हर दांव की पूरी तैयारी होनी चाहिए। अपनी मजबूती पर काम करने के साथ विपक्षी पहलवान के बारे में भी पूरी जानकारी (वीडियो फुटेज) होनी चाहिए। इससे हम पूरी तैयारी के साथ मुकाबले में उतर सकते हैं।' साक्षी ने कहा कि भारतीय कुश्ती दल के साथ विशेषज्ञों की एक टीम होनी चाहिए। एक ही आदमी डॉक्टर, फिजियो, मालिशिए और कोच की भूमिका निभाता है, जो सही नहीं है। एक विदेशी पहलवान के साथ अलग प्रशिक्षक या डॉक्टर होते हैं जो मुकाबले से पहले उन्हें सही ढंग से तैयार करते हैं। हम भारतीय पहलवानों के पास ऐसी सुविधाएं नहीं होती हैं। अगर इस मुद्दे पर ध्यान दिया जाए तो हमारी सफलता दर बढ़ जाएगी।'
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