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छब्बीस जनवरी को जब देश गणतंत्र दिवस मना रहा था कर्नाटक में एक छात्र को इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया कि उसने अपने फेसबुक पेज पर टीपू सुल्तान को लेकर टिप्पणी की थी। किसी टीवी चैनल ने 30 सेकेंड की भी खबर नहीं दिखाई। उन चैनलों ने भी नहीं जिन्हें अभिव्यक्ति की आजादी की सबसे ज्यादा चिंता रहती है। 'द हिंदू' अखबार ने अपनी वेबसाइट पर दो लाइन की खबर दी और बताया कि लड़के को 'सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश' में गिरफ्तार किया गया है।
इससे दो दिन पहले कर्नाटक में ही एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को बेंगलुरू पुलिस ने गिरफ्तार किया। उस पर आरोप था कि उसने ट्विटर पर मुख्यमंत्री सिद्घारमैया के लिए अपमानजनक टिप्पणी की। वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर 16 जनवरी को बेल्लारी में मुख्यमंत्री के एक सरकारी अफसर को थप्पड़ मारने से नाराज था। सीएम का थप्पड़ मारना हो या ट्विटर पोस्ट पर गिरफ्तारी, ये दोनों ही खबरें कम लोगों को ही पता होंगी क्योंकि दिल्ली के तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया ने इन खबरों को दबा दिया। किसी बड़े पत्रकार या संपादक ने इन खबरों पर ट्वीट तक नहीं किया। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और कुछ अज्ञात कारणों से बीते कुछ महीनों से सभी राष्ट्रीय चैनल और अखबार यहां की हर नकारात्मक खबर को दबाने में जुटे हैं।
जरा सोचिए अगर यही खबरें भाजपा शासित किसी राज्य में हुई होतीं तो क्या होता। कुछ दिन पहले ही हरियाणा में एक हास्य कलाकार किकू शारदा को अदालत के आदेश पर गिरफ्तार किया गया तो इसी मीडिया ने सारा ठीकरा राज्य की भाजपा सरकार पर फोड़ने की कोशिश की थी। सभी चैनलों ने इस खबर पर खूब शोर-शराबा मचाया। किसी चैनल या पत्रकार ने यह साफ-साफ कहने की जरूरत नहीं समझी कि गिरफ्तारी कोर्ट के आदेश पर हुई है और वाकई इसमें हरियाणा सरकार की कोई भूमिका नहीं है।
भाजपा सरकार के अभी दो साल भी पूरे नहीं हुए हैं और देश आर्थिक घोटालों के अवसाद से बाहर निकलकर विकास के रास्ते पर चल चुका है। देश में उद्यमियों की नई पौध तैयार करने के उद्देश्य से सरकार ने 'स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम' शुरू किया। पहले ही दिन कई चैनलों और अखबारों ने इस पर सवाल खड़े कर दिए। कुछ ने तो यहां तक भविष्यवाणी कर दी कि ये योजना फ्लॉप हो जाएगी। जिस 'स्टार्टअप इंडिया' को लेकर देश के युवाओं में इतना जोश है उसके लिए मीडिया में इतनी नकारात्मक रिपोटिंर्ग चौंकाने वाली बात है। यह वही मीडिया है जो प्रदूषण कम न होने के बावजूद दिल्ली में कारों के सम-विषम नियम की तारीफ में कसीदे पढ़ रहा था। हैदराबाद में एक छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला मीडिया ने हाथों-हाथ लिया। एक दु:खद मानवीय त्रासदी पर जिस तरह की कवरेज मीडिया ने की वह वाकई चिंताजनक है। लगभग सभी चैनलों ने रोहित के साथियों के बयानों को अंतिम सत्य मानते हुए केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। दलित और गैरदलित का मामला बनाकर हिंदू समाज को बांटने की साजिश में मीडिया ने भी पूरा हाथ बंटाया। जिस तरह से इस विवाद में कांग्रेस के लोगों, वामपंथियों, अरविंद केजरीवाल और असदुद्दीन ओवैसी की चौकड़ी ने अतिसक्रियता दिखाई उससे यह शक और भी मजबूत होता है।
रोहित ने सुसाइड नोट में ऐसी कई बातें लिखी हैं जो उन संगठनों की ओर इशारा करती हैं जिनसे वह जुड़ा रहा। उसके फेसबुक पेज से भी काफी कुछ कहानी समझ में आती है। 2010 में हैदराबाद विश्वविद्यालय में दाखिले के वक्त रोहित के कमरे में स्वामी विवेकानंद की तस्वीर लगी होती थी। वह फेसबुक पर भगवान कृष्ण और सैनिकों की दिवाली की तस्वीरें शेयर करता था। वह बलात्कारियों को फांसी देने की मांग करता था। प्रधानमंत्री मोदी की सौर ऊर्जा योजना का फैन था। गरीबी और अभावों से लड़कर आगे आया एक होनहार दलित छात्र कैसे वामपंथी कुचक्र में फंस गया इसकी सारी कहानी रोहित के सुसाइड नोट और फेसबुक पेज से समझ में आ जाती है, लेकिन किसी चैनल या अखबार ने इस पहलू पर ध्यान देने तक की जरूरत नहीं समझी।
कुछ खास न्यूज चैनलों को देखें तो देश के हालात और सरकार के प्रति काफी नकारात्मक राय बनेगी, लेकिन वास्तविकता इससे बहुत अलग है। इसका एक इशारा मिला एबीपी न्यूज के सर्वे 'देश का मूड' में। इसके मुताबिक देश के ज्यादातर लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार पर भरोसा करते हैं और अगर अभी चुनाव कराए गए तो लगभग उतनी ही सीटें मिलेंगी जितनी 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली थीं। यह स्थिति तब है जब मीडिया और बुद्घिजीवियों का एक तबका सरकार के खिलाफ बाकायदा अभियान चला रहा है। शायद ऐसे सर्वेक्षणों से ही इनको जमीनी सच्चाई का कुछ एहसास हो सके।
वैसे समय आ चुका है और इस बात की पड़ताल की जानी चाहिए कि भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों के प्रति मीडिया के एक बड़े हिस्से का रवैया इतना पक्षपाती क्यों है? वह कौन-सा स्वार्थ है जिसकी वजह से मुख्यधारा मीडिया के कई कर्णधार कांग्रेस, वामपंथी और यहां तक कि कई क्षेत्रीय दलों के प्रवक्ता बने हुए हैं? -नारद
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