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सतीश पेडणेकर
जादी के बाद हमारे देश के मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकांे का प्रिय शगल और झूठा रोना-धोना इस बात का रहा है कि वे देश में उभर रही 'हिन्दू सांप्रदायिकता' का शिकार हो रहे हैं। इसके लिए वे वहां भी सांप्रदायिकता खोज लेते हैं जहां वह रत्तीभर भी नहीं होती। भाजपा की सरकार आ जाए तो यह साबित करने में वे अपनी सारी ताकत झोंक देते हैं। हमारा तथ्यों से अनभिज्ञ रहने वाला मीडिया तुरंत उनके झांसे में आ जाता है। हाल ही में दिल्ली में चचोंर् पर हुए 'हमलों' के बारे में जो असलियत सामने उभरकर आ रही है वह ईसाई मिशनरियों की खतरनाक सांप्रदायिक सोच को ही बेनकाब करती है।
पिछले दिसंबर से अब तक दिल्ली में चचांर्े और मिशनरी स्कूलों पर हमले की छह घटनाएं हो चुकी हैं। मिशनरियों ने मीडिया से अपने संबंधों का लाभ उठाकर इन हमलों को इस तरह पेश करने की कोशिश की कि देश में मोदी सरकार आने के बाद सांप्रदायिक असहिष्णुता बढ़ती जा रही है इसलिए लगतार चचोंर् पर हमले हो रहे हैं। वैसे कुछ जानकार लोगों का कहना है कि असल में जब भी देश में गैर कांग्रेसी सरकारें आती हैं तब ईसाई मिशनरियों का इस तरह का नाटक शुरू हो जाता है।
पिछले दिनों एक अंग्रेजी पत्रकार रूपा सुब्रमण्य ने दिल्ली में चचोंर् और स्कूलों पर हुए हमलों की पड़ताल की तो ईसाई मिशनरियों के झूठ को उजागर होते देर नहीं लगी। चर्च पर हुए हमलों की पड़ताल करने पर एक बात उभर कर आती है कि इनमें से कई तो हमले ही नहीं थे। आखिर बच्चों के खेल में चर्च के शीशे फूटने को सांप्रदायिक हमला तो नहीं माना जा सकता, न ही शार्ट सर्किट से लगी आग को चर्च जलाने की कोशिश माना जा सकता है। लेकिन जो हमले हुए ही नहीं, उनको भी 'सांप्रदायिक हमले' करार दे कर चर्च सांप्रदायिक तनाव पैदा कर रहा है।
लेकिन इन हमलों की जांच करने पर एक बात साफ पता चलती है कि इन कथित सांप्रदायिक हमलों के दावे झूठे थे। इन छह कथित हमलों में पहला हमला दिलशाद गार्डन के चर्च पर हुआ। दिसंबर में हुए हमले की गृह मंत्रालय की एसआईटी की टीम जांच कर रही है। दूसरी घटना जसोला की है जिसके बारे में कहा जाता है कि बदमाशों ने एक पत्थर फेंका और शीशे तोड़ दिए। पुलिस आयुक्त का कहना था कि बच्चे बाहर क्रिकेट खेल रहे थे और पत्थर उछाल रहे थे, जिनमें से एक पत्थर चर्च के अंदर आ गिरा। अभी तक तो इस घटना में कोई 'सांप्रदायिकता' सामने नहीं आयी है।
तीसरी घटना रोहिणी की है जिसके बारे में पुलिस का कहना है कि क्रिसमस की कुछ सजावट जल गई थी और ये, पुलिस के अनुसार शार्ट सर्किट के कारण हुआ। चौथी घटना विकासपुरी की है जिसमें पुरुषों का एक समूह चर्च में तोड़-फोड़ करता है। उन्होंने शराब के नशे में ऐसा किया था। उस घटना में तो वे सीसीटीवी पर दिखाई दिए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अपराध कबूल भी कर लिया, लेकिन यह भी ऐसी घटना नहीं थी जिसे सांप्रदायिक कहा जा सके। पांचवी घटना वसंत कुंज चर्च में सेंधमारी की है, जिसकी अभी जांच हो रही है। छठी घटना वसंत विहार के कांन्वेट स्कूल में चोरी की है जिसके बारे पुलिस और चर्च का कहना है यह चोरी की घटना है। वहां से 8000 रुपये चुराए गए। इस घटना में कहीं भी कैसी भी सांप्रदायिकता नाममात्र को नहीं है।
दिल्ली के सारे अपराध परिदृश्य में यह घटनाएं क्या मायने रखती हंै, यह देखना भी दिलचस्प रहेगा। दिल्ली पुलिस के अपने आकड़ों के मुताबिक 2014 में अपराध की 55,654 घटनाएं हुई जिनमें 10,309 सेंधमारी और 42,634 चोरी आदि की घटनाएं थीं, जिनमें मोटर कारें या घरों में चोरी शामिल नहीं थी। 2013 की तुलना में 2014 में अपराध की घटनाएं दोगुनी हुईं। गौरतलब है कि केवल चचोंर् में ही डकैती या तोड़फोड़ नहीं होती है। 2014 में 206 मंदिरों, 30 गुरुद्वारों, तीन चचोंर् और 14 मस्जिदों में भी सेंधमारी की घटनाएं हुईं। यह तथ्य समाने आने के बावजूद चर्च के नेता देशी-विदेशी मीडिया को यही बताते रहे कि 'इन हमलों में एक पैटर्न है। ये हमले सांप्रदायिक असहिष्णुता के प्रतीक हैं। संघ परिवार से जुड़े संगठनों के लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं।' कुछ तथ्यहीन घटनाओं की आड़ में यह कहानी गढ़ने की कोशिश की गई।
चर्च की सांप्रदायिक मानसिकता का इससे भी पता चलता है कि जिन मामलों में तथ्य सामने आ गए हैं, अपराधी पकड़े गए हैं और जिन्होंने स्वीकार किया है कि शराब के नशे में उन्होंने यह किया, उन तथ्यों को देखकर भी आर्चबिशप अनिल काउतो कहते हैं कि वे पुलिस की सफाई से संतुष्ट नहीं हैं। दरअसल ऐसा इसलिए है कि मिशनरी इन घटनाओं में किसी हिन्दू संगठन का हाथ देखना चाह रहे हैं। वह नहीं नजर आता तो वे जांच के निष्कषोंर् को मानने को तैयार नहीं हैं। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि उनके आरोप पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं और हिन्दू संगठनों को जिम्मेदार ठहराने के उनके एजेंडे का हिस्सा हैं।
ईसाई मिशनरी ईसाई समाज की कुछ हस्तियों को भी अपनी सांप्रदायिक राजनीति की कीचड़ में घसीटने मेंे कामयाब हो गए हैं। इनमें से एक हंै जूलियो रिबेरो, जिन्होंने पूर्व पुलिस आयुक्त होते हुए भी इन हमलों की हकीकत को समझने की कोशिश नहीं की और लिखा, 'मैं असुरक्षित महसूस कर रहा हूं।' हालांकि बाद में उन्होंने माना कि 'मैंने ओवर रिएक्ट किया। मैं तो केवल इतना चाहता था कि प्रधानमंत्री मोदी इस पर ध्यान दें।'
यदि ईसाइयों में डर है तो उसके खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाने वाला मैं होऊंगा। लेकिन सच यह है कि यह भय बेबुनियाद है और कपोल-कल्पित है।
– जगदीश एन. भगवती, प्रोफेसर, कोलंबिया विश्वविद्यालय
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