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पटना में 11 और 12 अप्रैल को प्रज्ञा प्रवाह की प्रांतीय इकाई 'चिति' द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई। इसका विषय था 'एकात्म मानववाद के संदर्भ में लोकतंत्र एवं लोकमत परिष्कार।' संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ़ मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि भारतीय अवधारणा को अभी समझा जाना बाकी है। भारतीय चिंतन को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने समयानुकूल समझाने का प्रयास किया था। पाश्चात्य चिंतन में व्यक्ति सिर्फ एक अंक है, जबकि भारतीय चिंतन मनुष्य को समग्रता के साथ जानना चाहता है। मनुष्य को मन, बुद्धि, चित्त और आत्मा के संदर्भ में समझना चाहिए। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल जी ने भारतीय चिंतन परंपरा को आधुनिक संदर्भ में परिभाषित करने का प्रयास किया। उनका एकात्म मानवदर्शन प्रत्येक के लिए अनुकरणीय एवं मननीय है।
प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता एवं एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास संस्थान (नई दिल्ली) के अध्यक्ष डॉ़ महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि स्वदेशी और विदेशी पर व्यापक बहस चल रही है। आवश्यकता है कि स्वदेशी को युगानुकूल तथा विदेशी को स्वदेशानुकूल बनाया जाए। संगोष्ठी में पांच तकनीकी सत्र भी हुए। मुक्त चिंतन सत्र की अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ़ संजय पासवान ने की और मुख्य वक्ता थे रामभाऊ महालगी प्रबोधिनी, मुंबई के निदेशक डॉ़ विनय सहस्रबुद्धे।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि भारतीय चिंतन को ठीक ढंग से दुनिया समझ नहीं पाई है। यहां जनता की इच्छा सवार्ेपरि होती थी, बशर्ते वह मर्यादित और तार्किक हो। भारत में हमेशा जनतंत्र रहा है। राजशाही में भी जनतंत्र के बीज देखने को मिलते थे। संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों से आए 74 विद्वानों ने हिस्सा लिया। 41 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। चिति के प्रांत संयोजक कृष्णकांत ओझा ने बताया कि चिति द्वारा नियमित विचार गोष्ठियां आयोजित की जाएंगी। ल्ल संजीव कुमार
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