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अमरीका स्थित 'पीयू' नामक विश्व की अग्रणी सर्वेक्षण संस्था की गत अप्रैल महीने में प्रकाशित सर्वेक्षण रिपोर्ट ने सबकी नींद उड़ा दी है। रिपोर्ट बताती है कि आज से 35 वर्ष बाद विश्व में मुस्लिमों की संख्या 120 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी एवं ईसाइयों की 100 करोड़ से ज्यादा। इससे विश्व में अनेक देशों का भूगोल बदल जाएगा, इस तरह की टिप्पणी इस रिपोर्ट में है। आज विश्व का हर देश इस स्थिति के अपने देश पर होने वाले असर के बारे में सोच रहा है।
पिछले 1000 वर्षों में विश्व में हर देश का भूगोल इन्हीं आंकड़ों से बदला है, यह सचाई है। बल्कि 'मेरा पंथ ही असली, मेरे ईश्वर ही असली ईश्वर, कोई अन्य किसी ईश्वर को मानने का प्रयास करे तो उसे मारने का अधिकार मुझे है', इस तरह के दुराग्रह से भी विश्व में दो हजार वर्षों का इतिहास और भूगोल बदला है। इसलिए 'पीयू' की रिपोर्ट का क्या परिणाम होगा, इस पर अलग टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है।
फिर भी एक तरह से यह रिपोर्ट विश्व में सभी देशों की सरकारों को चिंतित करने वाली है, पर कई मायनों में अपूर्ण है, क्योंकि इसमें दिए हुए आंकड़े जनसंख्या की वृद्धि प्रजनन संख्या से जुड़े अनुमान पर आधारित है। इसमें फिलहाल विश्व में जारी कन्वर्जन की मुहिमों से बढ़ने वाली संभाव्य संख्या का अनुमान नहीं है। ईसाई और मुस्लिमों के पूर्वनियोजित कार्यक्रमों के अनुसार जो वृद्धि जारी है वह भी इसी तरह एक अरब की संख्या की तरफ इशारा करती है। भारत,अफ्रीका का सहारा रेगिस्तान इलाका और लातिनी अमरीका में कन्वर्जन का जो लक्ष्य सामने रखकर काम चल रहा है उसकी ओर इस अवसर पर ध्यान देना आवश्यक बन गया है। सवाल है कि क्या ऐसे कन्वर्जन से कोई राज्य अथवा कोई देश सौ प्रतिशत अन्य मतावलंबियों का हो सकता है और इससे उस प्रदेश का इतिहास-भूगोल बदल सकता है? लेकिन जिस तरह बैप्टिस्ट मिशन द्वारा संयुक्त रूप से भारत के पूवार्ेत्तर में नागालैण्ड, मिजोरम,मेघालय जैसे प्रदेशों को 100 प्रतिशत ईसाई बनाया गया है, वह उदाहरण भारतीयों को तो कम से कम नहीं भूलना चाहिए। अब तो चीन में भी इस कन्वर्जन की संभावना से ईसाई मिशनरी और चीन की कम्युनिस्ट सरकार के बीच 'आमने सामने' की लड़ाई चल रही है। चीन में 15 साल में 25 करोड़ ईसाई जनसंख्या बनाने का लक्ष्य बनाया गया है। भारत में भी अब अरुणांचल, झारखंड और ओडिशा के वनवासी इलाकों में ही ऐसी ही मुहिम चल रही है। हम किसी भी इलाके में रह रहे हों, वहां पर मिशनरियों की पांच पांच लोगों की टीमें कार्यरत होने का दृश्य हमें दिखाई देता है। भारत में ईसाई मिशनरियों की संख्या को लेकर अलग अलग आंकड़े चाहे जितने सीमित हों, वास्तव में भारत में इनकी संख्या लाखों में है, यह गौर करने की बात है। उनके आंकड़े कब एवं कितने बढ़ेंगे, इसका अनुमान लगाते समय नागालैंड और मिजोरम के बारे में भी अनुमान लगाया जाना जरूरी है।
किसी इलाके में किन्हीं मतावलंबियों के आंकड़े जनसंख्या वृद्धि के प्राकृतिक सिद्धांत के अनुसार बढ़ रहे हैं या कन्वर्जन से बढ़ रहे हैं, यह मामला बहुतांश प्रकरणों में कम महत्वपूर्ण होता है। जो आंकड़े बढ़ते हैं वे उन देशों की भौगोलिक सीमाएं बदलने के लिए बढ़ते हांे, तो दोनों मामलों की ओर बारीकी से देखना आवश्यक है। यह 'पीयू' संस्था की रिपोर्ट क्या है? क्या यह संस्था इस तरह के आंकड़े बताने के संदर्भ में विश्वस्त है? यह मजहबी आंकड़ों में वृद्धि कुछ लक्ष्य सामने रखकर हो रही है अथवा अपने आप हो रही है, यह तो ध्यान में लेना ही होगा। लेकिन इन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पिछले 1000 अथवा 500 वर्ष में इससे जो बदलाव हुए उनमें 150 से अधिक देशों में 500 एवं 1000 वर्ष तक चर्च की लूट जारी थी। यह जो असलियत है उसे नजर में रखकर स्थिति से निबटा जा रहा है या नहीं, यह देखना आवश्यक है।
एक तो यूरोप और अमरीका, इन प्रदेशों को केंद्र में रखकर अगले 40 वर्षों में मजहबी जनसंख्या वृद्धि का यह विषय लेने को 'पीयू' संस्था ने प्राथमिकता दी, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण कारण है। इसका ऊपरी तौर पर कारण यह है कि 11 सितम्बर, 2001 को न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो टावर गिरने पर अमरीका में मुस्लिम देशों एवं मुस्लिम समाज को लेकर गुस्सा पैदा हुआ था। वहां के मुस्लिम समाज ने भी इस तरह की भूमिका अपनाई कि हमारा और जिहादी संगठनों का कोई संबंध नहीं है। कोई भी अमरीकी व्यक्ति अमरीका से जितना प्रेम करता है उतना ही प्रेम हम भी करते हैं। इसके लिए आप हमारी कोई भी परीक्षा ले लें। वास्तव में उनका बर्ताव भी वैसा ही दिखता था। लेकिन पांच वर्ष बाद 'पीयू' संगठन ने एक बात पर गौर किया कि जो अगली पीढ़ी को जन्म दे सकते हैं वे कटाक्षपूर्वक अगली पीढ़ी को जन्म दे ही रहे हैं। सन् 2006 में ही उनके आंकड़े 150 गुना बढ़ गए थे। तभी 'पीयू' ने संदेह व्यक्त किया था कि सन् 2011 की आम जनगणना तक उनके आंकड़े दोगुना होने की संभावना है। जो स्थिति अमरीका की है वही स्थिति पूरे यूरोप की है। रूस की स्थिति इससे भी भयंकर है। तब उन्हें संदेह हुआ कि क्या यह उनका 40-50 वर्षों का दीर्घकालीन कार्यक्रम तो नहीं है? और वही हुआ जिसका उनको संदेह था। इसलिए उन्होंने सन् 2010 में ही विश्व के मुस्लिम, ईसाई, हिंदू, बौद्ध, यहूदी और किसी भी मत पर विश्वास न करने वालों के बारे में अगले 40 वर्षों का जायजा लेने का निश्चय किया।
इस सर्वेक्षण में जो मुद्दे सामने आए, उनके अनुसार सन् 2050 में यानी 21वीं सदी के मध्यबिंदु पर विश्व में अलग-अलग मतावलंबियों के आंकड़े इस प्रकार होंगे। आज विश्व में मुस्लिम 160 करोड़ हैं, वे 120 करोड़ से बढ़कर 280 करोड़ होंगे। यह बताना कठिन है कि 40 वषोंर् में 40 प्रतिशत की यह वृद्धि व्यावहारिक है या अतिशयोक्ति है। इसके लिए एक तो विश्व में पिछले 30-35 वर्षों की उनकी वृद्धि का अध्ययन करना होगा और उसी के साथ 'पीयू' के आज तक के अलग अलग वैश्विक रिपोर्टों का जायजा लेकर उनकी विश्वसनीयता जांचनी होगी। पहले हम देखेंगे कि इस संस्था के निष्कर्ष क्या हैं। उनका ईसाइयों के लिए जो आंकड़ा है वह बताता है कि अगले 35 वर्षों में उनका 70 करोड़ से बढ़कर 290 करोड़ होना संभव है। इसमें एक मजे की बात यह है कि इस दौरान यूरोप, अमरीका एवं यूरोपीय जनसंख्या के प्रभाव वाले देशों में ईसाइयों की संख्या 30 करोड़ से कम होगी। इसलिए रिपोर्ट में जो 70 करोड़ की वृद्धि दिखाई गई है वह वास्तव में 100 करोड़ की है। लेकिन यूरोप के लोगों में ईसाई परंपरा त्यागने की संभावना के कारण वास्तव में यह जोड़ केवल 70 करोड़ का होगा। इसी दौरान हिंदुओं की संख्या 105 करोड़ से 130 करोड़ पर जाएगी, लेकिन भारत में मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात काफी बढ़ा हुआ होगा।
यह देखना आवश्यक है कि इस तरह के बड़े निष्कर्ष बताने वाली यह संस्था है कैसी और उसके इससे पूर्व गौर करने लायक महत्वपूर्ण अनुभव क्या हैं? एक बात सच है कि यह संस्था विश्व में ईसाई साम्राज्य की ही तरफदारी करने वाली है। ब्रेकिंग इंडिया पुस्तक के लेखक डा. राजीव मेहरोत्रा का तो कहना है कि विश्व में ईसाई साम्राज्य बढ़ाने में इस संस्था के काम का बड़ा योगदान है। इस निष्कर्ष को देखते हुए एक बात ध्यान में लेनी होगी कि इस तरह पूरी दुनिया में सर्वेक्षण अनुमान व्यक्त करने वाली संस्था अथवा संगठन किसी की मदद से ही काम करता है। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट का व्यय ही 100 करोड़ रुपए हो सकता है और इसके लिए पैसे आसमान से नहीं टपकते। फिर भी संक्षिप्त में यह कहना आवश्यक है कि इस संस्था के सर्वेक्षण के आंकड़े वास्तविकता के निकट होते हैं। अनेक जानकारों का कहना है कि ईसाइयों के जो आंकड़े व्यक्त किए गए हैं उसमें 10 प्रतिशत वृद्धि एवं मुस्लिमों के आंकड़ों में 10 प्रतिशत कमी के वास्तविकता के अधिक निकट होने की संभावना है। लेकिन इससे पूर्व में 'पीयू' के जो आंकड़े हैं उसमें पांच-छह प्रतिशत भूल-चूक मान लें तो भी उन् ाके आंकड़े कभी गलत नहीं होते।
'पीयू' द्वारा दस वर्ष पूर्व निकाला गया यह निष्कर्ष, कि अमरीका एवं यूरोप में हिंदूओं का प्रभाव बढ़ेगा, भी गौर करने लायक है। 10 वर्ष पूर्व विश्व के एक ख्यातिप्राप्त साप्ताहिक 'न्यूजवीक' ने तो एक विशेषांक भी प्रकाशित किया था। उसमें इस विश्वप्रसिद्घ साप्ताहिक की संपादिका लिशा मिलर ने तो उस समय यह संकेत दिया था कि पूरा अमरीका धीरे-धीरे भारतीय जीवनपद्धति को स्वीकारने की दिशा में बढ़ रहा है। यह निष्कर्ष हिंदुओं को खुश करने के लिए था या अतिशयोक्ति के सहारे ईसाइयों को सचेत करने वाला था, इस पर आज कुछ बोलना उचित नहीं होगा। लेकिन इस रिपोर्ट का मंतव्य देखें तो अगले 30-35 वर्षों में विश्व में हर देश के लिए मुस्लिम जनसंख्या एक समस्या बन जाएगी, यह संकेत इस रिपोर्ट ने दिया है। इंडोनेशिया में आज 20 करोड़ 50 लाख मुस्लिम हैं एवं भारत में 17 करोड़ 70 लाख मुस्लिम हंै। भारत में 35 वर्ष बाद मुसलमानों का आंकड़ा 20 करोड़ 50 लाख से अधिक होगा एवं भारत विश्व में सबसे अधिक ईसाई जनसंख्या वाला देश होगा, यह इसमें कहा गया है। सन् 2050 में विश्व में 31 प्रतिशत ईसाई होंगे और 30 प्रतिशत मुस्लिम होंगे, लेकिन बाद के 20 वर्षों में दोनों में उसी अनुपात में वृद्धि होकर विश्व में 31 प्रतिशत मुस्लिम तथा 30 प्रतिशत ईसाई होने की संभावना उन्होंने व्यक्त की है। इस रिपोर्ट में यूरोप स्थित मुस्लिमों की संख्या को लेकर वृद्धि के काफी विवरण दिए गए हैं। उनके मत में 2010 में यूरोप में 5़ 9 प्रतिशत मुस्लिम थे, जो 2050 में 10 प्रतिशत होंगे। इससे भी अधिक उनकी एक ही गंभीर चेतावनी है। वह यह कि यूरोप में सभी अन्य मतावलंबी एवं पंथनिरपेक्ष आदि लोगों की तुलना में ईसाई 45़ 4 प्रतिशत यानी अल्पसंख्य होंगे। ब्रिटेन में भी यही स्थिति होगी। यूरोप में मुस्लिमों की जो वृद्धि होगी वह मुख्यत: फ्रांस, जर्मनी और बेल्जियम में होगी।
भारत को इन आकड़ों पर गंभीर नजर इस कारण से डालनी आवश्यक है कि ये आंकड़े केवल जनन नियम के अनुसार बढ़ने वाले हैं। उसी के साथ चीन, भारत, अफ्रीका में बढ़ते कन्वर्जन से मुस्लिम संगठनों के इस बारे में सामने आने वाले आंकड़े अधिक भयावह हैं। संख्या की वृद्धि के सहारे इन देशों पर उन्होंने 1000 वर्ष तक लूट और गुलामी लादी है। भारतीय जनता ने यह स्थिति इतने दुर्भाग्य का सामना करके झेली है कि इसके लिए और किसी को जिम्मेदार मानने की बजाय 'ईश्वर ने ही हमें यह स्थिति दिखाई है उसे कोई क्या कहे' यह मानकर चुप बैठने का विकल्प स्वीकार किया है। भारत की दिृष्ट से ये सारे आंकड़े गंभीर तो हैं ही, लेकिन विश्व में जिन 150-200 देशों पर इन लोगों ने कहीं 200 वर्ष तो कहीं 1000 वर्ष राज किया है। उनकी दृष्टि से यह प्रतीत होना संभव है कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण साबित हो सकता है।
भारत की दृष्टि से और भी एक निरीक्षण दर्ज करना आवश्यक है। पूरे विश्व की दृष्टि से विचार करें तो भारत सबसे अधिक संवेदनशील स्थिति में होगा, क्योंकि यहां पहले 400 वर्ष उन लोगों का राज था जो आज अल कायदा के मुख्यालय वाले स्थान से थे। बाद में 400 वर्ष मुगलों का राज था और उसके बाद 200 वर्ष ब्रिटिशों का राज था। सबसे अधिक आक्रमण और सबसे अधिक लूट होकर भी आज 80 प्रतिशत लोग अपने पुरखों के धर्म में हैं। ऐसे एकतरफा उदाहरण दुनिया में अन्यत्र मिलना कठिन हंै। शायद पिछले एक हजार वर्र्ष के आक्रमण के विरोध में पूरे विश्व को संगठित करने की जिम्मेदारी भी भारत पर ही होगी। — मोरेश्वर जोशी
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