काले धन और काले मन के शक, हूणों के अंत का आरम्भ
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काले धन और काले मन के शक, हूणों के अंत का आरम्भ

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Nov 19, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Nov 2016 13:20:50

देश बदल रहा है। शायद इससे पहले इसके दर्शन नहीं हुए। नोटबंदी के चलते विषम परिस्थितियों में भी समाज के अधरों पर एक ही बात है,'मोदी जी ने ठीक ही किया'

तरुण विजय

यह केवल काले धन के विरुद्ध युद्ध नहीं, बल्कि भारत की सुषुप्त चेतना के जागरण का पर्व है। तालाब पर जमी काई को साफ करने के लिए कठोर प्रहार आवश्यक होता है लेकिन यह प्रहार उन्हीं हाथों से फलता है जिन हाथों में धर्म और राष्ट्रभक्ति की शक्ति होती है। संभवत: आने वाला इतिहास इस बात का सही विश्लेषण कर सकेगा कि किन शब्दों के प्रभाव से देश के सवा अरब लोग आर्थिक योद्धा बन गए। तकलीफें हैं, व्यापार-धंधे में तात्कालिक कमी आई, दफ्तर-स्कूल छोड़कर घंटों पंक्तियों में खड़ें रहना पड़ा, अस्पताल, रेल, खेल और खेत सब पर असर हुआ लेकिन फिर भी अधरों पर एक ही वाक्य उभरा—मोदी जी ने ठीक किया, हम कुछ पीड़ा सह लेंगे पर इस मुहिम को कामयाब करेंगे। आसेतु हिमाचल कब किसने ऐसा आलोड़न पैदा किया था? कुछ लोग 1857 के गदर की याद करते हुए बताते होंगे कि उनके परदादा उस वक्त लखनऊ, कानपुर, मेरठ या पालम की लड़ाई में थे। कुछ को 1947 की याद करते हुए अपने बुजुर्गों का स्मरण हो आता होगा और वे बताते होंगे कि जब सांडर्स पर गोलियां चलाकर भगत सिंह लाहौर के डी.ए.वी. कालेज से बाहर निकले तो कैसा रोमांच पैदा हुआ था।
आने वाले वर्षों में लोग 2016 की मोदी-अर्थ-क्रांति के रोमांचक खट्टे-मीठे क्षणों की यादें दोहराते हुए अपने पुत्रों-पौत्रों-प्रपौत्रों को बताएंगे कि वे कैसे एटीएम के आगे पांच-छह घंटे खड़े रहे, कैश की गाड़ी आते ही सब कैसे उतावले हुए और किस तरह जनता ने काले धन की अगुआई करने वाले विपक्षी नेताओं की बोलती बंद कर दी जो चार करोड़ की गाड़ी में चार हजार निकालने का नाटक कर रहे थे।
पर बात इससे बड़ी है। यह कौन-सा देश है जिसे बदला जा रहा है? यह कौन-सी जनता है जो पुन: प्रतिरोधी शक्ति का पर्यावरण बन यूं एक हो खड़ी हो गई मानो कारगिल दोहराया जा रहा हो? और इतनी गुप्तता के साथ प्रधानमंत्री ने महीनों की तैयारी को सबकी नजरों से ढक आठ नवंबर की वह घोषणा कर दी मानो अटल जी पोकरण तीन कर रहे हों। इसका असर केवल अर्थव्यवस्था या ढांचागत निर्माण में अधिक पूंजी निवेश तक ही सीमित नहीं रहेगा।
यह भारत का मन बदलने का अनुष्ठान हो गया—वह मन जो पहले माने बैठा था कि समानान्तर अर्थव्यवस्था और कालाधन हमारे जीवन का अपरिहार्य अंग बन गया है, जो मान बैठा था कि सिर्फ देश में अगर कायदे और फायदे में से किसी एक को चुनना हो तो फायदा चुनो, कायदा छोड़ो—क्योंकि ऊपर से नीचे तक सब कायदे को धता बताते हुए सिर्फ फायदा चुन रहे हैं—वह मन बदल गया—भारत का आत्मविश्वास लौटने लगा कि यह वह देश है जहां कायदे या फायदे की बात नहीं बल्कि कायदे के साथ फायदे की बात फलती-फूलती है। जो पीड़ा आज हो रही है वह नए भारत के जन्म की प्रसव पीड़ा है। यह नवोन्मेष का वह काल है जब वेदना अधरों पर अनागत के स्वागत की मुस्कान बिखेर रही है, दुख और क्लेश के काले बादल नहीं।
अभी सरस्वती शिशु मन्दिर, सतना की स्वर्ण जयन्ती में भाग लेकर लौटा तो रेलगाड़ी में एक सरकारी कर्मचारी से चर्चा होने लगी। जावेद अहमद रेल कर्मचारी हैं, बोले, हमारे घर में, जब मोदी का राष्ट्र के नाम सम्बोधन शुरू हुआ तो हमें अंदेशा था कि शायद अब लड़ाई की घोषणा होने वाली है। पर नोटबंदी की घोषणा से मेरी पत्नी सकते में आ गयी। मुझसे छुपाकर, घर के किसी वक्त जरूरत आपदा काल के लिए उन्होंने कुछ पैसे इकट्ठा किए हुए थे। होंगे लगभग सवा लाख। मैं भी चौंक गया। उसने अपने साड़ी-जम्पर के पैसे खर्च न करके घर के लिए कितनी मेहनत से एकत्र किए होंगे वे पैसे। पर फिर मैंने कहा! अरे, उसे चिंता हो जिसने कालाधन रखा हो।
साहब, कुछ परेशानी तो होगी ही, पर मोदी जी ने हिन्दुस्थान के हर आदमी का दिल जीत लिया।
जैसे हमारे सीने में दिल धड़कता है, हमारा मन होता है, वैसे ही देश का दिल और मन होता है, जिसे दीनदयाल जी ने चिति कहा। नरेन्द्र मोदी ने देश के उस मन को छू लिया। इससे हमारी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ अन्य सभी क्षेत्रों में नए तेवर, नए कलेवर लाने में मदद मिलेगी। वह आत्मविश्वास आएगा कि शिक्षा पद्धति, चिकित्सा योजनाएं, न्यायपालिका, पुलिस व्यववस्था और प्रशासनिक सेवाओं में बरसों से लंबित पड़े सुधार लाए जा सकें।
यह देश कराहता रहा है एक लचर, जनता से दूर और असहाय देरी के लिए जानी गई न्यायावस्था से। पुलिस और प्रशासन की पारदर्शिता पर भरोसा नहीं। हर बड़ा नेता और अफसर जरूरत पड़ने पर (एम्स के अपवाद के अलावा) निजी अस्पतालों में जाते हैं। ये सभी व्यवस्थाएं कठोर निर्णय तथा गहरे आत्मविश्वास की मांग करती हैं। वह देश जहां न कोई गरीब हो, न अशिक्षित और न ही अस्वस्थ-कमजोर-तभी बन सकता है जब सीने में ईमानदारी का दिल और युवाओं में भीतरी व बाहरी शत्रुओं का दलन करने का दम हो।
नरेन्द्र मोदी ने नरेन्द्र विक्रमादित्य बन यह काम शुरू कर दिया है? आगे-आगे देखिए और क्या होगा। यह मेरी दृष्टि में भारत के उस नए पूर्व का श्रीगणेश है जब शक, हूण, बर्बर नष्ट होने की ओर जा रहे हैं।
शुभम् करोति कल्याणम्!    
    (लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद हैं)

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