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इन दिनों देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले सैनिकों के शौर्य और पराक्रम को युवकों के जेहन में उतारने का प्रयास हो रहा है। हम सभी बखूबी जानते हैं कि इन सेनानियों की वजह से ही हम चिन्तामुक्त होकर सो रहे हैं। हालांकि ऐसा कम ही हुआ है जब ऐसे वीरों की शौर्य गाथाओं को युवाओं के जेहन में उतारने का प्रयास हुआ हो। बलिदानियों की याद में हर वर्ष कार्यक्रम तो होते हैं, लेकिन उनकी वीरता और शौर्यगाथा से लोग अनजान रहते हैं। देश सेना और सैनिकों की वीरता से परिचित हो, इसके लिए सेना के पूर्व मेजर जनरल गगनदीप बख्शी इनकी शौर्यगाथाओं को कॉमिक्स के जरिए प्रस्तुत करने में लगे हुए हैं। इसकी शुरुआत 2009 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह के समय हुई। उन्होंने प्रतिष्ठित विद्यालयों के छात्रों के फौज में न आने पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि पौराणिक कथाओं, महाभारतकालीन युद्धगाथाएं एवं अन्य कथा-कहानियों को युवाओं ने पढ़ा और जाना है, लेकिन अपने देश के लिए जान न्योछावर करने वाले बहादुरों से भावी पीढ़ी अनजान है। कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे स्कूलों का माहौल ऐसा बने कि लोग इन्हें जानें।
मेजर जनरल (से.नि.) बख्शी बताते हैं, ''इन कॉमिक्स में वीर सेनानियों की शौर्य गाथाएं हैं। हमने इसकी शुरुआत अतीत से की है। सबसे पहली कॉमिक्स कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा पर बनाई। अभी तक सभी कॉमिक्सों का प्रकाशन सिर्फ अंग्रेजी में हुआ है। आने वाले समय में इसे हिन्दी और सभी क्षेत्रीय भाषाओं में रूपांतरित करने की योजना है। इस कार्य में जहां की कहानी ली जाती है, वहां की पल्टन से संपर्क भी किया जाता है। इसके बाद ही इस पर काम शुरू होता है। ये कहानियां अत्यधिक शोध के बाद ही प्रकाशित की जाती हैं।'' वे आगे कहते हैं, ''इसमें अभी 1947-48 के युद्ध के साथ 1962, 1965, 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध की लड़ाइयों को दर्शाने की योजना है। इसमें युद्ध के हीरो को विशेष रूप से प्रचारित किया जायेगा। अभी तक जितने भी खंड प्रकाशित हुए हैं, उनमें इससे संबंधित हीरो के परिवारों को बुलाया गया। ताकि उन्हें उस पल के गौरव का एहसास हो, जब वे जोखिम भरी लड़ाई लड़ रहे थे।''
भारत में कॉमिक्स का प्रकाशन विदेशों की देखादेखी शुरू हुआ। पहले विदेशों में इनका काफी प्रचलन था लेकिन बाद में भारत में भी इसका चलन बढ़ा और इसने एक व्यवसाय का रूप भी लिया। लेकिन ऐसे में कॉमिक्स को युद्ध-वीरों से जोड़ने को एक अलग प्रयास कहा जायेगा। पहले अंग्रेजी या अन्य किसी विदेशी भाषा में प्रकाशित कॉमिक्स को हिन्दी में अनूदित किया गया। फिर उसका प्रकाशन हुआ। इसकी शुरुआत 1964 में 'इंद्रजाल कॉमिक्स' द फैंटम्स बेल्ट' के नाम से कॉमिक्स लेखक और चित्रकार ली.फक. के प्रयासों से हुई। प्रसिद्ध पात्र फैन्टम की कॉमिक्स के लिए अच्छे कलाकारों का चयन किया गया।
एक कॉमिक्स 28 पेज की होती थी। दाम 60 पैसे थे। इस तरह 1966 में प्रथम हिंदी कॉमिक्स 'बेताल की मेखला' प्रकाशित हुईं। यह 'द फैंटम्स बेल्ट' का हिन्दी अनुवाद थी। इंद्रजाल कॉमिक्स में केवल कुछ ही मूल हिन्दी पात्रों की कहानियां प्रकाशित हुई, जिसमें बहादुर (पहला प्रकाशन वर्ष 1981) प्रमुख है। 60 के दशक में अमर चित्र कथा प्रकाशन का जन्म हुआ जिसमें पौराणिक कथाओं का जिक्र होता था। 1969 में लोटपोट पत्रिका में कई कहानियां प्रकाशित हुईं जिसमें सबसे पहले मशहूर व्यंग्यचित्रकार प्राण ने 1971 में चाचा चौधरी को जन्म दिया। कॉमिक्स भले ही भारत में साठ के ही दशक में आई हो लेकिन बच्चों में इसकी रुचि '70 के दशक में हुई। इस दौरान कई नए प्रकाशक आए जिनमें डायमंड कॉमिक्स, मधु मुस्कान, आदर्श चित्र कथा, गोवरसंस कॉमिक्स प्रमुख हैं। इस दशक में ही व्यंग्यचित्रकार प्राण ने चाचा चौधरी, श्रीमती जी, पिंकू, बिल्लू और रमन जैसे किरदारों को जन्म दिया। '80 के दशक में स्टार, कॉमिक्स, चंदा मामा और चित्र-भारती कथा माला जैसे नए प्रकाशक आए। अस्सी के दूसरे हिस्से में मनोज कॉमिक्स, तुलसी कॉमिक्स, राधा कॉमिक्स, पवन कॉमिक्स, नीलम चित्रकथा और राज कॉमिक्स जैसे और भी प्रकाशक आए। अब कहानियों के साथ किरदार भी बनने लगे। मनोज कॉमिक्स के पास राम-रहीम (बाल जासूसों की जोड़ी), हवलदार बहादुर, महाबली शेरा जैसे किरदार थे तो राज कॉमिक्स ने परमाणु, बांकेलाल, नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव जैसे किरदारों को बच्चों के समक्ष पेश किया।
पर प्रकाशकों की भरमार के बाद भी पाठकों को अच्छी कहानियां नहीं मिलीं। नतीजतन 90 के दशक के बीच में ही ज्यादातर प्रकाशन बंद होने लगे। केवल कुछ ही प्रकाशन कॉमिक्स प्रकाशित कर रहे थे, जिनमंे राज कॉमिक्स, तुलसी कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स और अमर चित्र प्रमुख थे। इसके बाद इनमें से राज और डायमंड कॉमिक्स ही बचे जिनकी कॉमिक्सों की संख्या में अब कमी आई है।
निकल चुके हैं नौ संस्करण
कॉमिक्स के नौ संस्करण निकल चुके हैं। इसकी शुरुआत आदित्य बख्शी ने की थी। पहला संस्करण कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित था। दूसरा परमवीर चक्र विजेता व 1971 के युद्ध के दौरान दुश्मन के दो जेट विमान नष्ट करने वाले निर्मलजीत सेंखो, तो तीसरा परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल पर है। ऐसे ही अशोक चक्र विजेता संदीप उन्नीकृष्णन, परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह, महावीर चक्र विजेता वीवी यादव, अशोक चक्र विजेता एनजेसी नैय्यर, परमवीर चक्र विजेता कर्नल तारापोर पर भी कॉमिक्स निकल चुकी हैं।
नौनिहालों में बढ़ाएगा पराक्रम
इनमें 1965 के युद्ध में अपने शौर्य का परिचय देने वाले वीर अब्दुल हमीद, परमवीर चक्र विजेता कर्नल तारापुर की कहानी शामिल हैं। इन्हें भूली गाथाओं की याद दिलाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। हमारे नौनिहाल इन शौर्य गाथाओं को पढ़कर अपने सेनानियों पर गर्व किये बिना नहीं रह पाएंगे।
ऑनलाइन होगी कॉमिक्स
मेजर जनरल (से.नि.) गगनदीप बख्शी का मानना है कि आज की भागती-दौड़ती दुनिया में कॉमिक्स में रुचि रखने वाले बच्चों को इंटरनेट से भी जानकारियां दी जानी चाहिए। ऐसे में कॉमिक्स को ऑनलाइन करने पर विचार हो रहा है। इससे बच्चे, युवा महिला-पुरुष और बुजुर्ग बलिदानियों की जीवनी और उनकी संघर्ष गाथाएं आसानी से पढ़ सकेंगे।
वृत्रचित्र जगाएगा देशभक्ति का भाव
1965 के युद्ध पर वृतचित्र प्रदर्शन को तैयार है। इसमें अब्दुल हमीद की वीरता और साहस दिखेगा। 1971 के युद्ध का रोचक वर्णन लोगों में वीरता का भाव जगायेगा। इसका प्रदर्शन 4 दिसम्बर को नौसेना दिवस पर होगा। इसे तेरह खंडों में बनाया जाएगा। इसमें भारत की मशहूर लड़ाइयों का वर्णन होगा।
स्कूलों में भी होगा प्रसारण
वीर सपूतों के संघर्षों की कहानियों एवं डाक्यमेंट्री को विद्यार्थियों तक पहुंचाने के लिए विद्यालयों में भी संपर्क किया जाएगा। मेजर जनरल बख्शी मानते हैं कि शहादत के बाद सेनानी का जीवन और भी प्रेरणादायी होता है। युवा जब इनके साथ जुड़ेंगे तो खुद को इनके और भी करीब पाएंगे।
-विवेक त्रिपाठी
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