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आयु बढ़ाने का विज्ञान आयुर्वेद
योग और आयुर्वेद एक दूसरे के पूरक हैं। आयुर्वेद शरीर का विज्ञान है और योग मन का विज्ञान। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है और योग के अनुसार यदि मन स्वस्थ हो तो शरीर भी स्वस्थ रहता है। आयुर्वेद का प्रयोजन यह है कि मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के रोग का निवारण करना । महर्षि चरक के अनुसार मानव जीवन के चार पुरुषार्थ हैं-धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष। इन सबके मूल में आरोग्य है। किन्तु रोग जीवन और सुख को हरण करने वाले होते हैं। आयुर्वेद का सिद्धांत है कि शरीर दोष, धातु एवं मलो द्वारा निर्मित है- दोष: धातु मल मूलम् हि शरीरम्…। यह कहना है शीर्ष वैद्य मायाराम उनियाल का। वे कहते हैं कि आयु और शरीर का संबंध शाश्वत है। आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है और यह मनुष्य के जीवित रहने की विधि और उसके संपूर्ण विकास के उपाय बताता है। इसलिए यह सिर्फ चिकित्सा पद्धति ही नहीं है बल्कि आयु का विज्ञान है। अत: चरक ने स्पष्ट किया है कि-
समदोष: समाग्निश्च समधातु मल क्रिया।
प्रसन्नात्रेन्द्रिया मना:स्वस्थ ह्दयाभिधीयते।।
दोषों की समता, अग्नि की समता, धातुओं एवं मलादि की समता, क्रियाओं की समता के साथ मन, इन्द्रियों की प्रसन्नता स्वस्थ जीवन का लक्षण है। इन्हीं दोषों के निवारण के लिए आयुर्वेद में कुछ चीजों का प्रावधान है। दिनचर्या, रात्रिचर्या एवं ऋतुचर्या का विस्तार से वर्णन किया गया है। उसके अनुसार प्रात: जागने से लेकर सोने तक की संपूर्ण दिनचर्या का विवेचन समाहित है। आयुर्वेद में प्रमुखता से लिखा गया है कि प्रात:काल उठकर दिनचर्या से निवृत्त होकर व्यायाम करना। क्योंकि आयुर्वेद और व्यायाम एक दूसरे को बल प्रदान करते हैं। एक ओर जहां व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ और पुष्ट रहता है तो आयुर्वेद का प्रयोग करने से रोगों से छ़ुटकारा मिलता है। योग और आयुर्वेद की महत्ता बताते हुए वैद्य उनियाल कहते हैं कि आज की भागमभाग और व्यस्तता भरी जिन्दगी में योग के साथ अगर आयुर्वेद की औषधियों का प्रयोग किया जाये तो स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है।
आयुर्वेद में वर्णित है कि अगर आपके जोड़ों में दर्द और शरीर में दर्द है तो आप पद्मासन करंे, साथ-साथ रोगी अश्वगंधा वटी ले तो उसको इस रोग से छुटकारा मिल जाता है। ऐसे ही आज के युवाओं को अक्सर यह कहते हुए देखते हैं कि मुझे याद नहीं रहता, किसी कार्य में एकाग्रता नहीं हो पाती, मानसिक तनाव रहता है और थकान रहती है। ऐसे रोगियों को प्राणायाम के साथ-साथ शंखपुष्पी, ब्राह्मी लेनी चाहिए। यह औषधि एकाग्रता को बढ़ाती है और मन को शान्त रखती है। साथ ही आप अगर अंावले का प्रयोग इसके साथ करते हैं तो यह एक तरीके से अमृततुल्य है। आंवला (आमलकी रसायन) गुणों का खजाना है।
इसका प्रयोग करने से नवयौवन की प्राप्ति होती है। स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन के चरम लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति का मुख्य साधन शरीर है। -अश्वनी मिश्र
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