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देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन के रूप में श्रमिकों के कर्त्तव्य व अधिकार की बात करने वाला श्रमिक संगठन है- भारतीय मजदूर संघ। भारतीय मजदूर संघ अपनी स्वर्णिम यात्रा के 60 वर्ष पूर्ण कर चुका है। देशभर में हुए सैकड़ों आयोजनों के परिप्रेक्ष्य में पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक सूर्य प्रकाश सेमवाल ने भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री श्री कृष्णचंद्र मिश्रा से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-
भारतीय मजदूर संघ की स्थापना किन उद्देश्यों को लेकर हुई एवं उस समय के प्रारंभिक पदाधिकारी कौन थे?
भारतीय मजदूर संघ की स्थापना का मुख्य ध्येय था- राष्ट्रहित की चौखट पर उद्योग एवं श्रमिक हित की संकल्पना- 23 जुलाई, 1955 से भारतीय मजदूर संघ का कार्य प्रारम्भ तो हुआ था, किन्तु 1967 तक कोई कार्यसमिति गठित नहीं हुई थी। 1967 में भारतीय मजदूर संघ का प्रथम अधिवेशन सम्पन्न हुआ, जिसमें श्री दादा साहब काम्बले अध्यक्ष एवं श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी महामंत्री के रूप में चुने गए और बाला साहब साठे को कोषाध्यक्ष एवं कार्यालय मंत्री का दायित्व सौंपा गया। केन्द्रीय कार्यालय मुम्बई था।
एक आदर्श श्रमिक की संकल्पना उस समय क्या थी?
एक आदर्श श्रमिक की संकल्पना अतीत में जो थी, वही वर्तमान में है, भविष्य में भी वही रहेगी। भारतीय मजदूर संघ उसी आदर्श संकल्पना को स्वीकार करते हुए आज भी चल रहा है। उद्योग के प्रति कर्तव्यनिष्ठा तथा राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव।
मजदूर संघ की स्थापना के उस दौर में साम्यवादी यूनियनों का वर्चस्व था, संघर्ष झेलना पड़ा होगा और अपनी विशेष पहचान के लिए परिश्रम भी ?
भारतवर्ष में जब भारतीय मजदूर संघ का उदय हुआ तब केवल साम्यवादी ही नहीं, अपितु समाजवादी एवं कांग्रेस समर्थित मजदूर संघों का वर्चस्व था। उस समय माननीय ठेंगड़ी जी जैसे व्यक्तित्व को भी किसी उद्योग, कल-कारखाने के द्वार पर खड़ा नहीं होने दिया जाता था। इसलिये उन्हें कम्युनिस्टों एवं कांग्रेस समर्थित श्रमिक संघों में परम पूजनीय श्री गुरुजी के परामर्श पर कार्य करना पड़ा। यहां तक कि ठेंगड़ी जी ने (इंटक यूनियन म़प्ऱ) के प्रदेश संगठन मंत्री की हैसियत से भी कार्य किया। साम्यवादियों की एक यूनियन में राष्ट्रीय सचिव के पद का निर्वहन किया। 1963 के मुम्बई बंद के दौरान सारे संगठनों का कार्य करते हुए भी ठेंगड़ी जी को संयुक्त पंच पर बैठने नहीं दिया गया। समाजवादी नेता नाना साहेब गोरे एवं साम्यवादी श्रीपाद अमृत डांगे ने यह कहकर संयुक्त मंच पर जाने से इनकार कर दिया कि यदि श्री ठेंगड़ी मंच पर रहेंगे तो हम मंच पर नहीं जायेंगे। परिस्थिति को देखते हुए ठेंगड़ी जी ने प्रस्तावना के बाद उस सभा की अध्यक्षता करने के लिये श्री नाना साहेब गोरे एवं वक्ता के नाते श्री डांगे को आमत्रंण देकर मंच छोड़ दिया और वे नीचे आ गये। इस प्रकार की प्रताड़ना एवं तिरस्कार भी प्रारम्भिक स्तर पर भारतीय मजदूर संघ को झेलना पड़ा है।
60 वर्ष की यात्रा में आज संगठन का स्वरूप और व्याप कहां तक पहुंचा है, कुछ ऐसे मील के पत्थर जो इस लम्बी यात्रा में पार किये हों?
1955 से लेकर 1974 (दो दशक) तक भारतीय मजदूर संघ को इस नाते अपनी पहचान बनाने में समय लग गया। इन्हीं दो दशकों के मध्य पहला राष्ट्रीय अधिवेशन 1967 में दिल्ली में (5 लाख से ज्यादा की सदस्यता एवं 12 अखिल भारतीय महासंघों के गठन के साथ) सम्पन्न हुआ। भारतीय मजदूर संघ का इस प्रकार से गठन, अन्य श्रमिक संघों से भिन्न था। 1920 में एआईटीयूसी का गठन उस समय की सारे यूनियन को मिलाकर हुआ। 1942 में कम्युनिस्टों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। बाद में 1945 में सरदार बल्लभभाई पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एआईटीयूसी को तोड़कर तथा सारे कांग्रेसियों को लेकर आईएनटीयूसी (इंटक) का निर्माण/गठन किया। 1948 में आइएनटीयूसी से समाजवादी गुट ने अलग होकर एचएमएस का निर्माण किया। 1949 में क्रान्तिकारी समाजवादियों ने अपने को एचएमएस से पृथक कर यूटीयूसी का गठन किया। लेकिन भा.म.सं. शून्य से प्रारम्भ होकर तथा बिल्कुल भिन्न तरीके से गठित होकर आज शिखर पर पहुंचा है। इसी दौरान 1969 में भा.म.सं. ने अपना प्रथम मांग- पत्र महामहिम राष्ट्रपति को सौपा। इसमें सारे श्रमिक जगत के मजदूरों के हित का सब प्रकार का समावेश किया गया था। सभी वेतनभोगियों को बोनस (विलम्बित वेतन के नाते) मिलना चाहिये यह बात भारतीय मजदूर संघ ने कही थी, जिसको 1978 में लागू किया गया। इस मांग पर कम्नुनिस्टों ने हमारी खिल्ली उड़ाई थी। 1970 के दशक में सरकार ने महंगाई भत्ते में गड़बड़ी की थी जिसे श्री मनहर भाई मेहता ने पकड़ा तथा सरकार को जोड़ने का सुझाव दिया जिससे करोड़ों मजदूरों को फायदा हुआ। 1975 में आपातकाल की भारतीय मजदूर संघ ने पुरजोर खिलाफत की थी तथा श्रीमती 'इंदिरा गांधी के द्वारा उस समय बोनस को बंद कर दिये जाने के कारण से भारतीय मजदूर संघ के नेतृत्व में लाखों मजदूरों ने सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तारी दी थी। फलस्वरूप बाद में बोनस पुन: बहाल हुआ एवं श्रमिकों को इसका भुगतान मिलना प्रारम्भ हुआ। तीसरे एवं चौथे दशक में भा.म.सं. ने आईएमएफ तथा जीएटीटी के खिलाफ प्रचंड राष्ट्रव्यापी संघर्ष छेड़ा था जिसके चलते ही डब्ल्यूटीओ आज कोमा में है एवं आज स्वतंत्र व्यापार समझौते की दिशा में अपना देश आगे बढ़ रहा है, इसके लिये भी हम संघर्षरत हैं। इन्हीं दो दशकों में पहले भा.म.सं. ने दूसरा स्थान (1983 में) तथा 1996 एवं 2002 में सदस्यता सत्यापन में देश में प्रथम स्थान अर्जित किया। इसी के साथ यह जनतांत्रिक देशों में श्रमसंगठनों की श्रृंखला में दुनिया में पहला स्थान बनाने में सफल रहा है। आज एसीएफटीयू भी हमसे सदस्यता की दृष्टि में एकमात्र बड़ा दुनिया का श्रमसंघ है। इसका भी कारण यह है कि चीन में एक ही श्रमसंघ संचालित है और यहां प्रजातंत्र नहीं है। छठवां दशक यह, विजय का दशक है। जब अन्यान्य संगठन बिना हमारी सहायता के मजदूर जगत में अपने आप को असहाय महसूस करते हैं एवं बिना भा.म.सं. के वे मजदूर हित की कल्पना नहीं कर सकते।
क्या विदेशों में भी भारतीय मजदूर संघ की इकाइयां सक्रिय हैं।
़सिर्फ नेपाल में भारतीय मजदूर संघ की प्रेरणा से राष्ट्रीय श्रमिक संघ नेपाल चल रहां है, यद्यपि यह अपनी शाखा नहीं है।
भारतीय मजदूर संघ के विषय में माना जाता है कि यह व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाता है, क्या यह सच है ?
यह सम्पूर्ण सत्य है। भारतीय मजदूर संघ की मान्यता है कि जनतांत्रिक पद्घति से चुनी हुई सभी सरकार हमारी सरकार हैं। हम किसी पार्टी विशेष से संलग्न नहीं। जो सरकार मजदूर हित के लिये कार्य करती है हम उसका स्वागत करते हैं, जो सरकार मजदूरों का विरोध करती है, हम उसके खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं। सारी व्यवस्था ठीक हो इस हेतु अव्यवस्था के खिलाफ हर समय आवाज उठाते रहते हैं।
आज के परिदृश्य के मद्देनजर मजदूर हित के कौन-कौन से मुद्दे आपके एजेण्डे में हैं?
आज के परिदृश्य में केन्द्र सरकार और अलग-अलग राज्य की सरकारों की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ भारतीय मजदूर संघ संघर्षरत है। केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 11 अलग-अलग क्षेत्रों में शत प्रतिशत एफडीआई तथा विनिवेश के खिलाफ हम आवाज उठाते रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा वर्तमान में लेवर लॉ रिफॉर्म के नाम पर सारी मजदूर विरोधी व्यवस्था चलाई जा रही है। भा.म.सं. इसका भी पुरजोर विरोध करता है। विदेशियों के लिये सम्पूर्ण भारतीय बाजार खोल देना देशहित के खिलाफ है। इसलिये आज जो व्यवस्था विदेशियों को दी जा रही है, भा.म.सं. उसका भी विरोध कर रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारों के द्वारा की जाने वाले मजदूरों की छंटनी के खिलाफ हम आगे बढ़कर इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
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