नयी पीढ़ी तक गीता
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नयी पीढ़ी तक गीता

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Oct 20, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Oct 2015 11:02:00

हाल ही में, मेधा बुक्स से डॉ. सीतेश आलोक की नयी पुस्तक 'भावार्थ गीता' प्रकाशित हुई है, जो कि भगवद्गीता का संक्षिप्त रूप है। इससे पहले उनकी पुस्तक 'मानक- मंगल' आई थी, जो कि तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस का संक्षिप्त संस्करण थी।'
डॉ. सीतेश आलोक हिन्दी साहित्य जगत में एक जाना-माना नाम हैं। कवि-कथाकार के रूप में वे सुविख्यात हैं। महाभारत, भगवद्गीता, रामायण, रामचरित मानस, कुरान, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों का आपने विशेष अध्ययन किया है। उनकी रचनाएं अनेकानेक भाषाओं में अनुदित हैं। महाभारत की कथा को आधुनिक सन्दर्भों में पेश करता हुआ उनका उपन्यास 'महागाथा' खूब चर्चित रहा है।
राम और कृष्ण भारतीय संस्कृति के दो प्रमुख सूत्र रहे हैं, जिनके आधार पर ही राष्ट्रीय-चेतना और हमारी वैश्विक-पहचान का ताना-बाना बुना गया है। इन्हीं से सम्बंधित दो बड़े ग्रन्थ-'गीता' और 'रामायण' हर भारतीय के 'डी.एन.ए.' में बसे हैं। ये हमारे मात्र धार्मिक ग्रन्थ ही नहीं हैं अपितु हमारे इतिहास-ग्रन्थ भी हैं। हमारे प्राचीन मनीषियों ने देश के इतिहास को हमेशा से ही काव्यात्मक और मिथकीय शैली में वर्णित किया है। दुर्भाग्यवश,
आज के इतिहासकार इस तथ्य को जानते-बूझते
भी स्वीकार करने से परहेज करते हैं। लेकिन सौभाग्यवश, हमारे जन-मानस में यह बात सहज रूप में सहर्ष स्वीकारी जा चुकी है और रच-बस  गई है।
गीता हमारे देश का गौरव-ग्रन्थ है। गीता को न केवल भारतवर्ष में अपितु पूरे संसार में बड़े आदर और सम्मान के साथ अपनाया जाता है। इसे मात्र धार्मिक ग्रन्थ के हिसाब से नहीं अपितु तर्कशास्त्र के साथ एक कालजयी ग्रन्थ के रूप में देखा जाता है और दर्शनशास्त्र के पाठ्यक्रम में एक जरूरी ग्रन्थ के रूप में पढ़ाया जाता है।
लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारी नयी पीढ़ी इस अद्भुत ग्रन्थ को पढ़ने-सुनने में विशेष रुचि नहीं ले रही। वह इसको महिमा-मण्डित तो खूब करती है; लेकिन इसे 'शो-केस' में रखकर ही संतुष्ट है। इसका एक कारण तो यह है कि इसका मूल रूप संस्कृत भाषा में है और दूसरा यह कि इसका आकार भी बड़ा है। हालांकि गीता के अनेकानेक प्रारूप भी बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन या तो वे पहले की पुनरावृत्तियां ही हैं या इनमें विरोधाभासी-संदेश भी अनेक जगह मिलते हैं। इस कारण से भी वे पाठकों में सार्थक रुचि नहीं जगा पाए या कहें कि अत्यधिक प्रचलित नहीं हो पाए।
डॉ. सीतेश आलोक ने सम्भवत: इन सब बातों का अध्ययन करने के बाद और खासकर नयी पीढ़ी में गीता के प्रति नए सिरे से रुचि जगाने के उद्देश्य से 'भावार्थ गीता' के रूप में गीता का एक ऐसा संक्षिप्त-संस्करण उपलब्ध कराया है, जो न केवल सरल है, सहज है, तर्कसंगत हैं, रोचक है, व्यावहारिक है अपितु इसका भावानुवाद इतना कसा हुआ और इतना वैज्ञानिक है कि नयी पीढ़ी को गीता का मर्म और गीता का व्यावहारिक ज्ञान 'पोंगा-पंथीय' ढंग से नहीं अपितु अत्यंत सार्थक और बुद्धि-सम्मत तरीके से प्राप्त होगा। निश्चित रूप से उनके पास यह ज्ञान पहुंचने में समय भी कम लगेगा। खास बात यह भी है कि भावानुवाद के सामने मूल श्लोक भी दिए गए हैं ताकि सहज ही मूल सन्दर्भ तक पहुंचा जा सके।
इस 'संक्षिप्त-संस्करण' के बारे में स्वय डॉ. सीतेश आलोक का कहना है कि- 'संक्षिप्त संस्करण' बनाते समय मेरा प्रयास यह रहा कि इसमें मात्र वही श्लोक सम्मिलित किए जाएं जो गीता के मूल संदेश तथा उसकी मूल भावना को पाठकों तक पहुंचाने में समर्थ हैं। इस संक्षेपण की प्रक्रिया में अधिकांश श्लोक तो वे कम हुए हैं जिनमें 'भूमिका स्वरूप' अर्जुन की इस पलायनवादी मन:स्थिति का वर्णन एवं विवरण है जो शत्रु-सेना के बीच अपने सम्माननीय स्वजनों को देखकर उत्पन्न हुई थी। फिर कुछ श्लोक वे भी हैं जिनमें कृष्ण के तर्कों में उलझकर अर्जुन की उस पलायनवादी मन:स्थिति का वर्णन एवं विवरण है जो शत्रु-सेना के बीच अपने सम्माननीय स्वजनों को देखकर उत्पन्न हुई थी। फिर कुछ श्लोक वे भी हैं, जिन्हेंं कृष्ण के तकोंर् में उलझकर अर्जुन के मन में नई-नई जिज्ञासाएं उत्पन्न हुईं। '
अनेक विद्वानों ने गीता के सार-तत्व को पहले तीन अध्यायों में ही समाया हुआ माना है। महात्मा गांधी भी ऐसा मानने वालों में शामिल थे।
श्रद्धालुओं को गीता का एक-एक श्लोक बहुत महत्वपूर्ण लग सकता है और वे सम्भवत: ऐसे संक्षिप्त-रूप के विरोधी भी हो सकते हैं। लेकिन गीता केवल श्रद्धा का ही विषय नहीं है अपितु अधिकतर विद्वान इसे ज्ञान का विषय मानते हैं और ज्ञान तो समय-सापेक्ष होता ही रहता है और इसे होना भी चाहिए। इस मायने में 'भावार्थ गीता' को समय की आवश्यकता भी माना जा सकता है।
यकीकन, डॉ. सीतेश आलोक ने 'भावार्थ गीता' के माध्यम से गीता के 'मर्म' को और गीता के 'विराट' को एक कैप्सूल के रूप में हमारे सामने रखा है, इसके लिए हम उन्हें साधुवाद देते हैं। नयी पीढ़ी के लिए उनकी यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी आशा की जा  सकती है।

नरेश शांडिल्य

भावार्थ गीता

लेखक
सीतेश आलोक

प्रकाशक
मेधा बुक्स
एक्स.11
नवीन शाहदरा
दिल्ली-32

मूल्य -100/- रु.

पृष्ठ – 68

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