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पाञ्चजन्य- के पन्नों से
वर्ष: 9 अंक: 49
2 जुलाई 1956
कांग्रेस हाई कमान से असहयोग के
नए तौर-तरीके
विरोधी दलों को मूर्ख बनाने की सुनिश्चित योजना
महाराष्ट्र कांग्रेस कमेटी ने बम्बई सहित महाराष्ट्र की मांग पूरा कराने के विचार से महाराष्ट्रीय विधान सभाई तथा विधान परिषदीय तथा संसद सदस्यों को आदेश दिया था कि वे अपने 2 पदों से त्यागपत्र दे दें। किंतु अब दिखता है कि महाराष्ट्र कांग्रेस कमेटी इस नीति को बदल कर अन्य कोई उपयुक्त नीति अंगीकृत करने वाली है। आशा यह की जाती है कि श्री कण्ठे तथा श्री हिरे ही प्रतीक स्वरूप अपने पदों से त्यागपत्र प्रस्तुत करेंगे। किंतु ये लोग भी विधान मंडलों की सदस्यता से त्यागपत्र नहीं देंगे।
पहले तो श्री एनबी गाडगिल ने भी संसद से त्यागपत्र देकर संयुक्त महाराष्ट्र के प्रश्न पर चुनाव लड़ने का निश्चय किया था। किन्तु अब जबकि उपचुनाव न होने की घोषणा चुनाव आयोग द्वारा की जा चुकी है, उन्होंने त्यागपत्र न देकर संसद में रा. पुनर्गठन विधेयक के खिलाफ मतदान करने का निश्चय किया है। यदि कांग्रेस हाईकमान इसे अनुशासनहीनता समझे तो उनके खिलाफ कार्यवाही भले ही करे।
महाराष्ट्र कांग्रेस कमेटी आगामी आम चुनाव की दृष्टि से अन्य विरोधी दलों से समझौता करके अनुपातानुसार सदस्य मनोनीत करने का प्रयास करेगी, जिससे संयुक्त महाराष्ट्र समर्थक दलों में दरार न पड़ पाए। कांग्रेस कमेटी की आशा है कि इस आधार पर विधान मंडल में उसके उतने ही सदस्य पहुंच सकेंगे जितने आज हैं। परिणामत: जिस समय सरकार बनाने का प्रश्न सम्मुख आयेगा कांग्रेसी सदस्य सरकार बनाने से इंकार कर देंगे। इस प्रकार कांग्रेस हाईकमान के समक्ष भीषण समस्या उत्पन्न हो जाएगी और गतिरोध को समाप्त करने के लिए उसे म.प्र. कांग्रेस कमेटी की मांगें स्वीकार करनी पड़ेंगी।
पू. भारत में बाढ़ का भीषण प्रकोप
सैकड़ों गांव जलमग्न :
हजारों लोग बेघरबार
सरकार निर्मित बांध बाढ़-नियंत्रण में बुरी तरह असफल
निज संवाददाता द्वारा
पटना। समस्त पूर्वी भारत में बाढ़ों के कारण भीषण हाहाकार मचा हुआ है। सैकड़ों गांव जलमग्न हो चुके हैं। हजारों लोग बेघरबार हो गये हैं। फसलें नष्ट हो गईं हैं। बच्चों और महिलाओं की दशा तो अत्यन्त दयनीय हो गई है। पशुओं की दुर्दशा का जितना वर्णन किया जाए थोड़ा है।
कोसी, गंडक, कमला, बागमती तथा बड़ी गण्डक की बाढ़ों के कारण कई हजार एकड़ भूमि बिहार में पूरी तरह पानी में डूब चुकी है। आसाम की भी यही दशा है। अनेक नगरों को बाढ़ के कारण भीषण खतरा है। उ.प्र. के देवरिया और बलिया जिलों में भी घाघरा और बड़ी गंडक के कारण खतरा उत्पन्न हो गया है।
बिहार – बिहार के सहरसा जिले में किशनपुर थाने के अन्तर्गत 80 गांव कोसी की बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए हैं। पहाड़ी नदियों के उमड़ आने के कारण पकुड़ सबडिवीजन के अन्तर्गत महेश्पुर थाने के 6 गांव जलमग्न हो गए हैं। गोद्दा सबडिवीजन की सब नदियां उमड़ आई हैं।
बड़ी गंडक की बाढ़ के कारण जोतहा तथा बिरौल के निकट स्थित बांधों को खतरा उत्पन्न हो गया है।
कमला नदी की बाढ़ से भारत-नेपाल सीमा पर स्थित बांध के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है। जयनगर थाने के 10 गांव, जिनकी आबादी लगभग 13 हजार है, जलमग्न हो गए हैं।
चम्पारन जिले में 6 नदियों की बाढ़ के कारण 100 गांव पानी में डूब गये हैं। हजार से अधिक लोग गृहहीन हो गये हैं। बागमती की बाढ़ का तीन स्थानों पर कुप्रभाव पड़ा है।
आसाम – आसाम की नदियों की बाढ़ के कारण ब्राह्मणबरिया कस्बे और नवीनगर, बंचा रामपुर, सरैल और नासिरनगर थाने बाढ़ग्रस्त हो गये हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर स्थिति दो गांव गोहया ओली तथा मुहमरा सागली खंड में भूस्खलन तथा कटाव बहुत जारों से हो रहा है। अनेक कुटुम्ब गृहहीन हो गए हैं।
डिब्रूगढ़ से चार मील उत्तर में मोथुल चायबागान में भी भूस्खलन हो रहा है। चाय की 6 एकड़ भूमि नष्ट हो गई है।
निरंकुश व्यक्ति-स्वातंत्र्य व तानाशाही
समाजवाद एवं मुक्त अर्थव्यवस्था, दोनों में तानाशाही का जन्म होता है। उन्होंने कहा था, 'हर व्यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार काम करे तथा उसकी आवश्यकताओं के अनुसार धन मिले, इसके लिए एक विचार-सम्प्रदाय का निर्माण पश्चिम में हुआ था। किंतु इस संप्रदाय से ही तानाशाही का जन्म हुआ। कारण यह है कि इसमें गृहीत सिद्धांत मानव-स्वभाव के विपरीत है। काम कम करना पड़े और दाम अधिक मिले, यह मानवीय स्वभाव है। अत: वहां जनता की आवश्यकताओं को तानाशाही के मार्ग से कम किया जाता है। इसके विपरीत, भारतीय दर्शन स्वेच्छा से अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने का पक्षधर है।
संन्यासी की आवश्यकताएं कम होती हैं और समाज के लिए वह अधिक कष्ट उठाता है, अत: उसे अधिक सम्मान मिलता है। भारतीय परिवार में भी मुखिया अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम रखता है, किंतु उसे सर्वाधिक सम्मान दिया जाता है। हम अपनी आवश्यकताओं को अवश्य पूरा करेंगे, किंतु उनके दास नहीं बनेंगे।'
पंडित दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शन
खंड-3 राजनीतिक चिंतन, पृ.12
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