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अद्भुत नजारा है देश में आज नोटबंदी के बाद। जहां आम नौकरीपेशा, मध्यम वर्ग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस कदम की सराहना कर रहा है तो कालाबाजारी में अरबों रु. बटोरने वाला वर्ग सकते में हैं। विशेषज्ञों की राय में यह कदम कालाबाजार और आतंकवाद की जड़ पर चोट करने के लिए उठाया गया है
आलोक पुराणिक
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने हाल ही में कहा कि 8 नवंबर 2016, यानी 500-1000 की नोटबंदी की घोषणा के बाद से, कश्मीर में पत्थरबाजी की घटना नहीं हुई है। पत्थरबाजी की घटनाएं पाकिस्तान प्रेम की वजह से नहीं, 500 के नोट-प्रेम की वजह से हो रही थीं। यानी नोटबंदी से कश्मीर के आतंकी-फाइनेंस नेटवर्क को चोट पहुंची है। पाकिस्तान से आ रहे नकली नोटों के आधार पर जो आतंकी नेटवर्क खड़ा था, उस पर चोट लगी है। अब जब तक पाकिस्तान से नये नोट छपकर नहीं आयेंगे, आतंकी नेटवर्क पर कुछ रोकथाम रहेगी। नक्सलवादी नेटवर्क भी परेशान ही है, माओवादी आतंकी हर वर्ष करीब 1,500 करोड़ की वसूली करते हैं। वे इस रकम का अधिकांश हिस्सा नकदी के तौर पर रखते हैं पर वह भी 500-1000 के नोटों की शक्ल में। माओवादियों के पास नकदी ही होती है, 500-1000 के पुराने नोटों का चलना बंद हो गया है, तो नक्सली आतंकी परेशानी में हैं। यानी कुल मिलाकर 500-1000 की नोटबंदी के परिणाम आने शुरू हो गये हैं।
तंत्र से बाहर इतनी काली कमाई!
ये नोट अब तंत्र से बाहर हो जायेंगे। निश्चय ही ये नोट काले धन का हिस्सा होंगे। जिनके पास मेहनत की कमाई के पांच सौ के नोट हैं, और बताने के लिए वजह भी है कि ये कहां से आये, वे तो तमाम बैंकों में लाइनों में लगकर पांच सौ और हजार के पुराने नोटों के बदले नये नोट ले रहे हैं। जिनके पास बताने के लिए उचित वजहें नहीं हैं या नोट वापसी कराके फंसने का डर है जिन्हें, वे नोटों को नष्ट ही करेंगे। इस नष्टीकरण से भी यह रकम तंत्र से बाहर होगी और एक तरह से अर्थव्यवस्था का हित ही होगा।
काली कमाई का असर
बिटिश अर्थशास्त्री थॉमस ग्रेश्म ने बहुत पहले एक नियम दिया था-बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। इसका संदर्भ यह था कि ब्रिटेन में पुरानी खराब मुद्रा को हटाने के उद्देश्य से अच्छी साफ-सुथरी मुद्रा तंत्र में डाली गई। पर कुछ दिनों बाद देखा गया कि साफ-सुथरे नोट तंत्र से गायब हैं और वही पुराने-धुराने नोट चलन में हैं। इस परिघटना पर शोध करके ग्रेशम ने बताया कि बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से इसलिए बाहर कर देती है कि लोग अच्छी साफ मुद्रा को दबाकर बैठ जाते हैं, और बुरी मुद्रा से ही अपना कामकाज चलाते हैं। व्यवहार में देखा जाता है कि काला धन ईमान के धन को तंत्र से बाहर धकेल देता है। जैसे एक मकान पचास लाख रुपये का है। अगर कोई सफेद कमाई से इस मकान को लेना चाहे, तो उसे अपनी कमाई का ब्योरा दिखाना पड़ेगा। पर इस मकान की आधिकारिक कीमत 30 लाख दिखाकर इसे उस कालाबाजारी को बेचा जा सकता है, जो कागजों पर तीस लाख दे और बीस लाख नकद काली कमाई के दे दे। यानी काला बाजारी इस मकान को खरीद सकता है पर ईमान की कमाई वाला बाजार से बाहर हो जाएगा। इस तरह से काली कमाई सफेद कमाई को बहुत जगहों से बाहर देती है। अब काली कमाई का सहारा नहीं होगा, तो बहुत से कारोबार ठप होंगे। रियल इस्टेट और सोना इस तरह के कारोबारों में हैं, जहां काले धन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। काला धन बड़े नोटों के रूप में सुरक्षित होता है। नकद में बड़ी रकम चूंकि 500-1000 रुपये में ही दी जाती है, बड़े नोट बड़े भ्रष्टाचार के वाहक बनते हैं। ठीक इन्हीं वजहों से संभव होता है कि भ्रष्ट नेता कानूनी तौर पर 5000 रुपये में लाखों की रैली दिखा देता है, बाकी की रकम नकद में ऊपर से दी जाती है, उसका कहीं रिकॉर्ड नहीं होता। जहां रिकॉर्ड नहीं होता, वहां काला धन धुआंधार चलता है। इसलिए इस नोटबंदी से उन्हें सबसे ज्यादा चोट पहुंची है, जिनकी संपन्नता का आधार कालेधन वाले बड़े नोट थे।
राजनीति में ऐसे नोटों का बड़ा सहारा होता है। इसलिए यह अनायास नहीं है कि ईमानदार आदमी राजनीति से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझता है। बड़े नोटों के बंद होने पर कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी का यह बयान कि ''राजनीति अब अमीरों के लिए ही रह गई है'', पूरे हालात बयान कर देता है। मोदी की लगभग हर बात का विरोध करने वाले नीतीश कुमार ने नोटबंदी का स्वागत करके संकेत दिया है कि वे इस कदम से आने वाले वक्त में कालेधन में कमी देखते हैं। आर्थिक चिंतन की एक धारा का मानना है कि बड़े नोट खत्म करके काले धन पर गहरा प्रहार किया जा सकता है।
रियल इस्टेट सदमे में
किसी भी शहर में प्रॉपर्टी के सौदे की बुनियादी समझ रखने वाला जानता है कि इसकी खरीद-बिक्री कैसे होती है। दिल्ली में ही अगर किसी को करोलबाग या पटेल नगर में कोई मकान खरीदना हो, तो उसकी वास्तविक चुकायी गयी कीमत अलग होती है और रजिस्ट्री कराई गई कीमत अलग। रजिस्ट्री कराई गयी कीमत कम होती है, क्योंकि कम रजिस्ट्री की कीमत पर कर कम देना होता है। सरकार इस बात को जानती है। इसलिए हर इलाके के सर्किल रेट घोषित होते हैं यानी उस सर्किल रेट से कम कीमत पर रजिस्ट्री नहीं कराई जा सकती। तो सर्किल रेट यानी न्यूनतम कीमत पर रजिस्ट्री कराई जाती है और बाकी की रकम नकद दी जाती है। यह नकद 500-1000 के नोटों की शक्ल में होता रहा है। अब इस पर रोक लगी है।
रियल इस्टेट और सोने से जुड़े कारोबारों ने इसीलिए नोटबंदी के फैसले पर जबरदस्त तरीके से प्रतिक्रिया दी। रियल इस्टेट और सोने से जुड़ी कई कंपनियों के शेयर नोटबंदी की घोषणा के बाद गहरे डूब गये। 9 नवंबर, 2016 यानी नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन मुंबई शेयर बाजार का संवेदनशील सूचकांक 338़ 61 बिंदु यानी 1़ 23 प्रतिशत गिर गया था। ऐसे नेशनल स्टाक एक्सचेंज का सूचकांक निफ्टी 1़ 31 प्रतिशत गिरकर 8,432 बिंदुओं पर बंद हुआ। पर शेयरों में सबसे ज्यादा पिटाई हुई प्रॉपर्टी से जुड़ी कंपनियों के शेयरों की। नेशनल स्टाक एक्सचेंज पर प्रॉपर्टी की बड़ी कंपनी डीएलएफ का शेयर 17़ 27 प्रतिशत गिरकर 118़ 60 रुपये पर बंद हुआ। वहीं सोने के कारोबार वाली बड़ी कंपनी पीसी ज्वैलर्स का शेयर करीब नौ प्रतिशत गिरकर नेशनल स्टाक एक्सचेंज पर 436़ 65 रुपये पर बंद हुआ। यानी प्रॉपर्टी और सोने की कंपनियों के शेयरों ने गिरकर बताया है कि बड़े नोटों की बंदी की सबसे ज्यादा चोट कहां पड़ी है। कालेधन की कमी से सोने और प्रॉपर्टी की मांग में साफ तौर पर कमी आने के आसार हैं। इसलिए इन कारोबारों से जुड़ी कंपनियों के शेयरों से पता लगता है कि इनके कारोबार का दबाव इनके मुनाफे पर भी दिखेगा। 10 नवंबर को प्रॉपर्टी और सोना कारोबार कंपनियों के शेयर भाव थोड़े सुधरे पर कुल मिलाकर यही साफ हुआ कि बड़े नोटों की बंदी से सोने और प्रॉपर्टी के कारोबार को सबसे ज्यादा चोट इसीलिए पहुंचने वाली है कि काला कारोबार इन्हीं धंधों में सबसे ज्यादा है।
काले धन पर आधारित मांग
जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यह बयान देते हैं कि काला धन कहीं ना कहीं मंदी से बचाता है, तो उनका आशय होता है काले धन के चलते सोने, मकानों और तमाम तरह की चीजों की मांग बनी रहती है। जब काला धन न होगा, तो आदमी चार मकान ना लेगा और एक किलो सोना नहीं लेगा। पांच-सौ, हजार के नोटों की बंदी से काला धन आधारित मांग में कमी आने के आसार हैं। मांग में कमी आने के चलते मकानों की कीमतों में कमी संभावित है। मांग में कमी आने की तमाम आशंकाओं के चलते कई कारोबारों में आशंकाएं हैं।
शेयर बाजार में कई कंपनियों के शेयर गिरे। फाइनेंस के कारोबारी बजाज फाइनेंस के शेयर में भारी गिरावट आई। बिजली का साज-सामान बनाने वाली कंपनी हैवल्स इंडिया के शेयर बुरी तरह गिरे। पेंट के कारोबार की अग्रणी कंपनी एशियन पेंट्स के भावों में भारी गिरावट आई। पिज्जा बनाने वाली अग्रणी कंपनी जुबिलियेंट फूड वर्क्स के भावों में काफी गिरावट हुई। स्वाभाविक-सी बात है कि जेब में नकद कम हो या ना हो, तो कोई पिज्जा तो नही खरीदेगा। यानी कई कारोबारों में मांग में कमी साफ दिखाई दे रही है।
महंगाई और ब्याज दर में कमी
इस स्थिति का निकट भविष्य में एक फायदा सामने आ सकता है। इससे महंगाई में कमी देखने को मिल सकती है। क्रेडिट रेटिंग कंपनी क्रिसिल के एक शोध के मुताबिक 500-1000 की नोटबंदी से महंगाई में कुछ कमी देखने को मिल सकती है। महंगाई में कमी का मतलब है देर-सवेर ब्याज दरों में कमी। उद्योग जगत ब्याज दरों में कमी का स्वागत ही करेगा। यानी कुल मिलाकर 500-1000 के नोटों के गायब होने से समस्याएं तो हैं, पर देर-सवेर शेयर बाजार पर इसके सकारात्मक परिणाम आयेंगे। स्थितियों का एक आयाम यह है कि अब निवेश के विकल्प भी सीमित हो रहे हैं। लोग यह सोचकर प्रॉपर्टी में निवेश करते थे कि देर-सवेर उससे रिटर्न मिल जाएगा। प्रॉपर्टी बाजार की मांग में कालाधन बड़ी भूमिका निभाता था। इसी वजह से प्रॉपर्टी के दाम बढ़ते थे। पर काले धन के सीमित होने की वजह से प्रॉपर्टी बाजार में वैसी मांग देखने को नहीं मिलेगी। इसलिए निवेश के लिए बड़ी रकम शेयर बाजार का रुख करेगी, इसकी वजह से आने वाले वक्त में शेयर बाजार में बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है।
पहली बार नहीं हुआ यह
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब बड़े नोटों को बंद कर दिया गया हो। जनवरी, 1978 में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे, उन्होने 500 रुपये, 1000 रुपये और 10,000 रुपये का नोट बंद कर दिया था। मोरारजी देसाई जनता पार्टी सरकार के प्रधानमंत्री थे। बड़े नोटों को बंद करने की प्रक्रिया में खासी तकलीफ होती है अर्थव्यवस्था के कई पक्षों को। पर यह तकलीफ अर्थव्यवस्था को उठा लेनी चाहिए, ताकि समय-समय पर उसकी कुछ गंदगी साफ होती रहे। बड़े नोटों की बंदी एक तरह का 'शॉक-ट्रीटमेंट' होती है, यानी अर्थव्यवस्था को एक झटका लगता है। अभी भी लगा, कई लोगों ने शिकायत की कि उनके पास तो सिर्फ पांच सौ के नोट थे, अब उनसे वे कैसे खाना खायें या कुछ खरीदें। 17 नवंबर को दी गयी राहतों से कुछ वगोंर् पर सकारात्मक असर पड़ने की उम्मीद है। किसानों को कर्ज लेने के लिए छूट दी गयी है। शादियों के लिए ढाई लाख रुपये तक निकाले जा सकते हैं।' किसान हर हफ्ते 25,000 रुपये निकाल सकते हैं। थोक सब्जी मंडियों के कारोबारी हफ्ते में 50,000 रुपये निकाल सकते हैं।
बार-बार लगातार
पर 500 और 1000 के नोट बंद हुए हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि ये नोट दोबारा नहीं आयेंगे। जल्दी ही 500 और 2000 के नये नोट बाजार में आ जायेंगे। पर ऐसी कोई गारंटी नहीं है कि वे नये नोट दोबारा कालेधन के वाहक नही बनेंगे। इसलिए जरूरी यह है नोटबंदी जैसे कदम लगातार बार-बार और थोड़ा जल्दी जल्दी उठाये जायें। कालाधन लगातार पैदा होता रहता है इसलिए उससे निपटने वाले कदम भी लगातार उठाये जाने चाहिए। और बड़े नोटों की बंदी एक ऐसा 'शॉक-ट्रीटमेंट' है, जिसे लगातार दिया जाना चाहिए।
भविष्य के कदम
सबके हित में यही है कि अर्थव्यवस्था में नकद के बजाय लेन-देन 'ऑनलाइन' हो या रिकार्डेड तरीके से हो। डेबिट कार्ड, पेटीएम के जरिये होने वाले सौदों का रिकॉर्ड रहता है। पर ऑनलाइन सौदों के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। पैसे के मामले में कई लोगों को आसानी से भरोसा नहीं होता। ऑनलाइन भुगतान को लेकर शक-शुबहे बने हुए हैं। उन्हें दूर किया जाना जरूरी है। वरना होगा यह कि नकद आधारित सौदों में देर-सवेर फिर काला धन पैदा होगा। 2000 रुपये के नोट से काले धन फिर दोबारा बचाये रखना आसान होगा। नकद न्यूनतम हो, तो लगभग हर सौदे का कहीं रिकार्ड होगा, तब स्थितियों को प्रबंधित करना आसान हो जायेगा। अभी जो परेशानियां हो रही हैं, वे अतीत की गलतियों की वजह से हो रही हैं। भविष्य में ऐसी गलतियां ना हों, इसलिए नकद-मुक्त नहीं तो नकद-न्यूनतम अर्थव्यवस्था की ओर कदम तेजी से बढ़ा लेने चाहिए।
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