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-लोकेन्द्र सिंह –
अतंरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर एक बार फिर दुनिया ने भारत की प्राचीन संस्कृति के प्रति अपनी आस्था का असाधारण प्रदर्शन किया। 21 जून को विश्व के 192 देशों में एक साथ द्वितीय अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। भारत की योग विद्या पहले से ही दुनिया को आकर्षित करती रही है। लेकिन, प्रथम अंतरराष्ट्र्रीय योग दिवस से द्वितीय अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के बीच के अंतराल में योग अभूतपूर्व ढंग से लोकप्रिय हुआ है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से बीते दो वषोंर् में भारत विश्व का योग गुरु बन गया है। इस दिन सुबह चंडीगढ़ में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि योग एक बहुत बड़े कारोबार के रूप में भी विकसित हो रहा है। दुनिया के हर देश में योग प्रशिक्षकों की जरूरत है। निश्चित ही भारत विश्व की इस मांग में बेहतर तरीके से पूरी कर सकता है। भारतीय युवाओं के लिए योग ने कॅरियर की नई राह खोल दी है। हालांकि भारतीय दर्शन योग को कारोबार नहीं मानता, बल्कि योग तो जीवनशैली का एक हिस्सा है। लेकिन, वर्तमान समय में यदि योग किसी के रोजगार में सहायक हो सकता है, तब यह आनंद का विषय होना चाहिए।
एक आकलन के मुताबिक, महज एक साल के भीतर योग का सेवा-उद्योग 50 फीसदी तक बढ़ा है। योग करने वाले लोगों की संख्या में 35 फीसदी का इजाफा हुआ है। योग प्रशिक्षकों की मांग भी 35 से 40 फीसदी तक बढ़ गई है। शायद इस बढ़ती मांग को देखते हुए ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में योग की शिक्षा देने का निर्णय लिया है। अनियमित दिनचर्या और खानपान से जुड़ी रक्तचाप, मधुमेह और मानसिक तनाव जैसी बीमारियां तेजी से लोगों को अपनी चपेट में ले रही हैं। प्रधानमंत्री ने भी कहा कि देश में मधुमेह के रोगियों की संख्या में काफी तेजी से इजाफा हो रहा है। ऐलोपैथी में इस तरह की बीमारियों का कोई कारगर इलाज नहीं है। वहीं, योग अभ्यास से इन बीमारियों से पार पाया जा सकता है। बीमारी के उपचार के लिए योग करना पड़े, उससे कहीं अधिक अच्छा है कि पहले से ही शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए योग को दैनिक जीवन का हिस्सा बना लिया जाए। जैसे-जैसे दुनियाभर के लोग योग के करीब आ रहे हैं, उन्हें इसके फायदे नजर आ रहे हैं और वे योग को अपनी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बना रहे हैं। यही कारण है कि भारतीय प्राचीन योग दुनिया में स्वीकार्यता पा रहा है।
बहरहाल, विडम्बना देखिए कि एक तरफ न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय योग-मुद्राओं से रोशन है, चीन की राजधानी बीजिंग में करीब 1300 फुट की ऊंचाई पर योग अभ्यास हो रहा है और फ्रांस में एफिल टॉवर के नीच हजारों लोग सूर्य नमस्कार कर रहे हैं, तब भारत के कुछ कूपमंडूक राजनेता अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का बहिष्कार करके वोट बैंक को खुश करने के लिए अपनी सेकुलर शान बघार रहे हैं। योग के नाम पर कुछ नेताओं और प्रगतिशीलों का शरीर अकड़ गया है। ये वे लोग हैं, जो रहते तो भारत में हैं, खाते भी भारत का हैं, लेकिन जिन्हें भारत की ज्ञान-विज्ञान परंपरा पर गर्व नहीं है। जब भारत विश्व 'योग' गुरु की भूमिका में नजर आ रहा है, तब इन्हें अजीब-सी चिढ़ हो रही है। ये लोग अपने बनाए विचारों के अंधे-कुएं से बाहर देखने का प्रयत्न ही नहीं करते। अगर ये लोग आंखों पर चढ़े 'भारत विरोध' के सेकुलर चश्मे को उतारकर देखें तो शायद नजर आए कि भारत के ज्ञान को विश्व पुन: स्वीकार कर रहा है।
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