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जीवन में बहुत सारी सुविधाएं मिलने के बाद भी आज हम खुशी और शान्ति से वंचित हैं। क्योंकि हमने बुद्धि की संकीर्णता को बढ़ा दिया है। इस मानसिक संकीर्णता को छोड़कर यदि हम परिवार समाज राष्ट्र और सृष्टि की बेहतरी के विषय में सोचेंगे तो तब जाकर हमें वास्तविक खुशी मिलेगी। समाज में सबसे पिछली पंक्ति में खड़े व्यक्ति की पीड़ा को महसूस कर ही हम उनकी भलाई के लिए आगे आ सकते हैं। पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद का निचोड़ यही था।
ये विचार रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने 19 जनवरी को नागपुर में 'कारुण्य ऋषि' पुस्तक का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किए। यह पुस्तक डॉ. कुमार शास्त्री द्वारा लिखी गई है जो पं. दीनदयाल उपाध्याय जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में विवस्वान प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई है। श्री भागवत ने समाज के पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए बेहतर कार्यक्रम शुरू करने की बात कहते हुए उनके एकात्म मानववाद के दर्शन को वास्तविक धरातल पर उतारने की बात कही। उन्होंने कहा कि एकात्म मानववाद का दर्शन शरीर, बुद्धि और आत्मा की उन्नति के साथ जुड़ा हुआ है। जो समाज के लिए हितकारी है। यह मानवता, समाज, प्रकृति और आत्मा की एकता को बढ़ावा देने वाली है। इस दर्शन को देखे जानने से लगता है कि यह आधुनिक स्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने में समर्थ है। वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार श्री मा.गो.वैद्य ने पण्डित जी के साथ अपने जुड़ाव की याद करते हुए उनके विचारों पर केन्द्रित कुछ संस्मरण भी सुनाए। मराठी लेखिका श्रीमती आशा बागे, सामाजिक कार्यकर्ता श्री गिरीश गांधी और भारतीय विचार मंच के संयोजक श्री उमेश अंधारे ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। -प्रतिनिधि
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