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60 वर्ष पहले पाञ्चजन्य के पन्नों से

by
Jun 27, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Jun 2016 14:38:25

वर्ष: 9  अंक: 48
25 जून ,1956

नेहरूजी सिद्ध करें

पं. नेहरू ने अपने रोहतक के भाषण में कुछ भारतीय पत्रों पर विदेशी सहायता प्राप्त होने के संबंध में जो आरोप लगाए, उनके संबंध में हम अपना मत व्यक्त न करके देश के कुछ प्रमुख पत्रों के विचार उद्धृत करते हैं। -संपादक
हिन्दुस्तान टाइम्स
''पं. नेहरू द्वारा रोहतक में यह टिप्पणी किए जाने के कारण काफी बबंडर उठ खड़ा हुआ है कि भारत के कुछ पत्रों को विदेशी सहायता प्राप्त होती है। स्वाभाविक है कि देश में कार्य करने वाला प्रत्येक कूटनीतिक मिशन चाहेगा कि उसकी स्थिति साफ कर दी जाए। यह तभी हो सकता है जबकि अपराधियों के नाम गिना दिए जाएं। इसी प्रकार भारत का समाचार पत्र जगत भी चाहेगा कि अपराधियों का नाम लेकर अन्य समाचार पत्रों की स्थिति साफ कर दी जाए।
''दुर्भाग्यवश, मामला उतना सरल नहीं है जितना ऊपर से दिखता है। यदि प्रधानमंत्री ने खुले रूप में जनता के बीच इस विषय के संबंध में चर्चा नहीं की होती तो शायद अच्छा रहता।…''
 (पोलिटिकल डायरी)
हिन्दुस्तान स्टैण्डर्ड
''हमें इस बात से अत्यंत दु:ख हुआ है कि प्रधानमंत्री ने कुछ समाचार पत्रों पर आरोप लगाया है कि वे देश में गड़बड़ी पैदा करने के लिए विदेशी शक्तियों से चुपचाप रुपया ले रहे हैं। हम यह अनुमान करते हैं कि श्री नेहरू के पास अथवा उनकी सरकार के पास ऐसे प्रमाण हैं कि जिससे वह यह सिद्ध कर सकें और यदि ऐसा है तो उन समाचार पत्रों के विरुद्ध इस समय तक क्यों कोई कार्रवाई नहीं की गई? बड़े से बड़े पत्र एक अथवा दूसरी पार्टी का समर्थन करते हुए देखे गए हैं, परंतु किसी विदेश से रिश्वत लेना बिलकुल दूसरी बात है और यदि श्री नेहरू के द्वारा लगाए गए आरोप ठीक हैं तो यह भारत के समाचार पत्रों के सम्मान पर एक बड़ा धब्बा है और हम मांग करते हैं कि सरकार के पास जो भी प्रमाण हों, उन्हें पेश करे, देशद्रोही समाचार-पत्रों के विरुद्ध कार्रवाई करे और जनता को उनके प्रति अपने कर्तव्य का पालन करने का अवसर दे।''
स्टेट्समैन
''रोहतक में भाषण करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि दिल्ली तथा पंजाब में कुछ ऐसे समाचार पत्र हैं जो विदेशी शक्तियों से रिश्वत लेकर देश में अराजकता और अशांति पैदा करना चाहते हैं। और कुछ ऐसी विदेशी शक्तियां हैं जो सहन नहीं कर सकतीं कि एशियायी देश शक्तिशाली हों जो नए-नए ही स्वाधीन हुए हैं। वे चाहते हैं कि इन देशों में अशांति फैले ताकि वे उनके मुकाबले में कमजोर हो जाएं। न तो प्रधानमंत्री ने किसी सामचार पत्र का नाम लिया है और न किसी विदेशी शक्ति का। इसलिए जब तक किसी का नाम न लिया जाए तब तक अनुमान ही लगते रहेंगे। यह भी अनुमान किया जा सकता है कि पाकिस्तान और पुर्तगाल दोनों देश यह काम करते हों। परंतु पाकिस्तान पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि वह एशियायी देशों को कमजोर कर रहा है…।

पाकिस्तान में भारत के विरुद्ध जिहाद की तैयारियां

करांची टाइम्स ने सुझाव दिया है कि भारत के विरुद्ध कश्मीर के प्रश्न को लेकर युद्ध छेड़ देना चाहिए।… टाइम्स की बौखलाहट का कारण राष्ट्र संघ के मंत्री श्री हैमरशोल्ड द्वारा हाल ही में दिया गया वक्तव्य है जिसमें उन्होंने कहा है कि कश्मीर के संबंध में तत्काल कोई बात नहीं है। टाइम्स को यह सहन नहीं कि कश्मीर का प्रश्न शांत या चिंता-हीन बना रहे। इसलिए उसका सुझाव है कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध युद्ध की स्थिति पैदा करे।
जनरल अकबर खां पुन: मैदान में
इस युद्ध की स्थिति का लाभ उठाने के लिए भी कम लोग तैयार नहीं हैं। पाकिस्तानी सेना के भूतपूर्व जनरल अकबर खां तो लियाकत अली खां हत्याकाण्ड के बाद पदच्युत होने के कारण काफी समय तक शांत रहे, अब एक नए नारे के साथ पाक-राजनीतिक मंच पर पूरे जोर- शोर के साथ उतरने वाले हैं।  उनका नारा होगा, 'मैं कश्मीर को जीतकर पाकिस्तान में मिला दूंगा।'
यह जनरल अकबर खां यही महानुभाव हैं जिन्होंने 1947 में कश्मीर पर आक्रमण करने वाली पाक-सेना का नेतृत्व किया था। उनके हृदय में पुरानी स्मृति जग गई हो और कश्मीर पर कबाइलियों को ले दौड़ने की सोचने लगे हों तो कोई अनहोनी बात नहीं। क्योंकि पाक-राजनीतिज्ञों को यदि किसी भी समस्या का हल सूझता है तो वह भारत के विरुद्ध युद्ध की घोषणा में। मानो भारत ने ही समस्त समस्याएं उत्पन्न की हों और वह इतना कमजोर हो कि जब चाहे जो चाहे उसे निगलने की सामर्थ्य रखता हो।
जनरल अकबर खां के बारे में ही नहीं कहा जाए, अल्लामा मशरिकी तथा शहीद सुहरावदी भी समय-समय पर उछल कूद करने लगते हैं।

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