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बदहवास दौड़ती बांदी का हांफते लहजे में कहना… साहिबे-आलम ने बुलंद दरवाजा पार कर लिया है… जा ये मोतियों की माला तू ले ले। साहिबे-आलम ने वह दरवाजा पार कर लिया है… साहिबे-आलम वहां आ चुके हैं… साहिबे-आलम वहां से गुजर रहे हैं… बिलकुल मुगले-आजम का सा शहजादा सलीम की वापसी का सा दृश्य… महारानी जोधा बिलबिलाकर कह रही हैं… मेरी मामता (ममता नहीं कहा था) छलछला उठी है… ऐसा लग रहा है मेरी छातियों में दूध उत्तर आया है। ढोल-नगाड़े बज रहे हैं। घर के बाहर पटाखे छूट रहे हैं। बंदीजन आर्तनाद कर रहे हैं। हिजड़ों के झुण्ड बधाइयां गा रहे हैं। हाय हाय ये अनार तो छुड़ाने रह ही गये…मुई कोई ये रॉकेट भी तो छुड़ाओ…अरी बचके तेरे लहंगे में न घुस जाये…चुप कर चुड़ैल…ही ही ठी ठी
जंघा भूमि (थाईलैण्ड) में चिंतन-मनन कर 45 वर्ष के कोमल-किसलय युवराज लौट आये हैं। लगभग 'प्रकट भये नन्दलाल तारण भाव सागरी' का सा वातावरण बनाया जा रहा है। नन्द लाल या कोई के लाल पर जोर नहीं है अपितु तारण भाव सागरी…पर ठेल-ठाल है।
आते ही युवराज ने भूमि बिल पर वक्तव्य दिया। बांदियां निहाल हैं। सबको महारानी से मोतियों की माला की आशा है…उई देख न कैसे बोल रहे हैं…हाय मैं वारी जाऊं …अरे राजमाता कहां मर गयीं…मेरी तो तारीफ करते-करते जबान ही सूख गयी…अरी कोई बियर तो पिलाओ… अरे इस चुड़ैल की भी सुनो… ही ही ठी ठी यहां एक बड़ी महत्वपूर्ण घटना याद हो आयी। 2 वर्ष पहले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मध्य रात्रि में एक विदेशी उतरा।
बाहर आकर उसने टैक्सी चालक से जयपुर ले चलने के लिए कहा। रात के 3 बज चुके थे। बैठते हुए उसने पूछा जयपुर कितनी दूर है। चालक ने बताया कोई खास नहीं बीच में बस कुछ खेत हैं। विदेशी टैक्सी में बैठते ही सो गया। आंख खुली तो देखा बाहर धूप निकल आई है और यात्रा चल रही है। उसने टैक्सी चालक से पूछा 'तुम तो कह रहे थे बीच में बस कुछ खेत हैं मगर अब तो दिन निकलने वाला है? किसके खेत हैं? टैक्सी चालक ने जवाब दिया 'राबर्ट वाड्रा के ' प्रकट भये नन्दलाल तारण भाव सागरी… ही ही ठी ठी ल्ल प्रस्तुति: तुफैल चतुर्वेदी
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