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विविध क्षेत्रों में काम काम का आधार बनी संघ प्रेरणा, आ रहा सकारात्मक परिवर्तन
समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में संघ की सोच की स्वीकार्यता और साख बढ़ी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, श्रम, अर्थ आदि क्षेत्रों में आज अनेक संगठन हैं जो संघ विचार से प्रेरणा पाते हैं और अपने कार्यक्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं
सजी नारायणन सी. के.
बाहर से देखने पर रा. स्व. संघ का दर्शन और विविध क्षेत्रों में इसका विस्तार असाधारण लगता है। लेकिन संघ के अंदर प्रवेश करते ही सांगठनिक बल की सर्वथा अलग धारा से परिचय होता है। संघ की शाखाओं के बाहर इसके विस्तार की शुरुआत संघ संस्थापक डॉ़ केशव बलिराम हेडगेवार के जीवनकाल में राष्ट्र सेविका समिति के गठन से हुई थी। वंदनीया मौसी जी (स्वर्गीया लक्ष्मीबाई केलकर) वर्धा शाखा में स्वयंसेवकों के लिए मातृ-स्वरूपा थीं। उन्होंने डाक्टरजी से कई बार मुलाकात की और संघ की महिला शाखा शुरू करने का प्रस्ताव रखा। थोड़ी हिचकिचाहट के बाद वह मान गए और सभी प्रकार की सहायता देने का आश्वासन दिया। इस तरह 1936 की विजयादशमी को राष्ट्र सेविका समिति का आरंभ हुआ। डॉक्टरजी ने स्पष्ट सलाह दी थी कि इस समिति का संघ से अलग अस्तित्व होगा और यह उसके समानांतर काम करेगी। लिहाजा, संघ के विविध क्षेत्र की परिभाषा में समिति नहीं आती। पूजनीय गुरुजी द्वारा विविध क्षेत्रों के संगठनात्मक चरण की शुरुआत संभवत: डॉक्टरजी के इसी कदम से प्रेरित रही होगी।
1940 में द्वितीय सरसंघचालक बनने के बाद श्री गुरुजी ने जनमानस के बीच जगह बनाने के उद्देश्य से अत्यंत महत्वाकांक्षी संगठनात्मक कार्यनीति अपनायी। 1940 से 1942 के बीच के अपने प्रवासों के दौरान उन्होंने हर जगह युवाओं से प्रचारक बनकर कार्य आगे बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ''आज भारतमाता की पूजा के लिए हमें ऐसे फूलों की आश्यकता है जो अछूते, शुद्ध और ताजे हों और किसी ने उन्हें सिर पर न पहना हो, साथ ही उनमें खुशबू, मिठास और आकर्षण हो।'' उनकी आवाज पर सैकड़ों युवा विभिन्न शाखाओं से अपने घर, माता-पिता, धन-संपत्ति, रोजगार, दोस्त, गांवों, कस्बों आदि को छोड़ कर उमड़ पड़े। युवाओं की टोली आत्मविश्वास की प्रखर चेतना से भरपूर सुदूर स्थानों की ओर भी कार्य करने के लिए खुशी-खुशी चल पड़ी। श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी अपनी पढ़ाई उत्कृष्ट अंकों से पूरी करने के बाद प्रचारक बने। उन्होंने देश के विविध क्षेत्रों में विभिन्न संगठनों को आरंभ करने की प्रेरणा देकर संघ कार्य को एक नई दिशा दी। ऐसे कई क्षेत्रों में उनका ज्ञान असाधारण था।
शुरुआती चरण में संघ की संरचना संघ स्थान पर शाखा कायार्ें तक ही सीमित थी। संघ का अर्थ था शाखा क्षेत्र में काम करना। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक दृढ़ एहसास जागने लगा था कि अब हमारे देश को स्वतंत्र होने से कोई रोक नहीं सकता। स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि नए आजाद राष्ट्र में मीडिया को एक अहम भूमिका निभानी होगी। लिहाजा, श्री गुरुजी के मार्गदर्शन में साप्ताहिक और दैनिक समाचार पत्र शुरू किए गए। इसी उद्देश्य के तहत पाञ्चजन्य, ऑर्गनाइजर, राष्ट्रधर्म, युगधर्म, तरुण भारत, विवेक, जागृति, केसरी, आलोक, स्वस्तिक, हिंदू, विक्रम आदि की शुरुआत हुई। इसके अलावा, हिंदुस्थान समाचार को एक समाचार एजेंसी के तौर पर आरंभ किया गया जिसने हिंदी में पहली टेलीप्रिंटर सेवा शुरू की। साथ ही, स्वयंसेवकों द्वारा अन्य समाचार पत्र, स्कूल, डिस्पेंसरी आदि भी शुरू किए गए। लगभग इसी समय, 9 जुलाई, 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का गठन किया गया था जिसने शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का स्वप्न दिया। यह संघ के राष्ट्रीय परिदृश्य के विभिन्न आयामों तक पहुंचने का पहला कदम था।
वंदनीया मौसी जी कहती हैं-''शाखा समाज की संजीवनी है। संघ की शाखा दैनिक साधना है।'' संघ का कार्य मुख्यत: अपने शाखा तंत्र से व्यक्ति निर्माण तक ही सीमित है। स्वयंसेवक सामाजिक मुख्यधारा में शामिल होकर संघ की योजना में परिकल्पित समग्र परिवर्तन प्राप्त करने में भूमिका निभाने के कर्तव्य से बंधा है। विविध क्षेत्र वे संगठित माध्यम हैं, जिनके जरिये यह सब प्राप्त किया जाता है। संघ को सिर्फ शाखा की जिम्मेदारी संभालनी है, शेष कार्य स्वयंसेवक पूरा करेंगे। शाखाओं में प्रशिक्षण पाने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले स्वयंसेवकों का काम सामाजिक परिवर्तन लाना है। सामाजिक जीवन में संघ प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं करेगा, बल्कि यह स्वयंसेवकों की जिम्मदारी है कि वे सभी कायार्ें को कुशलता से करें और सभी गतिविधियों में संघ के कार्य-दर्शन की छाप दिखाई दे। संघ अपने स्वयंसेवकों के माध्यम से विभिन्न संगठनों को जीवन देता है। अंतर बस इतना है कि संघ के लिए एकमात्र कार्य व्यक्तित्व निर्माण है, जबकि विविध क्षेत्रों के संदर्भ में देखें तो व्यक्तित्व निर्माण विभिन्न कायोंर् के साथ-साथ चलता है। यह कार्यकर्ताओं की दक्षता की परीक्षा होती है। ठेंगड़ी जी ने ध्यान दिलाया कि भारतीय मजदूर संघ का निर्माण संघ ने किया है। श्रम के क्षेत्र में संघ कायोंर् पर काम करने की जिम्मेदारी मजदूर संघ की है। श्री गुरुजी ने इन दोनों के अंतर को रेखांकित करते हुए कहा था-''हमें यह कहना चाहिए कि स्वयंसेवक श्रम, विद्यार्थियों आदि से जुड़े क्षेत्र में काम कर रहे हैं न कि स्वयंसेवक मजदूर संघ, अभाविप में काम कर रहे हैं।''
विविध क्षेत्रों में संघ का बिंब
विविध क्षेत्रों में संघ का बिंब क्या है? एक बार ठेंगड़ी जी मजदूर संघ की बैठक में भाग लेने के लिए टाटानगर गए। वह एक मजदूर के घर में रुके। उसी दिन जाने-माने कम्युनिस्ट नेता श्री डांगे किसी और बैठक में भाग लेने आए और एक आलीशान होटल में रुके थे। डांगे को इस विषय पर अपने अनुयायियों के सवालों का सामना करना पड़ गया। एक स्वयंसेवक के लिए, वह जहां भी काम करता है, उसका जीवन ही उसका संदेश होता है। वयोवृद्ध मार्क्सवादी नेता और संसद में नेता विपक्ष रह चुके श्री ए़ के. गोपालन अपने संस्मरण में लिखते हैं कि ऊंचे पद पाने के बाद कैसे श्रमिक अपने दृष्टिकोण और आदतों को बदल लेते हैं। झुग्गियों और कामगारों की झोपडि़यों में रहकर पार्टी के लिए काम करने वाले नेताओं को लोगों ने सत्ता सौंपकर पुरस्कृत किया। जब वे सांसद बनकर संसद पहुंचे तो उन्हें दिल्ली में रहने के लिए बंगले दिए गए। वहां वे यूरोपीय रहन-सहन के आदी हो गए। पांच साल बाद जब वे लौटे तो वे यूरोपीय साजो-सामान के साथ रहने के लिए बड़े घरों की तलाश करने लगे। उस समय बड़े घर केवल अमीरों के पास होते थे। इस तरह उन्होंने खुद को साधारण कार्यकर्ताओं से दूर कर लिया। कभी ईमानदार कार्यकर्ता रह चुके लोगों में आए परिवर्तन का यह एक व्यंग्यात्मक वर्णन है।
संघ के ज्यादातर संगठन खुद को अ-राजनैतिक मानते हैं, लेकिन वे राजनीति के विरोधी नहीं।हैं 1955 में भोपाल में अपनी पहली सार्वजनिक सभा में मजदूर संघ कार्यकर्ताओं ने लोगों को आकर्षित करने के लिए श्री अटल बिहारी वाजपेयी को बुलाने का फैसला किया, जो उस दिन भोपाल में ही थे। लेकिन वाजपेयी ने इनकार करते हुए कहा, ''मैं समझता हूँ कि बीएमएस एक गैर-राजनीतिक संगठन है। अत: आपकी पहली सभा में एक नेता का भाषण हुआ तो इस संगठन का भाग्य क्या होगा?'' संघ की विचारधारा के बारे में यही सही समझ है। इसी कारणवश भाजपा ने बहुत पहले ही यह फैसला कर लिया कि उसे अलग से ट्रेड यूनियन या छात्र शाखा आदि नहीं बनानी। इसके विपरीत कम्युनिस्ट राजनीतिक संगठनों में विश्वास करते हैं अर्थात राजनीतिक दलों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पाने के लिए वे उनके राजनीतिक कायोंर् में हाथ बंटाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, उनके ट्रेड यूनियनों को अपने आकाओं अर्थात भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और रूस की स्तालिनवादी सरकार के आदेश पर राष्ट्रवादी आंदोलन को विफल करने में ब्रिटिश सरकार का समर्थन करना पड़ा।
संघ और उसके संगठनों को बाहर से देखने वाले इनके कामकाज में स्पष्ट विरोधाभास देखकर कई बार भ्रमित हो जाते हैं। हिंदुत्व की एक विशेषता यह है कि यह आस्तिक से लेकर नास्तिक तक के परस्पर विरोधाभासी दर्शन को समाहित कर लेता है। इसी तरह विविध क्षेत्र संगठनों के भी एक ही मुद्दे, जैसे आर्थिक नीति, श्रम नीति आदि के बारे में अलग-अलग राय हो सकती है। विभिन्न मतों का अर्थ मत में भिन्नता नहीं। निरंतर बातचीत से हम इसके अंतर को न्यूनतम कर देते हैं और इस तरह बौद्धिक अनुशासन बनाते हैं। इस प्रयोजन के लिए समन्वय की अवधारणा कार्यकर्ताओं के लिए मार्गदर्शन का काम करती है। समन्वय बैठक संगठनों और संघ के बीच समन्वय के लिए नहीं बल्कि स्वयंसेवकों में निरंतर समन्वय की मानसिकता विकसित करने के लिए होती है।
श्री ठेंगड़ी संघ की प्रार्थना के अंतिम अनुच्छेद में परिकल्पित समग्र सामाजिक परिवर्तन के प्रति स्वयंसेवकों को यह कहते हुए समझाते हैं:
हमारा लक्ष्य-राष्ट्र का सवार्ेच्च गौरव (परम वैभवम् नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्)
साधन-धर्म संरक्षण से (विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्)
तरीका-समाज को सुगठित करके (विजेत्री च न: संहता कार्य शक्ति:)
हर स्वयंसेवक इस लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रतिदिन प्रतिज्ञा लेता है। श्री ठेंगड़ी ने कहा, ''हम तब तक काम करते रहेंगे जब तक देश गौरवमय नहीं हो जाता और प्रत्येक नागरिक के विकास का लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता।'' समग्र कार्यकर्ता आधारित यह आंदोलन इसी दिशा की ओर बढ़ता है। वैश्विक परिदृश्य में भी संघ और विविध क्षेत्र संगठनों के परस्पर संबंध अद्वितीय हैं। हम सामूहिक रूप से एक अलग और स्पष्टत: भिन्न विन्यास वाले संगठन हैं।
लेखक भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं
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