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योग करें पर इनसे बचें!

by
Jun 13, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Jun 2015 13:08:57

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। अक्सर सड़क पर इस तरह का निर्देश लिखा मिलता है, जो हमें संकेत करता है  कि थोड़ी सी असावधानी जीवन का संकट उत्पन्न कर सकती है। ठीक इसी तरह योग का भी स्वभाव है। अगर आपने इसमें थोड़ी सी भी असावधानी बरती तो परिणाम घातक होते हैं और कई बार तो जीवन तक पर बात बन आती है। इसलिए योग और प्राणायाम करते समय उसकी ठीक ढंग से जानकारी बहुत ही आवश्यक है। यह कहना है योग प्रशिक्षक श्रीश पाण्डेय का। डॉ. श्रीश पाण्डेय कहते हैं कि यह आवश्यक है कि कोई भी योग या प्राणायाम पहले अभ्यास या प्रशिक्षक की निगरानी में करें तो और भी अच्छा होगा। जैसे पश्चिमोतानासन उदर (पेट) के लिए अतिलाभकारी है, लेकिन धीरे-धीरे अभ्यास करने के बाद ही इसे करें। उसी प्रकार मयूरासन के विषय में भी कई सावधानियां रखना आवश्यक हैं।  यह आसन जहां पेट के अधिकतर रोगों का नाश करता है और शरीर की सहनशक्ति को बढ़ाता है। लेकिन जिनके पेट में सूजन है वह इसे न करें। इसे बिना अभ्यास के नहीं करना चाहिए क्योंकि यह आसन थोड़ा जटिल है। वर्तमान में योग के अनेक प्रशिक्षु स्थान-स्थान पर अनेक जटिल आसन भी सिखाते हैं। थोड़ा अभ्यास करने के बाद इन जटिल आसनों को लोग करने लगते हैं। लेकिन वह इनकी सावधानियां भूल जाते हैं। इससे उनको सुख के बजाय दुख उठाना पड़ता है। जैसे शीर्षासन- यह वैसे तो बड़ा ही लाभकारी है। यह सफेद बालों को काला बना देता है। आयु का आभास चेहरे पर नहीं होने देता है। लेकिन अनेक गुणों को संजोए यह आसान बिना योग शिक्षक की देखरेख में नहीं करना चाहिए। कान के रोगी इसका अभ्यास न करें। आसन के करने वाला स्थान ऊंचा-नीचा नहीं होना चाहिए।
साथ ही महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में योगासन को परिभाषित करते हुए कहा है कि 'स्थिर सुखम् आसनम्' अर्थात सुखपूर्वक स्थिर होकर बैठने की स्थिति को ही आसन कहा जाता है। अत: योगासन करने वाले से अनुशासन, आत्मविश्वास और नियमित रूप से अभ्यास करते रहने की अपेक्षा की जाती है।
आहार-विहार
आसनों के अभ्यास से पूर्व शौचादि से निवृत्त होना अच्छा रहता है। यदि कभी ऐसी स्थिति संभव न हो तो आसनों का प्रारम्भ शीर्षासन और सर्वांगासन से करना चाहिए। आंतों को रिक्त एवं शिथिल किए बिना कठिन प्रकृति के आसनों का अभ्यास सर्वथा वर्जित है। साथ ही कभी भी आसन भोजन करने के तत्काल बाद नहीं करने चाहिए। यदि इसमें कुछ कठिनाई हो तो आसन के 15 मिनट पूर्व एक प्याली चाय, अथवा एक गिलास दूध लिया जा सकता है। आसन करते समय किसी अंग में विशेष खिंचाव या फिर तनाव महसूस हो तो ऐसी स्थिति में वह आसन कदापि न करें और शवासन में शरीर को शिथिल करके थोड़ा विश्राम कर लें। आसन करते समय एक बात जो विशेषरूप से ध्यान रखनी चाहिए वह यह कि कभी भी आसन करते समय प्रतिस्पर्धा न करें, बल्कि अपनी सामर्थ्य अनुसार ही आसन करंे।
स्थान- समय
आसन के लिए स्थान साफ व एकान्त होना चाहिए क्योंकि स्वच्छ व प्रदूषण मुक्त स्थान से एकाग्रता बनी रहती है और किसी प्रकार के रोग के आक्रमण की संभावना नहीं रहती। सर्वाधिक लाभकारी स्थान कोई पार्क या घर की छत है। आसन करने के लिए सूर्योदय से पूर्व और सूर्योदय के बाद का समय अच्छा होता है। वैसे प्रात:काल में आसन का अभ्यास व्यक्ति को अपने व्यवसाय के लिए तत्पर बनाता है वहीं सायंकाल का अभ्यास दिनभर की शरीरिक थकावट को दूर करके व्यक्ति को प्रफुल्लित एवं शान्त बनाता है।  कई घंटे कड़ी धूप में रहने अथवा कठिन परिश्रम के ठीक पश्चात आसन कभी भी नहीं करना चाहिए। थोड़ा विश्राम करने के बाद ही आसन करना चाहिए।
– पाञ्चजन्य डेस्क

कुछ सामान्य सावधानियां
–   योगासन हमेशा समतल स्थान और दरी पर ही करना चाहिए। योगासन करते समय शरीर सक्रिय और मस्तिष्क निष्क्रिय होना चाहिए। लेकिन सतर्कता और सावधानियों को नहीं छोड़ना चाहिए।

–    योगासन के दौरान श्वास क्रिया केवल नाक के माध्यम से ही होनी चाहिए। योगासन करते समय मुंह से श्वास लेना वर्जित माना जाता है। आसन की स्थिति अथवा अभ्यास की प्रक्रिया के दौरान श्वास को रोकना नहीं चाहिए।
–   मधुमेह तथा रक्तचाप जैसे रोगों से पीडि़त लोगों को शीर्षासन तथा सर्वांगासन जैसे आसनों को नहीं करना चाहिए। इनकी स्थितियां रक्तचाप को प्रभावित करती हैं। जिन आसनों में आगे की ओर झुकने की क्रिया हो ऐसे आसन मंद रक्तचाप से पीडि़त व्यक्तियों के लिए लाभकारी होते हैं।  
–    योगाभ्यास करने के तुरन्त बाद स्नान नहीं करना चाहिए और न ही शीतल या गर्म, कोई भी पेय पदार्थ पीना चाहिए। योगाभ्यास करने के तीस मिनट बाद ही इसका प्रयोग करें।
महिलाओं के लिए सावधानियां
–    गर्भावस्था के प्रथम तीन महीनों में सभी आसन कर सकते हैं। परन्तु आगे झुकने वाले आसनों में सावधानी बरतें।
–   प्रसव के 1 महीने के बाद से धीरे-धीरे आसनों का अभ्यास शुरू कर सकते हैं।
–    गर्भवती महिलाओं को कपालभाति,बाह्य प्राणायाम, अग्निसार क्रिया को छोड़कर  उज्जयायी, नाड़ी शोधन, ऊंकार, भ्रामरी, ध्यान, योग निद्रा सभी प्राणायाम धीरे-धीरे करने चाहिए। 

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