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देश की आजादी की लड़ाई में हमारे सेनानियों ने समर्पित होकर अपनी प्रभावी भूमिका निभाई। स्वातंत्र्यवीरों के समर्पण, त्याग और संघर्ष के परिणास्वरूप अंग्रेजों की दासता से मुक्ति के साथ हमें आजादी प्राप्त हुई। आज से सात दशक पूर्व जब देशवासियों ने स्वाभिमान और सम्मान का प्रतीक तिरंगा लहराया तो उनके मन में एक अपूर्व उत्साह तो था ही अपने सपनों को साकार देख पाने की लालसा भी थी। निश्चित रूप से स्वतंत्र होने के बाद एक स्वस्थ लोकतंत्र में अपनी चुनी हुई सरकार के माध्यम से सारे सपनों को साकार होते देखने की एक बड़ी ललक उन रणबांकुरों की आंखों में थी और उस असंख्य जनता के भी जिसने अब तक केवल शोषण और अत्याचार का दंश झेला था।
देश की अंतरिम सरकार में आजादी की लड़ाई की भावभूमि के निर्माण में सहयोग करने वाली महात्मा गांधी की कांग्रेस के प्रतिनिधि भी थे और राष्ट्र और समाज को शिखर पर पहुंचाने का संकल्प व्यक्त करने वाले अलग-अलग वैचारिक संगठनों के प्रतिनिधि भी। पंडित जवाहरलाल नेहरू की पश्चिमी विचार वाली समाजवादी सोच के मुकाबले के लिए इस देश को एक करने और इसकी संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे व्यक्तित्व भी थे जिन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एवं अखंडता के लिए अपने स्वत्व का समर्पण करने का संकल्प लिया था। भारतीय राजनीति की सात दशकों की विहंगम यात्रा पर दृष्टि डालते हुए हम यह पाते हैं कि इस देश में लोकतंत्र स्थापना के बाद गांधी के मूल्यों से भटकी और परिवारवाद व स्वार्थ पर अवलंबित कांग्रेस पार्टी ने ही लगभग साढ़े पांच दशक से अधिक समय तक सत्ता भोगी। सत्ता के एकाधिकार और तानाशाही वृत्ति ने धीरे-धीरे कांग्रेस को भ्रष्टाचार का पर्याय बना दिया।
दूसरी ओर रा. स्व. संघ के संस्कारों में पल्लवित और इससे प्रभावित स्वयंसेवक व कार्यकर्त्ता सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहे। इस क्रम में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख औरअटल बिहारी वाजपेयी जैसे सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के नेतृत्व वाले जनसंघ ने भारतीय लोकतंत्र में प्रभावी विपक्ष का विकल्प प्रस्तुत किया। इस धारा के साथ जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के प्रभाव से जन्मे कुछ समाजवादी समूह राजनीतिक समूह के रूप में उभरे और कांग्रेस के समक्ष विपक्ष की भूमिका निभाने लगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के व्रती स्वयंसेवकों ने अपने संस्कारों के माध्यम से समाज और राजनीति में शुचिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल के माध्यम से देश को घने अंधकार में धकेलने की परिणति 1977 में जनता पार्टी के सत्तासीन होने के रूप में दिखाई पड़ती है जो भारत में लोकतांत्रिक सुदृढ़ता और राजनीतिक परिदृश्य को बदलने का उदाहरण बनी। इस दौर में भारत में वामपंथी दलों का उभार हुआ लेकिन खोखले सिद्धांतों और सत्ता प्रतिष्ठानों को कब्जाने के लिए देश को भी गौण बनाने की सोच वाले ये दल तब भी और अब भी एकाध राज्यों में क्षेत्रीय दलों की हैसियत से ज्यादा नहीं पा सके। यह सच है और आज वामपंथी केवल एक राज्य तक सीमित हो गये हैं। इसी तरह जेपी आंदोलन से उपजे राजनीतिक कार्यकर्त्ता कुनबों और धड़ों में बंट गए हैं।
जनसंघ और जनता पार्टी के आंदोलनों से उपजी सामूहिक ताकत 1980 में एक बड़ा लोकतांत्रिक प्रतीक बनी। यह भारतीय जनता पाटी के रूप में देश के राजनीतिक क्षितिज पर अपने राष्ट्रवादी विचार और अंत्योदय के व्यापक लक्ष्य को लेकर बढ़ी। सुपरिणाम यह रहा कि साढ़े तीन दशक की अपनी विकास यात्रा में कोटि-कोटि कार्यकर्ताओं के सहयोग और लोकप्रिय नेताओं के नेतृत्व में आज भाजपा अग्रणी स्थान पर है। देश के सत्तर वर्ष की स्वतंत्रता की यात्रा में एक लोकप्रिय जनमत पाने वाली सरकार का मुख्य उद्देश्य यही है कि वह जनता के प्रति समर्पित हो। यही लोकतांत्रिक राजनीति की परिपक्वता का संकेत है।
सरकार की विकास की यात्रा तब तक दीर्घजीवी नहीं कहला सकती जब तक कि इसे ईमानदारीपूर्वक मजबूत नीति नियोजन के साथ संचालित न किया जाए। 2014 के लोकसभा चुनावों की ऐतिहासिक विजय के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गठित केंद्र सरकार ने दो वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है। देश की जनता के लिए व्यापक और दूरदर्शी नीति के साथ श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में यह सरकार व्यापक कार्य कर रही है। सरसरी तौर पर यदि कहा जाए तो कम से कम पांच ऐसी प्रमुख नीतियां/ कार्ययोजनाएं हैं जिन्हें मोदी सरकार द्वारा विभिन्न मोर्चों पर प्राप्त विशेष उपलब्धियों के रूप में गिना जा सकता है। सरकार की इस नीति में सबसे अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के कल्याण के प्रति संवेदनशील होना, केवल लोकप्रियता के लिए घोषणा न करना, संपर्क और संवाद के माध्यम से जनसहभागिता पर जोर, ढांचागत व्यवस्थाओं का मजबूती से क्रियान्वयन और अंत में भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन सुनिश्चित करने के साथ बेदाग व आरोपमुक्त छवि आदि प्रभावी कार्यशैली के उदाहरण हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सत्तारूढ़ होते ही सबसे पहले यह घोषणा की थी कि उनकी सरकार गरीबों के लिए समर्पित है। गरीबी और अभाव को दूर करने के लिए केवल खोखलें नारों की नहीं बल्कि गरीबों की संवेदनाओं से भावात्मक जुड़ाव की जरूरत होती है। प्रधानमंत्री द्वारा किये गये कई छोटे-बड़े कार्य उनकी संवेदनशीलता व सक्रियता के प्रमाण हैं। प्रमुख रूप से उज्जवला योजना के अंतर्गत एक गरीब महिला को रसोई के धुएं से मुक्त कर उसके स्वास्थ्य की रक्षा का व्यापक भाव है, इसी प्रकार स्वच्छता उद्यमी योजना जहां मैला ढोने की अमानवीय प्रथा को दूर करने का संकल्प है वहीं वैकल्पिक स्वरोजगार के अवसरों के लिए खुला आमंत्रण भी है। इसमें मुख्य रूप से दो चीजों पर ध्यान दिया गया है। विकास योजनाओं का लाभ पहले ऐसे समूहों को उपलब्ध कराया जा रहा है जिनकी पहुंच इन तक कभी नहीं थी। स्वच्छता उद्यमी योजना का लक्ष्य सीधे तौर पर इस अपमानजनक कार्य से मुक्ति पाकर उन्हें एक सम्मानित, स्वस्थ और प्रसन्नचित जिंदगी सुलभ करवाना है।
मोदी सरकार द्वारा पहली बार नई फसल बीमा योजना की शुरुआत की गयी है, जो न केवल किसान को उसकी फसल सुरक्षा की आश्वस्ति देती है बल्कि जीवनभर उसकी फसल की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भरोसा भी। अब एक किसान के पास उसकी अपनी स्थाई संपत्ति रहेगी चाहे वह खड़ी फसल हो या परिवहन के माध्यम से भेजे जाने वाले खाद्यान्न। सरकार की योजनाओं के तहत इन सभी का बीमा होगा। इसके साथ ही 2015 में सरकार द्वारा शुरू किया गया अभियान 'एक्सेसिवल इंडिया' बहुत् ा दूरगामी प्रभाव वाला है। ऐसे अभियान ऐतिहासिक और बड़े लक्ष्य वाले दीर्घकालिक अभियान है जो सरकार की योजनाओं को जनता तक सीधे पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा प्रत्येक स्तर पर चुने जनप्रतिनिधियों की सहभागिता सुनिश्चित करना शामिल है। अपने विशेष अभियान में विभिन्न प्रकार के दिव्यांगों के लिए अंग वितरण का कार्य एक बड़ी उपलब्धि है। जयपुर जैसे शहर में पैर आदि अंग उपलब्ध करवाने के ऐसे शिविरों की संख्या का बढ़ना बड़ी उपलब्धि है। ये शिविर 105 की औसत से वर्ष भर में 1800 तक की संख्या पार कर रहे हैं। यह एक सच्चाई है कि जब एक शीर्षस्तर का नेतृत्व किसी ध्येय के लिए समर्पित होकर निरन्तर कार्य करता है तो यह एक बड़ी प्रेरणा का कारक बन जाता है।
स्वाधीनता प्राप्ति के 70वें पायदान पर राजनीति के क्षेत्र में आज हमें लक्ष्य में शुद्धता दिखायी दे रही है। लोकप्रिय निर्णयों के स्थान पर सरकार धैर्य के साथ देशहित के दीर्घकालिक कार्यक्रम तय कर रही है। पेट्रोलियम उत्पाद मूल्यों के विनियमन, रेलवे बजट में नई रेलगाडि़यों और रेलमार्गों की घोषणा मात्र की औपचारिकता में सुधार करने बॉयोमेट्रिक उपस्थिति को तेजी से लागू करने और ऐसे ही कई उपायों के साथ एक नई कार्य संस्कृति गढ़ने के कई ऐतिहासिक कार्य कर रही है। इसके साथ ही मोदी सरकार का मुख्य ध्यान अभावग्रस्तों, वंचितों और गरीबों के सशक्तिकरण पर है। सरकार इनके लिए प्रभावी योजनाएं घर बैठे सुलभ कर रही है, जरूरी है कि इसका प्रत्यक्ष लाभ इनको प्राप्त हो।
मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था और व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र में प्रभावी तरीके से ढांचागत सुविधाओं को उपलब्ध करवाने के साथ इनके सफल क्रियान्वयन के लिए विभिन्न स्थानों पर इनकी गति को आंकने के लिए प्रभावी मशीनरी का प्रयोग कर रही है। बिना स्व-साक्ष्यांकन के अधिकार के मोदी सरकार कई स्तरों पर नागरिकों को व्यापक रूप से अपने कार्यक्रमों और नागरिकों की सक्रियता से जोड़ रही है। मुद्रा, स्टार्टअप और स्टैंडअप जैसी कई सरकारी योजनाएं हैं जिनके माध्यम से सरकार ने सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने का अद्वितीय काम किया है। डॉ. भीमराव आंबेडकर का सपना था वंचित और दलित युवाओं को स्वावलंबी उद्यमी बनाना, आज ये युवा नौकरी चाहने वाले न होकर स्वाभिमान के साथ कई लोगों को नौकरी देने वाले बन रहे हैं। ऐसा तभी संभव होता है जब रचनात्मकता के साथ समर्पण का भाव जुड़ता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी यह अच्छी तरह जानते हैं कि लोगों द्वारा सुशासन में लोकप्रिय भागीदारी सरकार के स्वामित्व आधार को और व्यापक बनायेगी। प्रधानमंत्री ने पुरानी शैली की रस्म अदायगी और 'राष्ट्र के नाम संदेश' तक सीमित आकाशवाणी को भी समय के अनुसार व्यापक उपयोगी बनाया है। प्रधानमंत्री के द्वारा 'मन की बात' को उच्च मूल्यों के प्रसार के साथ जनहित की व्यापक पहुंच का प्रमाण कहा जा सकता है। केन्द्र सरकार द्वारा संचालित 'माई-गोव.' भी ऐसी ही एक सफल पहल है। पेट्र्रोलियम मंत्रालय का 'गिव इट अप' अभियान एक मील का पत्थर है जो यह बताता है कि किस प्रकार प्रधानमंत्री की प्रेरणा से एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन हुआ है। लाखों लोगों ने अपनी गैस सब्सिडी उन लोगों के लिए छोड़ दी जो अभाव में हैं और अभी तक इन सुविधाओं के लाभ से वंचित वंचित थे।
स्वाभाविक रूप से किसी भी सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों का जितना बड़ा उद्ेश्य होगा असली प्रश्न उनके क्रियान्वयन के समय उपस्थित होगा। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में लोकप्रिय बहुमत प्राप्त करने के बाद अपने दो वर्ष के कार्यकाल में मोदी सरकार निरन्तर सक्रिय और पूरी तरह से किसी भी प्रकार के आरोपों से मुक्त सरकार है। सरकार के मंत्रियों ने उन सभी विभागों का प्रभावी ढंग से संचालन किया है जिन्होंने तीन वर्ष पहले व्यापक भ्रष्टाचार के चलते भरपूर बदनामी पायी थी। आज सरकार के मंत्रियों ने एक बेदाग कार्य संस्कृति निर्माण का काम किया है। प्रधानमंत्री ने जो रास्ता दिखाया उसी पर सहयोगी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर सक्रिय हैं। वे जानते हैं कि सरकार का नेतृत्व ऐसा व्यक्तित्व कर रहा है जो उनकी समस्याओं का हल भी निकालेगा और देशहित में उनको एक अच्छी दिशा में ले जाने का काम भी करेगा। देश के लोकतंत्र के लिए कई आश्चर्यों में एक विशेष बात यह भी है कि अतीत में कभी विभागीय सचिवों और राज्य के मुख्य सचिवों का प्रधानमंत्री के साथ नियमित रूप से कोई संवाद नहीं हुआ लेकिन अब उन्हें अपनी प्रगति रिपोर्ट को जमा करने के साथ अंतर्विभागीय मुद्दों पर प्रश्नों के जवाब देने के लिए भी तैयार रहना पड़ता है। पुन: यही तथ्य है कि सरकार के प्रतिनिधि और प्रशासन तंत्र के कार्य और उसकी प्रगति की गति के प्रवाह पर जोर दें। आज मंत्री व्यक्तिगत रूप से बातचीत करते हैं और संवाद और चर्चा के माध्यम से अनावश्यक औपचारिकताओं की प्रतीक्षा किए बिना एक दूसरे के साथ समस्या का उचित समाधान निकालते हैं।
आजादी के सत्तर वर्षों की राजनीतिक यात्रा के आकलन में आज जब हम स्वयं को पा रहे हैं तो लोकतंत्र के शोधार्थी और राजनीति के जानकार भी इस बात से सहमति जताएंगे कि केवल नारों और आश्वासनों की लोकप्रिय राजनीति के दिन अब लद गये हैं और जनता को गुमराह कर सीमित वोट बैंक से जनमत नहीं पाया जा सकता।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी राजनीति की अब तक विद्यमान विसंगतियों को दूर करने के लिए कुछ व्यवस्थित परिवर्तनों के पक्षधर हंै। प्रधानमंत्री समाज और देश के विकास के लिए एक साथ चुनाव कराने को सबकी राय के साथ क्रियान्वित करना चाहते हैं। यदि यह क्रांतिकारी लोकतांत्रिक सुधार संभव हो पाता है तो मोदी सरकार की उपलब्धियों में यह भी एक बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। -डॉ. विनय सहस्रबुद्धे
(लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और लोक नीति शोध केन्द्र के निदेशक हैं)
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