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पंजाब में तमाम मुद्दों के बीच एसवाईएल यानी सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना का मसला लोगों के बीच चुनावी चर्चा का विषय बन चुका है। मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में चल रहा है, लेकिन राजनीतिक दल इसमें एक-दूसरे पर दोषारोपण करने में उलझे हैं। हरियाणा और पंजाब, दोनों भारत के राज्य हैं, लेकिन अब तक किसी पक्ष की ओर से ऐसा कोई समाधान सामने नहीं लाया गया है जिससे दोनों राज्यों का भला हो और किसानों को राहत मिले
जालंधर से राकेश सैन
पंजाब, में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों में वैसे तो अनेक स्थानीय मुद्दे उभर रहे थे परंतु हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के सतलुज-यमुना संपर्क नहर पर आए फैसले के बाद स्पष्ट हो गया है कि यह सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है। राज्य में किसान-राजनीति के हावी होने के चलते हर राजनीतिक दल इस मुद्दे को भुनाने के प्रयास में है। या यूं कहें कि नहर का मुद्दा पंजाब-हरियाणा के बीच कम, विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच खींचतान का मुद्दा ज्यादा बन चुका है।
इस मुद्दे की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह है। विभाजन के बाद तत्कालीन पंजाब, वर्तमान हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों सहित, में पानी के बंटवारे में भेदभाव के आरोप लगते रहे, परंतु विभाजन के बाद यह पांच राज्यों। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली—के बीच का मुद्दा बन गया। हरियाणा राज्य बनने के बाद केंद्र ने 1976 में पंजाब को सतलुज व रावी का 3.5 मिलियन एकड़ फुट (एमएएफ़) अतिरिक्त पानी हरियाणा को देने का आदेश दिया। इस अतिरिक्त पानी को भेजने के लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर पर 1981 में काम शुरू हुआ, लेकिन पंजाब ने 95 फीसदी काम पूरा होने के बाद उसे रोक दिया। अकाली दल द्वारा पारित आनंदपुर प्रस्ताव में मुद्दे को प्रमुखता दी गई। पंजाब के लिए यह मुद्दा इतना गंभीर हो गया कि 1985 में उग्रवादियों ने नहर निर्माण में लगे मजदूरों की हत्या कर दी जिससे काम रुक गया। 1986 में हरियाणा इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले गया। इसके बाद पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2004 में टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट पास करवा पंजाब के साथ हुए सभी जल समझौतों को रद्द कर दिया। हरियाणा सरकार ने इस विधेयक को अदालत में यह कहते हुए चुनौती दी कि विभिन्न राज्यों के बीच हुए समझौतों को कोई एक राज्य एकतरफा निर्णय से निरस्त नहीं कर सकता। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार कर उक्त विधेयक को निरस्त कर
दिया है।
अदालत के इस निर्णय के बाद राज्य की राजनीति में यह मुख्य मुद्दा बन गया है। राज्य के मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल ने कहा है कि अकाली दल ने उस समय भी इस नहर का विरोध किया और अब भी करेगा। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रदेश की अकाली-भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने अदालत में राज्य की पैरवी प्रभावी ढंग से नहीं की जिसका परिणाम यह हुआ है कि अदालत ने पंजाब के खिलाफ निर्णय दिया। वहीं राज्य में राजनीतिक धरातल की तलाश में भटक रही आम आदमी पार्टी भी इस मुद्दे को लपकने को तैयार बैठी है। चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के दिल्ली से विधायक जरनैल सिंह ने कहा कि पंजाब के साथ धक्काशाही नहीं होने दी जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सतलुज-यमुना संपर्क नहर (एसवाईएल) पर निर्णय के बाद पंजाब में राजनीति तेज हो गई है। लगभग सभी दलों के नेताओं की प्रतिक्रियाएं सुनने के बाद स्पष्ट है कि उनके पास फिलहाल या तो कोई सर्वमान्य दृष्टिकोण नहीं है या फिर वे संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों से इतने ग्रसित हैं कि राष्ट्रीय हितों की बलि तक देने को तैयार हैं। इस मुद्दे पर राजनीति करना अलग बात है परंतु अगर इसको सुलझाना है तो राजनीति नहीं बल्कि राष्ट्रनीति का ही अनुसरण करना होगा।
यदि सतलुज-यमुना संपर्क नहर के इतिहास व वाद-विवाद में न जाते हुए पूरी समस्या की गहराई से जांच की जाए तो पता चलता है कि समस्या नहर की नहीं बल्कि सभी राज्यों को पानी की उपलब्धता बढ़ाने, उसका सदुपयोग करने व दुरुपयोग रोकने की है। वैकल्पिक साधन अपनाकर किसानों व सामान्य नागरिकों के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। पंजाब के जलसंकट का मूल कारण दरियाई पानी का कम होना ही नहीं है बल्कि अन्य जलस्रोतों का लुप्त होना व भू-जल का अत्यधिक दोहन भी है। हमारे प्राकृतिक जलस्रोत जैसे तालाब, झीलें, कुएं-बावडि़यां लगभग लुप्तप्राय: हो चुके हैं। किसी समय हर गांव का अपना तालाब या पोखर हुआ करता था जिसका पानी सारा साल पेयजल और सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता। लेकिन आज एक अनुमान के अनुसार 80 प्रतिशत गांवों से पोखर लुप्त हो चुके हंै। इनकी जमीन पर भू-माफिया का कब्जा है। जिन गांवों में कुछ तालाब बचे भी हैं तो अधिकतर गंदे पानी के गड्ढे बन चुके हैं। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश सचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने बयान में कहा है कि पंजाब में केवल 27 प्रतिशत एक किसान नहर के पानी से सिंचाई करते हैं। अगर सतलुज-यमुना संपर्क नहर बनती भी है तो इससे केवल 4 प्रतिशत किसान प्रभावित होंगे। क्या इन चार प्रतिशत किसानों को वैकल्पिक जल संसाधन उपलब्ध करवाना इतना बड़ा काम है कि इसके लिए दो राज्यों में टकराव पैदा कर दिया जाए? देश के राजनीतिक दलों को भी यह सोचना चाहिए कि इस तरह के क्षेत्रीय विवादों से उन्हें सामयिक लाभ तो मिल सकता है परंतु इसके परिणामस्वरूप बढ़ने वाली क्षेत्रवाद व प्रांतवाद की भावना के घातक परिणाम निकलते हैं। दक्षिण भारत में कावेरी जल विवाद इसका ज्वलंत उदाहरण है, जो कई लोगों की जान ले चुका है। इसलिए क्षुद्र राजनीति से किसी का भला नहीं होने वाला। समय की मांग है कि सतलुज-यमुना संपर्क नहर पर हम क्षुद्र राजनीति छोड़ें और राष्ट्रनीति का पालन करें। इस अवसर पर गलत कदम उठाया गया तो भविष्य माफ नहीं करेगा।
समस्या की जड़ में कांग्रेस : सुखबीर सिंह बादल
एसवाईएल पर पंजाब सरकार पूरी तरह से डटी है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने गत मार्च में मामले पर यथास्थिति बनाए रखने के साथ मुख्य सचिव को संरक्षक (कस्टोडियन) बनाया था। इस पर राज्य के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने स्पष्ट किया है कि कानूनी राय के बाद ही कैबिनेट ने डी-नोटिफिकेशन की है। साथ ही न्यायालय के अंतरिम आदेश प्रभावी नहीं रहे। वे यह मुद्दा लोकसभा में उठाएंगे, और राष्ट्रपति से मिलेंगे। प्रस्तुत हैं उनसे इस मुद्दे पर हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
अकाली दल लोकसभा में काम रोको प्रस्ताव ला रहा है। वहां आवाज उठाना बस शोर मचाने जैसा नहीं होगा, क्योंकि लड़ाई अदालत में है?
संसद में आवाज उठा कर हम देश को बताना चाहते हैं कि पंज दरियाओं की धरती तो बंजर हो ही रही है और कैसे जबरन उससे पानी छीनने की कोशिश हुई है।
अकाली दल मोगा में रैली करने जा रहा है। कांग्रेस अबोहर रैली कर चुकी है, राष्ट्रपति से मिल रही है, आआपा कपूरी में धरने पर बैठी है। पानी का मसला सबका है, तो इस पर सब एक क्यों नहीं है, क्यों नहीं सब मिलकर पूरी ताकत से लड़ाई लड़ते?
आआपा पानी की लड़ाई मंे कहीं नहीं है। कांग्रेस इस समस्या की जड़ है। एक तरह से उसने पंजाब के पानी का कत्ल किया है। हम भला कैसे एक किातल को अपने साथ बिठा सकते हैं।
अब राजस्थान भी कहने लगा है कि उसे पूरा पानी नहीं मिल रहा। वह भी सर्वोच्च न्यायालय में नई याचिका की तैयारी कर रहा है। आप कानूनी लड़ाई लड़ने की बजाए धरनों में फंसे हैं। कैसे रोकेंगे पानी?
राजस्थान पहले ही पंजाब सेे बराबर पानी ले रहा है। बावजूद इसके वह खुश नहीं है तो अदालत में उसे भी जवाब देंगे।
केंद्र सरकार को नहर बनाने के लिए कहा गया है। आप सत्तारूढ़ दल के सहयोगी हैं। इस पर क्या कहेंगे?
हम कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में हमे केंद्र से भी मदद की उम्मीद है।
आप कह रहे हैं कि पंजाब के पास देने के लिए पानी है ही नहीं। भूजल 300 फुट से नीचे चला गया है। 100 से ज्यादा मंडल 'डार्क जोन' में हैं। आपने इसी साल डेढ़ लाख ट्यूबवेल कनेक्शन और दे दिए। इससे स्थिति और भयानक नहीं हो जाएगी?
जो नये कनेक्शन दिए हैं वे पहले डीजल पंप पर चल रहे थे। पानी वे पहले से ही निकाल रहे हैं। अब बिजली पर चलने लगे।
बादल सरकार ने ही जमीन अधिग्रहित कराई थी। देवीलाल सरकार से 2 करोड़ का चेक भी लिया था। कांगेस की भूमिका इसमें कहां पर है?
1981 में कांग्रेस ने ही पंजाब के पानी का हरियाणा व राजस्थान के साथ सौदा किया। केंद्र में तब कांग्रेस सरकार थी। उसने हमें मजबूर किया। हम क्या कर सकते थे।
न्यायालय में आपकी सरकार आधे से ज्यादा समय एक कनिष्ठ वकील के सहारे लड़ती रही। अब आप कह रहे हैं कि खून दे देंगे पर पानी नहीं देंगे। तब पूरी तैयारी से क्यों नहीं लड़े?
जिरह के समय हमारे वकीलों ने पूरी ताकत झोंक दी थी। राय तो सर्वोच्च न्यायालय के हाथ में होती है। हालांकि राष्ट्रपति ने जो चार राय मांगी थीं, उनमें से एक पर भी अदालत ने टिप्पणी नहीं की है।
एसवाईएल पर विधेयक लाया जा सकता है: कै. अमरिन्दर सिंह
एसवाईएल के मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व का कहना है कि चुनाव में जीत हासिल करने पर वह सदन में विधेयक लाएगी और एसवाईएल ही नहीं, पंजाब के समूचे पानी का मसला कानूनी तौर पर हल करेगी। प्रस्तुत है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कै. अमरिंदर सिंह से जालंधर में हुई विशेष बातचीत के प्रमुख अंश-
ल्ल आपने बादल को दोषी ठहराया है। जबकि योजना की नींव तो श्रीमती इंदिरा गांधी ने रखी थी?
जमीन तो बादल ने ही दी थी।
पुतले फूंकने, रैली करने, इस्तीफे देने से सियासी फायदा तो होगा, लेकिन पानी बचेगा क्या?
विपक्ष के पास विरोध जताने के अलावा और चारा भी क्या होता है। मैं कहता हूं कि जनता हमें दो तिहाई बहुमत से जिताए। मैं नया कानून लाकर इस समस्या को दूर कर दूंगा।
2004 में भी तो आप ही कानून लाए थे, जिसे न्यायालय ने गलत बताया। तब क्यों नहीं ध्यान रखा?
बादल सरकार ने न्यायालय में सही तरीके से पैरवी नहीं की। पौने दस साल अगर उन्हें चिंता होती तो क्या अपने दोस्त चौटाला के चहेते अशोक अग्रवाल को महाधिवक्ता (एजी) बनातेे? अग्रवाल पंजाब नहीं, हरियाणा का हित देख रहे हैं। मैंने दिल्ली में अपने वकीलों की राय ली है। उस के आधार पर मैं कहता हूं कि इस पर विधेयक लाया जा सकता है।
ल्ल यह वैधानिक राय आप सरकार
को देंगे?
सरकार पूछे तो सही। मैंने जब 2004 में अधिनियम बनवाया था तो नरीमन जैसे वकीलों से राय ली थी। बिल पेश करने से पहले खुद बादल के पास जाकर उनसे सहयोग मांगा था।
सुखबीर बादल कांग्रेस पर पानी के मुद्दे पर भागने का आरोप लगा
रहे हैं?
कांग्रेस भागने वालों में नहीं है। मैंने हमेशा आगे रहकर लड़ाई लड़ी है।
ल्ल पिछला विधेयक रद्द हो चुका है? नए में ऐसा क्या होगा कि पंजाब का पानी दूसरे राज्यों को जाने से रुक सके?
न्यायालय के फैसले पर विधानसभा में अधिनियम लाया जा सकता है। दूसरा, सर्वोच्च न्यायालय में एक अलग याचिका दायर करनी चाहिए थी जिसमें अदालत से कहा जाता कि वह पानी का दोबारा मूल्यांकन करवाए। जब पहले समझौते हुए थे तो पानी 17.17 एमएएफ था लेकिन भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड ने तीन साल पहले जो पानी का मूल्यांकन किया है वह 13.38 एमएएफ है। ऐसे में पंजाब पानी कहां से देगा? मुझे लगता है कि कोई नया ट्रिब्यूनल बनाया जाए और वह नए सिरे से पानी का निर्धारण करे। कुल पानी में यमुना का पानी भी शामिल किया जाए। पंजाब को इसमें से एक बूंद भी पानी नहीं मिलता।
आपने लोकसभा से इस्तीफा दिया, विधायकों ने पंजाब विधानसभा से। इससे क्या लाभ होगा?
मैं पहले भी कई बार इस्तीफा दे चुका हूं। मैंने ही अपने सांसदों से इस्तीफा देने को कहा था। हमें संसद में भी लड़ना है और लोगों के बीच भी।
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