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प्रदीप सरदाना
कई विवादों में घिरने से करोड़ों का मुफ्त प्रचार पाने के बावजूद करण जौहर की फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' दर्शकों के दिलों में नहीं उतर सकी। इस कारण करण का इस फिल्म से करोड़ों रु. कमाने का सपना चूर चूर होता नजर आ रहा है। जबकि उन्हें लगा होगा कि सेना कल्याण कोष में 5 करोड़ रु. दान देने की घोषणा के बाद दर्शक उनकी फिल्म में पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान के होने का आक्रोश भुलाकर अपना गुस्सा थूक देंगे। लेकिन पहले सप्ताह की कमाई के आंकड़ों ने यह साफ कर दिया कि ऐसा हो न सका। फिल्म के सिनेमाघरों में प्रदर्शन पर, बेहतर कानून व्यवस्था के चलते देश भर में इस फिल्म को लेकर चाहे अधिक सार्वजनिक विरोध, प्रदर्शन न हो सका हो, लेकिन अनेकों दर्शकों ने फिल्म का बहिष्कार किया। वे फिल्म को देखने सिनेमाघरों में नहीं पहुंचे।
यूं करण जौहर के कुछ खास मित्र और कुछ विशिष्ट फिल्म विशेषज्ञ और समीक्षक ऐसा आभामंडल बनाने में जुटे हैं कि 'ऐ दिल है मुश्किल' टिकट खिड़की पर शानदार बिजनेस कर रही है। लेकिन हम आपको वह असलियत बताने जा रहे हैं जो दूध का दूध और पानी का पानी करती है। वह भी करण जौहर द्वारा निर्मित इससे पहले रणबीर कपूर के साथ आई हिट फिल्म के साथ, पिछले कुछ बरसों में दीवाली पर प्रदर्शित हुई फिल्मों के आंकड़ों के माध्यम से।
'ऐ दिल है मुश्किल' ने अपने पहले दिन 28 अक्टूबर को ओपनिंग पर देश भर में कुल मात्र 13 करोड रु. 30 लाख रु. एकत्र किये। दूसरे दिन शनिवार को बिजनेस बढ़ने की जगह और भी कम होकर 13़10 रह गया और रविवार को दीपावली पर और भी कम 9़20 करोड़ रु. का कलेक्शन रहा़ जिससे यह पहले तीन दिन यानी सप्ताहांत तक कुल 35 करोड़ रु. 60 लाख रु. ही अपनी झोली में समेट सकी। आज के समय में दीवाली के दौरान लगी किसी भी बड़ी और बड़े कलाकारों वाली फिल्म के लिए पहले सप्ताहंत की यह बहुत कमजोर कमाई है। क्योंकि पिछले वर्ष दीवाली पर प्रदर्शित फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' ने पहले ही दिन 40 करोड़ रु. 35 लाख रु. कमा लिए थे। अर्थात् 'ऐ दिल है' की कुल तीन दिन की कमाई 10 करोड़ रु. से अधिक रही जबकि 'प्रेम रतन' तीन दिन में ही 100 करोड़ रु. का आंकड़ा पार कर देश में सबसे तेजी से कमाई करने वाली चौथी फिल्म बन गयी थी बाद में आगे चलकर यह 200 करोड रु. से भी अधिक कमाई करने वाली फिल्म बनी।
ऐसे ही सन् 2014 की दीवाली पर जब 'हैपी न्यू इयर' आई तो उसने भी पहले ही दिन लगभग 45 करोड रु. एकत्र कर नया इतिहास रचा। इस फिल्म ने भी पहले तीन दिन में 100 करोड़ रु. अर्जित कर लिए थे। एक दीवाली और भी पीछे जाएं तो 2013 में दीवाली पर 'ष -3' आई थी। इस फिल्म ने भी पहले 4 दिन में ही 100 करोड़ रु. कमाकर दिखा दिए थे। हालांकि यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि पिछली तीन दीवाली पर प्रदर्शित फिल्मों के सामने कोई और बड़ी फिल्म नहीं थी। यह बात सही है कि एक ही फिल्म होने के कारण इन फिल्मों को ज्यादा स्क्रीन मिलीं और उनकी कमाई भी अधिक हुई। लेकिन यहां हम इस दीवाली पर 'ए दिल है मुश्किल' के साथ प्रदर्शित एक और बड़ी फिल्म 'शिवाय' की कमाई को भी शामिल कर लें तो भी दोनों फिल्मों का पहले दिन का कुल कलेक्शन 35 करोड़ 60 लाख रु. बनता है-जो कि सीधे तौर पर भी पिछली दो दीवाली पर आई फिल्मों से 5 से 10 करोड़ रु. कम है। सच्चाई यह है कि इन पिछले दो बरसों में जहां टिकट दरों में वृद्घि हुई है वहां नए-नए मल्टीप्लेक्स आने से देश में स्क्रीन्स में भी वृद्घि हुई है। 'प्रेम रतन धन पायो' और 'हैपी न्यू ईयर' जहां कुल औसतन 4500 स्क्रीन के आसपास पर प्रदर्शित हुईं थीं, वहां इस बार 'ऐ दिल ़.़ और 'शिवाय' दोनों 5500 से भी अधिक स्क्रीन पर प्रदर्शित हुई हैं। 'ऐ दिल.. अकेले करीब 3200 स्क्रीन पर लगी है। इस हिसाब से इस साल की ये दोनों फिल्में पहले दिन 10 करोड़ रु. और भी एकत्र कर लेतीं तब भी 2014 और 2015 की दीपावली से पीछे ही मानी जातीं। इसलिए दो फिल्मों के आमने-सामने या एकल फिल्म होने की तुलना का तर्कआंकड़ों में कहीं नहीं ठहरता। सच यह है कि 'ऐ दिल है मुश्किल' को देखने के लिए अनेक दर्शक घरों से निकले ही नहीं। जबकि फिल्म में रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय और अनुष्का शर्मा जैसे लोकप्रिय सितारे हैं। साथ ही फिल्म के निर्माता ही नहीं निर्देशक भी वे करण जोहर हैं जो अपने निर्देशन में 'स्टूडेंट अफ द ईयर', 'कभी खुशी कभी गम' और 'कुछ कुछ होता है' जैसी सुपर हिट फिल्में दे चुके हैं। इस फिल्म के मुकाबले 'शिवाय' अधिक सफल मानी जायेगी, चाहे इस फिल्म ने 'ऐ दिल है' से कुछ कम व्यवसाय किया हो, लेकिन यह एकल सितारा फिल्म है, जो अकेले अजय देवगन के कंधों पर चलती है। फिर उसका बजट 'ऐ दिल है मुश्किल' से कम है। साथ ही करण विवादों के कारण मुफ्त में ही जितनी प्रचारित हो गयी, 'शिवाय' करोड़ों रु. खर्च करके भी उसका दस प्रतिशत प्रचार ही पा सकी।
अगर हम करण जौहर की रणबीर कपूर के साथ आई पिछली बड़ी सफल फिल्म की बात करें तो वह फिल्म थी सन् 2013 में प्रदर्शित 'यह जवानी है दीवानी'। इस फिल्म ने भी पहले दिन 19 करोड़ 45 लाख एकत्र कर लिए थे-साथ ही पहले तीन दिन में 62 करोड ़ रु. 11 लाख रु. कमा लिए थे। तीन साल पहले इन्हीं रणबीर के साथ इन्हीं करण की फिल्म सिर्फ तीन दिन में साढ़े 26 करोड़ रु. अधिक कमाती है वह भी तपती गर्मी के जून महीने में़ ़.़और आज दीवाली पर उससे ज्यादा बजट की 'ए दिल है मुश्किल' के साढ़े 35 करोड़ रु. कमाने पर कुछ 'खास फिल्म विशेषज्ञ' उसे बड़ी हिट करार देते हंै तो इसे क्या कहा जाए? यह किसी औसत फिल्म का जबरदस्ती बड़ी हिट का झूठा शोर नहीं तो क्या है?
सैन्य कोष में 5 करोड़ रु. देने की घोषणा करण के लिए उलटी पड़ी
असल में देखा जाए तो फिल्म के प्रदर्शन पर 'महाराष्ट्र शिव सेना' के प्रकोप से बचने के लिए मनसे की शतोंर् के अनुकूल करण का सैनिकों के कल्याण के लिए 5 करोड़ रु. देने की शर्त मानना दर्शकों को रास नहीं आया। यह ठीक है कि मनसे ने यह राशि अपने सैनिकों के लिए नहीं बल्कि देश के जांबाज सैनिकों के परिवारों के कल्याण के लिए मांगी थी। लेकिन मनसे से अलग जिन लोगों के बीच, इस फिल्म में पाक कलाकार फवाद खान के काम करने को लेकर जो फसाद था, वह खत्म नहीं हुआ। ऐसे कुछ संगठनों और अन्य देशभक्तों के बीच यह सन्देश गया कि करण ने एक बार फिर अपनी फिल्म के बिजनेस को बढाने के लिए दबाव में सैनिकों के कल्याण के लिए यह राशि देने का निर्णय लिया है जिससे उनकी फिल्म किसी मुश्किल में न फंसे। सही मायने में एक सौदे को बचाने के लिए यह एक और सौदा है। फिर करण ने यह राशि एकमुश्त अग्रिम न देकर तीन किस्तों में देने का निर्णय लिया जिससे यदि उनकी फिल्म अच्छी कमाई न कर सके तो वे इस राशि को देने से मना कर सकते हैं कि फिल्म तो चली ही नहीं, इतनी राशि कहां से दें। क्योंकि यह राशि देने की शर्त सरकार या किसी अदालत के फैसले के तहत नहीं है।
यूं इस फैसले को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की भी कुछ लोगों ने काफी आलोचना की। कहा गया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने उस मनसे प्रमुख और फिल्म निर्माता के संगठन के साथ मीटिंग ही क्यों रखी। इससे सरकार की अहमियत कम और मनसे की अहमियत बढ़ी है। यह सच है कि इस पूरे घटनाक्रम में मनसे की राजनीति चमकी है। लेकिन मुख्यमंत्री को यह मीटिंग करने के लिए दोष देना सही नहीं है। असल में महाराष्ट्र में हुए इस विवाद को शांत करने के लिए उन पक्षों की मीटिंग बुलाना सही कदम इसलिए भी था कि यदि यह विवाद मेज पर शांत नहीं होता तो राज्य सरकार को दीवाली जैसे बड़े उत्सव पर उन पुलिसकर्मियों को सिनेमाघरों पर लगाना पड़ता जो देश और राज्य की सुरक्षा और उत्सवों पर आतंक फैलाने वालों को रोकने में जुटे थे। जाहिर है, इससे फिल्म तो सही सलामत चलती रहती लेकिन राज्य के लोगों की सलामती के लिए खतरे मंडराने का संकट बन जाता। पाकिस्तानी मंसूबों और हमलों के मंसूबों की फिराक में छिपे आतंकियों के चलते 'कहीं भी कभी' भी कोई अप्रिय या दिल दहलाने वाली घटना घट सकती थी। केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी इस मसले पर अपनी बात रखते हुए कहा, ''सेना कल्याण कोष में दान अपनी इच्छा से दिया जाना चाहिए न कि किसी की गर्दन पकड़कर दिलवाया जाना चाहिए।'' यहां तक कि केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू ने भी 'ए दिल है मुश्किल' के प्रदर्शन के लिए 5 करोड़ रु. की मांग को गलत बताते हुए कहा कि सरकार का इससे कुछ लेना-देना नहीं है। इन सब विवादों के बीच सेना के कुछ अधिकारियों और पूर्व अधिकारियों की ओर से भी ऐसी बातें सुनने को मिल रही हैं कि सेना ऐसे किसी दान को स्वीकार नहीं करेगी जो किसी से दबाव में दिलवाया गया हो।
काश! करण दिल से देते यह राशि
यदि करण जौहर 5 करोड़ या कितनी भी राशि 'ए दिल है मुश्किल' को बचाने के लिए नहीं, स्वयं अपने दिल की आवाज से सेना कल्याण के लिए देते तो अच्छा होता। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। हालांकि सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और फिल्म निर्माता पहलाज निहालानी कहते हैं, ''करण ने मनसे के कहने से 6 दिन पहले ही स्वयं शहीद परिवारों के लिए दान देने का फैसला कर लिया था। अगर पहलाज निहालानी की बात पर विश्वास किया जाए तो करण ने अपना यह विचार तब व्यक्त क्यों नहीं किया जब उन्होंने 18 अक्टूबर को अपना वीडियो जारी करते हुए यह कहा था कि वह सेना को सेल्यूट करते हैं, पूरा सम्मान देते हैं। करण तब सेना कल्याण कोष में योगदान देने की इच्छा व्यक्त करते तो शायद लोगों के बीच एक अच्छा सन्देश जाता। लेकिन बाद में उनका यह फैसला सीधे-सीधे एक दबाव का फैसला लगता है जो न सेना को पसंद होगा, न सरकार को और न ही किसी भी देश भक्त को। इसी कारण 'ऐ दिल है मुश्किल' की मुश्किलें कम होने की जगह बढती जा रही हैं। अब तो यह फिल्म एक और विवाद में भी फंस गयी है जिसमें फिल्म के एक दृश्य में अनुष्का शर्मा कहती है ''मोहम्मद रफी गाते कम रोते ज्यादा थे।'' रफी जैसे महान गायक का इस तरह भद्दा मजाक उड़ाने पर रफी के पुत्र शाहिद रफी सहित उनके बहुत से प्रशंसकों ने भी अपनी आपत्ति दर्ज की है। इस सबसे करण जौहर की मुश्किलें और भी बढ़ सकती हैं।
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