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दिल्ली के डॉ. मामचंद सेवा भारती के प्रकल्प 'सक्षम समदृष्टि क्षमता विकास एवं अनुसंधान मंडल' से जुड़े हैं। वे बताते हैं इस प्रकल्प की शुरुआत दृष्टिहीन जनकल्याण संघ नाम से की गई थी। वर्ष 2008 में संस्था के लोगों का विचार बना कि विकलांगों के लिए कार्य करना चाहिए और सभी लोग लग गए इस कार्य में। आज उसका परिणाम है कि इस प्रकल्प के जरिए अभी तक हजारों विकलांगों को विभिन्न उपकरण, जैसे व्हील चेयर, बैसाखी व अन्य जरूरत की चीजें दी जा चुकी हैं। सक्षम संस्था ने दृष्टिीनों के लिए 'अबरार' नाम का यंत्र बनाया है। यह यंत्र दृष्टिहीन छात्रों के लिए बड़े ही काम का है। इसमें 'ऑडियो बुक रिकॉर्डिंग एंड बुक रीडिंग' (अबरार) की सुविधा है। बाजार में इसकी कीमत 15 हजार रुपए है। सक्षम की तरफ से इसे छात्रों को नि:शुल्क दिया जाता है। आज विभिन्न राज्यों के 37 प्रांतों में सक्षम का कार्य चलता है और हजारों की संख्या में इसके कार्यकर्ता हैं। साथ ही यह संस्था विद्यालय समय के बाद विकलांग व मूक बधिर छात्रों के लिए कक्षाएं भी आयोजित करती है ताकि वे सही से पढ़ाई करके रोजगार पा सकें।
विकास भारती, बिशुनपुर, झारखंड
झारखंड में यह संस्था विगत 32 वर्षों से कार्यरत है। इस संस्था ने वनवासियों के बीच रहकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों मंे विकास कार्य की पहल की है। इसके सकारात्मक कार्यों के कारण के 15 हजार युवक रोजगार से जुड़ चुके हैं। 500 गांवों में जैविक खेती व वैज्ञानिक तरीके अपनाने से कृषि को बढ़ावा मिला है। साक्षरता दर में वृद्धि हुई है और करीब 40 हजार बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़े हैं। साथ ही लगभग 40 लाख मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई गई हैं। स्वयं सहायता समूह की 1000 से अधिक महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। मातृ एवं शिशु मृत्युदर में कमी आई है। राज्य के सरकारी तंत्र पर लोगों का भरोसा बढ़ा है और नक्सली गतिविधियांे में भी कमी आई है। विकास भारती, बिशुनपुर के किनवा ओरान ने बताया कि 15-20 महिलाएं आचार, सिरका, शहद, जैम, आंवला तैयार करती हैं। ये सभी महिलाएं इस कार्य से पांच हजार रुपए मासिक प्राप्त कर अपनी जीविका चला रही हैं। उन्होंने बताया कि विकास भारती द्वारा संचालित करीब 11 विद्यालयों में 1500 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
सेवा भारती, गुंटूर (आंध्र प्रदेश)
सेवा भारती द्वारा गुंटूर में संचालित बाल संस्कार केन्द्रों में बच्चों को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। यहां हर वर्ष करीब 800 बच्चे हस्तकला का कौशल सीखते हैं। आज बहुत से बच्चे शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा बच्चों को हस्तशिल्प और सिलाई केन्द्र पर भी कई गुर सिखाए जा रहे हैं।
सेवा भारती, गुंटूर के जिला संयोजक श्रीनिवास कहते हैं कि तीन दशक से यह संस्था आंध्र प्रदेश में कार्यरत है। अकेले गुंटूर में ही करीब 20 बाल संस्कार केन्द्र हैं और प्रत्येक केन्द्र पर 30 से 50 बच्चे पढ़ने आते हैं। इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य सुचारू रूप से किया जाता है। यहां से शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे छोटी कक्षाआंे में पढ़ने वाले बच्चों को भी प्रशिक्षण देते हैं। आज यह केन्द्र राज्य के दर्जनों गांवों में बच्चों को प्रोत्साहन देने का व उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने का कार्य करता है। उन्होंने बताया कि पूरे राज्य में इस कार्य से बच्चे आत्मनिर्भर बने हैैं और यह केन्द्र महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी कारगर कदम उठा रहा है।
सेवा भारती, दिल्ली
विमला गोस्वामी, उम्र 65 के लगभग, लेकिन मन में एक दृढ़ संकल्प है कि कैसे अपने समाज को स्वावलंबी व शैक्षिक बनाया जाय। इस कार्य के को पूरा करने के लिए वे सतत सेवा कार्य में जुटी रहती हैं। विगत दस वर्षों से भी अधिक समय से वे सेवा भारती से जुड़ी हैं। दिल्ली के जहांगीरपुरी क्षेत्र में सेवा भारती के अंतर्गत बालवाड़ी चलाती हैं। उसके बाद जो समय बचता है उसमें महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए प्रशिक्षण देती हैं। उनके साथ ही हैं मधु शर्मा जो सेवा भारती के प्रकल्प से 5 वर्ष से जुड़ी हैं। वह इसी केन्द्र में 15 महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई, बाल संस्कार केन्द्र आदि चीजें सिखाती हैं। साथ ही वह अनुपयोगी हुए सामान से तरह-तरह के खिलौने, पर्स, बैग, महिलाओं के लिए विभिन्न सौंदर्य प्रसाधन की चीजों का निर्माण करती हैं। इससे इन्हें बनाने वालों को रोजगार भी मिलता है और वह कार्य सीख भी जाते हैं। जहांगीरपुरी क्षेत्र में में इनके 7 केन्द्र हैं, जबकि पूरी दिल्ली में 150 केन्द्र हैं। महिलाएं अधिक से अधिक संख्या में आत्मनिर्भर बनें, इसी ध्येय को लेकर ये आगे बढ़ रही हैं।
आरोग्य पीठ
यह सेवा संस्थान समाज में चलते-फिरते चिकित्सक तैयार करने का अद्भुत कार्य कर रहा है। यह संगठन लगभग 10 वर्षों से सेवा भारती से जुड़ा है। आज जब समाज का प्रत्येक वर्ग किसी न किसी रोग से पीडि़त है, ऐसे समय में यह केन्द्र लोगों के लिए सेवा ही नहीं कर रहा बल्कि एक तरीके से कुछ उपचारों के लिए स्वयं चिकित्सक तैयार करने का ही कार्य कर रहा है। आरोग्य पीठ के प्रबंधक नवीन कुमार कहते हैं कि आज के समय लोग ऐलोपैथिक दवाइयों से परेशान हैं। इनसे कुछ समय के लिए राहत मिलती है, लेकिन उसके बाद इन दवाइयों के प्रभाव से दूसरे रोग हो जाते हैं। इस केन्द्र ने 'एडवांस न्यूरोथैरेपी' उपचार केन्द्र के जरिये लोगों में एक आशा की किरण जगाई है। यह संस्थान बिना किसी दवा के उपचार करता है। जिसका कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं होता है। इस संस्थान द्वारा सर्वाइकल, घुटने, कमर व जोड़ों के दर्द, गठिया, माइग्रेन, नींद न आना, पेट संबंधी रोग, कब्ज, गैस, आंखों के रोग, शुगर, अस्थमा एवं अन्य रोगों का सफलतम उपचार किया जा रहा है। संस्थान न्यूरोथैरेपी का प्रशिक्षण देने के लिए भी कार्यक्रम आयोजित करता है।
संगम के दूसरे दिन के प्रथम सत्र को संबोधित किया सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने। उन्होंने कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करते हुए कहा, जो लोग सेवा में जुटे हैं उन्हें देखकर हमारा आगे का मार्ग प्रशस्त होता है। राष्ट्रीय सेवा भारती आज इसलिए है क्योंकि 1925 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम चला और आजकल मुझे उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना से सरसंघचालक का काम दिया गया है। उन्होंने सेवा संगम में आए सभी प्रतिनिधियों से सेवा प्रकल्पों और उनके कार्यों की संख्या बढ़ाने का आह्वान किया। साथ ही परामर्श दिया कि कामकाज का सिंहावलोकन कर सेवा करने वाले देश के सभी सज्जन व्यक्तियों को अपने साथ जोड़कर चलें।
श्री भागवत ने आगे कहा कि सेवा भारती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं। संघ का जन्म जिसके द्वारा हुआ उन संघ निर्माता के जीवन के यदि शुरुआती 15 वर्षों को छोड़ दिया तो जाए तो उनका बाकी सारा जीवन सेवा को ही समर्पित रहा है। सेवा हमारी परंपरा है। यही नहीं ये विश्व का सत्य भी है। सभी सुखी हों, सभी निर्भय हों, किसी को भी दुख-कष्ट न हो, इसलिए सभी को एक अनुशासन का पालन करना है। उस अनुशासन का नाम है धर्म, धर्म यानी पूजा नहीं, धर्म यानी सबको जोड़कर रखने वाला, सबको ऊपर उठाने वाला, सबको इस लोक में और परलोक में सुख प्राप्त करा देने वाला।
उन्होंने कहा कि हम यदि केवल अपने हित की चिंता करेंगे तो धर्म नहीं होगा। सबको साथ रहना है, सबको साथ चलना है। सबको आगे बढ़कर यशस्वी होना है, ये भान रखकर हम चलेंगे तो ही धर्म होगा, समाज की धारणा होगी, सब सुखी होंगे। अपनी क्षमताओं का उपयोग हम अपने लिए करते हैं। हम सब प्राणी की श्रेणी में आते हैं। आहार, निद्रा सबके लिए समान है। यदि केवल धर्म नहीं हो तो, लेकिन मनुष्य विचार करता है कि मेरे जीवन से सब सुखी हों, सबके जीवन सुखी होने में मेरा जीवन है। ऐसा जो मनुष्य होता है उसकी कहानियां हम लोग अपने बच्चों को बताते हैं। यही मनुष्य जीवन का कर्तव्य है।
सरसंघचालक ने आगे कहा कि सेवा के अभाव के कारण ही आज तक देश में दुर्बल वर्ग बना रहा है, लेकिन अब इस वर्ग में बदलाव आ रहा है और यह वर्ग समर्थवान बन रहा है। संघ का अर्थ ही सेवा है। हमारा उद्देश्य कुछ पाना नहीं, यदि ऐसा होता तो हमें देश से बाहर सेवा करने की क्या जरूरत थी। आज हम देश में नहीं बल्कि देश के बाहर भी सेवा कार्य कर रहे हैं। श्री भागवत ने आगे कहा कि सेवा के अनेक रूप हो सकते हैं । हम ऐसी सेवा चाहते हैं कि जिसकी सेवा करें वह भी दूसरे की सेवा करने में समर्थ बने। पिछले 25 वर्षों में सेवा भारती का यह स्वरूप बना है। लेकिन हमें अभी बहुत कार्य करना है। अभी तक हमने जो किया वह ऊंट के मुंह में जीरे के ही समान है। हमें समाज को ऐसा बनाना है कि समाज का सारा रूप, सारा अंग सुंदर बनें।
बेटी बचाओ की अलख जगाई
उत्तराखंड से सेवा संगम में आई डॉ. अर्चना डॉ. सूयाल देव संस्कृति विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं। विश्वविद्यालय में पढ़ाने के अतिरिक्त वह पूरे उत्तराखंड में बेटी बचाओ आंदोलन चला रही हैं। वह स्वयं पहाड़ी क्षेत्रों के गांव-गांव जाकर लोगों को बेटियों की महत्ता के बारे में बताती हैं और लोगों को बेटी बचाओ आंदोलन से जोड़ती हैं। इस दिशा में उन्होंने बेटी बचाओ से संबंधित तीन छोटी-छोटी पुस्तिकाएं भी लिखी हैं।
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