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मुझे याद है 2009 में दिसम्बर का वह दिन जब नितिन गडकरी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते पार्टी मुख्यालय 11, अशोक रोड, नई दिल्ली में ताजपोशी हुई थी। कार्यकर्ताओं में उत्साह झलकना स्वाभाविक था। उस दिन एक साधारण कार्यकर्ता का पार्टी में शीर्ष पद पर बैठना उनके लिए एक असाधारण घटना थी ही।
उन दिनों टीवी चैनलों पर 'बाइट' देते हुए गडकरी ने यह बात बार-बार कही थी कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद मिलना उनके लिए एक अजूबे की तरह है क्योंकि उनको दूर-दूर तक भी कल्पना नहीं थी कि शीर्ष नेतृत्व उनके कंधों पर यह जिम्मेदारी डालेगा। उन्होंने कहा था, ''मैंने तो चुनावी पोस्टर लगाए हैं, पहले अभाविप और बाद में भाजपा के आम कार्यकर्ता की तरह काम किया है। कभी सोचा भी नहीं था कि पार्टी मुझे इतना बड़ा दायित्व सौंपेगी।'' उस वक्त गडकरी का अध्यक्ष पद पर बैठना इसलिए भी खास माना गया था क्योंकि वे उस वक्त तक महाराष्ट्र तक सीमित थे और उस नजरिए से राष्ट्रीय स्तर के नेता नहीं माने जाते थे। गडकरी के बारे में इतनी भूमिका बांधने के पीछे मकसद यही बताना है वे नीचे के स्तर से मेहनत करके ऊपर आए हैं और जो कार्यकर्ता के स्तर से ऊपर चढ़ता है तो उसको आम लोगों की दुख-तकलीफों से चूंकि सरोकार रहता है इसलिए उनको दूर करने के लिए वह काफी कुछ कर सकता है।
आज केन्द्र सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री में मंत्री होने के नाते गडकरी ने भारत के भविष्य की जो तस्वीर आंकी है उसी के आधार पर रची है उनकी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 'भविष्य भारत का'। उनसे तुहिन ए. सिन्हा की बातचीत के आधार पर यह पुस्तक उन क्षेत्रों पर एक विहंगम दृष्टि डालती है जो उनकी समझ से देश को तरक्की के रास्ते पर बढ़ा सकते हैं।
पहले अध्याय-एक सपने का पुनर्जीवन-में गडकरी ने भारतीय राजनीति के आपातकाल के बाद के कालखंड से आगे बढ़ते हुए आम आदमी के सरोकारों को भुलाते जाने वाले नेताओं और सरकारों की चर्चा की है। स्थिति की दयनीयता का जिक्र करते हुए एक जगह वे कहते हैं, ''हमारे नेताओं ने एक स्वतंत्र भारत की जिस तरह की कल्पना की थी, वैसा नहीं हुआ। महाराष्ट्र के सिरौंचा क्षेत्र के आदिवासी आज भी नमक की बजाय लाल चींटियों को कुचलकर खाते हैं। क्या इस स्थिति की सफाई में कुछ कहा जा सकता है?'' भाजपा के प्रेरणा-पुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानवदर्शन को पार्टी भारत के आर्थिक उन्नयन का एकमात्र रास्ता मानती है और उसका अनुसरण करने की बात करती है। पं. दीनदयाल जी का यह दर्शन समाज के अंतिम व्यक्ति की चिंता करता है। गडकरी के विचारों में यह झलकता है।
'राष्ट्रीय राजनीति का नया अध्याय' में गडकरी दस वर्ष के संप्रग सरकार के दौर में अर्थव्यवस्था की डगमगाहट पर आंकड़ों की जबानी बताते हैं कि कैसे रुपए का अवमूल्यन होता गया और कैसे अर्थनीति की अनदेखी होती गई। भाजपा के लिए वह चुनौतीभरा समय था। देश-दुनिया के बदलते घटनाक्रम पर पैनी नजर रखते हुए पार्टी ने हर मोर्चे पर एक सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाई थी। लेकिन तब भी विकास का पहिया जिस गति से चलना चाहिए था वैसा नहीं चला। नेहरूवादी ढर्रे ने न खेती-किसानी की चिंता की, न ग्रामीण उद्योगों को संबल दिया, जो कि भारत जैसे देश के सही मायनों में 'विकास के इंजन' हैं। इसीलिए 'ग्रामीण भारत' अध्याय के अंतर्गत किसानों की बदहाली, आत्महत्या और कर्जे के बढ़ते बोझ के संदर्भ में तत्कालीन सरकार की ओर से राहत के प्रयासों में कमी की चर्चा की गई है। टेक वही है, गांव बढ़ेगा, तभी देश बढ़ेगा।
इसके अलावा 'शहरी अधोसंरचना', 'प्राकृतिक संसाधन प्रबंध', 'हरित ऊर्जा' और 'आगे की राह' अध्यायों के अंतर्गत देश के विकास का मानो एक खाका खींचा गया हो। कहना न होगा, पुस्तक में व्यक्त गडकरी के विचार संसद में मुख्य विपक्षी दल के अध्यक्ष के नाते उनको हुए राजनीतिक अनुभवों का सार-निचोड़ हैं।
ये विचार ऐसे नेता की मन:स्थिति को सामने रखते हैं जो देश के हालात को खराब होते देख रहा था। जबकि वह जानता था कि हालात बेहतर बनाने के लायक संसाधन और तंत्र मौजूद तो हैं, लेकिन अनदेखे पड़े हैं। जाहिर है, ऐसे में एक टीस तो उठती ही है मन में। यह पुस्तक गडकरी के मन में उन दिनों उभरी उसी टीस को शब्दों में बयां करती है। -आलोक गोस्वामी
भविष्य का भारत
(तुहिन ए. सिन्हा से बातचीत पर आधारित)
लेखक : नितिन गडकरी
पृष्ठ : 184, मूल्य : 300 रु. प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, 4/19 आसफ अली रोड, नई दिल्ली 110002
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