साक्षात्कार/आवरण कथा - 'दुनिया को भारतीय संस्कृति की देन है योग'
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साक्षात्कार/आवरण कथा – 'दुनिया को भारतीय संस्कृति की देन है योग'

by
Jun 13, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Jun 2015 14:31:32

 

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय विश्व योग दिवस मनाने की घोषणा क्या हुई, हर भारतीय का माथा गर्व से ऊंचा हो गया। हो भी क्यों न, आखिर योग हमारे ऋषि-मुनियों की ही देन तो है। यह हमारे खून में है, बस ग़लामी के दौर के असर के चलते हमने इसे भुला रखा था। पर अब भारत सहित दुनियाभर में इस ओर रुझान बढ़ा है।
भारत सरकार ने इस दिवस के आयोजन के लिए आयुष मंत्रालय के राज्य मंत्री श्रीपाद नाईक को प्रभारी बनाया है। प्रस्तुत हैं पाञ्चजन्य के सहयोगी सम्पादक आलोेक गोस्वामी की श्रीपाद नाईक से योग, आयुर्वेद और भारत में इसके प्रचार-प्रसार के संबंध में हुई विस्तृत बातचीत के प्रमुख अंश।
भारत की पहल पर विश्व ने योग के महत्व को स्वीकारा, उसे अपनाया और अब तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का फैसला लिया है। कैसा महसूस हो रहा है?
बहुत आनन्द हो रहा है कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने योग के महत्व को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गंुजाया। लोगों ने इस महत्व को स्वीकार किया और 173 देशों ने विश्व योग दिवस मनाने पर अपनी सहमति जताई। दुनिया को भारत जो भी ज्ञान-विज्ञान दे सकता है, योग उनमें से एक है। 21 जूद के बाद योग और भारत की थाती का विषय पूरी दुनिया के लोगों में और तेजी से पहंुचेगा। आज भारत को यह मौका मिला है कि हम दुनिया को योग और उसके साथ ही आयुर्वेद आदि के बारे में बताएं, उन तक ये विषय ले जाएं। उन्हें पता चले कि भारत की इन क्षेत्रों में कितना आगे बढ़ चुका है।
ल्ल    आपने कहा, यह दुनिया को भारत की देन है। इसके पीछे क्या भाव है?
देखिए, योग और आयुर्वेद का हमारे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है। ये हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति से जुड़े हैं। हमारे पतंजलि, चरक और अगस्त्य जैसे ऋषियों ने योग और आयुर्वेद जैसी विधाओं का भान कराया और इतना ही नहीं, इसके माध्यम से मानव जीवन को निरोगी रखने का ज्ञान दिया। योग तो ऐसी चीज है कि इसका दैनिक अभ्यास करने वाले को कभी औषधि की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। असाध्य रोग भी योग से ठीक होते देखे गए हैं। इसीलिए हम कहते हैं कि दुनिया को निरोग रखने के लिए योग भारत की देन है।
ल्ल    आपने कहा, असाध्य रोग भी योग से ठीक होते हैं। तो क्या आपके अनुभव में ऐसा कोई उदाहरण है जो आपकी बात की पुष्टि करता हो?
हां, एक नहीं अनेक उदाहरण बता सकता हूं। हमारे एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री की बेटी जब छोटी ही थी तब एक दिन पूजा करके आसन से उठते वक्त ऐसी नस खिंची कि शरीर का निचला हिस्सा संवेदन शून्य हो गया। रीढ़ की हड्डी में खिंचाव आ गया। बहुत इलाज कराया पर रोग नहीं गया। आखिर वे योग की शरण में गईं और लगातार योग करने के बाद आज वे पूरी तरह स्वस्थ हैं और अब तो योग की इतनी भक्त हो गई हैं कि इसके प्रचार-प्रसार के लिए एक संस्था चला रही हैं। तो ऐसा एक नहीं, कई उदाहरण हैं जहां ऐलोपैथी नाकाम हो गई, सब पैथियां धरी रह गईं, पर योग के द्वारा उस असाध्य रोग का निदान हो गया।
ल्ल    लेकिन हमारी युवा पीढ़ी योग के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ती है, क्योंकि उसका सारा दिमाग पश्चिम के अंधानुकरण पर है। ऐसे युवाओं को योग का महत्व पता    चले उसके लिए क्या प्रयास करने की जरूरत है?
इसमें मैं युवा पीढ़ी को दोष नहीं देता, किसी का दोष है तो वह हमारा है यानी अभिभावकों का है। अगर हम बचपन से बच्चों में योग के संस्कार देते, उसके बारे में बताते तो आज यह स्थिति नहीं आती। इसलिए हमने सोचा है कि पांचवीं कक्षा से आगे अन्य विषयों के साथ योग की भी कक्षा हो।
ल्ल    सिर्फ सोचा है या आपके विभाग ने उसको क्रियान्वित करने का कोई प्रयास भी   किया है?
बिल्कुल, प्रयास शुरू हो चुका है। चिट्ठियां लिखी जा चुकी हैं। संबंधित मंत्रालयों से बात चल रही है। खासकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हमने इस विषय पर बात की है। हमने कहा है कि स्कूलों में एक घंटे की पी.टी. यानी शारीरिक शिक्षण की कक्षा में ही आधा घंटा योग का प्रशिक्षण दिया जाए तो बच्चों को योग का महत्व पता चलेगा। योग पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिए। हमने प्रधानमंत्री को भी लिखा है। हमारा मानना है कि छुटपन से ही अगर बालक को योग का प्रशिक्षण दिया जाए तो उसका पूरा जीवन स्वस्थ, सुखद बन जाएगा।
हमारे शास्त्रों में भी लिखा है कि योग शरीर ही नहीं, मन-बुद्धि को भी स्वस्थ रखता है…।
यह सच है। लोग समझते हैं योग माने व्यायाम आदि। लेकिन ऐसा नहीं है। योग के आठ अंग है यानी हमारे यहां उसे अष्टांग योग कहते हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। तो ये आठों मन और आत्मा को परमात्मा से एकाकार करने का मार्ग बताते हैं और इस एकाकार को ही हम योग कहते हैं।
ल्ल    21 जून को विश्व योग दिवस पर होने वाले आयोजन के मुख्य आयाम क्या हैं?
उसके लिए तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। नई दिल्ली समेत पूरे भारत में उस दिन यह कार्यक्रम सम्पन्न होगा। मुख्य कार्यक्रम नई दिल्ली में राजपथ पर होगा जिसमें करीब 40,000 लोग शामिल होंगे। हमने 35 मिनट की एक वीसीडी तैयार करके सभी जिला केन्द्रों में भेजी है जिसमें मुख्य योगासान और उनको करने की विधि बताई गई है। सभी जिलों में प्रशिक्षित योग शिक्षक उस कार्यक्रम में रहने वाले हैं। इसके लिए हमने मंत्रालय की ओर से एक-एक लाख रु. का अनुदान भी दिया है।
नई दिल्ली के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और सांसदों को निमंत्रित किया है। यह एक भव्य कार्यक्रम होगा। इसके साथ ही हमने विज्ञान भवन में योग पर दो दिन का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन् ा आयोजित किया है। इसमें योगाचार्य रहेंगे, योग शिक्षक होंगे। दुनियाभर के विशेषज्ञ इसमें भाग लेंगे।
173 देशों में हमारे दूतावास इस कार्यक्रम को उन देशों में आयोजित करेंगे। इसमें विदेशों में योग केन्द्र चलाने वाले प्रशिक्षक, शिक्षार्थी सहयोग करेंगे। भारत सरकार की ओर से यह पूरा आयोजन सम्पन्न किया जाएगा।
ल्ल    ऐसा तो नहीं कि एक दिन सरकार इसे रस्म के तौर पर मनाकर आगे भूल जाएगी?
नहीं, योग के प्रति लोगों को जगाने का काम सतत् चलेगा। स्कूलों में तो मैंने बताया, इसे पाठ्यक्रम में जोड़ने का प्रयास चल रहा है। पुलिस और रक्षा विभाग से बात चल रही है कि कैसे अपने जवानों में तनाव से मुक्ति के इस मार्ग के लिए रुचि पैदा की जाए। उनको इसकी बहुत जरूरत है इसलिए उनके बीच योग की निरंतर कक्षा चलाने पर विचार चल रहा है। हर राज्य के हर जिले में एक योग आरोग्य केन्द्र हो इसका प्रयास चल रहा है। सरकार इसके लिए संसाधन और ढांचा तैयार करके देगी।
ल्ल    प्रधानमंत्री मोदी रोज योग करते हैं, ऐसा कई बार चर्चा में आया है। क्या आप खुद भी योग करते हैं?
मैं तो वर्षों से योग करता आ रहा हूं और इसीलिए अपने उदाहरण से बता सकता हूं कि योग कितना लाभकारी है। इससे ऐसी ऊर्जा मिलती है कि उसे शब्दों में बताना मुश्किल है, उसे तो बस अनुभव ही किया जा सकता है। मुझे कभी किसी तरह के दर्द के लिए कोई गोली नहीं खानी पड़ी।
ल्ल    आपका विभाग योग और प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार-प्रसार का जिम्मेदार है। लेकिन आज भी लोग ऐलोपैथी और सर्जरी की तरफ दौड़ते हैं? हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आपका विभाग क्या कर रहा है?
हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों के प्रति जागरूकता कम रही है, इसमें हमारी ही कमी रही है। हमारे ऊपर अंग्रेजों ने राज किया, जिनका काम ही था कि भारत का जो भी अच्छा है उसे खत्म करो। इसीलिए उस वक्त हमारे प्राचीन ज्ञान-विज्ञान को दबा दिया गया। पर स्वतंत्रता के बाद भी, हमें इसे ओर जितना ध्यान देना चाहिए था, हमने नहीं दिया।
लेकिन अब हमारे प्रधानमंत्री ने युवाओं की योग्यता को पहचाना है। हमारे योग को जगत में प्रचारित करने का बीड़ा उठाया है। चिकित्सा की  हमारी अपनी पद्धतियों को आगे लाने का काम किया है। हमारी औषधियां ऐसी हैं जिन्हें लोग अपने आंगन के बगीचे में उगा सकते हैं। इनका कोई 'साइड इफैक्ट' नहीं होता, सस्ती होती हैं, सुलभ होती हैं। इतनी अच्छी औषधियों को छोड़कर हम विदेशी, अंग्रेजी दवाओं के पीछे गए तो उसके ऐसे दुष्परिणाम निकले कि बताना कठिन है। कैसी-कैसी बुरी बीमारियों में हम जकड़ गए हैं। ये सब अंग्रेजी दवाओं का ही तो 'रिएक्शन' है।  
ल्ल    तो आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए आपके विभाग ने एक साल में क्या क्या किया?
जन-जागृति के लिए हमने विभिन्न राज्यों में नौ आयुष एक्सपो किए हैं। वहां औष्धियां थीं, वैद्य थे। वहीं के वहीं इलाज होता था। इसमें लाखों लोगों ने भाग लिया। हमने मौजूदा केन्द्रों को और व्यवस्थित करने की दिशा में कदम बढ़ाया।
ल्ल    क्या आज हर जिले में कम से कम एक आयुर्वेद चिकित्सा केन्द्र है? 'आयुष मिशन' क्या है?
हर जिले में तो नहीं है। इसीलिए हमने एक 'आयुष मिशन' चलाया है जिसके द्वारा हम हर जिले में एक आयुष चिकित्सा केन्द्र खोलना चाहते हैं। हमने राज्यों को इस बारे में लिखा है। उनसे प्रस्ताव मांगे हैं। केन्द्र वे चलाएंगे पर उसे शुरू करने का पैसा हम देंगे।
ल्ल    इसके लिए क्या लोगों ने इच्छा जताई है, उनमें उत्सुकता दिखी है?
हां, लोग पूछने लगे हैं कि इसके अंतर्गत क्या करना होगा। हमने यह भी कहा है कि ऐसा केन्द्र खुलने और उसके कार्य करना शुरू करने तक अभी जो प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र हैं उनमें ही एक आयुष का चिकित्सक बैठना शुरू करे ताकि इसके इचछुक इसका लाभ उठा सकें। 
हमारे एलोपैथी के डाक्टर पढ़-लिखकर बड़े शहरों में जाते हैं। गांवों, कस्बों के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र खाली पड़े रहते हैं। क्यों न वहां आयुष की पांच साल की शिक्षा ले चुके डाक्टर बैठे ताकि उनकी प्रतिभा का सही उपयोग हों? इससे आयुष के डाक्टरों को रोजगार मिलेगा, लोगों को सेवा मिलेगी और युवाओं में इस क्षेत्र की तरफ रुझान बढ़ेगा। हमने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस बारे में पूरी बात रखी है। हर जिले में आयुष चिकित्सा केन्द्र बनाने के लिए हमें ब्रिक्स बैंक से पैसा मिल जाए, इस बारे में भी हम प्रधानमंत्री से बात करेंगे।         ल्ल 

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