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आज जब लोग हर काम के लिए सरकार पर निर्भर रहने के आदी हो गये हैं, ऐसे में विद्या भारती ने अपने सभी 12,363 उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के प्राचार्यों को शैक्षणिक और सामाजिक क्षेत्रों में परिवर्तन के वाहक बनाने का संकल्प लिया है। रेणु शर्मा जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में विद्या भारती द्वारा संचालित भारतीय विद्या मंदिर स्कूल की प्राचार्य हैं। दसवीं कक्षा तक के इस स्कूल में कुल 400 छात्र हैं जिनमें 80 मुस्लिम हैं। लेकिन श्रीमती शर्मा देश के अन्य स्कूलों के प्रधानाचायोंर् से अलग हैं। वे देश के उन गिने-चुने प्राचायार्ें में से एक हैं जिन्होंने अपने छात्रों के साथ आसपास के गांवों के निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने का सफल प्रयास किया है। उन्होंने पहले गांवों में निरक्षर लोगों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए सर्वेक्षण किया और उसके बाद छात्रों के माध्यम से उनके लिए कक्षाएं आयोजित कर उन्हें अक्षर ज्ञान देना शुरू किया। वे अभी तक खासतौर से संबल, क्रिमची मानसर तथा नैनसू सहित तीन गांवों में 100 से लोगों को साक्षर बना चुकी हैं। अब वे पढ़-लिख सकते हैं और गिन सकते हैं। इसके अलावा श्रीमती शर्मा लोगों को जल संरक्षण, जल स्रोतों की सफाई के साथ-साथ सामाजिक बुराइयों से लड़ने के बारे में भी जागरूक करती हैं। उनके प्रयासों से प्रेरित होकर अब आसपास के दूसरे गांव वालों ने भी उनसे इसी प्रकार की कक्षाएं लगाने के लिए निवेदन किया है। स्थानीय लोगों के अनुरोध पर विद्या भारती अब नैनसू गांव में एक स्कूल शुरू करने जा रहा है। विद्या भारती द्वारा संचालित ऐसे और भी अनेक स्कूल हैं जो अपने आसपास के क्षेत्रों में ऐसे ही प्रशंसनीय प्रयास कर रहे हैं। इनसे प्रोत्साहित होकर संस्थान ने निश्चय किया है कि उसके सभी उच्चतर माध्यमिक स्कूलों के प्राचार्य अपने आसपास के क्षेत्र में ऐसे ही कार्य करें और समाज में अपनी व स्कूल की एक अलग पहचान बनाएं। प्राचार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए विद्या भारती ने 12 से 14 फरवरी तक दिल्ली में उनका एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान भवन में सम्मेलन का उद्घाटन किया जबकि अन्य सत्र हरिनगर स्थित महाशय चुन्नीलाल सरस्वती बाल मंदिर में आयोजित किये गये। इस मौके पर अनेक शिक्षाविद् व विद्धतजन मौजूद रहे।
सम्मेलन में शामिल हुई श्रीमती रेणु शर्मा विद्या भारती के स्कूलों की अकेली ऐसी प्राचार्य नहीं हैं जो समाज में परिवर्तन की वाहक बनी हैं। नैनीताल स्थित पार्वती प्रेमा जगाती सरस्वती विहार उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य डॉ. कृष्णवीर सिंह शाक्य भी इसी तरह के कार्य में जुटे हैं। उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी जगजाहिर है। इसके चलते वहां के छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होती है। डॉ. शाक्य कहते हैं, ''जो छात्र नियमित रूप से स्कूलों में नहीं जा सकते, ऐसे छात्रों के लिए हमने चार स्कूलों की शुरुआत की है। इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से हम आसपास के गांवों की महिलाओं को सिलाई सिखाने का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। स्कूल के परिसर में पं. दीनदयाल उपाध्याय स्किल डेवेलपमेंट सेंटर भी शुरू किया है, जिसमें बैकिंग और फाइनेंस तथा डेस्कटॉप पब्लिशिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा औद्योगिक प्रशिक्षण के लिए आईटीआई की शुरुआत भी की गयी है। ''
डॉ. शाक्य कहते हैं, ''शिक्षा केवल कक्षाओं, पुस्तकों, शिक्षकों तथा शैक्षणिक ढांचे तक ही सीमित नहीं है। यह इनसे भी आगे की चीज है, क्योंकि शिक्षा का मुख्य लक्ष्य आखिरकार छात्रों को देश और नागरिकों के प्रति संवेदनशील बनाना है। इसलिए एक अच्छा शिक्षाविद् इस प्रकार काम करता है कि छात्र सीखते भी जाएं और सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़ते जाएं। विद्या भारती इसी दिशा में काम कर रहा है। हम चाहते हैं कि छात्र समस्याओं को समझें और दुर्गम क्षेत्र में रहने वाले वंचित लोगों के दु:ख-दर्द को जानें। इस सम्मेलन ने कई मायनों में इन सभी पहलुओं का स्पर्श किया है। ''
उधर तमिलनाडु के तिरुनेलवेल्ली जिले में रामकृष्ण तपोवन ट्रस्ट द्वारा संचालित शारदा स्कूल ने और भी सराहनीय प्रयास किया है। इस क्षेत्र में मामूली-सी बात पर जातिगत झगड़े हिंसक रूप धारण कर लेते हैं। जिससे एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों की जान तक ले लेते हैं। इसलिए स्कूली छात्रों को सामाजिक मूल्यों की शिक्षा देने के लिए विशेष कक्षाएं आयोजित करने की शुरुआत की गयी है। ट्रस्ट की सचिव साध्वी यतिश्वरी नीलकंठ प्रिया कहती हैं, ''शुरू में हमने देखा कि शिक्षक इन कक्षाओं में जाने के इच्छुक नहीं थे, क्योंकि उन पर पाठ्यक्रम को समय से पूर्ण करना तथा बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी का दबाव रहता था। इसलिए हमने 9वीं और 11वीं कक्षा के छात्रों को छोटे बच्चों की इस तरह की कक्षाएं लेने के लिए प्रशिक्षित किया। यह प्रयास सफल रहा। इससे बच्चों को नैतिक शिक्षा ही नहीं मिली बल्कि कक्षाएं लेने वाले बच्चों के व्यक्तित्व का विकास भी हुआ। यही छात्र बाद में अपने आसपास के गांवों में भी इसी तरह की कक्षाएं लगाते हैं। इस पूरे प्रयास का यह परिणाम निकला कि क्षेत्र में जातिगत आधार पर होने वाले झगड़ों में कमी आई है और लोगों में सहिष्णुता की भावना बढ़ी है।''
साध्वी प्रिया कहती हैं, ''कई प्राचार्य ऐसा महसूस करते हैं कि उनके आसपास जो विद्यालय हैं वे सब उनके प्रतिद्वंद्वी हैं। लेकिन हम ऐसा नहीं सोचते। हम कहते हैं कि जो छात्र अलग-अलग विद्यालयों में पढ़ रहे हैं, वे सब इसी देश के नागरिक हैं। जब उन सभी का विकास होगा तभी पूरे देश और समाज का विकास होगा, क्योंकि वे सब भी उसी समाज में रहते हैं जिसमें हम रहते हैं। इसलिए प्राचार्यों को पूरे समाज को एक साथ लेकर चलने का प्रयास करना चाहिए। ''
आज जब लोगों में हर काम के लिए सरकार पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति बढ रही है, ऐसे में विद्या भारती द्वारा अपने प्राचार्यों को सामाजिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में एक अलग भूमिका निभाने के लिए तैयार करना प्रेरक प्रयास है।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र स्थित गीता निकेतन आवासीय स्कूल ने भी इस संबंध में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इस स्कूल ने अपने क्षेत्र में बालिका सशक्तिकरण तथा सीबीएसई की कई योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करके प्रशंसा प्राप्त की है। अब स्कूल के शिक्षक दूसरे स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षित कर शैक्षणिक क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं।
विद्या भारती के राष्ट्रीय मंत्री और सम्मेलन के संयोजक श्री शिवकुमार कहते हैं, ''एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में सामान्यत: 2500 छात्र पढ़ते हैं। यदि उनके माता-पिता समेत एक परिवार में पांच सदस्य भी लगाएं तो यह संख्या करीब 12,000 होती है। इस तरह हमारे स्कूल से लगभग 12,000 लोग किसी न किसी रूप में जुड़े होते हैं। स्कूलों से पढ़ाई कर चुके पूर्व छात्र और उनके परिवारजन भी कहीं न कहीं स्कूल का हिस्सा होते ही हैं। ऐसे में लगभग 25 से 30,000 लोग एक स्कूल से जुड़े होते हैं। यदि स्कूल के प्रधानाचार्य इन लोगों को किसी न किसी सामाजिक गतिविधि से जोड़ें तो समाज में एक बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। प्राचीन समय में गुरुकुल समाज में इसी प्रकार की भूमिका निभाते थे। आज भी प्राचार्यों को इस तरह की भूमिका निभाने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है ताकि विभिन्न राज्यों में स्थित स्कूलों के प्राचार्य अपने अनुभव एक दूसरे से साझा कर सकें। हम आशा करते हैं कि यहां से जाने के बाद वे अपने कौशल और ज्ञान के माध्यम से शिक्षण क्षेत्र के अलावा सामाजिक क्षेत्र में भी बड़ा परिवर्तन करने में सफल होंगे।'' यह प्रयास फलीभूत होता नजर आ रहा है। सम्मेलन में शामिल देशभर के 475 जिलों से आए 980 प्राचार्य इस संबंध में एक संकल्प लेकर अपने-अपने स्थानों को लौटे हैं। जम्मू के आमफला स्थित भारतीय विद्या मंदिर स्कूल की प्राचार्य श्रीमती शरु पठानिया कहती हैं, ''यहां आकर काफी कुछ सीखने को मिला। अब हम अपने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को साथ लेकर बहुत-सी सामाजिक गतिविधियों शुरू कर सकते हैं। आज की आवश्यकता को देखते हुए मैं कौशल विकास पर अधिक ध्यान देना चाहूंगी। चूंकि एक प्राचार्य स्कूल एवं समाज के बीच एक सेतु का काम करता है इसलिए उन्हें अपने स्कूल से बाहर आकर समाज में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।''
असम के बोडो हाफलॉंग, डिमा हसाओ में स्थित सरस्वती विद्या मंदिर आवासीय स्कूल की प्राचार्य श्रीमती हेगुबेम्ले नागमे कहती हैं, ''अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद सभी छात्र आखिर समाज में ही तो जाते हैं। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम उनमें एक सामाजिक दृष्टि पैदा करें। हमें स्थानीय लोगों को भी उनकी जरूरतों के अनुसार जल संरक्षण, स्वास्थ्य, शिक्षा, पौधारोपण आदि के विषय में संवेदनशील बनाना चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे क्षेत्र में सुयोग्य चिकित्सक नहीं हैं। इसलिए यहां लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य शिक्षा के संबंध में जागरूक करने की आवश्यकता है। इसी प्रकार पानी का संकट भी यहां वे एक बड़ा मुद्दा है, हम लोगों को पानी के संरक्षण के लिए भी जागरूक करें। इस सम्मेलन से लौट कर हम यही सब काम करेंगे।''
असम के जोरहाट से आईं शंकरदेव विद्या निकेतन स्कूल की प्राचार्य श्रीमती बोरनली बरुआ सम्मेलन से लौटकर पर्यावरण संरक्षण पर काम करना चाहती हैं। वे कहती हैं, '' हम लोगों को प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में भी जागरूक करेंगे।''
केरल के अलपुझा स्थित विद्या भारती विद्या पीठ की प्राचार्य श्रीमती निशा आर नायर कहती हैं, ''हम समाज में जो बदलाव करना चाहते हैं वह पहले हमें अपने अंदर पैदा करना चाहिए। यदि हम पहले अपने विद्यालय में कुछ चीजों का अभ्यास करंगे तभी हम अपने आसपास के लोगों, छात्रों और अभिभावकों को उस दिशा में प्रेरित कर सकेंगे। इस सम्मेलन में आकर मुझे कई गतिविधियों के बारे में पता लगा जो हम अपने विद्यालय के माध्यम से कर सकते हैं।'' कोट्टायम स्थित अरविंद विद्या मंदिरम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्राचार्य श्रीमती कविता आर.सी पहले से ही ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में लगी हुई हैं। वे छात्रों और अभिभावकों को एलईडी बल्ब का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं ताकि बिजली की बचत की जा सके। इसी प्रकार गायत्री सेंट्रल स्कूल कोट्टायम की प्राचार्य श्रीमती श्रीकलावेत्तूर नैतिक शिक्षा पर जोर देती हैं। उनका कहना है, ''केवल आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देना ही पर्याप्त नहीं है, हमें अपने वर्षों पुराने उन्नत मूल्यों को भी साथ लेकर चलना चाहिए। हमें छात्रों के दिमाग में ऐसी बातें डालनी चाहिए ताकि वे बड़े होकर उच्च शिक्षा लेने के बाद समाज के लिए कुछ रचनात्मक काम कर सकें। ''
आज हमारे साथ लगभग 35 लाख छात्र जुडे हैं। उनके अभिभावकों के साथ-साथ हमारे पास पूर्व छात्रों की भी एक बहुत बड़ी संख्या है। अब समय आ गया है कि हम उन्हें प्रेरित करें कि वे अपने आसपास के क्षेत्रों में कोई सामाजिक गतिविधि शुरू करें। इसके साथ ही हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हर राज्य में हमारे विद्यालय खोले जाएं। विद्या भारती मूल्य आधारित शिक्षा का एक आदर्श विकसित करना चाहता है। इसालिए हमें सभी समविचारी लोगों को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। सम्मेलन में हमने कई विषयों पर चर्चा की। अब इनको क्रियान्वित करने का समय है। शिक्षा में एक प्रभावी मानक स्थापित करते हुए हमें स्कूल को एक 'ब्रांड' के रूप में विकसित करना चाहिए। छात्रों की प्रतिभा और अभिरुचि को विकसित करने के लिए अवसर उपलब्ध कराने चाहिए। हमारे आसपास जो अन्य विद्यालय हैं वे हमारे प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं, उन्हें भी अपने साथ परिवर्तनगामी बनाना होगा। इसके साथ ही नई तकनीक के प्रयोग में भी हमें कोई हिचकिचाहट नहीं करनी चाहिए।
शिक्षा का उद्देश्य साक्षरता, शिक्षा, संस्कृति और समर्पण होना चाहिए, हम जितने बेहतर तरीके से इन उद्देश्यों को समझेंगे उतने ही बेहतर तरीके से एक निष्ठावान पीढ़ी तैयार करने में समर्थ हो सकेंगे। शिक्षा का मुख्य लक्ष्य कुल मिलाकर राष्ट्रीय विकास है। हम जितनी ज्यादा मजबूती से यह महसूस कर पाएंगे,उतने ही बेहतर ढंग के परिणाम सामने आएंगे।
ग्रामीण क्षेत्र में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो किसी न किसी कारण से शिक्षा पूरी नहीं कर पाते और छोटी उम्र में ही किसी कार्य को करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। कुछ आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं जबकि कुछ 11वीं या 12वीं के बाद। हमने ऐसे शिक्षार्थियों को दोबारा पढ़ाई से जोड़ने के लिए एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया है।
हमने इंजीनियरिंग संस्थानों को दूसरी पाली में उनके परिसरों में कौशल विकास के कार्यक्रम शुरू करने की अनुमति दी है। हम स्कूलों में भी ऐसे लोगों को कक्षाओं से जोड़ने के लिए दूसरी पाली में शिक्षण शुरू करवाना चाहते हैं जहां ये लोग अपनी शिक्षा पूरी कर सकें। यदि विद्या भारती इस बड़े अभियान और परिवर्तन में भाग ले सकता है तो यह देश के लिए और राष्ट्र निर्माण के लिए एक बड़ा योगदान होगा। प्रमोद कुमार
'लक्ष्य तय करके काम करें प्राचार्य'
विद्या भारती अगले वर्ष अपना स्वर्ण जयंती समारोह मनाने जा रहा है। क्या हम इस वर्ष के लिए कुछ विशेष लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं? प्राचार्यों को सोचना चाहिए कि उनके स्कूल को एक ब्रांड कैसे बनाया जाए। हमारा मानना है कि अच्छा ज्ञान कहीं से भी प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए हमें अच्छी चीजें कहीं से भी सीखने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। ऐसे समय में जब सारा विश्व जलवायु परिवर्तन की चर्चा कर रहा है क्या हम 12,000 उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के लिए एक मिशन बना सकते हैं कि हम अपने आसपास खाली पडी भूमि पर पौधारोपण करें। यह न केवल छात्रों को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ेगा बल्कि समाज के हित के साथ भी जोड़ेगा। इसी प्रकार जो 32 लाख छात्र विद्याभारती के स्कूलों में पढ़ रहे हैं वे ऊर्जा संरक्षण के नायक बन सकते हैं। यदि एक छात्र केवल 10 परिवारों को भी बिजली बचत की प्रेरणा देगा तो भी 100 शहरों में हम 20,000 मेगावाट बिजली बचा सकते हैं। वर्ष भर में 20,000 मेगावाट बिजली बचाने से बड़ा और क्या काम हो सकता है? यह देश के प्रत्येक घर बिजली उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध होगा। हम परंपरागत बल्बों को बदलकर अपने स्कूलों में एलईडी बल्ब लगा सकते हैं। इसी प्रकार 32 लाख छात्रों को अपने आस-पड़ोस में इसी प्रकार के परिवर्तन के दूत बनकर अभियान चलाना चाहिए। साथ ही स्वच्छता को इससे जोड़ना चाहिए। विद्या भारती को प्रत्येक राज्य में अपना एक श्रेष्ठ विद्यालय स्थापित करना चाहिए। पुराने और वर्तमान छात्रों को कम समय में अपना संदेश पहुंचाने के लिए एक डिजिटल रिकॉर्ड बनाने की भी जरूरत है। हमें तकनीकी को अपने साथ लेकर चलना होगा। विज्ञान और तकनीक से दूर रहकर विकास नहीं हो सकता। हमें सकारात्मक रूप में परिवर्तन के लिए इसे अपनाना ही होगा। —नरेंद्र मोदी, प्रधानमंंत्री
विद्या भारती के विद्यालय12,363
कुल छात्र32,00,000
कुल शिक्षक1,36,000
जिलों में विस्तार585
हमारा उद्देश्य मूल्य आधारित शिक्षा को विकसित करना है। हम एक समाज सोच वाले संगठनों को लेकर इस लक्ष्य को पाने का प्रयास करेंगे।
— ब्रह्मदेव शर्मा भाई जी, संरक्षक, विद्या भारती
रेणु शर्मा
प्राचार्या, भारतीय विद्या मंदिर माध्यमिक स्कूल
उधमपुर, जम्मू-कश्मीर
स्कूल के आसपास के गांवों के 100 से ज्यादा निरक्षर लोगों को अक्षर ज्ञान दिया।
विद्या भारती से प्रेरणा पाकर मैं इस बदलाव हिस्सा बनी इसके लिए मुझे गर्व है।
डॉ. कृष्णवीर शाक्या
प्राचार्य, पार्वती प्रेमा जगती सरस्वती विहार उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, नैनीताल
स्कूल के आसपास के गांवों की 75 महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण दिलवाया
हमारा ध्यान कौशल विकास पर है। इसलिए हमने एक आईटीआई व एनएसडीसी सेंटर की शुरुआत की है।
साध्वी यतिश्वरी नीलकंठ प्रिया
सचिव, शारदा स्कूल, तिरुनेलवेल्ली तमिलनाडु
सहिष्णुता बढ़ाने के लिए छात्रों के माध्यम से गांवों में नैतिक शिक्षा की कक्षाएं लगाईं।
शिक्षक पाठ्यक्रम पूरा कराने में व्यस्त थे इसलिए 9वीं और 11वीं के छात्रों को नैतिक शिक्षा के बारे में जानकारी दी।
हेगवीबामले नाग्मे
प्राचार्य, सरस्वती विद्या मंदिर
आवासीय स्कूल, डिमा हसाओ, असम
हम सम्मेलन से लौटने के बाद अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं, जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करेंगे।
शिक्षा पूरा करने के बाद छात्र समाज में जाते हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम उनमें एक समाजिक दृष्टिकोण पैदा करें।
शरू पठानिया
प्राचार्य, भारतीय विद्या मंदिर, आमफला, जम्मू
हम अपने आसपास के क्षेत्र में कौशल विकास की गतिविधियां शुरू करेंगे
सम्मेलन में आकर बहुत अच्छी बातें सीखने को मिली हैं। मुझे एक दृष्टि मिली कि हम अपने क्षेत्र में भी ऐसे ही कार्य करें।
बोरनली बरुआ
प्राचार्य, शंकरदेव विद्या निकेतन, जोरहाट, असम
पर्यावरण जागरूकता व प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में लोगों को समझाने की योजना बनाई है।
सम्मेलन में आए विशेषज्ञों को सुनना बहुत प्रेरणादायक था। यहां आकर सीखा कि हमें आगे कैसे काम करना है।
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