|
सुप्रभात।
जब आपको यह पत्र मिलेगा, तब मैं इस दुनिया में नहीं रहूंगा। मुझसे नाराज न हों। मेरे साथ हमेशा ऐसा ही रहा कि मुझे समस्या होती रही है। अपनी आत्मा और शरीर के बीच मुझे फासला बढ़ता ही दिखा और मैं एक दैत्य बन गया। मैं लेखक बनना चाहता था। कार्ल सागां जैसा विज्ञान लेखक। परंतु अंतत: यही एक पत्र है जो मैं लिख सका। मुझे विज्ञान, सितारों और प्रकृति से प्रेम था। परंतु लोगों से मैं यह जाने बिना प्रेम करता रहा कि लोगों ने कब का प्रकृति से किनारा कर लिया है। हमारी भावनाएं कुंद पड़ चुकी हैं। हमारा प्रेम जान-बूझकर गढ़ा गया है। हमारी मान्यताएं बदरंगी हैं। हमारी मौलिकता कृत्रिम कला के जरिए जायज नजर आती है। बिना आहत हुए प्रेम करना सचमुच कठिन हो गया है। इस तरह का पत्र मैं पहली बार लिख रहा हूं। पहली बार अंतिम संदेश लिख रहा हूं। इसलिए यदि मेरी बातों का अर्थ न निकले तो मुझे माफ करें। मेरा जन्म मेरी बड़ी दुर्घटना था। मैं अपने बचपन में झेले अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया। इसलिए मेरी अंत्येष्टि शांत और सरल हो। ऐसा समझें कि मैं आया और चला गया। मेरी लिए आंसू न बहाएं। यह समझें कि मैं जिंदा रहने की बजाय मर कर अधिक खुश रहूंगा। —रोहित वेमुला
टिप्पणियाँ