विद्यांजलिअंजुरी में कल का सपना
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जीवन की शुरुआत में ही अगर अनुभवी शिक्षकों का सान्निध्य मिल जाये तो लक्ष्य पाते देर नहीं लगती। सरकार ने इसी तथ्य को ध्यान में रख विद्यांजलि योजना की शुरुआत की है। इसमें घरेलू महिलाओं से लेकर प्रवासी भारतीय तक कोई भी शामिल होकर शिक्षा का दान दे सकता है
प्रशांत बाजपेई साथ में अश्वनी मिश्र
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में गुपचुप बदलाव आ रहा है। एक क्रांतिकारी बदलाव। जिस शिक्षा को अब तक सिर्फ किताबी और रटन्तु तोते तैयार करने वाली, व्यावहारिक ज्ञान से दूर बताया जाता रहा है, उसी में अब विद्यांजलि ने नए तरह के अनुभवों का रास्ता खोला है। क्या है विद्याांजलि? यह योजना है समाज को शिक्षण संस्थानों से जोड़ने की। आम, पर गुण-संपन्न नागरिकों के स्कूली बच्चों की सर्वस्पर्शी शिक्षा में योगदान देने की और सबसे बढ़कर सेवा भाव के प्रकटीकरण की।
भारतीय शिक्षा जगत में समाज की भागीदारी का रास्ता खोलने वाली यह परिकल्पना इसलिए भी अद्भुत कही जा रही है क्योंकि यह भारत जैसे विपुल जनसंख्या वाले देश में शिक्षा और कौशल के सूत्र जोड़ने की शक्ति साबित हो सकती है। दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में गणित की प्राध्यापिका सुमन शर्मा कहती हैं, ''हमारे पास आने वाले छात्र प्रतिभा में कम नहीं होते, लेकिन उनके पास दुनिया और जीवन के विविध क्षेत्रों का अनुभव सीमित होता है। ऐसे में पेशवर लोगों का गहरा अनुभव छात्रों को नई समझ और दिशा दे सकता है।''
खासबात यह भी है कि योजना पर बहुत तेजी और बारीकी से काम किया गया है। दिल्ली स्थित संवाद विशेषज्ञ सुभाष सूद इसे ऐसी पहल मानते हैं जिसका जनमानस पर गहरा असर रहने वाला है। उनके अनुसार, ''सकारात्मक कार्यक्रमों की रूपरेखा गढ़कर, उससे जुड़े तमाम पहलुओं पर विचार करके, सभी राज्यों से सलाह-मशविरा करके और सभी विशेषज्ञों के सुझावों को समेटते हुए किसी योजना के देशव्यापी फैलाव के साथ आहिस्ता से इस तरह सामने आने का अनुभव अनोखा है। इसका असर और चर्चाएं जलदी ही दिखने लगेंगी।''
सरकार ने वित्त के क्षेत्र में शुरू की जनहितकारी योजनाओं की तरह ही शिक्षा क्षेत्र की इस महत्वाकांक्षी योजना की ठोस तैयारी की है। इसके अंतर्गत किसी विषय, कला की किसी विधा या किसी भाषा में प्रवीणता रखने वाला आम नागरिक अपनी भावना से स्थानीय स्कूल में जाकर बच्चों को अपनी तज्ञता का लाभ दिला सकता है, बच्चों में उस आयाम के प्रति दिलचस्पी बढ़ा सकता है, किसी विषय में उस कमजोर बालक को अतिरिक्त पढ़ाई करा सकता है जिसके माता-पिता गरीब हों, उनके पास ट्यूशन के पैसे न हों। लेकिन इस सेवाभाव के लिए किसी तरह के मानदेय का न होना अच्छा है इस मायने में कि सेवा के पीछे पैसे कमाने का भाव वैसे भी नहीं होता। कोई कमाई के लिए थोड़ी जुड़ेगा स्कूलों से। वह तो अपना समय देकर अपने ज्ञान को बांटने के लिए जुड़ेगा। शायद यही वजह थी कि योजना के उद्घाटन के दिन ही मध्य प्रदेश के शिक्षा सचिव के पास 12,000 लोगों ने अपने नाम दर्ज करा दिए थे इस सेवा दान के लिए। केन्द्र के विचार को 21 राज्यों ने हाथोंहाथ स्वीकारा है और अपने यहां काम शुरू भी कर दिया है। केंद्र सरकार द्वारा लाई गई विद्यांजलि योजना के संदर्भ में सामान्य नागरिकों से लेकर विषय विशेषज्ञों तक सभी लोग सकारात्मक हैं। इस योजना के अंतर्गत उन नागरिकों के लिए दरवाजे खुल गए हैं जो अपने आस-पास के विद्यालय के बच्चों का किसी विषय विशेष में हुनर निखारना चाहते हैं और इसके लिए कुछ समय देना चाहते हैं। लोग प्रेरित हो रहे हैं।
विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञों, शिक्षा में योगदान के इच्छुक लोगों की पढ़ाई से इतर गतिविधियों में भी सहभागिता का रास्ता खुलेगा। ताकि शिक्षा के अतिरिक्त इतर गतिविधियों और विशेषज्ञ अनुभवों का लाभ मिल सके सरकारी स्कूलों के छात्रों को।
योजना का उद्देश्य
सरकारी स्कूलों में बच्चों को प्रेरित करना, उनमें प्रतिभा का विकास करना और विभिन्न क्षेत्रों के बारे में उन्हें ठीक ढंग से जानकारी प्राप्त कराना। छात्र विभिन्न क्षेत्र के लोगों से मिलेंगे, उस क्षेत्र के बारे में जानेंगे तो उनके अंदर उस क्षेत्र के बारे में रुचि बढ़ेगी, साथ ही उस क्षेत्र के बारे में वह अधिक से अधिक जान पाएंगे। हो सकेगा व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास।
क्या कोई मानदेय भी सरकार की ओर से मिलेगा?
यह पूरी तरह से स्वैच्छिक सेवा है। सरकार किसी भी तरह का वेतन/मानदेय नहीं देगी। साथ ही जो भी लोग यहां पढ़ाने आएंगे वह स्कूल के प्रधानाचार्य द्वारा दिए गए समय में और विद्यालय प्रशासन की देखरेख में छात्रों को सिखाएंगे।
इस योजना में किन-किन क्षेत्रों के लोग अपनी सेवाएं दे सकते हैं।
किसी भी क्षेत्र के अनुभवी लोग वह सेवानिवृत्त शिक्षक हों, सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त, घरेलू महिला सहित हर कोई योजना से जुड़कर समाज का सहयोग कर सकते हैं।
कितने विद्यालयों में कब से लागू
शुरुआती तौर पर 21 राज्यों में देश के 2200 स्कूलों में 16 जून से लागू की गई है। दिसंबर के अंत तक सभी सरकारी स्कूलों में लागू होगी योजना।
छत्तीसगढ़ की बिंदु शर्मा कहती हैं,''आज शिक्षकों की कमी से स्कूलों में बच्चों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता जिसके कारण वे आगे का कुछ सोच ही नहीं पाते। सरकार के इस प्रयोग से हम जैसे लोगों को न केवल पढ़ाने का अवसर मिलेगा बल्कि शासकीय स्कूलों की हालत और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आयेगा।''
उत्तर प्रदेश निवासी पूर्व सैनिक मनोज पाण्डेय उत्साहित हैं। वे कहते हैं,''मेरे जैसे बहुत से लोग हैं जो सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने अनुभवों को आने वाली पीढ़ी में बांटना चाहते हैं। मैं केन्द्र सरकार का बड़ा ही शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने हम जैसे अनेक लोगों को यह स्वर्णिम मौका दिया।''
मनोज पाण्डेय की बात महत्वपूर्ण है। एक सैनिक जिसे सेना में लंबा प्रशिक्षण मिला है, जानता है कि कैसे आत्मानुशासन और प्रशिक्षण, सफलता दिलाते हैं। विपरीत परिस्थितियों में दबाव झेलते हुए निर्णय कैसे लिए जाते हैं और कैसे समन्वय सबकी सांसों की डोर थामे रखता है। लाखों की संख्या में मौजूद हमारे पूर्व सैनिक यदि अपने आस-पास के विद्यालयों से जुड़ जाएं तो नयी पीढ़ी को कितना कुछ दे सकते हैं।
इन सबको सुनकर कहा जा सकता है कि हमारे कितने ही देशवासियों में देश के लिए कुछ करने, छोटा-छोटा योगदान देने की इच्छा है। उनके इस मनोभाव को पहचानकर उसका उपयोग करने की योजना एक अहम फैसला है। और शिक्षा के प्रति समाज में रचनात्मक जुड़ाव पैदा करना एक वास्तविक लक्ष्य है।
योग्य व्यक्तियों से समाज का कटाव किसी राष्ट्र की बड़ी कमी कहलाती है। इसका नुकसान दोतरफा होता है। आपने कभी राह किनारे किसी बड़े वृक्ष को देखकर इस टीस का अनुभव किया होगा कि उसके आस-पास कोई छोटा पेड़ नहीं है जो भविष्य में उसकी जगह को भर सके। विद्यांजलि योजना पीढि़यों के साथ छीजते ज्ञान के अनजान स्रोतों को सहेजने में भी कारगर हो सकती है। तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय में व्याख्याता निखिल गौड़ा कहते हैं, 'आज से दो वर्ष पहले एक छोटे शहर में व्याख्यान के दौरान मेरा ध्यान एक वयोवृद्ध व्यक्ति की ओर गया। वे बड़े ध्यान से सुन रहे थे। बाद में वे मेरे पास आए और बोले, क्या आप कुछ देर के लिए मेरे घर चलेंगे ? मैंने हामी भरी। रास्ते में हुई बातचीत में मुझे समझ आया कि वे भारत के जनजातीय इतिहास और पुरातत्व के गहरे जानकार थे। भारत सरकार द्वारा विभिन्न विषयों पर उनकी 25 पुस्तकों का प्रकाशन किया गया था। उन्होंने मुझे अपनी लिखी तीन पुस्तकें बड़े स्नेह से भेंट कीं। पृष्ठ उलटे तो पाया कि उन्हें बड़ी मेहनत से, गहरी अंतदृर्ष्टि के साथ लिखा गया था। उनका पास-पड़ोस उनकी योग्यता से अनजान था। ख्याल आया कि ऐसे कितने ही रत्न मुहल्ले -कूचों में छिपे पड़े होंगे जिन्हे लोग जानते नहीं या बिसरा चुके हैं। कितने ही अर्थशास्त्री, कला मर्मज्ञ, विज्ञान के जानकार, गणित- इतिहास-भूगोल पर पकड़ रखने वाले, जिनके ज्ञान को ग्रहण करने वाला कोई नहीं है। घुटन तो उन्हें भी होती होगी।''
इस योजना के सफल होने की आशा की जा सकती है। क्रियान्वयन अच्छी तरह हुआ तो लाभान्वित होने वाले सिर्फ बच्चे नहीं होंगे, बल्कि यह दो पीढि़यों, दो संभावनाओं के बीच आदान-प्रदान का मंच बन सकता है।
उम्मीद है कि यह योजना सार्थक सिद्ध होगी। समाज में शिक्षा पर निरंतर और वास्तविक चर्चा हो सकेगी। नयी पीढ़ी हमारे द्वार पर खड़े होकर विद्या का दान मांग रही है। दशकों एक ढर्रे पर चलने के बाद शिक्षा नीति की नई कोपलें फूटने लगी हैं।
हुनर को साबित करने का मौका
मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि यह स्वयंसेवा है। इसे शिक्षकों की औपचारिक भर्ती से अलग माना जाएगा। सेवा देने वाले लोगों पर मुख्य पाठ्यक्रम की जिम्मेदारी नहीं होगी।
कोई भी हो सकता है शामिल
जो लोग अपने गांव और आस-पास के सरकारी स्कूलों के छात्रों को पढ़ाई में या उनके व्यक्तित्व के विकास में मदद करना चाहते हैं, वह इसमें शामिल हो सकते हैं। इसमें पढ़ी-लिखी महिला, घरेलू महिला से लेकर आप्रवासी भारतीय तक शामिल हो सकते हैं। सेवानिवृत्त शिक्षक, सरकारी कर्मी और सैन्यकर्मियों को खासतौर पर इसमें शामिल करने किया गया है।
जिन लोगां का स्कूलों में पढ़ाने का सपना है, वह विद्याजंलि योजना के माध्यम से पूरा होने वाला है। स्कूलों में बच्चों को प्रायोगिक ज्ञान तभी मिल पायेगा जब वे अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े लोगों के अनुभव को पाएंगे। अपने-अपने क्षेत्र के महारथी लोग अपनी विधा में पारंगत होते हैं। उनके अनुभव पाकर बच्चों को सीखने का अवसर मिलेगा। क्योंकि आज के समय के बच्चों में सीमित क्षेत्र की ओर रुझान देखने को मिलता है जैसे- डॉक्टर और इंजीनियर। कभी-कभी ऐसा लगता है कि इसके आगे सोचने की शक्ति ही खत्म हो गई है। ऐसे समय में इस योजना से उनके सोचने की शक्ति बढे़गी और वे कुछ अलग हटकर कर पाएंगे।
— सार्थक चतुर्वेदी, अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय,
हम जैसे लोग जो सेना से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उन्हें बराबर लगता है कि वे अपने समाज के लिए कुछ न कुछ जरूर करें। हम अनुभवी लोग जब बच्चों से मिलेंगे तो बच्चों की देश के बारे में जानने और समझने की क्षमता में विकास होगा। साथ ही जब बच्चे पढ़ ही रहे होते हैं तो उनके अंदर सेना में जाने का जज्बा आता है। लेकिन उनको सही रास्ता बताने वाला नहीं मिल पाता। इससे देश उनकी प्रतिभा से वंचित रह जाता है। मैं सरकार को बड़ा धन्यवाद देता हूं कि उसने इस तरह की योजना लागू करके हम जैसे लोगों को फिर से देश और समाज की सेवा का मौका दिया है।
— एस.के.पाण्डेय, सेवानिवृत्त डिप्टी कमाडेंट, सी.सु.बल, भोपाल
देश को उच्च शिखर पर ले जाने के लिए लगातार प्रयासों की कड़ी में अगला कदम। विद्यांजलि योजना का ध्येय यही है। केन्द्र सरकार ने ऐसे अनुभवी लोगों को जो समाज की सेवा करना चाहते हैं, इस योजना के माध्यम से एक मौका दिया है।आज समाज को अच्छी शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। जिस दिन सभी शिक्षित हो जाएंगे उस दिन देश की अधिकतर समस्याओं का समाधान हो जाएगा। मैं इस योजना की प्रशंसा करता हूं। साथ ही समय मिलने पर मैं भी इसमें पूरा योगदान दूंगा। —मनोज कु मुक्केबाज (हरियाणा)
केन्द्र सरकार ने 16 जून को जब इस योजना की शुरुआत की तो हम जैसे हजारों-हजार लोगों को सुनकर बड़ा अच्छा लगा। सरकार की इस योजना से हमारे जो अनुभव हैं वे बच्चों तक पहुंचेंगे। क्योंकि चित्रकला का काम बड़ी ही मेहनत और लगन से आता है और अगर हम जैसे लोग शासकीय स्कूलों में जाएंगे तो जरूर इन विद्यालयों से प्रतिभाएं निकलेंगी और बच्चों का कला के प्रति रुझान बढ़ेगा। आज जो हम देखते हैं अजंता-एलोरा,खुजराहो और सूर्य मंदिर में चित्रकला वह सभी कुछ बड़े ही अनुभवी लोगों द्वारा बनाई गई है।
— बैजनाथ सर्राफ, चित्रकार,खंडवा (म.प्र.)
सरपंच होने के नाते मुझे बड़ी खुशी है कि इस योजना के लागू होने के बाद सरकारी स्कूलों में अब बड़ा परिवर्तन आने वाला है। हमारे बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों द्वारा शिक्षा देने की आवश्यकता है। दूर-दराज के इन विद्यालयों में पढ़ने के बाद वहां के बच्चों की प्रतिभा दबी रह जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि उन्हें उचित मार्गदर्शन देने वाला कोई नहीं होता। बच्चों की रुचि जिसमें हो अगर उसी की शिक्षा मिल जाए तो बहुत आगे तक जा सकते हंै। आज के समय में पढ़ाई तो महत्वपूर्ण है ही लेकिन अनुभव उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है और हमारी आने वाली पीढ़ी को इन अनुभवी लोगों से पढ़ने को मिलेगा तो शायद यह उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होगा। —भक्ति शर्मा, युवा सरपंच, बरखेड़ी अब्दुल्ला, भोपाल
इस योजना से स्कूलों में जो नौनिहाल पौध तैयार हो रही है, उसका भविष्य सुधरेगा। मेरा एक सपना इस योजना से साकार हो जाएगा। क्योंकि मैं तो सोच ही रही थी कि ब्रज का जो नृत्य या अन्य विशेष चीजें हैं उन्हें बच्चों को बताया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति से जुड़ी रह सके। मुझे जब भी समय मिलेगा तो जरूर विद्यालयों में जाकर बच्चों के साथ अपने अनुभव साझा करूंगी। हम जैसे बहुतेरे लोगों का सौभाग्य होगा कि उन्हें इस योजना के माध्यम से भारत के भविष्य को संवारने का मौका मिलेगा। मैंने जो विद्या सीखी है, वह बच्चों को सिखाऊंगी ताकि उनमें विभिन्न क्षेत्रों की ओर सोचने की शक्ति विकसित हो सके और वे प्रेरणा ले सकें।
— गीतांजलि शर्मा, शास्त्रीय नृत्यांगना
जब हम जैसे कलाकार स्कूलों में बच्चों को समय देंगे तो उनके अंदर कला के प्रति समझ और दिलचस्पी बढ़ेगी। इसी से उनके जीवन में रास्ते निकलेंगे। बच्चों को जब कला के बारे में बताएंगे तो इस क्षेत्र के प्रति उनका रुझान बढ़ेगा और छिपी प्रतिभा निखरेगी। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों से जब शिक्षक मिलेंगे तो जैसे कोई बच्चा कलाकार बनना चाहता है,चित्रकार या अन्य क्षेत्र में जाना चाहता है तो उसके पास उस क्षेत्र के बारे में अधिक से अधिक जानकारी होगी। हम लोग भी उनके अंदर जाने की कोशिश करेंगे कि किस बच्चे की रुचि किसमें है, उसे उभारने के लिए प्रयास करेंगे। बच्चों की क्षमता इस योजना के माध्यम से बढ़ेगी। — मधुराक्षेम कल्याणी,लेखक और रंगकर्मी (नासिक, महाराष्ट्र)
यदि आप एक प्रभावी शिक्षण की बात करें तो जीवन में विशेषकर बचपन में विकास के लिए खुले विचार और भाव व्यक्त करना जरूरी है। वास्तविक जीवन में जो भी सफल व्यक्ति हुए हैं, वे बचपन से ही अपने लिए कोई श्रेष्ठ व्यक्ति रोल मॉडल के रूप में अपना लेते हैं। इससे उनके शिक्षण और विकास में सहायता मिलती है और उनकी चेतना के विकास में यह लंबे समय तक सहायक सिद्ध होता है। कई प्रकार के आंकड़े ऐसे अनुभवजन्य शिक्षण और विकासजनित शिक्षण का समर्थन करते हैं। भारत सरकार द्वारा उठाया गया यह स्वागतयोग्य और प्रगतिकारी कदम है और हमारे स्कूलों में तैयार हो रहे भविष्य को गढ़ने में सहायक सिद्ध होगा।
— अनुराग सक्सेना , वर्ल्ड एजूकेशन फाउंडेशन, आसियान के क्षेत्रीय प्रमुख
अब तक भारतीय शिक्षा पद्धति में किताबी ज्ञान के अतिरिक्त व्यावहारिक व व्यावसायिक ज्ञान के सम्मिश्रण का अभाव रहा है। विद्यांजलि योजना के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों के अनुभव जब उन्हें मिलेंगे तो विद्यार्थियों के सैद्धांतिक ज्ञान व समझ में विकास होगा। बच्चों में ऊर्जा आएगी और उनके ज्ञान में अभिवृद्धि होगी। इससे उनके अंदर जो हुनर है वह निखरकर बाहर आएगा। इसी रचनात्मकता को समझकर वे आगे बढ़ंेगे। हम जैसे लोगों को बड़ी खुशी है कि सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना में हम भी जनसहभागिता कर समाज के लिए अपना योगदान कर सकेंगे।
—डॉ. निमिषा मुकंुद वैष्णव, शिक्षाविद्, जयपुर (राज.)
शासकीय स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है। सरकार के इस प्रयास की तारीफ करनी चाहिए। हम जैसी बहुत सी महिलाएं हैं जो बनना तो शिक्षिका चाहती थीं लेकिन किसी कारण से इस क्षेत्र में नहीं आ सकींं। कम से कम इस योजना के माध्यम से हमारा सपना भी साकार होगा और अभी तक हमने कार्यक्षेत्र में जो अनुभव पाए हैं उन्हें बच्चों को बीच बांटते हुए भी सुखद अनुभव होगा। आज शिक्षकों की कमी से स्कूलों मंे बच्चों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता जिसके कारण वे आगे का सोच ही नहीं पाते। इस प्रयोग से शासकीय स्कूलों की हालत और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आयेगा।
— बिंदु शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता, कोंडागांव (छ.ग.)
हम लोगों ने जो सीखा है वह हम आने वाली पीढ़ी को बताएंगे। जीवन में गलती करने के बजाय जिन्होंने गलती की हैं उनसे सीखा जाए तो जीवन को एक बड़ी ऊंचाई तक ले जाया जा सकता है। आज बहुत से युवाओं के पास समय है लेकिन उन्हें बचपन में सही रास्ता नहीं मिल पाया जिस कारण उनकी प्रतिभा दबी रह गई। इससे उनका तो नुकसान हुआ ही साथ ही देश का बहुत नुकसान हुआ। अच्छे और अनुभवी शिक्षकों की शुरू से ही समस्या रही है। बच्चों को प्रायोगिक शिक्षा ज्यादा से ज्यादा देनी चाहिए क्योंकि इससे वे जल्दी सीखते हैं। मैं खुद इस योजना से जुडूंगा और बच्चों के बीच जाकर अपने अनुभव उनके साथ साझा करूंगा।
—सुशांत पटनायक, युवा वैज्ञानिक
शुरू से एक सपना था कि पढ़कर शिक्षक बनूंगी। परिस्थितियां ऐसी बनीं कि पढ़ तो गई लेकिन शिक्षक न बन सकी। शादी के बाद पारिवारिक दायित्व व चूल्हा-चौका तक ही जीवन सीमित हो गया। बेशक पति नई सोच वाले हैं। पर हर दम यह लगता कि मैंने जो पढ़ा है, वह किस काम का। क्योंकि उसका कोई उपयोग तो हो ही नहीं रहा। लेकिन अब आशा की किरण जगी है। केन्द्र सरकार ने हम जैसी गृहिणियों को एक मौका दिया कि आप भी समाज के लिए अपना योगदान कर सकती हैं। मुझे अब पूरा विश्वास है कि मैंने जो पढ़ा है, वह अब व्यर्थ नहीं जायेगा और मैं अपने अनुभव और शिक्षा को बच्चों के बीच बांट सकूंगी। — जाह्नवी देवी, ऋषिकेश (उत्तराखंड)
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