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मैसूर (कर्नाटक) स्थित गणपति सच्चिदानन्द आश्रम में 1 से 5 फरवरी तक विश्व की श्रेष्ठ प्राचीन संस्कृतियों और परम्पराओं पर 5वां अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ। इसका उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने 1 फरवरी को किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता श्री गणपति सच्चिदानन्द स्वामी जी ने की। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले भी उपस्थित थे। सम्मेलन में 40 देशों की अलग-अलग 73 संस्कृतियों के लगभग 250 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसका आयोजन 'अन्तरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र' (आई.सी.सी.एस.) ने किया था।
अपने उद्बोधन में श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि इस अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का विषय है वैश्विक कल्याण तथा प्रकृति, संस्कृति और समुदायों का संरक्षण। ये सभी शब्द वैश्विक रूप से स्वीकृत हैं और प्रसिद्ध भी हैं, लेकिन लोगों को अभी इनके सार्वभौमिक होने का इंतजार है। संसार अनेक चीजों से मिलकर बना है और वे सारी चीजें एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इस सृष्टि की हर वस्तु दूसरी वस्तु पर प्रभाव डालती है। इसलिए हमारे प्राचीन परम्परावादियों ने कहा कि आधुनिक विज्ञान जो भी खोज करेगा, वह कहीं न कहीं परम्परा से अवश्य जुड़ी होगी। उन्होंने कहा कि आज हममें एक-दूसरे को सहन करने की शक्ति होनी चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति की सत्ता को स्वीकार करने की आवश्यकता है। विभिन्न परम्पराएं अलग-अलग भले दिखती हैं, लेकिन सार रूप में एक हैं। हमारी परम्परा कहती है कि हमें सृष्टि की प्रत्येक चीज को जीवन्त बनाना है, प्रत्येक चीज को स्वीकार करना है और दूसरी परम्पराओं का ख्याल रखना है। एकात्मता ही वास्तविक और स्थाई सत्य है।
श्री गणपति सच्चिदानन्द स्वामी जी ने कहा कि एक साथ इतने देशों के लोगों को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। हमें एक-दूसरे की संस्कृति और परम्पराओं को जानने का प्रयास करना चाहिए। हम एक-दूसरे के अनुभवों से लाभ लें। स्वागत भाषण आई.सी.सी.एस. के अध्यक्ष श्री शेखर पटेल ने दिया।
सम्मेलन के अंतिम दिन के एक सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में हम प्रकृति के विरुद्ध गए और समस्याओं को आमंत्रित किया। अब हम प्रकृति के संरक्षण के लिए सजग हुए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण हमारा दायित्व होना चाहिए। इस अवसर पर विश्व विभाग के श्री सौमित्र गोखले, श्री श्याम पराण्डे, श्री शंकरराव तत्ववादी, श्री रवि अय्यर, प्रान्त संघचालक श्री एम. वेंकटराम, प्रान्त सह कार्यवाह श्री बी.वी. श्रीधर स्वामी, प्रान्त प्रचारक श्री मुकुन्द सहित अनेक वरिष्ठ प्रचारक और कार्यकर्ता उपस्थित थे। सम्मेलन में विभिन्न संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक विशिष्टजन आए थे। उन्होंने अपनी-अपनी संस्कृति और परंपराओं के बारे में अनूठी जानकारियां दीं। ल्ल
अफवाहबाजों को संघ की चेतावनी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन की विवादास्पद पुस्तक 'मधोरूबागान' के बाजार से हटने को लेकर संघ के बारे में की जा रहीं निराधार बातों पर चेतावनी दी है। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने 1 फरवरी को दिल्ली से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, 'संघ ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि मुरुगन की पुस्तक को बाजार से हटाने में संघ की कोई भूमिका नहीं है। इसके बावजूद सुभाषिनी अली जैसे कुछ लोग इस मामले में किसी खास मकसद के चलते संघ का नाम उछाल रहे हैं। यह भर्त्सना के योग्य है। हम आशा करते हैं कि इस तरह की गतिविधियां शीघ्र ही बन्द होंगी। यदि ऐसा नहीं होगा तो संघ अन्य मार्ग अपनाने के लिए बाध्य हो सकता है।'
उल्लेखनीय है कि मुरुगन ने अपनी इस पुस्तक में सनातन धर्म के बारे में कई आपत्तिजनक बातें लिखी हैं। तमिलनाडु में इस पुस्तक का आम लोगों ने भारी विरोध किया है। इस कारण पुस्तक के प्रकाशक ने इसे बाजार से वापस ले लिया है, लेकिन कुछ सेकुलर इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका बता
रहे हैं। ल्ल प्रतिनिधि
प्रतिनिधि देशद्रोही का साथ न दे देश
विश्व हिन्दू परिषद् ने दिल्ली के चिकित्सकों तथा चिकित्सालयों से अपील की है कि वे भारतीय सेना तथा जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों की जान लेने वाले आतंकवादियों के पक्षधर कश्मीरी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का इलाज बिल्कुल न करें। विश्व हिन्दू परिषद् के अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ़ सुरेन्द्र कुमार जैन ने 31 जनवरी को एक बयान जारी कर अपील की कि दिल्ली के डॉक्टर ऐसे देशद्रोहियों को अस्पताल की जगह जेल में भर्ती कराएं तथा दिल्ली पुलिस इस मामले में उनकी मदद करे। उल्लेखनीय है कि हुर्रियत कान्फ्रेंस के चेयरमैन गिलानी इन दिनों अपने इलाज के लिए दिल्ली में हैं।
डॉ. जैन ने यह भी कहा कि अभी हाल ही में अपनी जान पर खेलकर जिस भारतीय सेना ने भीषण प्राकृतिक आपदा से पूरे कश्मीर को बचाया उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की बजाय हमारे सैनिकों के हत्यारों का साथ देने वाले गिलानी का सम्पूर्ण देश बहिष्कार करे। ज्ञातव्य रहे कि पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के त्राल में सेना के कर्नल एऩ एऩ राय और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सिपाही संजीव सिंह ने दो आतंकवादियों को मार गिराया था। हालांकि बाद में वे दोनों भी शहीद हो गए थे। लेकिन गिलानी ने मारे गए आतंकवादियों को शहीद बताते हुए कहा था कि उनका पवित्र खून बेकार नहीं जाएगा। ल्ल प्रतिनिधि
'भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ उपासक थे रज्जू भैया'
गत दिनों प्रयाग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक प्रो़ राजेन्द्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया का जन्मदिन मनाया गया। इस अवसर पर नगर में अनेक स्थानों पर विविध प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करके उनके व्यक्त्वि एवं कृतित्व पर प्र्रकाश डाला गया। संघ कार्यालय में प्रात: रज्जू भैया के चित्र पर दीप प्रज्जवलन एवं पुष्पार्चन के पश्चात् सुन्दरकांड का पाठ एवं हवन का कार्यक्रम हुआ। उसके बाद स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया, जहां नगर के प्रतिष्ठित चिकित्सकों द्वारा बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। ज्वाला देवी इण्टर कॉलेज में आयोजित एक समारोह में उ़ प्ऱ लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के़ बी़ पाण्डेय ने कहा कि रज्जू भैया सहजता, विनम्रता एवं उदारता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। उनका पूरा जीवन समाज और देश के लिए समर्पित रहा। छात्र जीवन से लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर होेने तक या फिर संघ के सामान्य स्वयंसेवक से सरसंघचालक बनने तक उन्हांेने अनुकरणीय मानदण्ड स्थापित किए। उनकी वैज्ञानिक प्रतिभा विश्व विख्यात थी। वे उन प्रतिभाशाली लोगों में थे जिनसे डा़ॅ सी. वी. रमन बेहद प्रभावित थे। डा़ॅ रमन ने रज्जू भैया को अपने इंस्टीट्यूट, बेंगलुरू भी आमंत्रित किया था।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. ए. के़ मालवीय ने कहा कि रज्जू भैया का व्यक्त्वि तथा कृतित्व सदैव अनुकरणीय रहा है। एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक होने के साथ-साथ उनका चिन्तन देश और समाज के लिए था। रज्जू भैया सच्चे अथार्ें में भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ उपासक थे। हरिमंगल
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