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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 9 अंक: 29
30 जनवरी,1956
रा.स्व.संघ की बम्बई शाखा के नेताओं की अपील
बम्बई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बम्बई शाखा के दो प्रमुख कार्यकर्ताओं श्री एन.एच. हेलकर तथा श्री पद्मभाई खोने ने निम्न वक्तव्य प्रसारित किया है।
'भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन करने वाले समस्त नेता तथा राजनीतिक दल अनेक बार कह चुके हैं कि ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाना चाहिए जो भारत राष्ट्र की अखंडता और एकता को आघात पहुंचा सके तथा 'संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन' वैधानिक तथा शांतिपूर्ण तरीकों से चलाया जाना चाहिए।
किन्तु यह सब कुछ होते हुए भी एक निष्पक्ष पर्यवेक्षक को यह देखकर अत्यंत वेदना होती है कि उक्त महानुभावों के समक्ष उच्च आदर्श और कल्याणकारी भाव रहते हुए भी बम्बई नगर में कुछ ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं घटित हुई हैं जिनके कारण देश और जन-धन को क्षति पहुंची है। यदि यह चलता रहा तो न केवल नगर की शांति के लिए ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा वरन् समस्त राष्ट्र का शांत वातावरण अशांत बन जाएगा।
अत: हम जनता से अपील करते हैं कि हम एक दूसरे को अपना बंधु समझें, स्वयं को प्रथम और अंतिम रूप में भारतीय समझें और एक दूसरे के प्रति कोई विद्वेषात्मक अथवा ऐसा कार्य न करें। जिससे दूसरे राष्ट्र यह समझ सकें कि हम अपना विकास करने में या स्वयं का शासन करने में अथवा एक महान राष्ट्र के समान व्यवहार करने में असमर्थ हैं।
हम जनता से यह भी अनुरोध करते हैं कि इस प्रकार का कोई व्यवहार न करें जिसके कारण एकात्मक का भाव दृष्टि से ओझल हो सके। हम विशेष रूप से सरकार से अपील करते हैं कि वह जनता की इस प्रकार की उत्तेजना को दबाने के लिए शक्ति का प्रयोग न करें जिसका तर्क के आधार पर समाधान किया जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य भारत की एकात्मता एवं अखंडता को चिरस्थायी बनाये रखना है और इसलिए यह अपील की जा रही है।
बम्बई नगर को तनसा एवं खोपली झीलों से पानी सप्लाई करने वाले नलों की सुरक्षा की निमित्त फौज का कड़ा पहरा लगा दिया गया है।
इस बात की आशंका है कि जिस प्रकार कुछ उपद्रवियों ने टेलीफोन और बिजली के तारों को काटने की शरारतें कीं, कहीं इन नालों को काटने का भी प्रयास न करें जिससे नगर में पानी का संकट हो जाए।
जनसंघ-कार्यकर्ताओं पर अत्याचार
जनसंघ के विरुद्ध पुलिस-कांग्रेस गठबंधन
हरगांव (सीतापुर से ज्ञात हुआ है कि अभी हाल में स्थानीय बाजार में पंचायत चुनाव के आपसी मनमुटाव को लेकर ग्रामीणों में मारपीट हुई जिसमें लाठी,बल्लभ आदी का खुलकर प्रयोग हुआ। अफवाह इस प्रकार की भी है कि गोली भी चली।)
कहा जाता है कि कांग्रेसी नेताओं के इस झगड़े को कांग्रेस-जनसंघ के झगड़े का रूप प्रदान कर दिया। सीतापुर के एक कांग्रेसी एम.एल.ए. तथा अन्य कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ता हरगांव पहुंचे और उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग जनसंघ के कार्यकर्ता के विरुद्ध खुलकर किया। बताया जाता है कि सीतापुर के कोतवाल (जो किसी समय हरगांव में रह चुके हैं और अपने जनसंघ के प्रति विरोधी रूख के लिए सर्वविदित हैं)ने भी कांग्रेसी नेताओं की खुलकर सहायता की। जनसंघ के 16 कार्यकर्ता बन्दी बनाए गए। जिनमें मण्डल जनसंघ के प्रधान ठा. गजराज सिंह,डा. बंशीधर,श्री शीतला प्रसाद तथा संकटा प्रसाद जी भी शामिल हैं।
पुलिस ने दूसरे पक्ष के 9 लोगों को भी गिरफ्तार किया जिन्हें बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया। जनसंघ के कार्यकर्ताओं का प्रर्थना-पत्र अस्वीकृत कर दिया गया है। स्मरण रहे काफी समय से स्थानीय पुलिस तथा कांग्रेसी नेता किसी न किसी प्रकार जनसंघ के कार्यकर्ताओं को क्षति पहंुचाने के लिए कार्य करते रहते हैं। पहले जनसंघ के एक कार्यकर्ता की हत्या भी हो चुकी है।
सीतापुर जनसंघ द्वारा एक सार्वजनिक सभा में हरगांव पुलिस द्वारा किए गए अत्याचारों की निन्दा की गई और सरकार से तुरन्त जांच का अनुरोध किया गया। हरगांव की जनता में उक्त घटना के कारण तीव्र क्षोभ व्याप्त है। कहा जाता है कि अभी हाल में पंचायत चुनाओं में कांग्रेस को जो भयंकर पराजय और जनसंघ को भारी विजय प्राप्त हुई है,उसके प्रति कांग्रेसियों में व्याप्त झुंझलाहट ने भी इस घटना के पीछे कार्य किया। स्मरण रहे 217 स्थानों में से 118 स्थान पर जनसंघ के,69 स्थानों पर कांग्रेस के तथा 40 स्थानों पर स्वतंत्र अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।
दिशाबोध
मूर्त समाज की अमूर्त शक्ति -श्रीगुरुजी
मनुष्यों के बीच से ही एक मनुष्य सत्ता ग्रहण करता है। हिंदू संस्कृति के अनुसार ही भारत का भाग्य निर्णय होगा,यदि यह सांस्कृतिक दृष्टिकोण रहा तो कुर्सी पर कोई बैठे-'कोऊ होय नृप'। कितनी सत्ताएं आईं और गईं,किंतु सांस्कृतिक दृष्टिकोण रखने वालों ने अपने को जीवित रखा। मुगल सल्तनत में जब हिंदू जनता की रक्षा के लिए सत्ता को चुनौती देने वाला कोई न था,सबने परकीय सत्ता स्वीकार कर ली थी,तब प्रलोभन और जबरदस्ती के बीच हिंदू को अहिंदू बनाने के प्रयत्नों में भी हिंदू कैसे जीवित रहे? वे केवल उनके बल पर जीवित रहे,जिन्होंने सांस्कृतिक अधिष्ठान रखकर प्रभु रामचंद्र के गीत सुनाए, कृष्ण के गान किए,जीवन-परंपरा को बनाए रखा,श्रद्धा को जागृत रखा और पतन में भी नैतिक स्वर ऊंचा उठाया। यही सर्वत्र हुआ। सांस्कृतिक कार्य करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की परंपरा जब सौ-सौ,दो-दो सौ साल चलती है,तब एकाध ऐसे व्यक्ति का,जो सांस्कृतिक अधिष्ठान लेकर राजसत्ता निर्माण करे,जन्म होता है। शिवाजी के पीछे की ही परंपरा को हम देखें। संत ज्ञानेश्वर से लेकर तुकाराम तक की धार्मिक लहर से चैतन्य उत्पन्न करने वाली परंपरा द्वारा जब वायुमंडल बना,तब उस अधिष्ठान
पर वे चमके।…
-श्रीगुरुजी समग्र: खण्ड 2 पृष्ठ 88
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