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पुणे (महाराष्ट्र) में तीन मुसलमानों ने एक हिन्दू युवक, जो वंचित समाज से था, को पहले जबरन पेट्रोल पिलाया और फिर उसे आग के हवाले कर दिया। दो दिन बाद अस्पताल में उसकी मौत हो गई। उसका नाम था सावन राठौड़ और उम्र थी सिर्फ 17 वर्ष। इब्राहिम महबूब शेख, जुबैर तम्बोली और इमरान तम्बोली ने जिस क्रूरता के साथ सावन को मारा उससे मौत भी कांप उठी, लेकिन दुर्भाग्य से किसी सेकुलर का दिल नहीं दहला। इस क्रूर घटना की चर्चा सिर्फ पुणे तक ही सीमित रही। दादरी काण्ड पर कई दिनों तक तीन-चार पन्ने रंगने वाले अखबारों ने इस घटना की जानकारी देना भी ठीक नहीं समझा। वे खबरिया चैनल भी चुप रहे, जो दादरी और हैदराबाद की घटना को लेकर हफ्तेभर तक बहस कराते रहे। उन तथाकथित बुद्धिजीवियों की जुबान भी बन्द रही, जो देश में असहिष्णुता के नाम पर पुरस्कार लौटा रहे थे, बड़े-बड़े लेख लिख रहे थे। और तो और वे नेता भी चुप रहे, जो दादरी और हैदराबाद दौड़ते हुए गए, और जिन्होंने इन घटनाओं के लिए केन्द्र सरकार से लेकर संघ परिवार को भी खूब खरी-खोटी सुनाई थी। इन लोगों ने दादरी और हैदराबाद की घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया, लेकिन पुणे की घटना को दबाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। जिन लोगों ने दादरी के अखलाक और हैदराबाद के रोहित के लिए मुआवजे की बौछार कर दी थी, उन लोगों ने सावन के घर वालों से मिलना भी मुनासिब नहीं समझा। उनके आंसू पोंछने और सान्त्वना देने की बात तो दूर ही रही।
इन सबको देखते हुए किसी को यह कहने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए कि देश के सेकुलर नेता, मीडिया और बुद्धिजीवी किसी हत्या को भी मजहब या विचारधारा के चश्मे से देखते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो ये लोग सावन की हत्या की निन्दा करते, उसके घर वालों को सान्त्वना देते, मुआवजे की पेशकश करते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि सावन हिन्दू था। वह किसी विचारधारा से भी नहीं जुड़ा था। इसलिए न तो मजहब की राजनीति करने वालों ने उसकी सुध ली और न ही विचारधारा की लड़ाई लड़ने वालों ने। हां, पुणे के ही 5-6 सामाजिक संगठनों ने 28 जनवरी को सावन को न्याय दिलाने और उसके हत्यारों को सजा दिलाने के लिए विरोध प्रदर्शन किया। घटना 13 जनवरी की थी। सावन पुणे के कसबा इलाके में रहता था और कचरा इकट्ठा कर अपनी आजीविका चलाता था। वह मूलत: पंढरपुर का रहने वाला था। कुछ विवाद के बाद पुणे आकर बस गया था।
आरोपियों का कहना है कि सावन ने उनका टायर चुराया था। लेकिन सावन ने अस्पताल में बताया था कि वह मूत्र विसर्जन के लिए खड़ा था तभी उसे उन लोगों ने पकड़ लिया था। तीनों आरोपी सावन के मुहल्ले के नहीं हैं। वे फातिमा नगर के हैं, जो वहां से दस किलोमीटर दूर है। इन तीनों ँॅमें से एक पर जुबेर नाम के व्यक्ति की हत्या करने की कोशिश का मामला भी चल रहा है। तीनों आरोपियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड विधान की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया है। न्यायालय ने तीनों आरोपियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।
बंजारा क्रांति दल के प्रमुख रमेश राठौड़ कहते हैं कि अस्पताल में भर्ती करने के बाद सावन 48 घंटे तक जीवित था। उसके शरीर पर गहरे जख्म थे। ऐसे में पुलिस द्वारा मृत्यु पूर्व उसका बयान लेना आवश्यक था, लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया। इसलिए कुछ जानकार वकीलों के समक्ष उसका बयान लिया गया। सावन के पिता धर्मा राठौड़ ने बताया कि जब वह (सावन) जीवित था, उससे उन्होंने लगातार पूछा कि असली कारण क्या है, हमें बताओ। इस पर उसने बताया कि उन्होंने मुझसे मेरा धर्म पूछा और मैं हिन्दू हूं, यह सुनते ही वे लोग मुझ पर टूट पड़े। समस्त हिन्दू आघाड़ी के मिलिंद एकबोटे कहते हैं, ''पुलिस द्वारा उसका बयान लेने से आनाकानी करने पर हमने जानकार वकीलों की हाजिरी में उसका बयान लिया। चूंकि उसका बयान मृत्यु पूर्व है, इसलिए उसे झुठलाया नहीं जा सकता है।'' रमेश राठौड़ कहते हैं, ''इस घटना को आतंकवादी संगठन आई. एस. आई. एस. की तर्ज पर अंजाम दिया गया है। इसलिए इसे मामूली नहीं मानना चाहिए। इसकी जांच एन.आई ए. से कराई जाए। '' उम्मीद है कि पुलिस इस मामले के सबूत जुटाकर आरोपियों का सजा दिलाने में सफल होगी। ल्ल प्रतिनिधि
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