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काशी से लौटकर अरुण कुमार सिंह
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (जिसे अंग्रेजी में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) कहा जाता है) का शताब्दी वर्ष शुरू हो चुका है। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा 1916 में वसंत पंचमी के दिन स्थापित यह विश्वविद्यालय आज देश के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों में है। मई, 2010 में हुए इण्डिया टुडे-नील्सन सर्वेक्षण ने इस विश्वविद्यालय को देश के दस श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में सबसे श्रेष्ठ माना था। 1360 एकड़ में फैला यह विश्वविद्यालय मालवीय जी की दूरदर्शिता और वास्तुकला में उनकी अभिरुचि का सजीव प्रमाण है। विश्वविद्यालय का मानचित्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी के चांद के समान है, जो समस्त दशाओं में एक समान रहता है। विश्वविद्यालय में एक-एक ईंट सोच-समझकर विशेष प्रयोजन से रखी गई है और हर ईंट पर हिन्दी में 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' लिखा गया है। यह विश्वविद्यालय इतना दिव्य है कि जिन लोगों ने प्राचीन नालन्दा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों के बारे में सुना या पढ़ा है वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में आकर उनकी अनुभूति कर सकते हैं।
इस विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां नर्सरी से लेकर डॉक्टरेट तक की शिक्षा दी जाती है और दुनिया में शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिसकी पढ़ाई न होती हो। विश्वविद्यालय में प्राच्य विद्या और आधुनिक शिक्षा का समावेश है। इस समावेश को विश्वविद्यालय के कुलगीत के रचयिता और महान वैज्ञानिक प्रो़ शान्ति स्वरूप भटनागर ने इन शब्दों में व्यक्त किया है-
'मधुर मनोहर अतीव सुन्दर
यह सर्व विद्या की राजधानी,
प्रतीचि-प्राची का मेल सुन्दर
यह विश्व विद्या की राजधानी।'
मालवीय जी इस विश्वविद्यालय के जरिए युवाओं को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अपनी संस्कृति, अपने धर्म, अपनी माटी, अपनी भाषा सबमें पारंगत कराना चाहते थे। इसलिए उन्होंेने आधुनिक शिक्षा का भारतीयकरण कर स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने के लिए विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग, मेडिकल और कृषि संकायों की तो स्थापना की ही, साथ-साथ संस्कृत विद्या और धर्म विज्ञान संकाय की भी नींव डाली। भारत ही नहीं विश्व में भी अपने ढंग का यह अनोखा संकाय है जिसका मुख्य उद्देश्य है प्राचीन ज्ञान को खंगाल कर उसे आज के संदर्भ में सामयिक बनाकर विश्व के सामने रखना।
विश्वविद्यालय के सिंह द्वार (मुख्य द्वार) पर महामना की विशाल प्रतिमा लगी है। वहीं वे आगन्तुकों का स्वागत करते हैं। सिंह द्वार से प्रवेश करते ही बाईं ओर महिला महाविद्यालय दिखाई पड़ता है। दाहिनी ओर पूर्वांचल के 'एम्स' के नाम से विख्यात चिकित्सा संस्थान का 'सर सुन्दरलाल चिकित्सालय' है, जो कम खर्च में प्रतिदिन हजारों मरीजों की सेवा आज भी करता है। आधुनिक युग की आवश्यकता का एहसास कराते हुए चिकित्सा संस्थान, चिकित्सालय के सामने ही स्थित है और विश्वविद्यालय के अंतिम छोर पर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी महामना के सपनों को कभी विस्मृत नहीं होने देता है।
इस अद्भुत आवासीय विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए महामना ने किसके आगे झोली नहीं फैलाई? काशी नरेश से भूमि दान मेंे ली, तो दरभंगा नरेश समेत लगभग सभी देशी रियासतों के राजाओं से महाविद्यालयों और छात्रावासों के निर्माण कराए। राय कृष्णदास जी से दान में दुर्लभ कला भवन प्राप्त किया, तो हैदराबाद के निजाम से शिक्षकों का आवास बनवाया। हैदराबाद के निजाम से दान प्राप्त करने के लिए उन्हें क्या-क्या पापड़ नहीं बेलने पड़े।
विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क अधिकारी (कार्यकारी) डॉ. राजेश सिंह के अनुसार इस समय विश्वविद्यालय में 33,000 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। इनमें से 18,000 छात्र विश्वविद्यालय परिसर में स्थित 75 छात्रावासों में रहते हैं। इन छात्रों को पढ़ाने के लिए 2000 से अधिक शिक्षक हैं। अन्य कर्मचारियों की संख्या 4500 से ऊपर है। 16 संकाय और 119 विभाग हैं। विश्वविद्यालय में बड़ी संख्या में विदेशी छात्र भी पढ़ते हैं। विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय केन्द्र के निदेशक प्रो. एच.बी. श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में यहां 64 देशों के छात्र अध्ययनरत हैं। इनमें दक्षेस देशों के छात्र सबसे अधिक हैं। इनके अलावा यूरोप, अमरीका, आस्ट्रेलिया, तुर्की, जर्मनी, इंग्लैण्ड आदि देशों के छात्र भी हैं। ये विदेशी छात्र समाज विज्ञान, संगीत, दृश्य कला, कृषि, वाणिज्य आदि विषयों की पढ़ाई करते हैं। इस समय इस विश्वविद्यालय के 45 देशों के विश्वविद्यालयों से सम्बंध हैं।
स्थापना
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के सम्बंध में 'मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र' की अनुसंधान अधिकारी डॉ. उषा त्रिपाठी कहती हैं, 'राजनीति, समाजसेवा और जनजागरण के क्षेत्रों में अनेकानेक उल्लेखनीय कार्य करने के पश्चात् भी मालवीय जी की आत्मा अतृप्त थी। शिक्षा के पश्चिमीकरण के कारण बदलते सामाजिक मूल्यों ने उन्हें भीतर से झकझोरा था। भारतीय संस्कृति के आधार पर नई पीढ़ी को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने इस विद्यालय की कल्पना सबसे पहले 1904 में की थी। 1905 में महाराजा काशी के सामने इसकी रूपरेखा प्रस्तुत की। 1906 में प्रयाग में माघ मेले के अवसर पर सन्तों को बताया। इसके बाद श्रृंगेरी मठ के तत्कालीन शंकराचार्य के अस्वस्थ होने पर इस काम में बाधा आई। 1911 में उन्होंने इस काम को एक बार फिर आगे बढ़ाया। तत्कालीन अंग्रेज सरकार को उन्होंने बताया कि वे एक ऐसे विशाल विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते हैं, जो आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ प्राचीन शिक्षा भी देगा, तो सरकार ने कहा कि जिस दिन 100 करोड़ रुपए जमा कर लेंगे उस दिन निर्माण कार्य शुरू कर देना। इसके बाद महामना अपनी जमी-जमाई वकालत छोड़कर चन्दा इकट्ठा करने में जुट गए और 1915 तक उन्होंने 100 करोड़ रुपए जमा कर लिए। इसके बाद उन्होंने निर्माण कार्य शुरू किया। 1916 से 1938 तक 16 विभाग बन गए थे। बाद में यह विश्वविद्यालय अपने विशाल रूप में आया। '
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के केन्द्र में है नवीन विश्वनाथ मंदिर। यह मंदिर प्राचीन और नवीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। मंदिर के पिछले भाग में सभी छात्रावास योजनाबद्ध ढंग से सिलसिलेवार बनाए गए हैं। ऐसी व्यवस्था रखी गई है कि छात्र को अपने विभाग में जाने के लिए ज्यादा दूरी तय न करनी पड़े। प्रत्येक संस्थान या संकाय के सामने उसका छात्रावास है। बीच में बस खेल का एक बड़ा मैदान है जिसे पार कर छात्र आसानी से अपने विभाग में पहुंच सकते हैं। छात्रावासों के पीछे शिक्षकों के आवास हैं। महामना का कैसा सुन्दर सपना था। छात्र जब चाहें अपने शिक्षक से संपर्क कर सकते थे और अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त कर सकते थे। विश्वभर की विद्याओं का विश्वविद्यालय
काशी से लौटकर अरुण कुमार सिंह
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (जिसे अंग्रेजी में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) कहा जाता है) का शताब्दी वर्ष शुरू हो चुका है। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा 1916 में वसंत पंचमी के दिन स्थापित यह विश्वविद्यालय आज देश के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों में है। मई, 2010 में हुए इण्डिया टुडे-नील्सन सर्वेक्षण ने इस विश्वविद्यालय को देश के दस श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में सबसे श्रेष्ठ माना था। 1360 एकड़ में फैला यह विश्वविद्यालय मालवीय जी की दूरदर्शिता और वास्तुकला में उनकी अभिरुचि का सजीव प्रमाण है। विश्वविद्यालय का मानचित्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी के चांद के समान है, जो समस्त दशाओं में एक समान रहता है। विश्वविद्यालय में एक-एक ईंट सोच-समझकर विशेष प्रयोजन से रखी गई है और हर ईंट पर हिन्दी में 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' लिखा गया है। यह विश्वविद्यालय इतना दिव्य है कि जिन लोगों ने प्राचीन नालन्दा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों के बारे में सुना या पढ़ा है वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में आकर उनकी अनुभूति कर सकते हैं।
इस विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां नर्सरी से लेकर डॉक्टरेट तक की शिक्षा दी जाती है और दुनिया में शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिसकी पढ़ाई न होती हो। विश्वविद्यालय में प्राच्य विद्या और आधुनिक शिक्षा का समावेश है। इस समावेश को विश्वविद्यालय के कुलगीत के रचयिता और महान वैज्ञानिक प्रो़ शान्ति स्वरूप भटनागर ने इन शब्दों में व्यक्त किया है-
'मधुर मनोहर अतीव सुन्दर
यह सर्व विद्या की राजधानी,
प्रतीचि-प्राची का मेल सुन्दर
यह विश्व विद्या की राजधानी।'
मालवीय जी इस विश्वविद्यालय के जरिए युवाओं को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अपनी संस्कृति, अपने धर्म, अपनी माटी, अपनी भाषा सबमें पारंगत कराना चाहते थे। इसलिए उन्होंेने आधुनिक शिक्षा का भारतीयकरण कर स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने के लिए विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग, मेडिकल और कृषि संकायों की तो स्थापना की ही, साथ-साथ संस्कृत विद्या और धर्म विज्ञान संकाय की भी नींव डाली। भारत ही नहीं विश्व में भी अपने ढंग का यह अनोखा संकाय है जिसका मुख्य उद्देश्य है प्राचीन ज्ञान को खंगाल कर उसे आज के संदर्भ में सामयिक बनाकर विश्व के सामने रखना।
विश्वविद्यालय के सिंह द्वार (मुख्य द्वार) पर महामना की विशाल प्रतिमा लगी है। वहीं वे आगन्तुकों का स्वागत करते हैं। सिंह द्वार से प्रवेश करते ही बाईं ओर महिला महाविद्यालय दिखाई पड़ता है। दाहिनी ओर पूर्वांचल के 'एम्स' के नाम से विख्यात चिकित्सा संस्थान का 'सर सुन्दरलाल चिकित्सालय' है, जो कम खर्च में प्रतिदिन हजारों मरीजों की सेवा आज भी करता है। आधुनिक युग की आवश्यकता का एहसास कराते हुए चिकित्सा संस्थान, चिकित्सालय के सामने ही स्थित है और विश्वविद्यालय के अंतिम छोर पर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी महामना के सपनों को कभी विस्मृत नहीं होने देता है।
इस अद्भुत आवासीय विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए महामना ने किसके आगे झोली नहीं फैलाई? काशी नरेश से भूमि दान मेंे ली, तो दरभंगा नरेश समेत लगभग सभी देशी रियासतों के राजाओं से महाविद्यालयों और छात्रावासों के निर्माण कराए। राय कृष्णदास जी से दान में दुर्लभ कला भवन प्राप्त किया, तो हैदराबाद के निजाम से शिक्षकों का आवास बनवाया। हैदराबाद के निजाम से दान प्राप्त करने के लिए उन्हें क्या-क्या पापड़ नहीं बेलने पड़े।
विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क अधिकारी (कार्यकारी) डॉ. राजेश सिंह के अनुसार इस समय विश्वविद्यालय में 33,000 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। इनमें से 18,000 छात्र विश्वविद्यालय परिसर में स्थित 75 छात्रावासों में रहते हैं। इन छात्रों को पढ़ाने के लिए 2000 से अधिक शिक्षक हैं। अन्य कर्मचारियों की संख्या 4500 से ऊपर है। 16 संकाय और 119 विभाग हैं। विश्वविद्यालय में बड़ी संख्या में विदेशी छात्र भी पढ़ते हैं। विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय केन्द्र के निदेशक प्रो. एच.बी. श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में यहां 64 देशों के छात्र अध्ययनरत हैं। इनमें दक्षेस देशों के छात्र सबसे अधिक हैं। इनके अलावा यूरोप, अमरीका, आस्ट्रेलिया, तुर्की, जर्मनी, इंग्लैण्ड आदि देशों के छात्र भी हैं। ये विदेशी छात्र समाज विज्ञान, संगीत, दृश्य कला, कृषि, वाणिज्य आदि विषयों की पढ़ाई करते हैं। इस समय इस विश्वविद्यालय के 45 देशों के विश्वविद्यालयों से सम्बंध हैं।
स्थापना
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के सम्बंध में 'मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र' की अनुसंधान अधिकारी डॉ. उषा त्रिपाठी कहती हैं, 'राजनीति, समाजसेवा और जनजागरण के क्षेत्रों में अनेकानेक उल्लेखनीय कार्य करने के पश्चात् भी मालवीय जी की आत्मा अतृप्त थी। शिक्षा के पश्चिमीकरण के कारण बदलते सामाजिक मूल्यों ने उन्हें भीतर से झकझोरा था। भारतीय संस्कृति के आधार पर नई पीढ़ी को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने इस विद्यालय की कल्पना सबसे पहले 1904 में की थी। 1905 में महाराजा काशी के सामने इसकी रूपरेखा प्रस्तुत की। 1906 में प्रयाग में माघ मेले के अवसर पर सन्तों को बताया। इसके बाद श्रृंगेरी मठ के तत्कालीन शंकराचार्य के अस्वस्थ होने पर इस काम में बाधा आई। 1911 में उन्होंने इस काम को एक बार फिर आगे बढ़ाया। तत्कालीन अंग्रेज सरकार को उन्होंने बताया कि वे एक ऐसे विशाल विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते हैं, जो आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ प्राचीन शिक्षा भी देगा, तो सरकार ने कहा कि जिस दिन 100 करोड़ रुपए जमा कर लेंगे उस दिन निर्माण कार्य शुरू कर देना। इसके बाद महामना अपनी जमी-जमाई वकालत छोड़कर चन्दा इकट्ठा करने में जुट गए और 1915 तक उन्होंने 100 करोड़ रुपए जमा कर लिए। इसके बाद उन्होंने निर्माण कार्य शुरू किया। 1916 से 1938 तक 16 विभाग बन गए थे। बाद में यह विश्वविद्यालय अपने विशाल रूप में आया। '
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के केन्द्र में है नवीन विश्वनाथ मंदिर। यह मंदिर प्राचीन और नवीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। मंदिर के पिछले भाग में सभी छात्रावास योजनाबद्ध ढंग से सिलसिलेवार बनाए गए हैं। ऐसी व्यवस्था रखी गई है कि छात्र को अपने विभाग में जाने के लिए ज्यादा दूरी तय न करनी पड़े। प्रत्येक संस्थान या संकाय के सामने उसका छात्रावास है। बीच में बस खेल का एक बड़ा मैदान है जिसे पार कर छात्र आसानी से अपने विभाग में पहुंच सकते हैं। छात्रावासों के पीछे शिक्षकों के आवास हैं। महामना का कैसा सुन्दर सपना था। छात्र जब चाहें अपने शिक्षक से संपर्क कर सकते थे और अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त कर सकते थे।
विश्वविद्यालय के अन्दर सड़कों की कुल लम्बाई 85 किलोमीटर है। हर सड़क के दोनों ओर घने वृक्षों की कतारें आंखों को प्रत्येक मौसम में आनन्द प्रदान करती हैं। विशेषता यह है कि एक सड़क के किनारों पर जो पेड़ हैं वे एक ही चीज के पेड़ हैं। इसलिए सड़कों का नामकरण उन पेड़ों के आधार पर ही किया गया है, जैसे- आम लेन, जामुन लेन, इमली लेन आदि। अधिकांश पेड़ आम के हैं, लेकिन इमली, जामुन, बरगद, नीम, पीपल, अमलतास, अशोक और गुलमोहर के पेड़ों की संख्या भी कम नहीं है। आज जहां यह विश्वविद्यालय है वहां पहले 11 गांव होते थे। इन गांवों के विस्थापित लोगों के लिए अलग से परिसर के बाहर बस्तियां बनाई गईं और उन्हें पक्के मकान, पक्की सड़कें आदि की सुविधाएं दी गईं। सुन्दरपुर और आदित्यनगर गांव इसी प्रयोजन से बसाए गए। विस्थापित ग्रामीणों के परिवार के एक सदस्य की नौकरी भी उसकी योग्यता के अनुसार महामना ने विश्वविद्यालय में सुनिश्चित की थी। महामना की व्यावहारिक और अपनाने वाली दूरदृष्टि के कारण विस्थपितों ने अपना घर, अपनी जमीन छोड़ने के पूर्व विरोध का कोई स्वर नहीं उठाया। स्थापना के पूर्व परिसर के पुराने कुंओं और पूजा स्थलों से तनिक भी छेड़छाड़ नहीं की गई है। बस सुरक्षा के लिए कुंओं को चौसल्ला से ढंक दिया गया है और देवस्थानों पर छोटे-छोटे मंदिर बना दिए गए हैं।
इस विश्वविद्यालय को विश्व का एक सम्मानित विश्वविद्यालय बनाने में महामना के अतिरिक्त सर सुन्दरलाल, डॉ़ पी़ एस़ शिवस्वामी अय्यर, डॉ़ एस़ राधाकृष्णन, डॉ़ अमरनाथ झा, आचार्य नरेन्द्र देव जैसे महान कुलपतियों की तपस्या, बुद्धिमत्ता और त्याग का भी महत्वपूर्ण योगदान है। महामना जीवन-पर्यन्त 'मालवीय भवन' में ही रहे। बिना किसी सुरक्षा गार्ड के वे नित्य प्रभातफेरी के लिए निकलते थे। जिस छात्रावास के सामने से गुजरते वहां के सारे छात्र उनके साथ हो लेते। इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रावास सबसे अंत में हैं। महामना बिना रुके वहां तक जाते थे। हजारों छात्र उनके साथ नित्य ही प्रभातफेरी किया करते थे। अंतिम सिरे पर पहंुच कर महामना कॉलेज की सामने वाली सड़क से होते हुए विश्वनाथ मंदिर पहुंचते। वहां पूजा-अर्चना के बाद सारे छात्रों को विदा करते और स्वयं टहलते हुए अपने आवास पर आते। वे जब तक जीवित रहे, यह परिपाटी चलती रही। कोई भी छात्र कभी भी अपनी समस्या के समाधान के लिए महामना से मिल सकता था। महामना सभी छात्रों को पुत्रवत स्नेह देते थे।
वाराणसी शहर के अन्दर कमच्छा में विश्वविद्यालय के तीन विद्यालय अब भी पूर्ण गरिमा से शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। हिन्दू विश्वविद्यालय की कक्षाएं सन् 1916 के पूर्व इन्हीं विद्यालयों में चलती थीं। विश्वविद्यालय का शिक्षा संकाय भी कमच्छा मेें ही स्थित है।
शायद ही किसी विश्वविद्यालय की अपनी हवाई पट्टी हो। विवेकानन्द छात्रावास की दक्षिण दिशा में फ्लाईंग क्लब की हवाई पट्टी स्थित है। फ्लाईंग क्लब के जरिए कोई भी छात्र विमान उड़ाने का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर सकता है। छात्रों में अपने पाठ्यक्रम की पढ़ाई के अतिरिक्त विभिन्न अभिरुचियों को मूर्त रूप देने के लिए 'हॉबी-सेन्टर' आज भी विद्यमान है। महामना का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने पर विशेष आग्रह रहता था। यही कारण था कि विश्वविद्यालय का इंजीनियरिंग कॉलेज, विश्वविद्यालय की आवश्यकता के अधिकांश उपकरण स्वयं बनाता था। छात्र और कर्मचारी, शिक्षकों की देखरेख में कॉलेज की कार्यशाला में अनेक वस्तुओं का उत्पादन करते थे। इंजीनियरिंग कॉलेज मेें लगे पुराने पंखे छात्रों ने स्वयं बनाए थे।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के पास चलता हुआ 'पावर हाउस' था जिससे चौबीस घंटे बिजली का उत्पादन होता था। विश्वविद्यालय को बाहरी बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। 'पावर हाउस' की ऊंची चिमनी दूर से ही सबका ध्यान आकृष्ट करती थी। अस्सी के दशक में एक आंधी आई, चिमनी टूट गई, गिरकर ध्वस्त हो गई।
साठ के दशक तक विश्वविद्यालय परिसर में आमिष भोजन करने और मद्यपान की पूरी पाबंदी थी। सभी छात्र सहर्ष इस नियम का पालन भी करते थे, लेकिन अब आधुनिकता के साथ सारे नियम शिथिल पड़ गए हैं। इसका असर भी देखने को मिलता है। विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन में मुख्य अभियन्ता रहे विपिन कुमार सिन्हा कहते हैं,'मालवीय जी ने विश्व के इस अद्वितीय विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए भारतीय नरेशों, उद्योगपतियों, व्यवसाइयों और आम जनता से प्राप्त छोटे-बड़े दान का ही उपयोग किया। भारत के वायसराय से उनके अच्छे संबंध थे। वे चाहते तो करोड़ों रुपए का सरकारी अनुदान प्राप्त कर सकते थे। लेकिन उन्होंने उधर दृष्टि तक नहीं दौड़ाई। जनता का काम जनता के सहयोग से पूरा किया। साठ और सत्तर के दशक में देश के प्रमुख राजनीतिक दल छात्र राजनीति में रुचि लेने लगे थे। सबका उद्देश्य होता था येन-केन प्रकारेण छात्र संघ पर कब्जा करना। इस प्रक्रिया में छोटी-छोटी समस्याओं के लिए भी बढ़-चढ़कर आन्दोलन करना आम बात थी। आन्दोलन के उग्र होने पर विश्वविद्यालय अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया जाता था। इसकी अवधि कम से कम एक महीने के लिए होती थी। अधिकतम अवधि सीमाहीन थी। इस कारण पूरे भारत में बी़ एच़ यू अपनी शैक्षणिक गतिविधियों के लिए कम और 'साइन डाई' के लिए अधिक प्रसिद्ध हो गया था। रही-सही कसर विश्वविद्यालयय मंे पूर्वांचल के शिक्षकों ने पूरी कर दी। महामना की पावन तपोभूमि राजनीति के अखाड़े में परिवर्तित हो गई थी। भला हो 1985 से 1991 तक विश्वविद्यालय के कुलपति रहे डॉ़ आऱ पी़ रस्तोगी का, जिन्होंने इन दुर्व्यवस्थाओं पर प्रभावी अंकुश लगाया। अब कोई छात्र संघ नहीं है और शैक्षणिक गतिविधियां सुचारू रूप से चल रही हैं। डॉ. रस्तोगी ने प्रवेश परीक्षा के आधार पर नामांकन की प्रक्रिया शुरू की। परीक्षा के माध्यम से विश्वविद्यालयय को योग्य छात्र तो मिल रहे हैं, लेकिन शैक्षणिक गतिविधियां कुछ बाधित-सी लगती हैं। इन सबको ठीक करने की जरूरत है। इस विश्वविद्यालय में इतनी क्षमता है कि वह सब कुछ ठीक कर सकती है, आवश्यकता है केवल दृढ़-इच्छाशक्ति की।'
मन्दिर कला का दर्शन
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में मन्दिर कला सर्वत्र दिखती है। सारे भवन मन्दिर शैली में बने हैं और हर चौराहे पर पीपल के पेड़ लगाए गए हैं। कुलपति कार्यालय और बाबा विश्वनाथ मन्दिर के बीच थोड़ी दूरी अवश्य है, पर दोनों आमने-सामने हैं। महामना की कल्पना थी कि बाबा विश्वनाथ के सामने इस विश्वविद्यालय के कुलपति बैठेंगे तो उनमें शंकर का भाव रहेगा और विवि की गरिमा सदैव बनी रहेगी।
'हिन्दुत्व के विचार पर रखी है नींव'
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) के कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी से हुई बातचीत के मुख्य अंश प्रस्तुत हैं।
हिन्दुत्व जीवन पद्धति है। इसी विचार के आधार पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चलता है, जबकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का आधार दूसरा है। फिर उसका आधार अल्पसंख्यक है,जबकि हमारे यहां ऐसी कोई बात नहीं है। इसलिए इस विश्वविद्यालय की तुलना अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से नहीं की जा सकती।
ल्ल अन्य विश्वविद्यालयों और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अंतर क्या है?
अनेक अंतर हैं। पहला, सबसे बड़ा अंतर है इस विश्वविद्यालय का वैचारिक अधिष्ठान। इसका जो वैचारिक अधिष्ठान है वह और किसी विश्वविद्यालय का नहीं है। दूसरा, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का निर्माण महामना मालवीय जी ने जनसहयोग के आधार पर किया था, जबकि अन्य जो विश्वविद्यालय आज इस रूप में हैं, उन्हें ऐसा जनसहयोग प्राप्त नहीं है। तीसरा, महामना ने राष्ट्र निर्माण के लिए इसकी स्थापना की थी। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य 'कैरियर बिल्डिंग' से ज्यादा राष्ट्र का निर्माण है। चौथी बात यह है कि मालवीय जी जानते थे कि कोई भी समाज या राष्ट्र अपनी संप्रभुता की रक्षा शिक्षा और ज्ञान की संप्रभुता के बिना नहीं कर सकता। इसलिए उन्होंने भारत को शिक्षा और ज्ञान की दृष्टि से संप्रभु बनाने के उद्देश्य से इस विश्वविद्यालय की स्थापना की। उनका मानना था कि भारतीय ज्ञान और शिक्षा की संप्रभुता तभी स्थापित हो सकती है जब यहां की शिक्षा भारतीय संस्कृति और उसके जीवन-मूल्यों पर प्रतिष्ठित हो। ऐसी शिक्षा ही लोगों के मस्तिष्क के साथ-साथ उनके हृदय का परिमार्जन करके सामाजिक उन्नयन का मार्ग प्रशस्त करेगी।
ल्ल क्या यह विश्वविद्यालय मालवीय जी के उद्देश्यों को पूरा करने में सफल हो रहा है?
बिल्कुल, बहुत हद तक यह विश्वविद्यालय महामना के विचारों और उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहा है। देश में जब आई.आई.टी. की स्थापना हुई तो उसमें इस विश्वविद्यालय का बहुत बड़ा योगदान रहा है। देश में विज्ञान, चिकित्सा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा के आधार को स्थापित करने में भी इस विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस विश्वविद्यालय ने बड़े-बड़े वैज्ञानिक, अच्छे शिक्षाविद्, साहित्यकार, जिनका वैचारिक अधिष्ठान भारतीय जीवन संस्कृति और जीवन-मूल्य में प्रतिष्ठित था, दिए हैं। चाहें वे शान्ति स्वरूप भटनागर हों, आचार्य नरेन्द्र देव हों, डॉ. राधाकृष्णन हों या अमरनाथ झा हों। ऐसे बड़े-बड़े लोगों के निर्माण में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आगे रहा है। इस विश्वविद्यालय ने जीवन के सभी क्षेत्रों में, जैसे-साहित्य, कला, विज्ञान, शिक्षा, तकनीक इन सब में उत्कृष्ट कोटि के लोगों का निर्माण किया है और इन सब ने बाद में राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई। अब तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चार लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। के.एन. राव, भगवान दास, डॉ. राधाकृष्णन और हाल ही में महामना मदनमोहन मालवीय को इस सम्मान से सम्मनित किया गया है। इसी से पता चलता है कि इस विश्वविद्यालय ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में काफी हद तक सफलता पाई है।
ल्ल विश्वविद्यालय की स्थापना के समय दुनियाभर में जितने विषयों की पढ़ाई होती थी उन सबको पढ़ाने की व्यवस्था मालवीय जी ने यहां की थी। क्या आज भी वह परंपरा चल रही है?
यह सर्व विद्या की राजधानी है। उस समय जितने विषय थे और आज भी हम जिन विषयों की कल्पना कर सकते हैं उन सबकी पढ़ाई यहां होती है। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा विषय होगा जिसकी पढ़ाई यहां न होती हो।
ल्ल जब कोई विषय कहीं पढ़ाया ही नहीं जाता हो तो उस विषय के विशेषज्ञ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए कहां से आते हैं?
महामना मालवीय जी तो देशभर में घूमते थे और संबंधित विषयों के विशेषज्ञों की तलाश करते थे। उन्होंने विद्वानों का चयन करते समय यह नहीं देखा कि उनके पास औपचारिक शिक्षा है या नहीं, उन्होंने केवल उनकी योग्यता को देखा और अपने साथ जोड़ लिया। जैसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, श्यामसुन्दर आदि। ऐसे लोगों को उन्होंने देशभर में ढूंढा और उन्हें यहां लाकर स्थापित किया। फिर इन्हीं लोगों ने विशेषज्ञों को तैयार किया।
ल्ल कहा जाता है कि तकनीकी शिक्षा में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय काफी आगे है। आजादी के बाद देश के निर्माण में यहां के आई.आई.टी. के छात्रों ने बड़ी भूमिका निभाई है। क्या आज भी यह स्थिति है?
यह बिल्कुल सही बात है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है जिसने तकनीकी में 'डिग्री'की उपाधि दी थी। इससे पहले तकनीकी के क्षेत्र में विश्वेश्वरैया संस्थान और आई.आई.टी., रुड़की केवल 'सर्टिफिकेट' देते थे।
ल्ल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इंजीनियर और डॉक्टर पूरी दुनिया में छाए हुए हैं। क्या उनकी संख्या बता सकते हैं?
सही आंकड़ा तो बताना मुश्किल है पर एक अनुमान है कि पूरी दुनिया में लगभग 10 लाख लोग ऐसे हैं जो इस विश्वविद्यालय से शिक्षा-दीक्षा लेकर अच्छा कार्य कर रहे हैं।
ल्ल कुछ लोग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की तुलना करते हैं। क्या यह उचित है?
इन दोनों विश्वविद्यालयों की तुलना उचित नहीं है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का वैचारिक अधिष्ठान हिन्दुत्व है और हिन्दुत्व की मूल अवधारणा है 'परमात्मानां एकोऽहम बहुस्याम्।' अर्थात् मैं अकेला हूं, अनेक रूपों में प्रकट हूं, इस आधार पर सृष्टि का निर्माण हुआ। इसीलिए हिन्दुत्व का आधार है 'वसुधैव कुटुम्बकम्।' हिन्दुत्व मानता है कि यह समस्त पृथ्वी परिवार है। इसीलिए इसका अगला सिद्धांत है 'सर्वे सुखिन: भवंतु' का। अर्थात् हिन्दुत्व सर्व समावेशी है। वह सबके सुख और कल्याण की बात करता है। यह पूजा पद्धति नहीं है, जीवन पद्धति है। इसी विचार के आधार पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चलता है, जबकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का आधार दूसरा है। फिर उसका आधार अल्पसंख्यक है,जबकि हमारे यहां ऐसी कोई बात नहीं है। इसलिए इस विश्वविद्यालय की तुलना अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से नहीं की जा सकती।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष पर विशेष
विश्वविद्यालय के महान कुलपति
विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति थे डॉ. सर सुन्दरलाल। दूसरे कुलपति थे डॉ. पी.एस. शिवास्वामी अय्यर और तीसरे कुलपति थे महामना मदनमोहन मालवीय। डॉ. एस. राधाकृष्णन भी कुलपति रहे थे। इन दिनों 26वें कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी का मार्गदर्शन इस विश्वविद्यालय को प्राप्त हो रहा है।
कैसे नाम पड़ा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
पहले इस विश्वविद्यालय का नाम था 'बेनारस यूनिवर्सिटी'। 1942 में विश्वविद्यालय की रजत जयन्ती के अवसर पर महात्मा गांधी आए थे। उन्हें यह नाम पसन्द नहीं आया। उन्होंने महामना से कहा कि आप तो हिन्दी के बड़े पक्षधर हैं, फिर अंग्रेजी में नाम क्यों रखा है? उनकी यह बात महामना को अच्छी लगी और उन्होंने घोषणा की कि अब इस विश्वविद्यालय का नाम 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' होगा।
विश्वविद्यालय की विशेषताएं
ल्ल यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है। यहां रहने वाले छात्रों को इन्टरनेट की सुविधा नि:शुल्क दी जाती है।
ल्ल काशी हिन्दू विश्वविद्याय भारत का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है जिसके पास अपनी हवाई पट्टी और तीन हेलीपैड हैं। इनका उपयोग एन.सी.सी. कैडेट्स के प्रशिक्षण के लिए किया जाता है।
ल्ल मालवीय भवन में प्रत्येक रविवार को गीता पर प्रवचन होता है। यह कार्य पहले स्वयं महामना करते थे। अब यह कार्य गीता समिति करती है।
ल्ल बहुत ही न्यूनतम शुल्क पर हर विषय की उच्च श्रेणी की पढ़ाई। निर्धन छात्रों से पढ़ाई और भोजन का शुल्क नहीं लिया जाता है।
ल्ल छात्रों के लिए विश्वविद्यालय परिसर में नि:शुल्क बस सेवा।
ल्ल परिसर में स्थित एलोपैथिक, होमियोपैथिक और आयुर्वेदिक अस्पतालों में सभी तरह के छात्रों के लिए नि:शुल्क चिकित्सा सेवा। छात्रावासों में भी चिकित्सा सेवा।
ल्ल परिसर में पशु चिकित्सालय है, जहां लोग अपने पशुओं का इलाज करवाते हैं।
ल्ल प्रत्येक विभाग में अलग-अलग पुस्तकालय हैं, जहां से छात्र हर प्रकार की पुस्तक प्राप्त करते हैं।
ल्ल भारत में सबसे अधिक शोध कार्य यहीं होते हैं।
ल्ल विशाल गोशाला है, जहां से लोगों को कम कीमत पर दूध मिलता है।
ल्ल विश्वविद्यालय परिसर में साइबर लाइब्रेरी है। यहां छात्रों को सारी सुविधाएं नि:शुल्क प्राप्त हैं।
बाबा की कृपा से सब संभव
भारतीय संस्कृति के प्रति लोगों में आस्था बनी रहे, इसीलिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी में की गई थी। काशी के लिए प्रसिद्ध है कि यह तीनों लोकों से न्यारी भगवान शंकर के त्रिशूल पर स्थापित है। महामना जब भी काशी से कहीं बाहर जाते तो बाबा विश्वनाथ का दर्शन करके जाते और जब वापस आते तो पुन: बाबा विश्वनाथ के दर्शन करते। उन्हें यह विश्वास था कि बाबा विश्वनाथ की कृपा के बिना विश्व में कोई भी कार्य पूर्ण अथवा सफल नहीं हो सकता। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विद्यार्थी अपने मंतव्य में सफल हों तथा जीवन में उन्नति को प्राप्त करें, इसका विचार कर उन्होंने विश्वविद्यालय के बीचोबीच बाबा विश्वनाथ का एक मंदिर बनाने की योजना रखी थी। इसका शिलान्यास उनके जीवन काल में ही हो गया था। आज वह मंदिर लोगों को गौरव का अनुभव कराता है।
सबसे बड़ा विश्वविद्यालय संग्रहालय
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 'भारत कला भवन' है, जो एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय संग्रहालय है। यहां के अधिकारी डॉ. आर.पी. सिंह ने बताया कि यहां की चित्र वीथिका (गैलरी) में 12वीं से 20वीं शती तक के भारतीय लघु चित्र प्रदर्शित हैं। इनके चित्रण में ताड़ पत्र, कागज, कपड़ा, काठ, हाथी दांत आदि का उपयोग किया गया है। प्रदर्शित चित्र भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रकाशित करते हैं। वीथिका में प्रदर्शित चित्रों का क्रम गोमिन्द्र पाल के शासन के चतुर्थ वर्ष (12वीं शती) में चित्रित बौद्ध ग्रंथ 'प्रज्ञापारमिता' से प्रारंभ होता है। लघुचित्रों की विकास गाथा पूर्वी भारत में चित्रित पोथी चित्रों से आरंभ होती है, जिनमें अजंता-भित्ति चित्रों की उत्कृष्ट परम्परा तथा मध्यकालीन कला विशिष्टताओं का अद्भुत समन्वय है।
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