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''संपूर्ण विश्व को एक छत्र के नीचे लाने की आकांक्षा रखने वाले कम्युनिस्ट दल की भारत में ऐसी दुर्दशा हो, यह ऊपर से देखने में आश्चर्यजनक लगता है, किन्तु वह है स्वाभाविक ही। भारत में सभी तत्वज्ञानों को सदैव पूरा अवसर मिला है। किन्तु इस बात को ध्यान में लेना होगा कि इस दल की स्थापना ही वास्तव में विश्व कम्युनिस्ट दल की भारतीय शाखा के रूप में हुई और प्रारंभ से ही रूस की विदेश-नीति के अनुकूल नीतियों पर चलना ही इस दल के भाग्य में लिखा है। भारत में कम्युनिस्ट नेताओं को स्थानीय परिस्थिति के प्रकाश में दल की रीति-नीति निर्धारित करने की छूट होती तो उनकी यह दुर्दशा इतने शीघ्र न हुई होती। कारण, दल के पास समर्थ नेतृत्व एवं समर्पित कार्यकर्ता तो थे, किन्तु रूस के पिछलग्गूपन के कारण वे स्वतंत्रतापूर्वक अपनी रीति-नीतियों को निर्धारित नहीं कर सके।'' —पं. दीनदयाल उपाध्याय
(पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन, खण्ड-1, पृष्ठ संख्या-83)
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