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मुहावरे भाषा के बढ़े हुए नाखून होते हैं। लम्बे समय तक एक तय शब्द समूह का प्रयोग कर समाज उसे विशिष्ट अर्थवत्ता, गुणवत्ता, मारकता प्रदान करता है। मुहावरों का प्रयोग घने अंधकार में बिजली की कौंध की तरह होता है जिनसे दूर तक अर्थ स्पष्ट हो जाता है। इन्हीं मुहावरों में से एक बुरी मौत मरने के लिए '़.़.़.. की मौत मरना' है। मौत सदैव ही अप्रिय अरुचिकर घटना है। उसे न तो महिमामण्डित करने का कुछ अर्थ होना चाहिए न उसे वीभत्स बनाने का कोई कारण, फिर भी समाज में इस सिलसिले के शहीद, हुतात्मा, बलिदानी और ़.़.़.. की मौत मरना जैसे शब्द और मुहावरे चलन में हैं तो इसका कोई गंभीर कारण अवश्य होना चाहिये।
बंधुओ! इसका कारण समाज के हित-अहित यानी समष्टि के हित-अहित का विचार है। भयानक बर्फीली दुर्गम चोटियों पऱ भीषण गर्मी से झुलसते हुए बीहड़ रेगिस्तान में, अथाह-अगाध समुद्र में, देश की रक्षा करते हुए शत्रु की गोली खाकर मरने वाला सैनिक कोई बहुत शांत, सहज मौत नहीं मरता। उसे भी वही पीड़ा होती है जो संभवत: आईएसआईएस के सरगना अबू बकर अल बगदादी को हुई होगी मगर हर मृतक सैनिक को प्रत्येक राष्ट्र इसी कारण शहीद कहता है, समाज उसकी अंत्येष्टि में इसीलिए उमड़ पड़ता है कि उसके प्राण देश की रक्षा में गए हैं। ये मृत्यु को आरामदेह तो नहीं बनाता मगर देश के लिये प्राण देने की प्रेरणा देता है। इसी तरह एडि़यां रगड़-रगड़ कर एकाकी मरना आईएसआईएस के सरगना अबू बकर अल बगदादी जैसे लोगों का भाग्य होता है।
अबू बकर अल बगदादी का मरना कोई बहुत बड़ी या प्रमुख घटना नहीं है। ऐसे लोग ऐसी ही मौत मरते हैं। अफगानिस्तान की पहाडि़यों में दूर-दूर करते जीवन से भाग कर पाकिस्तान में बीबियों और अश्लील चित्रों की सी़डी. के ढेर में छिप कर रह रहे ओसामा को मछलियों की चीर-फाड़ नसीब हुई। इस या इसके जैसे लोग इसी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। विशेष बात उसकी दुर्गति होने के पीछे छिपे कारण हैं। आइये उन पर विचार किया जाये।
इराक में टिगरिस नदी के किनारे बसा समारा नगर एक समय में अब्बासी खिलाफत का केंद्र रह चुका है। इसी नगर के देहाती क्षेत्र में बगदादी पैदा हुआ। बगदादी अपने अध्ययन के समय एकाकी रहने वाला था। अल बगदादी में अपने शुरुआती जीवन में फुटबॉल के लिए एक जुनून था। 2003 तक वह बगदाद के पश्चिमी किनारे पर एक निर्धन बस्ती में स्थानीय मस्जिद से जुड़े एक छोटे से कमरे में रहता था। वहां उसे शांत, कम बोलने, कम मिलने-जुलने वाला माना जाता था। अपने काम से काम रखने वाला अबू बकर अल बगदादी अकेले समय बिताता था।
यहां रहते हुए उसके जीवन में एक बदलाव का क्षण आया और उसने बगदाद के इस्लामी विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया। इस्लामी विश्वविद्यालय से उसने बी़ए़, एम़ए़ और इस्लामी अध्ययन में पी़एच़डी़ प्राप्त की। यही शिक्षण वह कारण था जिसने अबू बकर अल बगदादी के जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन ला दिया। सामान्य शांत रहने वाला व्यक्ति, फुटबॉल के लिए दीवाना जिहाद का दीवाना बन गया। उसकी चिंत्तन-प्रणाली बदल गयी और वह पेले, मैरिडोना, बैकहम, लोथार मथायस जैसे विश्व प्रसिद्घ फुटबॉल खिलाडि़यों की जगह अबू बकर, उमर फारुख जैसे इस्लामी खलीफाओं के लिए दीवाना हो गया। उसके जीवन के अन्य सारे रस सूख गए। कत्ताल फी सबीलिल्लाह जिहाद फी सबीलिल्लाह उसका जीवन दर्शन हो गया। गैर-मुस्लिमों के लिए घृणा से भरी बातें, जीवन शैली उसका ध्येय बन गयी। कुरआन और हदीसों का ये दर्शन उसका जीवन दर्शन बन गया।
ओ मुसलमानों तुम गैर मुसलमानों से लड़ो़ तुममें उन्हें सख्ती मिलनी चाहिये 9-123
और तुम उनको जहां पाओ कत्ल करो-191
काफिरों से तब तक लड़ते रहो जब तक दीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिये न हो जाये 8-39
ऐ नबी! काफिरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो। उनका ठिकाना जहन्नुम है 9-73 और 66-9
अल्लाह ने काफिरों के रहने के लिये नर्क की आग तय कर रखी है 9-68
उनसे लड़ो जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं, न आखिरत परय जो उसे हराम नहीं समझते जिसे अल्लाह ने अपने नबी के द्वारा हराम ठहराया है। उनसे तब तक जंग करो जब तक कि वे जलील हो कर जजिया न देने लगें 9-29
मूर्ति पूजक लोग नापाक होते हैं 9-28
जो कोई अल्लाह के साथ किसी को शरीक करेगा, उसके लिये अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है़ उसका ठिकाना जहन्नुम है 5-72
तुम मनुष्य जाति में सबसे अच्छे समुदाय हो, और तुम्हें सबको सही राह पर लाने और गलत को रोकने के काम पर नियुक्त किया गया है
3-110
इस चिंतन को कार्यान्वित करने के लिए उसने 2003 में इराक में अमरीकी हस्तक्षेप के बाद सुन्नी लड़ाकों का समूह बनाया और उसकी शरीयत समिति के प्रमुख के रूप में कार्य किया। 2006 में उसने अपने सुन्नी लड़ाकों के समूह को मुजाहिदीन शूरा परिषद (एम़एस़सी़) में मिला दिया। 2006 में इराक के इस्लामी राज्य आईएसआईएस के रूप में एम़एस़सी. के नाम बदलने के बाद, अल बगदादी आईएसआईएस की शरीयत समिति का पर्यवेक्षक और समूह के वरिष्ठ सलाहकार परिषद का एक सदस्य बन गया। ईराक के इस्लामी राज्य आईएसआईएस को इराक में अल-कायदा के रूप में जाना जाता है। अल बगदादी को इस्लामी राज्य आईएसआईएस के नेता अबू उमर अल बगदादी की मृत्यु के बाद 16 मई 2010 को आईएसआईएस का नेता बनाया गया। अबू बकर अल बगदादी ने खुद को मुसलमानों की दुनिया का नेता घोषित कर दिया और उसके हिमायतियों ने संसार भर के मुसलमानों को उसका आदेश मानने, उसका समर्थन करने के लिए कहा। अपनी मृत्यु तक के इस काल में अबू बकर अल बगदादी ने यूरोप में इस्लामी खिलाफत स्थापित करने के इरादे जताये। स्पेन को दुबारा मुसलमानों की अधीनता में लाने की बड़ मारी। रोम को इस्लामी केंद्र बनाने की लम्बी हांकी।
अबू बकर अल बगदादी अक्तूबर 2014 में गठबंधन बलों द्वारा शुरू की तीव्र बमबारी अभियान के कारण गंभीर रूप से घायल हुआ और अब उसकी मौत की सूचना मिली है। इसकी पुष्टि केवल ईरान कर रहा है मगर इसे झूठा मानने का कोई कारण नहीं है, चूंकि आगे-पीछे ये होना ही था। तलवार को जीवन दर्शन मानने वाले तलवार के द्वारा ही मारे जाने के लिए अभिशप्त होते हैं। इसकी पक्की पुष्टि तो तभी संभव है जब खांटी इस्लामी लड़ाकों के प्रिय तरीके से उसका सर काट कर भाले पर घुमाया जाये अन्यथा ऐसे समाचारों की प्रामाणिक पुष्टि कभी संभव नहीं है। 'मर गया और दफना दिया गया' ही ऐसे लोगों का भाग्य है। किसी विश्व-विख्यात नेता के देहावसान की तरह से लाखों लोगों के सम्मिलित होने, लाखों लोगों की शोक-वेदना के साथ उसका अंतिम संस्कार तो होने से रहा बल्कि दफनाते समय भी उसके गिने-चुने हिमायतियों को इसकी आशंका सता रही होगी कि कहीं फिर विमान बम न बरसाने लगें और उनकी हड्डियों का भी कीमा न हो जाये।
अबू बकर अल बगदादी ही यजीदी समूहों के नरसंहार का आधार था। सोशल मीडिया में इसी के हत्यारों द्वारा शिया समूहों, ईसाइयों, यजीदियों की गर्दनें काटने, मरते हुए लोगों के सरों पर ठोकरें मारते लोगों के पैशाचिक वीडियो बनाये-भेजे गए। ऐसी जघन्य हत्याओं के समय अल्लाहो-अकबर के नारे लगाते लोगों के उन्मादी बोल इसी के समूह की करतूतें हैं। शिया, ईसाई, यजीदी लड़कियों के जंजीरों में बांध कर बेचने की मंडियां इसी ने लगवायी थीं। जिहाद के विस्तृत दर्शन के रूप में शत्रु पक्ष की स्त्रियों को लौडी बनाया जाना वैसे तो मूल इस्लामी ग्रंथों में ही है मगर इस शताब्दी में इस घोर निंदनीय इस्लामी व्यवस्था का दुबारा चलन इसी की प्रेरणा से हुआ था। मुंबई का आरिब अपने तीन दोस्तों अमन, फहद और साहिम के साथ आईएसआईएस के लड़ाकों की यौन-सेवा से तंग आकर भारत वापस भाग आया। उसके दुर्गति करवा कर लौटने के पीछे 'जिहादियों की हर तरह से खिदमत करनी चाहिए' इसी का
दर्शन है।
संभव है कि बगदादी जीवित बच जाने की अफवाहें उड़ाई जाएं। ये भी संभव है कि वह इस हमले में जीवित बच जाये मगर उसके नसीब में आगे-पीछे यही निन्दित मृत्यु है। भारतीय परम्परा में मृतक सम्मान पाने का अधिकारी है। हमारा समाज दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति का उसके देहांत के बाद सम्मान करता है या चुप लगा जाता है, मगर इस सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति का जिस उपद्रवी विचारधारा के कारण रूपांतरण हुआ है उसकी भर्त्सना, निंदा न करने से उसे बढ़ावा मिलता है।
ऐसे महादुष्टों की और उन्हें उपजाने, पनपाने वाली विचारधारा की भर्त्सना आवश्यक है। एक-आध दिन में ओसामा बिन लादेन जी के मानसिक सम्बन्धी दिग्विजय जी सार्वजनिक मंच पर असह्य वेदना दिखाते हुए प्रकट होने ही वाले होंगे। उनके कीर्तन के लिए भी तैयार रहिये। -तुफैल चतुर्वेदी
संपर्क सूत्र: 09711296239
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