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दरभंगा में गरीबी में पैदा हुआ 12 वर्षीय पंकज दो वर्ष पहले टहलते हुए दरभंगा रेलव स्टेशन पर पहुंचा। वहां एक अनजान व्यक्ति ने उसे बहलाया फुसलाया और उसे दिल्ली लाकर एक परिवार को सौंप दिया गया जहां उससे घरेलू काम कराया जाने लगा। एक दिन उसी परिवार के किसी व्यक्ति के साथ वह दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आया। यहां पर वह भीड़ में गुम हो गया। स्टेशन पर घूमते हुए पुलिस की नजर उस पर पड़ी और उसे पहाड़गंज स्थित एक बालगृह में पहुंचा दिया गया। सात वर्षीय मासूम रोहित मुजफ्फरपुर से अपने पिता के साथ दिल्ली घूमने आया था। रेलवे स्टेशन पर वह अपने पिता से बिछड़ गया। रोते हुए बच्चे पर पुलिस की निगाह पड़ी और उसे बालगृह में पहुंचा दिया।
ऐसे ही सीतामढ़ी का रहने वाला 12 वर्षीय राकेश भी भटकते हुए दिल्ली पहुंच गया। एक पैर से विकलांग राकेश को पुलिस ने कनॉट प्लेस स्थित बालगृह में पहुंचा दिया। ये बच्चे सौभाग्यशाली थे कि वे बालगृह में पहुंच गए लेकिन हजारों की संख्या में मासूम ऐसे होते हैं जो शहरों की भीड़ में हमेशा के लिए गुम हो जाते हैं। 'माय होम इंडिया' संस्था ऐसे ही बच्चों को उनके अपनों से मिलाने का काम करती है। संस्था पिछले दो वर्षों से ऐसा करती आ रही है।
इसी क्रम में गत 20 जनवरी को माय होम इंडिया ने अपनी मुहीम को एक और कदम बुधवार को दिल्ली से 29 बच्चों को बिहार में उनके परिवार जनों तक पहुंचाने के लिए रेल के माध्यम से रवाना किया। इस सफर में इन बच्चों के संस्था के तीन कार्यकर्ता 20 पुलिसकर्मियों के साथ श्रमजीवी एक्सप्रेस से रवाना हुए। संस्था के संस्थापक सुनील देवधर खुद इस मौके पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मौजूद थे। संस्था द्वारा शुरू की गई सपनों से अपनों तक मुहिम के तहत अब तक देश के 6 शहरों के 23 अलग अलग बालगृहों से 21 राज्यों में 740 बच्चों को उनके परिजनों से मिलवाया जा चुका है।
इनमें पूर्वोत्तर के 5 राज्य भी शामिल हैं। संस्था पड़ोसी राज्य नेपाल के 15 बच्चों को भी सकुशल उनके घर तक पहुंचा चुकी है। संस्थापक सुनील देवधर जी ने बताया कि संस्था का लक्ष्य 2020 तक देश तमाम बालगृहों में रह रहे 1.5 लाख बच्चों को उनके परिवारों तक पहुंचाने का है। हर बच्चे का यह अधिकार है कि वह अपने माता-पिता के साथ रहे। श्री देवधर का कहना है कि बालगृहों से निकालकर घर पहुंचाए जाने वाले बच्चों में ज्यादातर लड़के होते हैं। ये वे बच्चे होते हैं जो अपने मां बाप से नाराज होकर घर से भाग जाते हैं या फिर कोई बहला-फुसलाकर उन्हें दिल्ली व बड़े शहरों में लाकर बाल मजदूरी में धकेल देता है। कुछ बच्चे भटककर भी बालगृहों में पहुंच जाते हैं। उनकी संस्था ऐसे ही बच्चों के लिए काम करती है।
संस्था के कार्यकर्ता बालगृहों में रह रहे ऐसे बच्चों के बारे में पता लगाते हैं वहां जाकर उनसे बातचीत करते हैं। इसके बाद सारी कानूनी प्रक्रियाएं पूरा कर उन्हें अपने खर्चे से उनके परिजनों तक पहुंचाते हैं। देश विभिन्न राज्यों में संस्था का अपना नेटवर्क है। पहले बच्चों से बातचीत कर उनके गांव व घरों का पता लगाया जाता है। इसके बाद कार्यकर्ता उनके घरों पर जाकर पूरी तस्दीक करते हैं। इसके बाद संस्था के कार्यकर्ता पुलिस के साथ मिलकर बच्चों को उनके परिजनों तक पहुंचाते हैं। जब तक बच्चों को उनके परिजनों के सुपुर्द नहीं कर दिया जाता तब तक कार्यकर्ता बच्चों के ही साथ में ही रहते हैं। – प्रतिनिधि
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